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आध्यात्मिक पंचतन्त्र  [प्रेरक कहानी]
Hindi Story - Story To Read (Spiritual Story)

आध्यात्मिक पंचतन्त्र

(1)
मिस्त्रीकी डली
एक चींटी नमकके पर्वतपर रहती थी, दूसरी चींटी मिस्रीके पर्वतपर। एक दिन नमकवाली चींटी, मिस्रीवाली चींटीसे पूछने लगी कि तू इतनी हृष्ट-पुष्ट कैसे रहती है, तो उसने मिस्त्रीका स्वाद और गुण बताकर कहा कि बस मैं वही खाकर पुष्ट हूँ। तब नमकके पर्वतवाली चींटीने कहा कि 'मुझे भी वह पर्वत बता दे।' तो मिस्त्रीवाली चींटी नमकवाली चींटीको मिस्त्रीके पर्वतपर ले गयी। (मिस्रीकी एक छोटी-सी भी डली चींटीके लिये तो पर्वतकी तरह ही है, इसलिये उसे पर्वत कहा गया है) मिस्त्रीके पर्वतपर वह नमकवाली चींटी चारों तरफ घूमकर बोली कि यहाँ तो नमक ही-नमक है। मिस्त्रीका स्वाद जो तुमने कहा, मुझे तो कहीं भी नहीं मिला। मिस्त्रीवाली चींटीने फिर गौरसे देखा तो यह पता लगा कि नमकके पर्वतवाली चींटीके मुँहमें अभीतक नमकका एक छोटा-सा कण था। तब मिस्त्रीके पर्वतकी चींटीने कहा-बहन! तेरे मुखमें नमककी डली है, उसे तो फेंक, तब मिस्रीका स्वाद मिले। नमकवाली चींटीने अपने मुँहसे वह नमकका कण फेंक दिया तो फिर उसे भी मिस्रीका स्वाद मिलने लग गया। मिस्री मिलते ही वह भी मिस्री खाने लगी और नमकका पर्वत सदाके लिये छोड़ दिया। कुछ दिनोंमें नमकके पर्वतवाली चींटी भी मिस्रीके पर्वतवाली चींटीके समान ही हृष्ट-पुष्ट हो गयी।
भावार्थ - तो हे चित्त, इस कहानीसे तू इस प्रकार शिक्षा ले कि हमारे भीतरका अन्तःकरण ही मिस्रीका पर्वत है; क्योंकि उसके भीतर आत्माकी मिठास भरी है। अभीतक तू संसारके विषयभोगरूपी नमकके पर्वतपर ही तू घूमता रहा। जैसे-तैसे कुछ समय सत्संगमें (मिस्रीके पर्वतपर) भी ले गया, तो भी तेरा ध्यान विषयोंमें ही था अर्थात् जैसे नमकके पर्वतवाली चींटी जब मिस्रीके पर्वत पर पहुँची, तो वहाँ भी नमककी डली मुँहमें दबाकर ही गयी। जबतक विषयोंको हम ध्यानसे हटा नहीं देंगे, तबतक सत्संग भी कुछ पल्ले पड़नेवाला नहीं, इसलिये मनको संसारके विषयोंकी ओर भागनेसे रोकना होगा और अध्यात्मकी ओर उसे मोड़ना होगा ।



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aadhyaatmik panchatantra

aadhyaatmik panchatantra

(1)
mistreekee dalee
ek cheentee namakake parvatapar rahatee thee, doosaree cheentee misreeke parvatapara. ek din namakavaalee cheentee, misreevaalee cheenteese poochhane lagee ki too itanee hrishta-pusht kaise rahatee hai, to usane mistreeka svaad aur gun bataakar kaha ki bas main vahee khaakar pusht hoon. tab namakake parvatavaalee cheenteene kaha ki 'mujhe bhee vah parvat bata de.' to mistreevaalee cheentee namakavaalee cheenteeko mistreeke parvatapar le gayee. (misreekee ek chhotee-see bhee dalee cheenteeke liye to parvatakee tarah hee hai, isaliye use parvat kaha gaya hai) mistreeke parvatapar vah namakavaalee cheentee chaaron taraph ghoomakar bolee ki yahaan to namak hee-namak hai. mistreeka svaad jo tumane kaha, mujhe to kaheen bhee naheen milaa. mistreevaalee cheenteene phir gaurase dekha to yah pata laga ki namakake parvatavaalee cheenteeke munhamen abheetak namakaka ek chhotaa-sa kan thaa. tab mistreeke parvatakee cheenteene kahaa-bahana! tere mukhamen namakakee dalee hai, use to phenk, tab misreeka svaad mile. namakavaalee cheenteene apane munhase vah namakaka kan phenk diya to phir use bhee misreeka svaad milane lag gayaa. misree milate hee vah bhee misree khaane lagee aur namakaka parvat sadaake liye chhoda़ diyaa. kuchh dinonmen namakake parvatavaalee cheentee bhee misreeke parvatavaalee cheenteeke samaan hee hrishta-pusht ho gayee.
bhaavaarth - to he chitt, is kahaaneese too is prakaar shiksha le ki hamaare bheetaraka antahkaran hee misreeka parvat hai; kyonki usake bheetar aatmaakee mithaas bharee hai. abheetak too sansaarake vishayabhogaroopee namakake parvatapar hee too ghoomata rahaa. jaise-taise kuchh samay satsangamen (misreeke parvatapara) bhee le gaya, to bhee tera dhyaan vishayonmen hee tha arthaat jaise namakake parvatavaalee cheentee jab misreeke parvat par pahunchee, to vahaan bhee namakakee dalee munhamen dabaakar hee gayee. jabatak vishayonko ham dhyaanase hata naheen denge, tabatak satsang bhee kuchh palle pada़nevaala naheen, isaliye manako sansaarake vishayonkee or bhaaganese rokana hoga aur adhyaatmakee or use moda़na hoga .

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