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जो मुक्त है, वही बन्धनसे छुड़ा सकता है (ब्रह्मलीन परम अडेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका)

जो मुक्त है, वही बन्धनसे छुड़ा सकता है

(ब्रह्मलीन परम अडेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका)

एक राजा थे। उनके पास एक बड़े विद्वान् पण्डित आया करते थे। वे प्रतिदिन राजाको कथा सुनाते थे। उनको कथा सुनाते बरसों बीत गये। राजा साहबने पण्डितजीको एक दिन कहा कि महाराजजी! आपको रोज कथा सुनाते हुए कई वर्ष हो गये। जैसी कथा आज सुनायी, वैसी प्रतिदिन सुनाते हैं। सुनाते-सुनाते आप बूढ़े हो गये और मैं भी बूढ़ा हो गया, किंतु मैं कई वर्ष पहले जैसा था, वैसा ही आज भी हूँ। आपकी कथाके निमित्त सालभरमें ३-४ हजार रुपये लग जाते हैं। वह खजानेमें घाटा ही पड़ता है। चार हजार रुपये प्रति साल खर्चा व्यर्थमें क्यों करूँ ? उसका कुछ तो लाभ होना चाहिये। आपका और मेरा दोनोंका समय नष्ट होता है और रुपया भी खर्च होता है। इसका उपाय बतलाइये कि सुधार क्यों नहीं होता ? जबकि आपकी बातें मैं सुनता | आप वैराग्य, भक्ति, ज्ञानकी बातें करते हैं, किंतु आपकी बातोंको सुनकर न तो मैं
भक्त बना, न ज्ञानी, न सदाचारी और न योगी! आप इसका उत्तर एक महीनेके अन्दर दें। यदि एक महीनेके अन्दर इसका उत्तर नहीं मिलेगा तो यह कथा बन्द कर दी जायगी और आपका वेतन बन्द हो जायगा। आपको अपनी जीविकाका दूसरा रास्ता देखना पड़ेगा।
यह सुनकर पण्डितजीके होश गुम हो गये। पण्डितजी विचार करने लगे कि मैं इसका क्या जवाब दूँ। पण्डितजी इसी चिन्तामें मग्न हुए जा रहे थे कि रास्तेमें उन्हें एक सच्चे महात्मा मिले। वे बड़े विरक्त और त्यागी थे, उनके चित्तमें बड़ा वैराग्य था। वे बड़े उच्च कोटिके पुरुष थे। पण्डितजीका चेहरा उदास देखकर उन्होंने पण्डितजीसे पूछा कि 'क्या बात है ?' पण्डितजी बोले 'बात यह है कि एक महीनेके बाद हमारी रोजी यानी जीविका बन्द होने जा रही है'। महात्माने पूछा- 'क्यों?' उन्होंने बताया कि राजाने मुझसे एक प्रश्न पूछा है और उसका मेरे पास कोई उत्तर नहीं। प्रश्न यह है कि आप ज्ञान, वैराग्य, भक्तिकी बातें कहते हैं और आपकी बातोंको मैं सुनता हूँ, किंतु मुझमें न तो रत्तीभर वैराग्य हुआ, न ज्ञान और न भक्ति हुई, इसका उत्तर दीजिये, नहीं तो यह खर्चा मैं बन्द करूँगा। महात्मा बोले—'इसके लिये आप क्यों
चिन्ता करते हैं। इसका उत्तर तो मैं दे दूंगा।' पण्डितजी बोले-'आपके उत्तर देनेसे तो हमारी हानि होगी यानी एक हीनता आयेगी कि इसका उत्तर पण्डितजी नहीं दे सके, इस साधुने दिया है।' महात्माने कहा- 'नहीं, आपकी हीनता नहीं होगी। आप राजा साहबसे कह देना कि यह तो मामूली बात है, इसका उत्तर तो हमारे शिष्य भी दे सकते हैं। और मैं आपका शिष्य बन जाऊँगा। जब मैं आपका शिष्य बनकर उत्तर दूँगा, तब तो आपकी कोई हानि नहीं होगी। पण्डितजी बोले-'तब तो नहीं होगी।' पण्डितजी महाराज दूसरे दिन गये। राजाने फिर पूछा कि 'महाराज! आपने इस विषयका उत्तर तैयार किया ?" पण्डितजी बोले- 'महाराज! इसका उत्तर तो मामूली बात है, वह तो हमारे शिष्य भी दे सकते हैं, हमारे ऐसे बहुत से शिष्य हैं।' राजा बोले- 'मुझे क्या, आप दें या आपका शिष्य, मुझे मेरे प्रश्नका उत्तर मिलना चाहिये। कल आप अपने शिष्यको ले आइयेगा।'
