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गोपियाँ तो सन्न रह गई जब दुर्वासा ऋषि ने भी भगवान श्री कृष्ण को बाल ब्रह्मचारी बताया

एक समयकी बात है। किसी दिन नित्यसिद्धा कृतकृत्या गोपियोंने लोककल्याणको भावनासे प्रेरित होकर प्रश्न किया- 'हे नित्यनिकुंजलीलाभिलाषिन् । गोपीजनवल्लभ श्रीकृष्ण। दुःख-दारिद्र्य-दौर्भाग्य निवारणार्थं सांसारिक व्यक्तिको क्या करना चाहिये ?

गोपियोंकी बातें सुनकर चंचलात्मा बालकृष्ण अपना बालकपन भुलाकर वृद्धोंकी भाँति गम्भीर-से होकर बोले-'हे गोपियो। इस विषयमें मनीषीजन सरलतम उपाय बताते हैं। किसी तपस्वी विप्रको पवित्रतापूर्वक उनके नियमानुकूल भोजन कराना चाहिये; क्योंकि इस धरापर अन्नदानसे बढ़कर समृद्धि पानेका तथा अपने ज्ञाताज्ञात पापोंके शमनका कोई अन्य उपाय नहीं है। कहा भी है कि 'मनुष्यके दुष्कृत्य उसके अन्नमें रहते हैं। जो जिसका अन्न खाता है, वह उसके पाप ही खाता है।'

दुष्कृतं हि मनुष्याणां अन्नमाश्रित्य तिष्ठत
अश्नाति यो हि यस्यान्तं स तस्याश्नाति
किल्विषम् ।।

सौभाग्यकी बात है कि ऋषि पंचमीका पावन पर्व है, तुम्हारे मनमें भाव भी बहुत उत्तम है। अतः किसी सदाचारी, सन्तोषी, तपस्वी विप्रको भोजन कराओ। मन्त्रमुग्ध-सी गोपियाँ कृष्णकी मधुरातिमधुर वाणीको सुनकर रोमांचित हो उठीं तथा उत्सुकतापूर्वक बोलीं
'हे प्रभो! आप ही बतायें, किस विप्रको भोजन करायें ?'

कस्मै ब्राह्मणाय भैक्षं दातव्यं भवति

श्रीकृष्ण बोले- 'यमुनापार रहनेवाले महर्षि दुर्वासाजी यदि आपकी प्रसादी स्वीकार कर लें तो समझ लें आपपर परमात्माकी विशेष कृपा है।' यद्यपि गोपियाँ श्रीदुर्वासाजीकी विशिष्टता, विलक्षणताको जानती थीं, तथापि उनके कठोरतम नियम, कठोर प्रतीत होनेवाला भयप्रद स्वभाव, उनका एकान्तवास, उनकी दुर्लभता और उसपर भी केवल दूर्वा ही खाकर रहनेकी प्रसिद्धि यह सब सोचकर गोपियाँ चिन्तित तो हुईं, परंतु श्रीकृष्णकृपाके बलका स्मरण करके परमानन्द-परिप्लुत हो पवित्रभावसे प्रचुरमात्रामें घृतपक्व, पयःपक्व विविध व्यंजनोंका निर्माण करने लगीं। उनमें देखा-देखी सुनासुनी होड़ सी लग गयी।

मुखमें हो राम नाम राम सेवा हाथमें।
तू अकेला नाही प्यारे राम तेरे साथमें ॥

गोपियाँ देहसे काम करतों, पर मन श्रीकृष्णम लगा | रहता। अतः मानो यह प्रसादी गोपियाँ अकेली नहीं बना रहीं, अपितु श्रीकृष्ण साथमें लगे हैं। अथवा ये कहें कि गोपियाँ तो यन्त्रमात्र हैं, निमित्तमात्र हैं, वास्तवमें श्रीकृष्ण ही बना रहे हैं। और यदि श्रीकृष्ण ही बना रहे हैं, तो भी क्या आश्चर्य; ये तो भारतवर्षकी ऋषिसत्ता, ज्ञानसत्ता, वैराग्यसत्ताका अभिनन्दन है, अभिवन्दन है।
आज व्रजमें गोवर्धनपूजा-जैसा महामहोत्सव हो। गया। सब तैयारियोंमें जुटे हैं। एक तो श्रीकृष्णकी आज्ञा है। ऊपरसे उनके गुरुदेवकी प्रसादी है, जो कि केवल दूर्वा ही खाते हैं। सैकड़ों वर्षोंमें कभी-कभी किसी किसी पुण्यात्माका ही प्रसाद स्वीकार करते हैं; परजिसका भी पा लेते हैं, उसके सौभाग्यके आगे देवराज इन्द्र भी तुच्छ से हो जाते हैं।

