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[ ठाकुर किशनसिंह] देखो भगवान कैसे हर कदम पर भक्त के साथ खड़े रहते हैं?

बीकानेर राज्यान्तर्गत गारबदेसर एक ताजीमी ठिकाना था। भक्त किशनसिंहजी वहींके ठाकुर थे। उनका गोलोकवास हुए लगभग पैंसठ वर्ष हुए हैं। ठाकुर साहब श्रीमुरलीधरजीके बड़े भक्त थे । जनतामें प्रसिद्ध है कि उनको प्रत्येक दिन पूजनके पश्चात् सवा माशा सोना भगवान्‌से मिला करता था और वे उक्त सोनेको नित्य ब्राह्मणोंको दान कर दिया करते थे। अद्यावधि मूर्तिके अधरोष्ठपर सोनेका चिह्न है। एक दिन ठकुरानी साहबाने हठ करके सोना अपने पास रख लिया था, उसके बाद मूर्तिद्वारा सोना प्राप्त नहीं हुआ। ऐसी ही अनेक बातें उनके सम्बन्धमें जनताद्वारा सुननेमें आती हैं। उनमें से कुछका पाठकोंको परिचय कराया जाता है। सम्भव है कि आजकलके वैज्ञानिक विद्वान् इन बातोंपर विश्वास न करें, परन्तु जो भगवान्‌के भक्त हैं, उनके हृदयमें इनका अक्षर-अक्षर प्रेम और भक्तिका उद्रेक उत्पन्न किये बिना न रहेगा; क्योंकि भगवत्-प्रभावकी ये बातें जितनी भक्तलोग समझते हैं, उतनी और कोई नहीं । अस्तु !

ठाकुर साहब ईश्वरकी शपथका बहुत मान रखते थे, यहाँतक कि कई बार दुष्ट प्रकृतिवालोंने उनको शपथ दिलाकर धोखा देनेका भी प्रयत्न किया था ।

एक बार कुछ चोरोंने उनको यह शपथ दिला दी थी कि 'ठाकुर साहब ! हम ऊँटोंको ले जाते हैं। यदि आपने किसीसे कहा तो आपको भगवान्‌की आन (शपथ) है।' ठाकुर साहबने किसीसे नहीं कहा, परन्तु चोर ऊँटोंको तमाम रात दौड़ाकर सबेरे वापिस उसी गाँवके पास आ गये । प्रातःकाल चोरोंने पूछा – 'यह कौन-सा गाँव है ?' लोगोंद्वारा गारबदेसर सुनकर उनको बहुत ही आश्चर्य हुआ और पकड़े जानेके भयसे वे भयभीत होकर ऊँटोंको वहीं छोड़कर भाग गये।

एक साल गारबदेसरके चारों ओर सभी जगह वर्षा हो गयी थी, परन्तु वहाँ एक बूँद भी नहीं पड़ी। इससे ठाकुर साहबने कहा कि -

सो कोसाँ बिजली खिंवें, यामें कूण सँदेह ।
किसनाकी तृसना मिटै, जो आँगन बरसे मेह ।

भगवान्ने उनकी प्रार्थनापर तुरंत ध्यान दिया। उसी समय बादलोंकी घटा छा गयी और अच्छी वर्षा हुई। ठाकुर साहब जागीरदार होते हुए भी हमेशा काठकी तलवार ही म्यानमें रखा करते थे। एक बार किसी चुगलखोरने बीकानेर-नरेशसे कह दिया कि गारबके ठाकुर समयपर क्या काम आयेंगे। वे तो काठकी तलवार लटकाये रहते हैं। इसपर दशहरेके उत्सवमें, जब कि सभी जागीरदार मौजूद थे, महाराजा साहबने कोई प्रसङ्ग उठाकर सबको अपनी-अपनी तलवार दिखानेकी आज्ञा दी। सभीने अपनीअपनी तलवारें निकाल लीं, परंतु ठाकुर साहब इतने डरे कि वे थर-थर काँपने लगे और मन-ही-मन ईश्वरसे प्रार्थना करने लगे, 'हे भगवन् ! आज किशनकी इज्जत आपके ही हाथ है ।' और डरतेडरते उन्होंने तलवारको म्यानसे निकाला, परंतु तलवारके निकालते ही राजसभामें तलवारकी चमकसे सबकी आँखों में चकाचौंध छा गयी। तब महाराजा साहबने उस चुगलखोरको बहुत ही बुरा-भला कहा। यह देखकर ठाकुर साहबने केवल इतना ही कहा कि 'इन्होंने तो सत्य ही कहा था, परंतु ईश्वरने इनको झूठा कर दिया है। इसमें इनका कुछ भी अपराध नहीं है।'

