चारों वेद जिसकी कीर्ति बखानते हैं, योगियोंके ध्यानमें जो क्षणभरके लिये भी नहीं आता, वह ग्वालिनोंके हाथ बिक जाता है । भावुक ग्वालिनें उसे अपने प्रेम-पाशमें बाँध लेती हैं। इन गँवारिनोंके पास वह गिड़गिड़ाता हुआ आता है और सयाने कहते कि वह मिलता ही नहीं। इन ग्वालिनोंका कैसा महान् पुण्य था ! इन्हें जो सुख मिला, वह दूसरोंके लिये, ब्रह्मादिके लिये भी दुर्लभ है। इन भोली-भाली अहीरिनोंके सुकृतका हिसाब कौन लगा सकता है, जिन्होंने मुरारिको खेलाया - अन्तःसुखसे खेलाया और बाह्यसुखसे भी । भगवान्ने उन्हें अन्तः सुख दिया । श्रीकृष्णको जिन्होंने अपना सब कुछ अर्पण कर दिया, जो घर-द्वार और पति - पुत्रतकको भूल गयीं; जिनके लिये धन, मान और स्वजन विष-से हो गये, वे एकान्तमें उसे पाकर निहाल हो गयीं। अंदर हरि, बाहर हरि, हरिने ही उन्हें अपने अंदर बंद कर रखा था । नासिकके पास पञ्चवटी नामका एक पुण्य क्षेत्र है । आजसे लगभग दो सौ वर्ष पूर्व वहीं एक साधारण-से गाँवमें एक अहीरके घर मङ्गलका जन्म हुआ । मङ्गलके माता-पिता बहुत ही साधारण स्थितिके किसान थे । घरमें दो बैल थे और चार-पाँच गायें। पिता किसानी करते, माता गायोंकी देख-भाल करती, दूध जमाती, दही बिलोती, मक्खन निकालती, घी बनाती और फिर गाँव-जवारमें बेचती । मङ्गल इसी अहीर- दम्पतिका एकमात्र लाड़ला लाल था। मङ्गलके काले-काले गभुआरे कुञ्चित केश, बड़ी-बड़ी आँखें, सुन्दर सलोना मुख, प्यारभरी चितवन किसके जीको नहीं चुरा लेती ? जो भी देखता उसपर लट्टू हो जाता । जो भी उधरसे निकलता एक बार मङ्गलको भर आँखें देखे बिना आगे नहीं बढ़ता । मङ्गल गाँवभरकी स्त्रियोंका प्यारा खिलौना बन गया। वे कई तरहके बहाने लेकर मङ्गलके घर आतीं — कोई - आग लेनेके बहाने आती, कोई दीपक जलानेके बहाने, कोई दहीके लिये जामनके बहाने आती, कोई किसी भूली हुई बातको याद दिलानेके बहाने । मङ्गलको देखकर किसीका जी भरता ही न था, सभी चाहतीं मङ्गल मेरी ही आँखोंकी पुतली बना रहे ।
हजारों वर्ष पूर्व हमने कन्हैयाको अपनी गोदमें रखकर खेलाया है। वह सुख हमारे प्राणोंमें समाया हुआ है और जन्मजन्मके संस्कारको लेकर हम जहाँ भी जाते हैं, जहाँ भी रहते हैं, वहीं उस कान्हाको देखनेके लिये हमारे प्राण छटपटाते हैं, हृदय तड़पता है, जी कैसा- कैसा करता है। यही कारण है कि कहीं कोई सुन्दर बालक दीख गया तो हमें अपने 'प्यारेकी सुध आ जाती है' और हम क्षणभरके लिये ही सही, किसी और लोकमें, किन्हीं और स्मृतियों में जा पड़ते हैं। बालक मङ्गलको देखकर गाँवकी ग्वालिनोंकी वे ही पूर्व स्मृतियाँ उमड़ आतीं — वही नन्दरानी, वही नन्दलाल आँखों में झूल उठते ! माँ दही मथ रही है; मङ्गल उसकी पीठपर जा चढ़ा है और अपनी नन्हीं-नन्हीं भुजाओंसे बाँधकर माकी गर्दनसे लिपटा हुआ है। इस सुखको कोई मातृहृदय ही अनुभव कर सकता है ! मङ्गल था भी पूरा नटखट और शरारती । माकी आँखें बचाकर दहीके ऊपरी हिस्सेको चट कर जाना या जमा किये हुए माखनको यारदोस्तोंमें बाँट देना उसे बहुत भाता था । मा उसकी इन सारी हरकतोंको बहुत लाड़-प्यारसे देखती और उसके लल्लाका जी न दुःख जाय, इसलिये वह उसे कभी एक बात भी नहीं कहती । जन्माष्टमीकी रात थी । मङ्गलके घर महान् उत्सव था । गाँव-जवारके स्त्री-पुरुष जुटे हुए थे । हिंडोला लगा हुआ था । उसपर श्यामसुन्दरकी मनोहर मूर्ति पधरायी गयी थी। मा रेशमकी डोरी धीरे-धीरे खींच रही थी और गा रही थी । मङ्गल एकटक उस मङ्गलमयी मूर्तिको निहार रहा है। वह कुछ समझ नहीं रहा है कि यह सब क्या हो रहा है परंतु उसके मन-प्राणमें एक दिव्य उल्लास नृत्य कर रहा है । वह यह सब एक कुतूहल और आनन्दकी दृष्टिसे देख रहा है और नाच रहा है। आधी रात हुई । देवकीका दुलारा जीव-जीवके हृदय में उतरा । सर्वत्र आनन्द छा रहा है। मङ्गलके आनन्दकी कोई सीमा नहीं है । वह बार-बार मासे पूछता है – 'मा ! यह सब क्या है, किसलिये है।' मा बच्चेको चूम लेती है और अश्रुगद्गद स्वरमें कहती — -'लल्ला ! आज हमारे घर त्रिभुवनसुन्दर श्रीगोपालकृष्ण आये हैं। ‘वे कैसे हैं मा !’ कैसे हैं, मैं क्या कहूँ ? बड़े ही सुन्दर; बड़े ही मधुर, बड़े ही प्यारे ! तुम एक बार उन्हें देख लोगे तो फिर छोड़ नहीं सकते, रात-दिन उन्हींके साथ लगे रहोगे, खाना-पीना सब कुछ भूल जाओगे, मुझे भी भूल जाओगे !’ मङ्गलके लिये आजकी रात अत्यन्त रहस्यमयी सिद्ध हुई । रातभर वह सोचता रहा — 'वे कैसे हैं जिन्हें एक बार देख लेनेपर फिर कभी छोड़ा नहीं जाता। वे कैसे हैं जिन्हें पाकर सब कुछ भूल जाता है ।