इस प्रसंगमें गोपियोंकी सीखनेयोग्य दो बातें हृदयको आकृष्ट करती हैं।
१. सकारात्मकतायुक्त चिन्तन ।
२. कामना वासनामुक्त हृदय ।

१. एक तो गोपियाँ रंचमात्र भी नकारात्मक नहीं हैं। एकने भी लौटकर यह प्रश्न नहीं किया कि क्या बनायें? कितना बनायें? कैसे बनायें? हमने बना भी लिया और उन्होंने न खाया तो? फिर इस बाढ़में यमुनाको पार करके उनके आश्रमतक पहुँचना हँसी खेल है क्या ? वहाँ स्त्रियोंका प्रवेश वर्जित हुआ तो ? क्रुद्ध होकर शाप दे दिया तो ?

२. दूसरी बात है, गोपियाँ वासना-मालिन्य तथा | कामनाके भारसे सर्वथा विमुक्त, समस्त जागतिक कृत्योंसे निवृत्त, नित्य कृष्ण-चिन्तनमें प्रवृत्त, लोकोत्तर चारित्र्य- संपृक्त उपासनाके चरमोत्कर्षपर आसीन हैं। इनके निर्मल निष्कलंक मयंक मुखकी मयूखाभासे, इनके दिव्य पादारविन्द मकरन्दकी सुगन्धसे उद्धवादि विज्ञानी सम्मोहित होकर समाधान पाते हैं। ये किसी फलाकांक्षासे नहीं अपितु कृष्णाज्ञा-पालनार्थ ही ऋषिभोजन करा रही हैं।

श्रद्धाभावसे भरी गोपियाँ नंगे पैर हाथोंमें प्रसादी लिये यमुनाके किनारे आ गयीं। इधर सजी-धजी गोपियोंकी भीड़, उधर दुर्वासाजी महाराजकी कुटिया बीचमें उत्ताल तरंगोंसे विकराल यमुनाकी जलधारा। भोली-भाली गोपियाँ क्रियाकुशल तो हैं ही, साथ ही कृष्ण-कृपाबलसम्पन्न भी हैं। अतः उलाहना-आक्षेप आरोप-प्रत्यारोप किये बिना श्रीकृष्णसे बोलीं- 'भगवन् ! यमुनाका अगाध जल पार किये बिना हम कैसे वहाँ जायँगी, जहाँ हमारा कल्याण होगा ?' 'भगवन्! कथं यास्यामो अतीर्त्वा जलं यमुनायाः यतः श्रेयो भवति l'

निर्विकार भावसे कृष्ण बोले-'यमुनासे जाकर कहो। हमारे रसिकशेखर श्रीकृष्ण ब्रह्मचारी हैं तो हमें मार्ग दे दो।' कृष्णो ब्रह्मचारी इत्युक्त्वा मार्ग वो दास्यति ।
हे गोपियो ! मेरा स्मरण करनेमात्रसे अपवित्र भी पवित्र हो जाता है। खण्डित व्रतवाला भी अखण्डितव्रती हो जाता है। अश्रोत्रिय भी श्रोत्रिय हो जाता है। सकाम भाववाला भी निष्काम हो जाता है। अथवा पूर्ण निष्काम आत्माराम भी नाम-रूप-लीला धामकी कामनासे भर जाता है। निष्कामः सकामो भवति यं मां स्मृत्वा ।