एक बार ठाकुर साहब किसी यात्रामें महाराजा साहबके साथ जा रहे थे। राहमें पूजाका समय हो जानेसे ठाकुर साहब कपड़ा ओढ़कर घोड़ेपर ही भगवान्‌की मानसिक पूजा करने लगे। पूजामें आप भगवान्‌को दहीका भोग लगानेकी तैयारी कर रहे थे, इसी बीचमें महाराजा साहबकी दृष्टि उधर पड़ गयी । महाराजा साहबने दो-तीन बार पुकारकर कहा, 'किशनसिंह ! नींद ले रहे हो क्या ?' ठाकुर साहब पूजामें मग्न थे । उनको महाराजा साहबका पुकारना सुनायी ही नहीं पड़ा। इससे महाराजाने रुष्ट होकर अपने घोड़ेको उनके घोड़ेके पास ले जाकर उनका कपड़ा खींचकर दूर कर दिया। फिर महाराजा साहबने उधर दृष्टि डाली तो उन्हें बड़ा ही आश्चर्य हुआ; क्योंकि घोड़ा और काठी सबपर दही-ही-दही फैला हुआ था । उन्होंने ठाकुर साहबसे पूछा, 'किशनसिंह ! यह क्या है ?" कुछ समय तो ठाकुर साहब चुप रहे, परंतु महाराजा साहबके अधिक आग्रह करनेपर उन्होंने स्पष्ट बता दिया कि 'महाराज ! मैं मानसिक पूजनमें भगवान्को दहीका भोग लगा रहा था, पर आपके वस्त्र खींचनेसे मैं चौंक उठा । अकस्मात् हिल जानेसे मेरा मानस दही गिर गया । वही दही भगवान्‌की लीलासे प्रत्यक्ष हो गया मालूम होता है।' यह सुनकर महाराजा साहबने गद्गद होकर उनसे कह दिया कि आप घर चले जायँ और भगवान्का भजन करें।

एक बार सरकारी बकाया देनेमें देरी होनेसे इनपर महाराजा साहबने रुष्ट होकर कहा – 'किशनसिंह ! यह ठीक नहीं है, समयपर सरकारी लगान जमा हो जाना चाहिये ।' ठाकुर साहबके मुँहसे निकल गया – 'दीपावलीतक ठहरिये, आपके रुपये जमा करके ही मैं दीपावलीका पूजन करूँगा ।' यों कहकर ठाकुर साहब घर लौट आये । परन्तु समयपर रुपये इकट्ठे न हो सके। ठीक दीपावलीको सन्ध्या तक उन्होंने इधर-उधरसे जुटाकर रुपये एकत्र किये । पूजन करनेका समय हो जानेसे भीतरसे आदमी बुलाने आया, पर वे बिना ही पूजन किये रुपये लेकर घोड़े पर सवार हो गये और सुबहतक साठ मील चलकर बीकानेर पहुँचे। महलमें उनको देखते ही महाराजा साहबने उनसे पूछा, 'किशनसिंह ! तुम कल ही जानेवाले थे न ? क्या बात है ? गये कैसे नहीं ? रातको तुम्हारी तबियत तो नहीं बिगड़ गयी ? महाराजा साहबकी बातें सुनकर ठाकुर साहबने कहा – 'अन्नदाताजी ! मैं तो अभी-अभी रुपये जमा कर देनेके लिये सीधा गाँवसे चला आ रहा हूँ। मैं कल यहाँ था ही नहीं, आपको किसी दूसरेकी बातका ध्यान रह गया होगा ।'

यह सुनकर महाराजा साहबने कहा, 'तुम क्या कहते हो ? अभी रुपये जमा कराने आये हो ? रुपये तो तुमने कल ही जमा करा दिये थे ।' ठाकुर साहबने जवाब दिया कि 'नहीं अन्नदाता ! मैं तो कल गाँवमें ही था। आप यह क्या फर्माते हैं ?' अन्तमें महाराजा साहबने रोकड़में जमा किये हुए रुपये और उनके हस्ताक्षर दिखाये। उनको देखते ही ठाकुर साहबकी आँखें प्रेमाश्रुसे भर गयीं और उनके मुँहसे केवल इतना ही निकला —'हाँ, हस्ताक्षर तो मेरे-जैसे ही हैं।' ठाकुर साहब अपने भगवान्‌की लीलाको समझकर गद्गद हो गये । बीकानेर - नरेश भी भक्तकी महिमा और भगवान्‌की भक्तवत्सलता देखकर मुग्ध हो गये । ठाकुर साहबने लौटकर भगवान् मुरलीधरजीका मन्दिर बनवाया, जो अभीतक उनकी कीर्तिको बढ़ा रहा है । -

बोलो भक्त और उनके भगवान्‌की जय !