दूसरे दिन पण्डितजी उन महात्माको ले गये। वे उनके शिष्य बनकर चले गये। राजाने पूछा-'आप इनके शिष्य हैं ?' महात्मा बोले-'हाँ महाराज। राजाने कहा कि हमारा प्रश्न आपको मालूम है ?' महात्मा बोले- 'हाँ, मालूम है। आपका प्रश्न यह है कि आपको ज्ञान, वैराग्य, भक्तिकी बातें सुनते हुए करीब तीस वर्ष बीत गये, किंतु उसका असर आपपर क्यों नहीं हुआ ?' राजाने कहा 'ठीक यही बात है।' उन्होंने कहा-'इसका उत्तर मैं तब दे सकता हूँ, जब आप अपनी राज्यकी सारी शक्ति तथा अधिकार दो घड़ीभरके लिये मुझे दे दें।' राजाने कहा 'ठीक है' और सब कर्मचारियोंको बुलाकर कह दिया कि मैं अपने राज्यका अधिकार दो घड़ीके लिये इन्हें देता हूँ, ये जैसा कहें, वैसा ही तुमलोग करना।
राजगद्दी पर बैठकर महात्माने हुक्म दिया कि पण्डितजीको रस्सीसे बाँध दो। उन्होंने उनको बाँध दिया। फिर आज्ञा दी कि दूसरी रस्सी लाकर इस राजाको बाँध दो। आज्ञाके अनुसार राजा भी बाँध दिया गया। दोनों सोचते हैं कि ये क्या कर रहे हैं? कुछ समझमें नहीं आ रहा है। अब महात्मा पण्डितजीसेकहते हैं कि पण्डितजी, आपने राजा साहबको इतने दिनतक कथा सुनायी, अब उनसे कहिये कि मैं तकलीफ पाता हूँ, मेरी रस्सी खुलवा दें। पण्डितजीने राजा साहबसे कहा- 'मेरी रस्सियाँ खुलवा दो।' राजाने कहा-'मैं कैसे खुलवा पण्डितजी बोले-'तो आप खोल दें।' राजाने कहा कि 'मैं तो खुद बँधा हुआ हूँ, मैं कैसे खोल दूँ?' फिर बोले-'किसी प्रकार खुलवा दें।' राजाने कहा- 'मेरा हुक्म नहीं चलता, कैसे खुलवाऊँ ? न तो मेरा हुक्म चलता है, न मेरे हाथ खुले हुए हैं।' महात्माने राजा साहबसे कहा कि 'आपने इतने वर्षोंतक पण्डितजीसे कथा सुनी। पण्डितजीसे कहें कि आप मुझे खोल दीजिये।' पण्डितजीने कहा कि 'मैं खुद बँधा हुआ हूँ, मैं कैसे खोल दूँ?' अब राजा साहबसे महात्माजी पूछते हैं कि 'आपके प्रश्नका उत्तर मिला कि नहीं ?' राजाने कहा-'मैं समझा नहीं।' पूछा-'अभी भी नहीं समझे। आप स्वयं बँधे हुए हैं तो दूसरेको खोल सकते हैं क्या ? अपने खुदको ही नहीं खोल सकते तो फिर दूसरेको कैसे खोलेंगे ?' बोले-'हाँ समझ गया।' पण्डितजीसे कहा 'आप इसका मतलब समझे? आप बँधे हुए दूसरेको खोल सकते हैं?' बोले- 'नहीं खोल सकते।' तब बोले-'महाराज, बात यह है कि ये पण्डितजी कथा तो | आपको प्रतिदिन सुनाते हैं, किंतु ये खुद बध हुए हैं। ये खुद संसारके बन्धनसे बँधे हैं, आप इनसे मुक्ति चाहते हैं। यदि पण्डितजी खुद मुक्त तो आपको मुक्त करें। खाली कथा सुनानेसे थोड़े ही मुक्ति होती है। तोता और मैना ‘राधेकृष्ण-राधेकृष्ण' रटते रहते हैं। इनको यह ज्ञान नहीं है कि हम 'राधेकृष्ण-राधेकृष्ण' क्यों रटते हैं। जब बिल्ली आती है और उनको पकड़ती है तो वे 'राधेकृष्ण' भूलकर 'टॉय-टॉय' करने लग जाते हैं। यही दशा पण्डितजीकी है। ऐसी परिस्थितिमें पण्डितजी आपको कैसे छुड़ा सकते हैं? जो संसारसे छूटा हुआ है, खुला हुआ है, ऐसे मुक्त पुरुषका असर पड़ सकता है और जो संसारमें खुद बँधे हुए हैं-ऐश, आराम, भोगोंमें बँधे हुए हैं, वे दूसरोंको क्या छुड़ायेंगे? ऐसा पुरुष होना चाहिये, जिसका संसारसे तीव्र वैराग्य हो । संसारसे केवल तीव्र वैराग्य ही नहीं, उपरति भी हो और उसे परमात्माके तत्त्वका ज्ञान भी हो। ऐसा उच्च कोटिका महापुरुष हो तभी उसकी बातका असर होता है।'