दूसरे दिन मङ्गल अपनी गायें लेकर जब चरानेके लिये बाहर गया, तब रातवाली बात उसके मनमें चक्कर लगा रही थी । बारबार यही विचार उसके मनमें उठ रहा था - वह - वह कौन-सा साथी है, जिसे पाकर प्राणोंकी भूख-प्यास सदाके लिये शान्त हो जाती है। मङ्गलका हृदय आज अपने प्राणसखासे मिलनेके लिये ललक रहा था । गायोंको उसने चरनेके लिये छोड़ दिया । कुछ देरतक बछड़ोंके साथ खेलता रहा । कारी, कजरारी, धौरी, धूमरी, गोली सभी गायें दूर जा पड़ीं, बछड़े भी उनके पीछे-पीछे बहुत दूर जा पड़े। मङ्गल आज सजल श्यामल मेघमालाको देखता और उसका हृदय तरङ्गित हो उठता, दूरतक फैले हुए हरे-भरे खेत देखता और उसका हृदय भर आता । आकाशमें उड़ते हुए सारसोंकी पंक्ति देखता और चाहता मैं भी उड़ चलूँ । उफनती हुई, इठलाती हुई नदियाँ देखता और चाहता मैं भी इनकी धारामें एक होकर 'कहीं' चला जाता। आज उसके लिये जगत्के कण-कणमें एक विशेष संकेत – एक खास इशारा था, जिसे वह समझकर भी नहीं समझ रहा था और न समझते हुए भी समझ रहा था । — - भगवान्के पथमें चलनेके लिये विशेष समझदारीकी जरूरत नहीं पड़ती, शास्त्रोंके ज्ञानकी आवश्यकता नहीं होती। ज्ञानविज्ञानके गम्भीर रहस्योंकी छान बीनकी – पुंखानुपुंख अनुसन्धानकी आवश्यकता नहीं होती और न तत्त्वोंके विश्लेषणकी ही आवश्यकता है। आवश्यकता है एकमात्र हृदय-दानकी । प्रत्येक मनुष्यके जीवनमें एक न एक दिन ऐसा आता ही है जब वह भगवान्के संकेतको, प्रभुके इशारेको स्पष्ट सुनता है । यह इशारा प्रत्येक प्राणीके लिये – जीवमात्रके लिये होता है। किन्तु अधिकांश तो इसे सुनकर अनसुना कर देते हैं और जगत्के विषय-विलासों में ही रचे-पचे रह जाते हैं। कुछ ही ऐसे महाभाग होते हैं, जो उस इशारेपर अपने जीवनकी बलि देकर अपनेआपको, अपने लोक-परलोकको प्रभुके चरणों में निछावर कर देते हैं। ऐसोंका जीवन हरिमय हो जाता है। उनका सब कर्म श्रीकृष्णार्पण होता है। उनका खाना-पीना, सोना-जागना, उठनाबैठना, हँसना - खेलना सब कुछ भगवत्प्रीतिके लिये होता है।
और भगवान्का रहस्य, उनका प्रेम, उनकी लीला जाननेसे थोड़े ही जानी जाती है। यह सब कुछ और इससे भी अधिक गोपनीय रहस्यकी बातें भगवान् अपने भक्तोंको स्वयं जना देते हैं और सच्चा जानना तो वस्तुतः तभी होता है, जब स्वयं श्रीभगवान् हमारे हृदयदेशमें अवतरित होकर हमे जनाते हैं - अपनी एक-एक बात कहते हैं। उनकी एक मृदुल मुसकान, एक मधुर हास्यमें हमारे सारे प्रश्न, सारी पहेली, समस्त शङ्काएँ बह जाती हैं । जीवनको गति गङ्गाके प्रवाहकी तरह अविच्छिन्नरूपसे श्रीकृष्णचरणोंकी ओर प्रवाहित हो जाती है, समस्त जगत् आनन्दके महासमुद्र में डूब जाता है। श्रीकृष्णप्रेमके अतिरिक्त कोई वस्तु रह नहीं जाती । भगवान् भक्तको आलिङ्गनका सुख देकर प्रीतिसे उसके अङ्गप्रत्यङ्गको शीतल कर देते हैं। उसे बरबस गोदमें उठा लेते और पीताम्बरसे उसके आँसू पोछते हैं। प्रेमभरी दृष्टिसे देखते हुए उसे सान्त्वना देते हैं। ऐसी ही उनकी लीला है। अनेक भक्तोंका जीवन इसका साक्षी है। आज भी यह अनुभव दुर्लभ नहीं । । कितनी गजबकी है उनकी प्रीति ! हम एक बार उनकी ओर देखते हैं तो वे लाख-लाख बार हमारी ओर दौड़ते हैं और हमारे प्रेमके ग्राहक बन जाते हैं। एक बार भी जो उनकी पकड़में आ गया, वह सदाके लिये उनका बन जाता है; जिसे वे एक बार छू देते हैं उसे सदाके लिये ही अपना लेते हैं । प्रेमके लिये वह प्रेमी प्रभु दर-दर ठोकरें खा रहा है। घर-घर एक-एक व्यक्तिसे वह प्रेमकी भीख माँग रहा है। हम दुतकारते हैं फिर भी वह विकट प्रेमी हमारी उपेक्षा, भर्त्सनाका ध्यान न कर बार-बार आता है और कहता है – 'हे जीव ! प्रेमकी एक बूँद देकर मुझे सदाके लिये खरीद लो । मैं तुम्हारा गुलाम बन जाऊँगा ।' परंतु हाय रे मनुष्यका अभाग्य ! इस अनोखे अतिथिकी प्रणय भिक्षाकी ओर हमारी दृष्टि कभी जाती ही नहीं। हम डरते हैं कि एक बार उधर दृष्टि गयी नहीं कि हम बिके नहीं। मङ्गलकी दृष्टि, एक बार ही सही, उधर गयी और 'वह' सदाके लिये मङ्गलका साथी बन गया। दिनमें उसीका जलवा, रातमें उसीके सपने। ऐसा मालूम होता, कोई कंधेपर अपने कोमल हाथ रखकर कह रहा है — मेरी ओर देखो, मुझसे बात करो, कुछ बोलो ! मङ्गल इस अदृश्य स्पर्शका अनुभव कर एक दिव्य आनन्दमें मूर्च्छित हो जाता । रातको वह सोता तो देखता कि कोई मेरे सिरहाने बैठा है, मेरे सिरको अपनी गोदमें रखकर मेरे ऊपर मन्दमन्द मुसकानकी फुलझड़ियाँ बरसा रहा है – कभी हँसता है, कभी धीरे-धीरे गाता है। कभी अपनी प्यारभरी कोमल अङ्गुलियोंको मेरे बालोंमें उलझाकर लाड़ लड़ाता है, कभी आँखोंको चूमता और कपोलोंको सहलाता है। मङ्गल यह समझ नहीं पाता कि यह सब किसकी लीलाएँ हैं। परंतु वह यह जानता था कि मेरा एक साथी है जो रात-दिन मेरे