[ thaakur kishanasinha] dekho bhagavaan kaise har kadam par bhakt ke saath khaड़e rahate hain?

beekaaner raajyaantargat gaarabadesar ek taajeemee thikaana thaa. bhakt kishanasinhajee vaheenke thaakur the. unaka golokavaas hue lagabhag painsath varsh hue hain. thaakur saahab shreemuraleedharajeeke bada़e bhakt the . janataamen prasiddh hai ki unako pratyek din poojanake pashchaat sava maasha sona bhagavaan‌se mila karata tha aur ve ukt soneko nity braahmanonko daan kar diya karate the. adyaavadhi moortike adharoshthapar soneka chihn hai. ek din thakuraanee saahabaane hath karake sona apane paas rakh liya tha, usake baad moortidvaara sona praapt naheen huaa. aisee hee anek baaten unake sambandhamen janataadvaara sunanemen aatee hain. unamen se kuchhaka paathakonko parichay karaaya jaata hai. sambhav hai ki aajakalake vaijnaanik vidvaan in baatonpar vishvaas n karen, parantu jo bhagavaan‌ke bhakt hain, unake hridayamen inaka akshara-akshar prem aur bhaktika udrek utpann kiye bina n rahegaa; kyonki bhagavat-prabhaavakee ye baaten jitanee bhaktalog samajhate hain, utanee aur koee naheen . astu !

thaakur saahab eeshvarakee shapathaka bahut maan rakhate the, yahaantak ki kaee baar dusht prakritivaalonne unako shapath dilaakar dhokha deneka bhee prayatn kiya tha .

ek baar kuchh choronne unako yah shapath dila dee thee ki 'thaakur saahab ! ham oontonko le jaate hain. yadi aapane kiseese kaha to aapako bhagavaan‌kee aan (shapatha) hai.' thaakur saahabane kiseese naheen kaha, parantu chor oontonko tamaam raat dauda़aakar sabere vaapis usee gaanvake paas a gaye . praatahkaal choronne poochha – 'yah kauna-sa gaanv hai ?' logondvaara gaarabadesar sunakar unako bahut hee aashchary hua aur pakada़e jaaneke bhayase ve bhayabheet hokar oontonko vaheen chhoda़kar bhaag gaye.

ek saal gaarabadesarake chaaron or sabhee jagah varsha ho gayee thee, parantu vahaan ek boond bhee naheen pada़ee. isase thaakur saahabane kaha ki -

so kosaan bijalee khinven, yaamen koon sandeh .
kisanaakee trisana mitai, jo aangan barase meh .

bhagavaanne unakee praarthanaapar turant dhyaan diyaa. usee samay baadalonkee ghata chha gayee aur achchhee varsha huee. thaakur saahab jaageeradaar hote hue bhee hamesha kaathakee talavaar hee myaanamen rakha karate the. ek baar kisee chugalakhorane beekaanera-nareshase kah diya ki gaarabake thaakur samayapar kya kaam aayenge. ve to kaathakee talavaar latakaaye rahate hain. isapar dashahareke utsavamen, jab ki sabhee jaageeradaar maujood the, mahaaraaja saahabane koee prasang uthaakar sabako apanee-apanee talavaar dikhaanekee aajna dee. sabheene apaneeapanee talavaaren nikaal leen, parantu thaakur saahab itane dare ki ve thara-thar kaanpane lage aur mana-hee-man eeshvarase praarthana karane lage, 'he bhagavan ! aaj kishanakee ijjat aapake hee haath hai .' aur daratedarate unhonne talavaarako myaanase nikaala, parantu talavaarake nikaalate hee raajasabhaamen talavaarakee chamakase sabakee aankhon men chakaachaundh chha gayee. tab mahaaraaja saahabane us chugalakhorako bahut hee buraa-bhala kahaa. yah dekhakar thaakur saahabane keval itana hee kaha ki 'inhonne to saty hee kaha tha, parantu eeshvarane inako jhootha kar diya hai. isamen inaka kuchh bhee aparaadh naheen hai.'

