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वैभवको धिक्कार है!  [Spiritual Story]
Spiritual Story - हिन्दी कथा (Story To Read)

सम्राट् भरतको चक्रवर्ती बनना था। वे दिग्विजय कर चुके थे, किंतु अभी वह अधूरी थी; क्योंकि उनके छोटे भाई पोदनापुरनरेश बाहुबलिने उनकी अधीनता स्वीकार नहीं की थी। बाहुबलिके पास संदेश भेजा गया। तो उन्होंने उत्तर दिया- 'महासम्राट् पिता श्रीऋषभदेव महाराजने मुझे यह राज्य दिया था। मैं अपने ज्येष्ठ भ्राताका सम्मान करता हूँ; किंतु वे इस राज्यपर कुदृष्टिन डालें।'

भरतको तो चक्रवर्ती सम्राट् बनना था। वे अपनी दिग्विजय अपूर्ण रहने देना नहीं चाहते थे। बाहुबलिके | उत्तरसे उनका क्रोध भड़क उठा। रणभेरी बजने लगी । चतुर मन्त्रियोंने सम्मति दी - 'व्यर्थ नरसंहार करनेसे क्या लाभ? भाई-भाईका यह युद्ध है सम्राट् ! आप दोनों दृष्टियुद्ध, जलयुद्ध तथा मल्लयुद्ध करके परस्पर हीजय-पराजयका निर्णय कर लें ।'

दोनोंने यह सम्मति स्वीकार कर ली। परंतु दृष्टियुद्ध और जलयुद्धमें बाहुबलि विजयी हो गये। सम्राट् भरतने बाहुबलिको मल्लयुद्धके लिये ललकारा। दोनों भाई अखाड़े में उतरे। इस संघर्षमें भी भरतको जब जीतनेकी आशा नहीं रह गयी तब क्रोधपूर्वक उन्होंने छोटे भाईपर अपने पितासे प्राप्त अमोघ अस्त्र 'चक्ररत्न' का प्रयोग कर दिया। वे क्रोधमें यह भूल ही गये कि 'चक्ररत्न' कुटुम्बियों पर नहीं चलेगा। किंतु उन्हें अपनी भूल शीघ्र ज्ञात हो गयी। 'चक्ररत्न' बाहुबलिके समीप पहुँचकर लौट गया।

भरतने अन्याय किया था। उनके अन्यायसे बाहुबलिक्षुब्ध हो उठे। उन्होंने अपनी प्रचण्ड भुजाओंसे भरतको पृथ्वीसे ऊपर उठा लिया- ऊपर उठा लिया अपने सिरसे भी। एक क्षणमें वे भरतको पृथ्वीपर पछाड़ फेंकनेवाले थे। सहसा प्रज्ञाका उदय हुआ। बाहुबलिने धीरेसे भरतको सामने खड़ा कर दिया और बोले 'भाई! क्षमा करना। इस राज्य और वैभवको धिक्कार है, जिसके मदसे अंधा होकर मनुष्य छोटे-बड़ेका मान करना भी भूल जाता है।'

भरत पुकारते रहे, प्रजाके लोग पुकारते रहे; किंतु बाहुबलि मल्लशालासे जो निकले तो फिर नहीं लौटे। उन्होंने दीक्षा ले ली। मोह-मायाकी सब गाँठें खोलकर वे निर्ग्रन्थ हो गये।



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vaibhavako dhikkaar hai!

samraat bharatako chakravartee banana thaa. ve digvijay kar chuke the, kintu abhee vah adhooree thee; kyonki unake chhote bhaaee podanaapuranaresh baahubaline unakee adheenata sveekaar naheen kee thee. baahubalike paas sandesh bheja gayaa. to unhonne uttar diyaa- 'mahaasamraat pita shreerishabhadev mahaaraajane mujhe yah raajy diya thaa. main apane jyeshth bhraataaka sammaan karata hoon; kintu ve is raajyapar kudrishtin daalen.'

bharatako to chakravartee samraat banana thaa. ve apanee digvijay apoorn rahane dena naheen chaahate the. baahubalike | uttarase unaka krodh bhada़k uthaa. ranabheree bajane lagee . chatur mantriyonne sammati dee - 'vyarth narasanhaar karanese kya laabha? bhaaee-bhaaeeka yah yuddh hai samraat ! aap donon drishtiyuddh, jalayuddh tatha mallayuddh karake paraspar heejaya-paraajayaka nirnay kar len .'

dononne yah sammati sveekaar kar lee. parantu drishtiyuddh aur jalayuddhamen baahubali vijayee ho gaye. samraat bharatane baahubaliko mallayuddhake liye lalakaaraa. donon bhaaee akhaada़e men utare. is sangharshamen bhee bharatako jab jeetanekee aasha naheen rah gayee tab krodhapoorvak unhonne chhote bhaaeepar apane pitaase praapt amogh astr 'chakraratna' ka prayog kar diyaa. ve krodhamen yah bhool hee gaye ki 'chakraratna' kutumbiyon par naheen chalegaa. kintu unhen apanee bhool sheeghr jnaat ho gayee. 'chakraratna' baahubalike sameep pahunchakar laut gayaa.

bharatane anyaay kiya thaa. unake anyaayase baahubalikshubdh ho uthe. unhonne apanee prachand bhujaaonse bharatako prithveese oopar utha liyaa- oopar utha liya apane sirase bhee. ek kshanamen ve bharatako prithveepar pachhaada़ phenkanevaale the. sahasa prajnaaka uday huaa. baahubaline dheerese bharatako saamane khada़a kar diya aur bole 'bhaaee! kshama karanaa. is raajy aur vaibhavako dhikkaar hai, jisake madase andha hokar manushy chhote-bada़eka maan karana bhee bhool jaata hai.'

bharat pukaarate rahe, prajaake log pukaarate rahe; kintu baahubali mallashaalaase jo nikale to phir naheen laute. unhonne deeksha le lee. moha-maayaakee sab gaanthen kholakar ve nirgranth ho gaye.

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