साथ रहता । मङ्गलको उस लीलामयकी लीलाओंके दर्शन होने लगे । रातभर वह आधा सोता, आधा जागा रहता । ऐसा मालूम होता कोई अपना अत्यन्त प्यारा प्राणोंको गुदगुदा रहा है । सबेरे जागता तो उस गुदगुदीकी अनुभूति बनी ही रहती । वह गायें खोलकर जब चरानेके लिये वनमें ले जाता, तब ऐसा प्रतीत होता मानो उसका साथी उसके साथ चल रहा है – कभी कुछ गाता है, कभी नाचता है, कभी प्रेममें रूठता है, कभी गले लगकर मनकी बातें कहता है, कभी दीखता है, कभी छिपता है। पके हुए बिम्बफलके समान अपने लाल-लाल होठोंपर वेणुको लगाकर भिन्न-भिन्न स्वरों में वह जाने क्या-क्या गाया करता है और उसका गीत सुनकर त्रिलोकीके चर-अचर जीव मोहित हो जाते हैं। वह वेणुको बजाते हुए मदमत्त हाथीकी तरह कयामतकी चाल चलता हुआ जब विलासपूर्ण दृष्टि निक्षेप करता है, तब समस्त वसुन्धरा उस मधुमें डूब जाती है ।
मङ्गलको अब गायें चरानेमें एक अद्भुत आनन्द मिलता । वनमें उसे भगवान्की विविध लीलाओंके दर्शन होते । अब अपनी गायों और बछड़ोंसे उसकी अत्यन्त आत्मीयता हो गयी । वनमें वह देखता कि किसी नन्हे-से बछड़ेको गोदमें उठाकर श्रीकृष्ण चूम रहे हैं। कभी देखता कि किसी गायकी पीठपर बायाँ हाथ टेककर दाहिने हाथसे वंशीको अधरपर रखकर धीरे-धीरे कुछ गा रहे हैं। गायें कान खड़े करके, निर्निमेष दृष्टिसे उनकी ओर देख रही हैं और मुग्ध होकर वंशी - ध्वनि सुन रही हैं। जब वंशी बजती, तब झुंड-के-झुंड बैल, गाय और वनके हिरन अपनी सुध-बुध खोकर मुँहके ग्रासको बिना चबाये ही, मुँहमें वैसे ही रखकर, कान खड़े करके, नेत्र मूँदकर सोते हुए-से और चित्रलिखे-से निश्चल हो जाते हैं । वनमालाकी दिव्य गन्धसे समस्त वसुन्धरा भर गयी है, जड चेतन हो गये हैं, चेतन जड | ये सारी लीलाएँ मङ्गल प्रत्यक्ष देखता और मुग्ध होकर देखता !
एक दिनकी बात है। सन्ध्या हो रही थी। सूर्यदेव अस्ताचलको जा रहे थे । सायङ्काल होते देख मङ्गल अपनी गायें लेकर घरको लौट रहा था। देखता क्या है कि उसका प्राणसखा उसके साथ ही लौट रहा है। उसके नेत्र मदसे विह्वल हो रहे हैं। गौओंके खुरसे उड़ी हुई धूल उसके मुखमण्डलपर तथा बालोंपर जम गयी है, इस कारण उसका मुख पके हुए बेरके समान पाण्डुवर्ण दीख रहा है, वनके पुष्पों तथा कोमल कोमल किसलयोंकी माला पहन रखी है, गजराजके समान झूमता हुआ चल रहा है, सुवर्णके कुण्डलोंकी कान्तिसे उसके सुकुमार कपोलोंपर एक अद्भुत छटा छा रही है। आज मङ्गलसे रहा न गया। उसने चाहा कि इस अपरूप रूपको पी जाऊँ । इसलिये वह आगे बढ़ा और उस त्रिभुवनमोहनको आलिङ्गन-पाशमें बाँध लेना चाहा। परंतु.... !!
कैसे-कैसे खेल हैं उस खिलाड़ीके ! उसकी ओर न झुको तो बार - बार दरवाजा खटखटाता है, रात-दिन परेशान किये रहता है, न खाने देता है न सोने । लेकिन जब उसकी ओर प्राणोंकी हाहाकार लेकर मुड़ो, तब वह छलिया जाने कहाँ छिप जाता है और ऐसा छिपता है कि बेनिशाँ हो जाता है, लापता हो जाता है। मिलना, मिल-मिलकर बिछुड़ना और फिर बिछुड़- बिछुड़कर, एक क्षणकी झलक दिखाकर फिर छिप जाना, यह लुका-छिपी उसकी सर्वथा निराली होती है। क्षणभरमें प्रकट होगा, क्षणभरमें छिप जायगा । हृदय खोलकर मिलेगा और क्षणहीभरमें खिसक जायगा। न उसे पकड़ते बनता है न छोड़ते । जन्म-जन्मसे हम उस रूपको निहारते आये हैं, फिर भी जी नहीं भरा, हृदय नहीं अघाया।
मिलन और विरहके बीच साधनाका सोता झोंके खाता हुआ चलता रहा। मिलनकी लीला हो चुकी थी, अब विरहकी लीला होनेवाली थी । यह विरह भी तो मिलनसे कम मधुर नहीं है । प्यारेका सब कुछ प्यारा है। उसका मिलना भी प्रिय है और बिछुड़ना भी प्रिय है। मिलना अधिक प्रिय है या बिछुड़ना, इसे कौन बतलाये। जिस प्रकार वर्षा ऋतुके आनेपर जल बरसता है, बिजली चमकती है, मेघ गर्जना करते हैं, हवा जोरसे चलने लगती है, फूल खिल जाते हैं और पक्षी आनन्दमें डूबकर कूजने लगते हैं, उसी प्रकार प्रियतम प्रभुके दर्शन हो जानेपर आनन्दित होकर नेत्र जल-वर्षा करने लगते हैं, होठ मृदु हास्य करने लगते हैं, हृदयकी कली खिल उठती है, आनन्दके झकिसे मस्तक हिलने लगता है, प्रतिक्षण उस प्रिय सखाके नामकी गर्जना होने लगती है और प्रेमकी मस्ती प्रभुके गुणगानमें सराबोर कर देती है। मिलन और विरह दोनों ही साधन हरि-मिलनके ही हैं। इस आनन्दका पता न कर्मीको है न निष्कर्मीको, न ज्ञानीको है न ध्यानीको। वेद भी इसका पार नहीं पा सकते, विधिकी यहाँतक पहुँच नहीं, यह तो केवल रसिक हृदयोंके निकट ही चिर समुज्ज्वल है। यही है साधनाका शेष, यही है प्रेमकी चरम लीला। यही है योगियोंकी योग साधन, यही है भक्तोंको भक्तिकी प्राप्ति, यही है प्रेमीजनोंका पूर्ण प्रणय-महोत्सव !