गोपियाँ कृष्णाज्ञा पाते ही यमुनाके पास जाकर बोलीं- 'हे यमुने! श्रीकृष्ण बालब्रह्मचारी हैं तो हमें मार्ग दे दो। सहसा चमत्कार हुआ, यमुना ठहर गयी, मार्ग मिलते ही गोपियाँ पार चली गयीं।
पुण्यप्रभावसे अतिदिव्य, तपस्तेजसे अतिभव्य, प्राकृतिक सौन्दर्यसे सुरम्य, सकल जीव-निकायके परमाश्रय उस एकान्त-शान्त आश्रममें जाकर मुनिमण्डल-मुकुटमणि ब्रह्मविद्वरिष्ठ रुद्रांशोत्पन्न अनुसूया - अत्रि-नन्दन दुर्वासाजीको नमन करके विनत भावसे गोपियोंने आगमनका कारण बताया। जिसे सुनते ही श्रीकृष्णाज्ञा समझकर चुपचाप | महर्षि दुर्वासाने समस्त प्रसादीको पचा लिया। प्रसन्नतापूर्वक आशीर्वादसहित जानेकी आज्ञा दी। भुक्त्वा आशिषं प्रयोज्य आज्ञामदात् ।
गोपियाँ बोलीं- 'गुरुदेव ! यमुनाको कैसे पार करें ?" दुर्वासाजीने सहज भावसे कह दिया कि 'यमुनासे कहना कि महर्षि दुर्वासा दूर्वा खाकर ही रहते हैं तो हमें मार्ग दे दो।' स होवाच मुनिं दुर्वासिनं मां स्मृत्वा वो दास्यतीति मार्गम्।

महात्मा दुर्वासाकी बात सुनकर गोपियों आश्वर्यमें पड़ गयीं। ये क्या कह रहे हैं? अभी-अभी हजारों लोगोंकी क्षुधा-निवृत्तिके लिये पर्याप्त भोजनको हमारे सामने ही अकेले खाया है। ऊपरसे कहते हैं कि केवल दूर्वा खाकर ही रहते हैं। उन गोपियोंमें ज्येष्ठ तथा श्रेष्ठ गान्धर्वी नामक गोपीने साहस करके विनम्रतापूर्वक पूछा- 'भगवन्! क्षमा करें। हमारी एक जिज्ञासा है। ये रसिकशेखर कृष्ण ब्रह्मचारी कैसे हुए ? तथा षड्रसोपेत विविध व्यंजन खानेपर भी आप दूर्वा-भोक्ता कैसे हुए?'

महर्षि दुर्वासा बोले-'हे गोपीवृन्द ! पहले तो आप यह समझें कि 'आकाशमें शब्द नामक गुण है। आत्मा शब्द तथा आकाश दोनोंसे भिन्न होकर इस आकाशमें रहता है। फिर भी आकाश उस आत्माको नहीं जानता। वही आत्मा मैं हूँ तो फिर मैं भोक्ता कैसे हुआ ?' शब्दवानाकाशः शब्दाकाशाभ्यां भिन्नः कथं भोक्ता भवामि। आकाशः तं न वेद, स हि आत्माहं, कथं भोक्ता भवामि।
इसी प्रकार वायु, तेज, जल तथा पृथ्वी आदिसे भिन्न होकर इनमें रहनेवाले जिस आत्मतत्त्वको ये वायु आदि नहीं जानते, वही नित्य शुद्ध-बुद्ध चैतन्य आत्मा हूँ मैं। तब फिर मैं भोक्ता कैसे हुआ? अर्थात् देहादिसे तथा देहादिके आहार-विहारसे मेरा कोई सम्बन्ध ही नहीं है; क्योंकि इस जड़, विनाशी, विकारी देहादिसे मैं सर्वथा भिन्न हूँ।

अब आती है श्रीकृष्णके ब्रह्मचारी होनेकी बात । हे गोपियो ! यह श्रीकृष्ण जो आपके प्रियतम हैं। ये दोनों शरीरोंके कारण हैं। ये अभोक्ता साक्षी एवं द्रष्टा हैं।. तथेतरो अभोक्ता कृष्णो भवति ।