ek baar thaakur saahab kisee yaatraamen mahaaraaja saahabake saath ja rahe the. raahamen poojaaka samay ho jaanese thaakur saahab kapada़a odha़kar ghoda़epar hee bhagavaan‌kee maanasik pooja karane lage. poojaamen aap bhagavaan‌ko daheeka bhog lagaanekee taiyaaree kar rahe the, isee beechamen mahaaraaja saahabakee drishti udhar pada़ gayee . mahaaraaja saahabane do-teen baar pukaarakar kaha, 'kishanasinh ! neend le rahe ho kya ?' thaakur saahab poojaamen magn the . unako mahaaraaja saahabaka pukaarana sunaayee hee naheen pada़aa. isase mahaaraajaane rusht hokar apane ghoड़eko unake ghoda़eke paas le jaakar unaka kapada़a kheenchakar door kar diyaa. phir mahaaraaja saahabane udhar drishti daalee to unhen bada़a hee aashchary huaa; kyonki ghoda़a aur kaathee sabapar dahee-hee-dahee phaila hua tha . unhonne thaakur saahabase poochha, 'kishanasinh ! yah kya hai ?" kuchh samay to thaakur saahab chup rahe, parantu mahaaraaja saahabake adhik aagrah karanepar unhonne spasht bata diya ki 'mahaaraaj ! main maanasik poojanamen bhagavaanko daheeka bhog laga raha tha, par aapake vastr kheenchanese main chaunk utha . akasmaat hil jaanese mera maanas dahee gir gaya . vahee dahee bhagavaan‌kee leelaase pratyaksh ho gaya maaloom hota hai.' yah sunakar mahaaraaja saahabane gadgad hokar unase kah diya ki aap ghar chale jaayan aur bhagavaanka bhajan karen.

ek baar sarakaaree bakaaya denemen deree honese inapar mahaaraaja saahabane rusht hokar kaha – 'kishanasinh ! yah theek naheen hai, samayapar sarakaaree lagaan jama ho jaana chaahiye .' thaakur saahabake munhase nikal gaya – 'deepaavaleetak thahariye, aapake rupaye jama karake hee main deepaavaleeka poojan karoonga .' yon kahakar thaakur saahab ghar laut aaye . parantu samayapar rupaye ikatthe n ho sake. theek deepaavaleeko sandhya tak unhonne idhara-udharase jutaakar rupaye ekatr kiye . poojan karaneka samay ho jaanese bheetarase aadamee bulaane aaya, par ve bina hee poojan kiye rupaye lekar ghoda़e par savaar ho gaye aur subahatak saath meel chalakar beekaaner pahunche. mahalamen unako dekhate hee mahaaraaja saahabane unase poochha, 'kishanasinh ! tum kal hee jaanevaale the n ? kya baat hai ? gaye kaise naheen ? raatako tumhaaree tabiyat to naheen bigada़ gayee ? mahaaraaja saahabakee baaten sunakar thaakur saahabane kaha – 'annadaataajee ! main to abhee-abhee rupaye jama kar deneke liye seedha gaanvase chala a raha hoon. main kal yahaan tha hee naheen, aapako kisee doosarekee baataka dhyaan rah gaya hoga .'

yah sunakar mahaaraaja saahabane kaha, 'tum kya kahate ho ? abhee rupaye jama karaane aaye ho ? rupaye to tumane kal hee jama kara diye the .' thaakur saahabane javaab diya ki 'naheen annadaata ! main to kal gaanvamen hee thaa. aap yah kya pharmaate hain ?' antamen mahaaraaja saahabane rokada़men jama kiye hue rupaye aur unake hastaakshar dikhaaye. unako dekhate hee thaakur saahabakee aankhen premaashruse bhar gayeen aur unake munhase keval itana hee nikala —'haan, hastaakshar to mere-jaise hee hain.' thaakur saahab apane bhagavaan‌kee leelaako samajhakar gadgad ho gaye . beekaaner - naresh bhee bhaktakee mahima aur bhagavaan‌kee bhaktavatsalata dekhakar mugdh ho gaye . thaakur saahabane lautakar bhagavaan muraleedharajeeka mandir banavaaya, jo abheetak unakee keertiko baढ़a raha hai . -

bolo bhakt aur unake bhagavaan‌kee jay !



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