मङ्गलकी दशा अब कुछ विचित्र रहने लगी। मिलकर बिछुड़नेका दुःख कोई भुक्तभोगी ही अनुभव कर सकता है। मङ्गलसे अब न रोते बनता, न हँसते । आनन्द था मिलनकी स्मृतिका, विषाद था पाकर खो देनेका। उसके जीमें कुछ ऐसी लहरें उठ रही थीं कि उस प्यारेके बिना अब जीना बेकार है। किसी काममें उसका जी नहीं लगता। न भूख लगती, न नींद आती। रात-दिन रोता रहता, रोते-रोते कभी-कभी बीचमें अट्टहास कर बैठता। अजीब पागलकी-सी दशा थी। लोग कुछ समझ नहीं रहे थे कि क्या बात है। पिताने समझा लड़केका दिमाग फिर गया है, दवा करानी चाहिये। आस-पासके वैद्यहकीमोंको बुलवाया ! लेकिन रोग तो चिकित्सासे परेका था।
मङ्गल अपने वैद्यकी खोजमें आप हीं निकल पड़ा।
प्रेमियोंका हाल ऐसा ही होता है। प्रेमके अनियारे बाणसे जिसका हृदय बिंध जाता है, उसकी दशा उन्मत्तकी-सी हो जाती । जगत्की कोई चर्चा उसे नहीं सुहाती। चेष्टा करनेपर भी वह कुछ बोल नहीं सकता। उसका शरीर पुलकित हो उठता है। उसके रोम-रोमसे प्रेमकी किरण-धाराएँ निकलकर निर्मल प्रेमज्योति फैला देती हैं। समस्त वातावरण प्रेममय हो जाता है। वह प्रेमावेशमें बार-बार रोता है, कभी हँसता है, कभी लाज छोड़कर ऊँचे स्वरसे गाने और नाचने लगता है। मङ्गलकी मा मङ्गलके इस दिव्य उन्मादको कुछ-कुछ समझ रही थी। उसने देखा था कि जन्माष्टमीकी रातसे ही मङ्गलकी दशा पलटने लगी थी। उसे मङ्गलकी इस दशापर परम सन्तोष था । वह जानती थी कि वास्तविक पुत्रवती वही है जिसका पुत्र श्रीहरिके चरणों में अनुरक्त हो । वह अपने भाग्यको सराहती और प्रभुके चरणोंमें मस्तक टेककर नित्य यही प्रार्थना करती – 'हे प्रभो ! इस बालकके हृदयमें प्रेमकी आग लहकाकर आप अब इसे यों न छोड़ो, अब तो इसे सर्वथा अपना लो; मैं इसे तुम्हारे चरणोंमें आनन्दके साथ निवेदित करती हूँ | तुम इसे अब स्वीकार कर लो ।'
परन्तु भगवान्ने तो पहलेसे ही उसे स्वीकार कर लिया था । वह शिकारी ऐसा- वैसा नहीं है। उसका निशाना खाली जाय, यह हो नहीं सकता। जिसपर उसने प्रेमबुझे तीर फेंके, वही लुट गया। घायलकी गति घायल ही जानता है या जानता है वह शिकारी । छिप-छिपकर वार करता है; कभी बहुत हलकी मामूली चोट करता है कभी गहरी- - प्राण ले लेनेवाली चोट । बाण लगा हुआ हरिन जैसे छटपटाता है, वही हालत भगवत्प्रेमियोंकी होती है। वह हृदयको सीधे बेधता है और बाणको यों ही लगा छोड़ देता है । -
प्रेमकी गलीमें साधक जाता तो है जी बहलानेके लिये, आँखें जुड़ानेके लिये, लेकिन वहाँ जानेपर उसे लेनेके देने पड़ जाते हैं। गरम ईख चूसनेकी-सी दशा हो जाती है—न चूसते बनता है, न छोड़ते। घायल होकर घूमता फिरता है। उसका दर्द कुछ निराला ही होता है, वहाँ दवा और दुआ कुछ भी काम नहीं देती। गोदावरीके तटपर जंगलमें एक छोटा-सा मन्दिर है। उसमें श्रीराधा-कृष्णकी युगल-मूर्ति विराजमान है। आस-पास तुलसीका सघन वन है— दूरतक - दूरतक फैला हुआ जंगल। जंगली वृक्षों और पुष्पलताओंसे स्थानकी शोभा अत्यन्त रमणीय हो रही है। मोरों और वन्य पशुओंने वनको मुखरित कर दिया है। शान्त, स्तब्ध गोदावरीकी धारापर वनके फूल बहते हुए ऐसे लगते हैं मानो वनदेवीने भगवान् सूर्यनारायणको पुष्पोंकी अञ्जलि समर्पित की है। बालरविकी कोमल किरणें समस्त वनप्रान्तमें और गोदावरीके हृदय-स्थलपर केलि कर रही हैं। मङ्गल गोदावरी-तटपर तुलसीके वनमें बैठा हुआ गद्गद कण्ठसे अपने प्राणनाथको कातरभावसे पुकार रहा है। प्रार्थना करते-करते वह मूर्च्छित होकर वहीं गिर पड़ता है। मूर्च्छित-अवस्थामें मङ्गलको एक दिव्य वपुधारी महात्मासे 'ॐ राधायै स्वाहा' का षडक्षर मन्त्र प्राप्त हुआ । मन्त्र कानोंमें प्रवेशकर हृदयमें पहुँचा और वहाँ हृदयदेशमें मन्त्रकी चेतनासे एक विद्युल्लहर-सी लहराने लगी । मङ्गलको ऐसा प्रतीत हुआ कि शीतल विद्युत्के दिव्य अक्षरों में यह मन्त्र उसके हृदयमें वैसे ही प्रकट हुआ है जैसे प्रशान्त नील आकाशमें पूर्णिमाका चन्द्रमा । मङ्गल जब होशमें आया, तब वे महात्मा वहाँ नहीं थे, परन्तु वह मन्त्र पहलेके समान ही चेतनरूपमें विद्युत्-धाराकी तरह हृदयमें तरङ्गित हो रहा था । मन्त्रकी यह दिव्य लीला देख मङ्गल मुग्ध था । उसके रोम-रोमसे मन्त्र-राजकी कोमल किरणें प्रस्फुरित हो रही थीं और भीतर-बाहर समान रूपसे वह उस आनन्दसिन्धुमें डूब रहा था। आँखें खोलता तो सामने श्रीराधाकृष्णकी मञ्जुल मूर्ति, आँखें बंद करता तो हृदयमें उसी युगलमूर्तिकी ललित लीला !! प्राणोंमें, श्वासोंमें, मन्त्रकी मधुर क्रीड़ा स्वयं होती रहती थी- अनायास, बिना प्रयास । वर्षों इसी रससमाधिमें डूबा रहा । देह-गेहकी सुध-बुध न थी । वनके भीतरी भागमें रहनेवाले जो कुछ लाकर उसे खिला देते, वह खा लेता; जो कुछ पिला देते, वह पी लेता ।
शारदी पूर्णिमाकी मध्यरात्रि है । मङ्गलके हृदयमें आज अपूर्व उल्लास छा रहा है। उसने वनके पुष्पोंकी माला बनायी, तुलसीकी मञ्जरीकी माला बनायी । प्राणनाथ और प्रियाजीको प्रेमके साथ पहनाया। आँसुओंसे उनके चरण पखारे और लगा उन्हें एकटक निहारने। देखते-देखते उसकी दृष्टि बँध गयी, पलकें स्थिर हो गयीं; फिर क्या देखता है कि श्रीराधारानीका हृदय खुलता है। ठीक जैसे सूर्यकी किरणोंके स्पर्शसे कमलकी कली खिलती है— राधारानी मङ्गलको उठाकर अपने हृदयमें छिपा लेती हैं और भगवान् खड़े-खड़े मन्द-मन्द मुसकानोंकी झड़ी लगा रहे हैं। वहाँ अब मङ्गल नहीं है — उसने अपना सर्वस्व अपने प्राणनाथ जीवनसखाके चरणों में अर्पित कर दिया है और उसकी यह भेंट पूर्णतया स्वीकार कर ली गयी है ।
मन्दिरके पास एक छोटा-सा चबूतरा बन गया है, जहाँ मङ्गल तुलसीवनमें बैठा करता था। लोग इसे मङ्गलदासका चबूतरा कहते हैं ।
बोलो भक्त और उनके भगवान्की जय !