वे विद्या-अविद्यासे भिन्न विशुद्ध विद्यामय हैं, तो कैसे विषयी हो सकते हैं? जन्म-जरा-रोगादिसे भिन्न स्थाणुवत् हैं। अच्छेद्य, अभेद्य, अक्लेद्य, अव्यपदेश्य हैं श्रीकृष्ण । जैसे प्रकाशके समीप अँधेरा आ नहीं सकता, वैसे ही श्रीकृष्णके समीप विषयकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। विद्याविद्याभ्यां भिन्नो विद्यामयो यः स कथं विषयी भवति, जन्मजराभ्यां भिन्नः स्थाणुरयं अच्छेद्योऽयम् ।
यही सूर्यमें, गायोंमें अवस्थित हैं। यही गोपालकोंके पालक हैं। सभी गोपोंमें, सभी देवोंमें यही श्रीकृष्ण चेतन रूपसे विराजमान हैं। सभी वेदोंद्वारा भी इनका ही गान किया जाता है। सर्वैः वेदैः गीयते ।

हे गोपी! श्रीकृष्ण भोक्ता नहीं, द्रष्टा साक्षी हैं। एकदेशीय नहीं, सार्वदेशिक सर्वव्यापक हैं। एककालिक नहीं, सार्वकालिक हैं। एक होकर भी अनेक नाम रूपोंसे भासित होते हैं। वे ही जगत्के उद्भासक, संरक्षक तथा संहारक हैं, इसीलिये उनके ब्रह्मचारित्वकी बात सुनते ही यमुनाने आपको मार्ग दिया।
इस कथाका आधार गोपालोत्तरतापिन्युपनिषत् है।



gopiyaan to sann rah gaee jab durvaasa rishi ne bhee bhagavaan shree krishn ko baal brahmachaaree bataayaa

ek samayakee baat hai. kisee din nityasiddha kritakritya gopiyonne lokakalyaanako bhaavanaase prerit hokar prashn kiyaa- 'he nityanikunjaleelaabhilaashin . gopeejanavallabh shreekrishna. duhkha-daaridrya-daurbhaagy nivaaranaarthan saansaarik vyaktiko kya karana chaahiye ?

gopiyonkee baaten sunakar chanchalaatma baalakrishn apana baalakapan bhulaakar vriddhonkee bhaanti gambheera-se hokar bole-'he gopiyo. is vishayamen maneesheejan saralatam upaay bataate hain. kisee tapasvee viprako pavitrataapoorvak unake niyamaanukool bhojan karaana chaahiye; kyonki is dharaapar annadaanase badha़kar samriddhi paaneka tatha apane jnaataajnaat paaponke shamanaka koee any upaay naheen hai. kaha bhee hai ki 'manushyake dushkrity usake annamen rahate hain. jo jisaka ann khaata hai, vah usake paap hee khaata hai.'

dushkritan hi manushyaanaan annamaashrity tishthata
ashnaati yo hi yasyaantan s tasyaashnaati
kilvisham ..

saubhaagyakee baat hai ki rishi panchameeka paavan parv hai, tumhaare manamen bhaav bhee bahut uttam hai. atah kisee sadaachaaree, santoshee, tapasvee viprako bhojan karaao. mantramugdha-see gopiyaan krishnakee madhuraatimadhur vaaneeko sunakar romaanchit ho utheen tatha utsukataapoorvak boleen
'he prabho! aap hee bataayen, kis viprako bhojan karaayen ?'

kasmai braahmanaay bhaikshan daatavyan bhavati

shreekrishn bole- 'yamunaapaar rahanevaale maharshi durvaasaajee yadi aapakee prasaadee sveekaar kar len to samajh len aapapar paramaatmaakee vishesh kripa hai.' yadyapi gopiyaan shreedurvaasaajeekee vishishtata, vilakshanataako jaanatee theen, tathaapi unake kathoratam niyam, kathor prateet honevaala bhayaprad svabhaav, unaka ekaantavaas, unakee durlabhata aur usapar bhee keval doorva hee khaakar rahanekee prasiddhi yah sab sochakar gopiyaan chintit to hueen, parantu shreekrishnakripaake balaka smaran karake paramaananda-pariplut ho pavitrabhaavase prachuramaatraamen ghritapakv, payahpakv vividh vyanjanonka nirmaan karane lageen. unamen dekhaa-dekhee sunaasunee hoda़ see lag gayee.

mukhamen ho raam naam raam seva haathamen.
too akela naahee pyaare raam tere saathamen ..