jo mukt hai, vahee bandhanase chhuda़a sakata hai (brahmaleen param adey shreejayadayaalajee goyandakaa)

jo mukt hai, vahee bandhanase chhuda़a sakata hai

(brahmaleen param adey shreejayadayaalajee goyandakaa)

ek raaja the. unake paas ek bada़e vidvaan pandit aaya karate the. ve pratidin raajaako katha sunaate the. unako katha sunaate barason beet gaye. raaja saahabane panditajeeko ek din kaha ki mahaaraajajee! aapako roj katha sunaate hue kaee varsh ho gaye. jaisee katha aaj sunaayee, vaisee pratidin sunaate hain. sunaate-sunaate aap boodha़e ho gaye aur main bhee boodha़a ho gaya, kintu main kaee varsh pahale jaisa tha, vaisa hee aaj bhee hoon. aapakee kathaake nimitt saalabharamen 3-4 hajaar rupaye lag jaate hain. vah khajaanemen ghaata hee pada़ta hai. chaar hajaar rupaye prati saal kharcha vyarthamen kyon karoon ? usaka kuchh to laabh hona chaahiye. aapaka aur mera dononka samay nasht hota hai aur rupaya bhee kharch hota hai. isaka upaay batalaaiye ki sudhaar kyon naheen hota ? jabaki aapakee baaten main sunata | aap vairaagy, bhakti, jnaanakee baaten karate hain, kintu aapakee baatonko sunakar n to main
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chinta karate hain. isaka uttar to main de doongaa.' panditajee bole-'aapake uttar denese to hamaaree haani hogee yaanee ek heenata aayegee ki isaka uttar panditajee naheen de sake, is saadhune diya hai.' mahaatmaane kahaa- 'naheen, aapakee heenata naheen hogee. aap raaja saahabase kah dena ki yah to maamoolee baat hai, isaka uttar to hamaare shishy bhee de sakate hain. aur main aapaka shishy ban jaaoongaa. jab main aapaka shishy banakar uttar doonga, tab to aapakee koee haani naheen hogee. panditajee bole-'tab to naheen hogee.' panditajee mahaaraaj doosare din gaye. raajaane phir poochha ki 'mahaaraaja! aapane is vishayaka uttar taiyaar kiya ?" panditajee bole- 'mahaaraaja! isaka uttar to maamoolee baat hai, vah to hamaare shishy bhee de sakate hain, hamaare aise bahut se shishy hain.' raaja bole- 'mujhe kya, aap den ya aapaka shishy, mujhe mere prashnaka uttar milana chaahiye. kal aap apane shishyako le aaiyegaa.'
doosare din panditajee un mahaatmaako le gaye. ve unake shishy banakar chale gaye. raajaane poochhaa-'aap inake shishy hain ?' mahaatma bole-'haan mahaaraaja. raajaane kaha ki hamaara prashn aapako maaloom hai ?' mahaatma bole- 'haan, maaloom hai. aapaka prashn yah hai ki aapako jnaan, vairaagy, bhaktikee baaten sunate hue kareeb tees varsh beet gaye, kintu usaka asar aapapar kyon naheen hua ?' raajaane kaha 'theek yahee baat hai.' unhonne kahaa-'isaka uttar main tab de sakata hoon, jab aap apanee raajyakee saaree shakti tatha adhikaar do ghada़eebharake liye mujhe de den.' raajaane kaha 'theek hai' aur sab karmachaariyonko bulaakar kah diya ki main apane raajyaka adhikaar do ghada़eeke liye inhen deta hoon, ye jaisa kahen, vaisa hee tumalog karanaa.
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