chaaron ved jisakee keerti bakhaanate hain, yogiyonke dhyaanamen jo kshanabharake liye bhee naheen aata, vah gvaalinonke haath bik jaata hai . bhaavuk gvaalinen use apane prema-paashamen baandh letee hain. in ganvaarinonke paas vah gida़gida़aata hua aata hai aur sayaane kahate ki vah milata hee naheen. in gvaalinonka kaisa mahaan puny tha ! inhen jo sukh mila, vah doosaronke liye, brahmaadike liye bhee durlabh hai. in bholee-bhaalee aheerinonke sukritaka hisaab kaun laga sakata hai, jinhonne muraariko khelaaya - antahsukhase khelaaya aur baahyasukhase bhee . bhagavaanne unhen antah sukh diya . shreekrishnako jinhonne apana sab kuchh arpan kar diya, jo ghara-dvaar aur pati - putratakako bhool gayeen; jinake liye dhan, maan aur svajan visha-se ho gaye, ve ekaantamen use paakar nihaal ho gayeen. andar hari, baahar hari, harine hee unhen apane andar band kar rakha tha . naasikake paas panchavatee naamaka ek puny kshetr hai . aajase lagabhag do sau varsh poorv vaheen ek saadhaarana-se gaanvamen ek aheerake ghar mangalaka janm hua . mangalake maataa-pita bahut hee saadhaaran sthitike kisaan the . gharamen do bail the aur chaara-paanch gaayen. pita kisaanee karate, maata gaayonkee dekha-bhaal karatee, doodh jamaatee, dahee bilotee, makkhan nikaalatee, ghee banaatee aur phir gaanva-javaaramen bechatee . mangal isee aheera- dampatika ekamaatr laada़la laal thaa. mangalake kaale-kaale gabhuaare kunchit kesh, baड़ee-baड़ee aankhen, sundar salona mukh, pyaarabharee chitavan kisake jeeko naheen chura letee ? jo bhee dekhata usapar lattoo ho jaata . jo bhee udharase nikalata ek baar mangalako bhar aankhen dekhe bina aage naheen badha़ta . mangal gaanvabharakee striyonka pyaara khilauna ban gayaa. ve kaee tarahake bahaane lekar mangalake ghar aateen — koee - aag leneke bahaane aatee, koee deepak jalaaneke bahaane, koee daheeke liye jaamanake bahaane aatee, koee kisee bhoolee huee baatako yaad dilaaneke bahaane . mangalako dekhakar kiseeka jee bharata hee n tha, sabhee chaahateen mangal meree hee aankhonkee putalee bana rahe .
hajaaron varsh poorv hamane kanhaiyaako apanee godamen rakhakar khelaaya hai. vah sukh hamaare praanonmen samaaya hua hai aur janmajanmake sanskaarako lekar ham jahaan bhee jaate hain, jahaan bhee rahate hain, vaheen us kaanhaako dekhaneke liye hamaare praan chhatapataate hain, hriday tada़pata hai, jee kaisaa- kaisa karata hai. yahee kaaran hai ki kaheen koee sundar baalak deekh gaya to hamen apane 'pyaarekee sudh a jaatee hai' aur ham kshanabharake liye hee sahee, kisee aur lokamen, kinheen aur smritiyon men ja pada़te hain. baalak mangalako dekhakar gaanvakee gvaalinonkee ve hee poorv smritiyaan umada़ aateen — vahee nandaraanee, vahee nandalaal aankhon men jhool uthate ! maan dahee math rahee hai; mangal usakee peethapar ja chadha़a hai aur apanee nanheen-nanheen bhujaaonse baandhakar maakee gardanase lipata hua hai. is sukhako koee maatrihriday hee anubhav kar sakata hai ! mangal tha bhee poora natakhat aur sharaaratee . maakee aankhen bachaakar daheeke ooparee hisseko chat kar jaana ya jama kiye hue maakhanako yaaradostonmen baant dena use bahut bhaata tha . ma usakee in saaree harakatonko bahut laada़-pyaarase dekhatee aur usake lallaaka jee n duhkh jaay, isaliye vah use kabhee ek baat bhee naheen kahatee . janmaashtameekee raat thee . mangalake ghar mahaan utsav tha . gaanva-javaarake stree-purush jute hue the . hindola laga hua tha . usapar shyaamasundarakee manohar moorti padharaayee gayee thee. ma reshamakee doree dheere-dheere kheench rahee thee aur ga rahee thee . mangal ekatak us mangalamayee moortiko nihaar raha hai. vah kuchh samajh naheen raha hai ki yah sab kya ho raha hai parantu usake mana-praanamen ek divy ullaas nrity kar raha hai . vah yah sab ek kutoohal aur aanandakee drishtise dekh raha hai aur naach raha hai. aadhee raat huee . devakeeka dulaara jeeva-jeevake hriday men utara . sarvatr aanand chha raha hai. mangalake aanandakee koee seema naheen hai . vah baara-baar maase poochhata hai – 'ma ! yah sab kya hai, kisaliye hai.' ma bachcheko choom letee hai aur ashrugadgad svaramen kahatee — -'lalla ! aaj hamaare ghar tribhuvanasundar shreegopaalakrishn aaye hain. ‘ve kaise hain ma !’ kaise hain, main kya kahoon ? bada़e hee sundara; baड़e hee madhur, bada़e hee pyaare ! tum ek baar unhen dekh loge to phir chhoda़ naheen sakate, raata-din unheenke saath lage rahoge, khaanaa-peena sab kuchh bhool jaaoge, mujhe bhee bhool jaaoge !’ mangalake liye aajakee raat atyant rahasyamayee siddh huee . raatabhar vah sochata raha — 've kaise hain jinhen ek baar dekh lenepar phir kabhee chhoda़a naheen jaataa. ve kaise hain jinhen paakar sab kuchh bhool jaata hai .