gopiyaan dehase kaam karaton, par man shreekrishnam laga | rahataa. atah maano yah prasaadee gopiyaan akelee naheen bana raheen, apitu shreekrishn saathamen lage hain. athava ye kahen ki gopiyaan to yantramaatr hain, nimittamaatr hain, vaastavamen shreekrishn hee bana rahe hain. aur yadi shreekrishn hee bana rahe hain, to bhee kya aashcharya; ye to bhaaratavarshakee rishisatta, jnaanasatta, vairaagyasattaaka abhinandan hai, abhivandan hai.
aaj vrajamen govardhanapoojaa-jaisa mahaamahotsav ho. gayaa. sab taiyaariyonmen jute hain. ek to shreekrishnakee aajna hai. ooparase unake gurudevakee prasaadee hai, jo ki keval doorva hee khaate hain. saikada़on varshonmen kabhee-kabhee kisee kisee punyaatmaaka hee prasaad sveekaar karate hain; parajisaka bhee pa lete hain, usake saubhaagyake aage devaraaj indr bhee tuchchh se ho jaate hain.

is prasangamen gopiyonkee seekhaneyogy do baaten hridayako aakrisht karatee hain.
1. sakaaraatmakataayukt chintan .
2. kaamana vaasanaamukt hriday .

1. ek to gopiyaan ranchamaatr bhee nakaaraatmak naheen hain. ekane bhee lautakar yah prashn naheen kiya ki kya banaayen? kitana banaayen? kaise banaayen? hamane bana bhee liya aur unhonne n khaaya to? phir is baadha़men yamunaako paar karake unake aashramatak pahunchana hansee khel hai kya ? vahaan striyonka pravesh varjit hua to ? kruddh hokar shaap de diya to ?

2. doosaree baat hai, gopiyaan vaasanaa-maaliny tatha | kaamanaake bhaarase sarvatha vimukt, samast jaagatik krityonse nivritt, nity krishna-chintanamen pravritt, lokottar chaaritrya- sanprikt upaasanaake charamotkarshapar aaseen hain. inake nirmal nishkalank mayank mukhakee mayookhaabhaase, inake divy paadaaravind makarandakee sugandhase uddhavaadi vijnaanee sammohit hokar samaadhaan paate hain. ye kisee phalaakaankshaase naheen apitu krishnaajnaa-paalanaarth hee rishibhojan kara rahee hain.

shraddhaabhaavase bharee gopiyaan nange pair haathonmen prasaadee liye yamunaake kinaare a gayeen. idhar sajee-dhajee gopiyonkee bheeda़, udhar durvaasaajee mahaaraajakee kutiya beechamen uttaal tarangonse vikaraal yamunaakee jaladhaaraa. bholee-bhaalee gopiyaan kriyaakushal to hain hee, saath hee krishna-kripaabalasampann bhee hain. atah ulaahanaa-aakshep aaropa-pratyaarop kiye bina shreekrishnase boleen- 'bhagavan ! yamunaaka agaadh jal paar kiye bina ham kaise vahaan jaayangee, jahaan hamaara kalyaan hoga ?' 'bhagavan! kathan yaasyaamo ateertva jalan yamunaayaah yatah shreyo bhavati l'

nirvikaar bhaavase krishn bole-'yamunaase jaakar kaho. hamaare rasikashekhar shreekrishn brahmachaaree hain to hamen maarg de do.' krishno brahmachaaree ityuktva maarg vo daasyati .
he gopiyo ! mera smaran karanemaatrase apavitr bhee pavitr ho jaata hai. khandit vratavaala bhee akhanditavratee ho jaata hai. ashrotriy bhee shrotriy ho jaata hai. sakaam bhaavavaala bhee nishkaam ho jaata hai. athava poorn nishkaam aatmaaraam bhee naama-roopa-leela dhaamakee kaamanaase bhar jaata hai. nishkaamah sakaamo bhavati yan maan smritva .