doosare din mangal apanee gaayen lekar jab charaaneke liye baahar gaya, tab raatavaalee baat usake manamen chakkar laga rahee thee . baarabaar yahee vichaar usake manamen uth raha tha - vah - vah kauna-sa saathee hai, jise paakar praanonkee bhookha-pyaas sadaake liye shaant ho jaatee hai. mangalaka hriday aaj apane praanasakhaase milaneke liye lalak raha tha . gaayonko usane charaneke liye chhoda़ diya . kuchh deratak bachhada़onke saath khelata raha . kaaree, kajaraaree, dhauree, dhoomaree, golee sabhee gaayen door ja pada़een, bachhada़e bhee unake peechhe-peechhe bahut door ja pada़e. mangal aaj sajal shyaamal meghamaalaako dekhata aur usaka hriday tarangit ho uthata, dooratak phaile hue hare-bhare khet dekhata aur usaka hriday bhar aata . aakaashamen uda़te hue saarasonkee pankti dekhata aur chaahata main bhee uda़ chaloon . uphanatee huee, ithalaatee huee nadiyaan dekhata aur chaahata main bhee inakee dhaaraamen ek hokar 'kaheen' chala jaataa. aaj usake liye jagatke kana-kanamen ek vishesh sanket – ek khaas ishaara tha, jise vah samajhakar bhee naheen samajh raha tha aur n samajhate hue bhee samajh raha tha . — - bhagavaanke pathamen chalaneke liye vishesh samajhadaareekee jaroorat naheen pada़tee, shaastronke jnaanakee aavashyakata naheen hotee. jnaanavijnaanake gambheer rahasyonkee chhaan beenakee – punkhaanupunkh anusandhaanakee aavashyakata naheen hotee aur n tattvonke vishleshanakee hee aavashyakata hai. aavashyakata hai ekamaatr hridaya-daanakee . pratyek manushyake jeevanamen ek n ek din aisa aata hee hai jab vah bhagavaanke sanketako, prabhuke ishaareko spasht sunata hai . yah ishaara pratyek praaneeke liye – jeevamaatrake liye hota hai. kintu adhikaansh to ise sunakar anasuna kar dete hain aur jagatke vishaya-vilaason men hee rache-pache rah jaate hain. kuchh hee aise mahaabhaag hote hain, jo us ishaarepar apane jeevanakee bali dekar apaneaapako, apane loka-paralokako prabhuke charanon men nichhaavar kar dete hain. aisonka jeevan harimay ho jaata hai. unaka sab karm shreekrishnaarpan hota hai. unaka khaanaa-peena, sonaa-jaagana, uthanaabaithana, hansana - khelana sab kuchh bhagavatpreetike liye hota hai.
aur bhagavaanka rahasy, unaka prem, unakee leela jaananese thoda़e hee jaanee jaatee hai. yah sab kuchh aur isase bhee adhik gopaneey rahasyakee baaten bhagavaan apane bhaktonko svayan jana dete hain aur sachcha jaanana to vastutah tabhee hota hai, jab svayan shreebhagavaan hamaare hridayadeshamen avatarit hokar hame janaate hain - apanee eka-ek baat kahate hain. unakee ek mridul musakaan, ek madhur haasyamen hamaare saare prashn, saaree pahelee, samast shankaaen bah jaatee hain . jeevanako gati gangaake pravaahakee tarah avichchhinnaroopase shreekrishnacharanonkee or pravaahit ho jaatee hai, samast jagat aanandake mahaasamudr men doob jaata hai. shreekrishnapremake atirikt koee vastu rah naheen jaatee . bhagavaan bhaktako aalinganaka sukh dekar preetise usake angapratyangako sheetal kar dete hain. use barabas godamen utha lete aur peetaambarase usake aansoo pochhate hain. premabharee drishtise dekhate hue use saantvana dete hain. aisee hee unakee leela hai. anek bhaktonka jeevan isaka saakshee hai. aaj bhee yah anubhav durlabh naheen . . kitanee gajabakee hai unakee preeti ! ham ek baar unakee or dekhate hain to ve laakha-laakh baar hamaaree or dauda़te hain aur hamaare premake graahak ban jaate hain. ek baar bhee jo unakee pakada़men a gaya, vah sadaake liye unaka ban jaata hai; jise ve ek baar chhoo dete hain use sadaake liye hee apana lete hain . premake liye vah premee prabhu dara-dar thokaren kha raha hai. ghara-ghar eka-ek vyaktise vah premakee bheekh maang raha hai. ham dutakaarate hain phir bhee vah vikat premee hamaaree upeksha, bhartsanaaka dhyaan n kar baara-baar aata hai aur kahata hai – 'he jeev ! premakee ek boond dekar mujhe sadaake liye khareed lo . main tumhaara gulaam ban jaaoonga .' parantu haay re manushyaka abhaagy ! is anokhe atithikee pranay bhikshaakee or hamaaree drishti kabhee jaatee hee naheen. ham darate hain ki ek baar udhar drishti gayee naheen ki ham bike naheen. mangalakee drishti, ek baar hee sahee, udhar gayee aur 'vaha' sadaake liye mangalaka saathee ban gayaa. dinamen useeka jalava, raatamen useeke sapane. aisa maaloom hota, koee kandhepar apane komal haath rakhakar kah raha hai — meree or dekho, mujhase baat karo, kuchh bolo ! mangal is adrishy sparshaka anubhav kar ek divy aanandamen moorchchhit ho jaata . raatako vah sota to dekhata ki koee mere sirahaane baitha hai, mere sirako apanee godamen rakhakar mere oopar mandamand musakaanakee phulajhada़iyaan barasa raha hai – kabhee hansata hai, kabhee dheere-dheere gaata hai. kabhee apanee pyaarabharee komal anguliyonko mere baalonmen ulajhaakar laada़ lada़aata hai, kabhee aankhonko choomata aur kapolonko sahalaata hai. mangal yah samajh naheen paata ki yah sab kisakee leelaaen hain. parantu vah yah jaanata tha ki mera ek saathee hai jo raata-din mere saath rahata . mangalako us leelaamayakee leelaaonke darshan hone lage . raatabhar vah aadha sota, aadha jaaga rahata . aisa maaloom hota koee apana atyant pyaara praanonko gudaguda raha hai . sabere jaagata to us gudagudeekee anubhooti banee hee rahatee . vah gaayen kholakar jab charaaneke liye vanamen le jaata, tab aisa prateet hota maano usaka saathee usake saath chal raha hai – kabhee kuchh gaata hai, kabhee naachata hai, kabhee premamen roothata hai, kabhee gale lagakar manakee baaten kahata hai, kabhee deekhata hai, kabhee chhipata hai. pake hue bimbaphalake samaan apane laala-laal hothonpar venuko lagaakar bhinna-bhinn svaron men vah jaane kyaa-kya gaaya karata hai aur usaka geet sunakar trilokeeke chara-achar jeev mohit ho jaate hain. vah venuko bajaate hue madamatt haatheekee tarah kayaamatakee chaal chalata hua jab vilaasapoorn drishti nikshep karata hai, tab samast vasundhara us madhumen doob jaatee hai .
mangalako ab gaayen charaanemen ek adbhut aanand milata . vanamen use bhagavaankee vividh leelaaonke darshan hote . ab apanee gaayon aur bachhada़onse usakee atyant aatmeeyata ho gayee . vanamen vah dekhata ki kisee nanhe-se bachhaड़eko godamen uthaakar shreekrishn choom rahe hain. kabhee dekhata ki kisee gaayakee peethapar baayaan haath tekakar daahine haathase vansheeko adharapar rakhakar dheere-dheere kuchh ga rahe hain. gaayen kaan khada़e karake, nirnimesh drishtise unakee or dekh rahee hain aur mugdh hokar vanshee - dhvani sun rahee hain. jab vanshee bajatee, tab jhunda-ke-jhund bail, gaay aur vanake hiran apanee sudha-budh khokar munhake graasako bina chabaaye hee, munhamen vaise hee rakhakar, kaan khada़e karake, netr moondakar sote hue-se aur chitralikhe-se nishchal ho jaate hain . vanamaalaakee divy gandhase samast vasundhara bhar gayee hai, jad chetan ho gaye hain, chetan jad | ye saaree leelaaen mangal pratyaksh dekhata aur mugdh hokar dekhata !
ek dinakee baat hai. sandhya ho rahee thee. sooryadev astaachalako ja rahe the . saayankaal hote dekh mangal apanee gaayen lekar gharako laut raha thaa. dekhata kya hai ki usaka praanasakha usake saath hee laut raha hai. usake netr madase vihval ho rahe hain. gauonke khurase uda़ee huee dhool usake mukhamandalapar tatha baalonpar jam gayee hai, is kaaran usaka mukh pake hue berake samaan paanduvarn deekh raha hai, vanake pushpon tatha komal komal kisalayonkee maala pahan rakhee hai, gajaraajake samaan jhoomata hua chal raha hai, suvarnake kundalonkee kaantise usake sukumaar kapolonpar ek adbhut chhata chha rahee hai. aaj mangalase raha n gayaa. usane chaaha ki is aparoop roopako pee jaaoon . isaliye vah aage baढ़a aur us tribhuvanamohanako aalingana-paashamen baandh lena chaahaa. parantu.... !!
kaise-kaise khel hain us khilaada़eeke ! usakee or n jhuko to baar - baar daravaaja khatakhataata hai, raata-din pareshaan kiye rahata hai, n khaane deta hai n sone . lekin jab usakee or praanonkee haahaakaar lekar muda़o, tab vah chhaliya jaane kahaan chhip jaata hai aur aisa chhipata hai ki benishaan ho jaata hai, laapata ho jaata hai. milana, mila-milakar bichhuda़na aur phir bichhuda़- bichhuड़kar, ek kshanakee jhalak dikhaakar phir chhip jaana, yah lukaa-chhipee usakee sarvatha niraalee hotee hai. kshanabharamen prakat hoga, kshanabharamen chhip jaayaga . hriday kholakar milega aur kshanaheebharamen khisak jaayagaa. n use pakada़te banata hai n chhoda़te . janma-janmase ham us roopako nihaarate aaye hain, phir bhee jee naheen bhara, hriday naheen aghaayaa.
milan aur virahake beech saadhanaaka sota jhonke khaata hua chalata rahaa. milanakee leela ho chukee thee, ab virahakee leela honevaalee thee . yah virah bhee to milanase kam madhur naheen hai . pyaareka sab kuchh pyaara hai. usaka milana bhee priy hai aur bichhuड़na bhee priy hai. milana adhik priy hai ya bichhuड़na, ise kaun batalaaye. jis prakaar varsha rituke aanepar jal barasata hai, bijalee chamakatee hai, megh garjana karate hain, hava jorase chalane lagatee hai, phool khil jaate hain aur pakshee aanandamen doobakar koojane lagate hain, usee prakaar priyatam prabhuke darshan ho jaanepar aanandit hokar netr jala-varsha karane lagate hain, hoth mridu haasy karane lagate hain, hridayakee kalee khil uthatee hai, aanandake jhakise mastak hilane lagata hai, pratikshan us priy sakhaake naamakee garjana hone lagatee hai aur premakee mastee prabhuke gunagaanamen saraabor kar detee hai. milan aur virah donon hee saadhan hari-milanake hee hain. is aanandaka pata n karmeeko hai n nishkarmeeko, n jnaaneeko hai n dhyaaneeko. ved bhee isaka paar naheen pa sakate, vidhikee yahaantak pahunch naheen, yah to keval rasik hridayonke nikat hee chir samujjval hai. yahee hai saadhanaaka shesh, yahee hai premakee charam leelaa. yahee hai yogiyonkee yog saadhan, yahee hai bhaktonko bhaktikee praapti, yahee hai premeejanonka poorn pranaya-mahotsav !
mangalakee dasha ab kuchh vichitr rahane lagee. milakar bichhuड़neka duhkh koee bhuktabhogee hee anubhav kar sakata hai. mangalase ab n rote banata, n hansate . aanand tha milanakee smritika, vishaad tha paakar kho denekaa. usake jeemen kuchh aisee laharen uth rahee theen ki us pyaareke bina ab jeena bekaar hai. kisee kaamamen usaka jee naheen lagataa. n bhookh lagatee, n neend aatee. raata-din rota rahata, rote-rote kabhee-kabhee beechamen attahaas kar baithataa. ajeeb paagalakee-see dasha thee. log kuchh samajh naheen rahe the ki kya baat hai. pitaane samajha laड़keka dimaag phir gaya hai, dava karaanee chaahiye. aasa-paasake vaidyahakeemonko bulavaaya ! lekin rog to chikitsaase pareka thaa.