gopiyaan krishnaajna paate hee yamunaake paas jaakar boleen- 'he yamune! shreekrishn baalabrahmachaaree hain to hamen maarg de do. sahasa chamatkaar hua, yamuna thahar gayee, maarg milate hee gopiyaan paar chalee gayeen.
punyaprabhaavase atidivy, tapastejase atibhavy, praakritik saundaryase suramy, sakal jeeva-nikaayake paramaashray us ekaanta-shaant aashramamen jaakar munimandala-mukutamani brahmavidvarishth rudraanshotpann anusooya - atri-nandan durvaasaajeeko naman karake vinat bhaavase gopiyonne aagamanaka kaaran bataayaa. jise sunate hee shreekrishnaajna samajhakar chupachaap | maharshi durvaasaane samast prasaadeeko pacha liyaa. prasannataapoorvak aasheervaadasahit jaanekee aajna dee. bhuktva aashishan prayojy aajnaamadaat .
gopiyaan boleen- 'gurudev ! yamunaako kaise paar karen ?" durvaasaajeene sahaj bhaavase kah diya ki 'yamunaase kahana ki maharshi durvaasa doorva khaakar hee rahate hain to hamen maarg de do.' s hovaach munin durvaasinan maan smritva vo daasyateeti maargam.

mahaatma durvaasaakee baat sunakar gopiyon aashvaryamen pada़ gayeen. ye kya kah rahe hain? abhee-abhee hajaaron logonkee kshudhaa-nivrittike liye paryaapt bhojanako hamaare saamane hee akele khaaya hai. ooparase kahate hain ki keval doorva khaakar hee rahate hain. un gopiyonmen jyeshth tatha shreshth gaandharvee naamak gopeene saahas karake vinamrataapoorvak poochhaa- 'bhagavan! kshama karen. hamaaree ek jijnaasa hai. ye rasikashekhar krishn brahmachaaree kaise hue ? tatha shadrasopet vividh vyanjan khaanepar bhee aap doorvaa-bhokta kaise hue?'

maharshi durvaasa bole-'he gopeevrind ! pahale to aap yah samajhen ki 'aakaashamen shabd naamak gun hai. aatma shabd tatha aakaash dononse bhinn hokar is aakaashamen rahata hai. phir bhee aakaash us aatmaako naheen jaanataa. vahee aatma main hoon to phir main bhokta kaise hua ?' shabdavaanaakaashah shabdaakaashaabhyaan bhinnah kathan bhokta bhavaami. aakaashah tan n ved, s hi aatmaahan, kathan bhokta bhavaami.
isee prakaar vaayu, tej, jal tatha prithvee aadise bhinn hokar inamen rahanevaale jis aatmatattvako ye vaayu aadi naheen jaanate, vahee nity shuddha-buddh chaitany aatma hoon main. tab phir main bhokta kaise huaa? arthaat dehaadise tatha dehaadike aahaara-vihaarase mera koee sambandh hee naheen hai; kyonki is jada़, vinaashee, vikaaree dehaadise main sarvatha bhinn hoon.

ab aatee hai shreekrishnake brahmachaaree honekee baat . he gopiyo ! yah shreekrishn jo aapake priyatam hain. ye donon shareeronke kaaran hain. ye abhokta saakshee evan drashta hain.. tathetaro abhokta krishno bhavati .

ve vidyaa-avidyaase bhinn vishuddh vidyaamay hain, to kaise vishayee ho sakate hain? janma-jaraa-rogaadise bhinn sthaanuvat hain. achchhedy, abhedy, akledy, avyapadeshy hain shreekrishn . jaise prakaashake sameep andhera a naheen sakata, vaise hee shreekrishnake sameep vishayakee kalpana bhee naheen kee ja sakatee. vidyaavidyaabhyaan bhinno vidyaamayo yah s kathan vishayee bhavati, janmajaraabhyaan bhinnah sthaanurayan achchhedyo'yam .
yahee sooryamen, gaayonmen avasthit hain. yahee gopaalakonke paalak hain. sabhee goponmen, sabhee devonmen yahee shreekrishn chetan roopase viraajamaan hain. sabhee vedondvaara bhee inaka hee gaan kiya jaata hai. sarvaih vedaih geeyate .

he gopee! shreekrishn bhokta naheen, drashta saakshee hain. ekadesheey naheen, saarvadeshik sarvavyaapak hain. ekakaalik naheen, saarvakaalik hain. ek hokar bhee anek naam rooponse bhaasit hote hain. ve hee jagatke udbhaasak, sanrakshak tatha sanhaarak hain, iseeliye unake brahmachaaritvakee baat sunate hee yamunaane aapako maarg diyaa.
is kathaaka aadhaar gopaalottarataapinyupanishat hai.



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