mangal apane vaidyakee khojamen aap heen nikal paड़aa.
premiyonka haal aisa hee hota hai. premake aniyaare baanase jisaka hriday bindh jaata hai, usakee dasha unmattakee-see ho jaatee . jagatkee koee charcha use naheen suhaatee. cheshta karanepar bhee vah kuchh bol naheen sakataa. usaka shareer pulakit ho uthata hai. usake roma-romase premakee kirana-dhaaraaen nikalakar nirmal premajyoti phaila detee hain. samast vaataavaran premamay ho jaata hai. vah premaaveshamen baara-baar rota hai, kabhee hansata hai, kabhee laaj chhoda़kar oonche svarase gaane aur naachane lagata hai. mangalakee ma mangalake is divy unmaadako kuchha-kuchh samajh rahee thee. usane dekha tha ki janmaashtameekee raatase hee mangalakee dasha palatane lagee thee. use mangalakee is dashaapar param santosh tha . vah jaanatee thee ki vaastavik putravatee vahee hai jisaka putr shreeharike charanon men anurakt ho . vah apane bhaagyako saraahatee aur prabhuke charanonmen mastak tekakar nity yahee praarthana karatee – 'he prabho ! is baalakake hridayamen premakee aag lahakaakar aap ab ise yon n chhoda़o, ab to ise sarvatha apana lo; main ise tumhaare charanonmen aanandake saath nivedit karatee hoon | tum ise ab sveekaar kar lo .'
parantu bhagavaanne to pahalese hee use sveekaar kar liya tha . vah shikaaree aisaa- vaisa naheen hai. usaka nishaana khaalee jaay, yah ho naheen sakataa. jisapar usane premabujhe teer phenke, vahee lut gayaa. ghaayalakee gati ghaayal hee jaanata hai ya jaanata hai vah shikaaree . chhipa-chhipakar vaar karata hai; kabhee bahut halakee maamoolee chot karata hai kabhee gaharee- - praan le lenevaalee chot . baan laga hua harin jaise chhatapataata hai, vahee haalat bhagavatpremiyonkee hotee hai. vah hridayako seedhe bedhata hai aur baanako yon hee laga chhoda़ deta hai . -
premakee galeemen saadhak jaata to hai jee bahalaaneke liye, aankhen juda़aaneke liye, lekin vahaan jaanepar use leneke dene pada़ jaate hain. garam eekh choosanekee-see dasha ho jaatee hai—n choosate banata hai, n chhoda़te. ghaayal hokar ghoomata phirata hai. usaka dard kuchh niraala hee hota hai, vahaan dava aur dua kuchh bhee kaam naheen detee. godaavareeke tatapar jangalamen ek chhotaa-sa mandir hai. usamen shreeraadhaa-krishnakee yugala-moorti viraajamaan hai. aasa-paas tulaseeka saghan van hai— dooratak - dooratak phaila hua jangala. jangalee vrikshon aur pushpalataaonse sthaanakee shobha atyant ramaneey ho rahee hai. moron aur vany pashuonne vanako mukharit kar diya hai. shaant, stabdh godaavareekee dhaaraapar vanake phool bahate hue aise lagate hain maano vanadeveene bhagavaan sooryanaaraayanako pushponkee anjali samarpit kee hai. baalaravikee komal kiranen samast vanapraantamen aur godaavareeke hridaya-sthalapar keli kar rahee hain. mangal godaavaree-tatapar tulaseeke vanamen baitha hua gadgad kanthase apane praananaathako kaatarabhaavase pukaar raha hai. praarthana karate-karate vah moorchchhit hokar vaheen gir pada़ta hai. moorchchhita-avasthaamen mangalako ek divy vapudhaaree mahaatmaase 'oM raadhaayai svaahaa' ka shadakshar mantr praapt hua . mantr kaanonmen praveshakar hridayamen pahuncha aur vahaan hridayadeshamen mantrakee chetanaase ek vidyullahara-see laharaane lagee . mangalako aisa prateet hua ki sheetal vidyutke divy aksharon men yah mantr usake hridayamen vaise hee prakat hua hai jaise prashaant neel aakaashamen poornimaaka chandrama . mangal jab hoshamen aaya, tab ve mahaatma vahaan naheen the, parantu vah mantr pahaleke samaan hee chetanaroopamen vidyut-dhaaraakee tarah hridayamen tarangit ho raha tha . mantrakee yah divy leela dekh mangal mugdh tha . usake roma-romase mantra-raajakee komal kiranen prasphurit ho rahee theen aur bheetara-baahar samaan roopase vah us aanandasindhumen doob raha thaa. aankhen kholata to saamane shreeraadhaakrishnakee manjul moorti, aankhen band karata to hridayamen usee yugalamoortikee lalit leela !! praanonmen, shvaasonmen, mantrakee madhur kreeड़a svayan hotee rahatee thee- anaayaas, bina prayaas . varshon isee rasasamaadhimen dooba raha . deha-gehakee sudha-budh n thee . vanake bheetaree bhaagamen rahanevaale jo kuchh laakar use khila dete, vah kha letaa; jo kuchh pila dete, vah pee leta .
shaaradee poornimaakee madhyaraatri hai . mangalake hridayamen aaj apoorv ullaas chha raha hai. usane vanake pushponkee maala banaayee, tulaseekee manjareekee maala banaayee . praananaath aur priyaajeeko premake saath pahanaayaa. aansuonse unake charan pakhaare aur laga unhen ekatak nihaarane. dekhate-dekhate usakee drishti bandh gayee, palaken sthir ho gayeen; phir kya dekhata hai ki shreeraadhaaraaneeka hriday khulata hai. theek jaise sooryakee kiranonke sparshase kamalakee kalee khilatee hai— raadhaaraanee mangalako uthaakar apane hridayamen chhipa letee hain aur bhagavaan khada़e-khada़e manda-mand musakaanonkee jhada़ee laga rahe hain. vahaan ab mangal naheen hai — usane apana sarvasv apane praananaath jeevanasakhaake charanon men arpit kar diya hai aur usakee yah bhent poornataya sveekaar kar lee gayee hai .
mandirake paas ek chhotaa-sa chabootara ban gaya hai, jahaan mangal tulaseevanamen baitha karata thaa. log ise mangaladaasaka chabootara kahate hain .
bolo bhakt aur unake bhagavaankee jay !