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कपोतकी अतिथि सेवा  [Shikshaprad Kahani]
Hindi Story - शिक्षदायक कहानी (आध्यात्मिक कहानी)

गोदावरीके समीप ब्रह्मगिरिपर एक बड़ा भयंकर व्याध रहता था। वह नित्य ही ब्राह्मणों, साधुओं, यतियों, गौओं और मृग-पक्षियोंका दारुण संहार किया करता था। उस महापापी व्याधके हृदयमें दयाका लेश भी न था और वह बड़ा ही क्रूर, क्रोधी तथा असत्यवादी था। उसकी स्त्री और पुत्र भी उसीके स्वभावके थे।

एक दिन अपनी पत्नीकी प्रेरणासे वह घने जंगल में घुस गया। वहाँ उसने अनेकों पशु पक्षियोंका वध किया। कितनोंको ही जीवित पकड़कर पिंजड़े में डाल दिया। इस प्रकार पूरा आखेटकर वह तीसरे पहर घरको लौटा आ रहा था, एक ही क्षणमें आकाशमें मेघोंकी घनघोर घटा घिर आयी और बिजली काँधने लगी। हवा चली और पानीके साथ प्रचण्ड उपल (ओला) वृष्टि हुई। मूसलधार वर्षा होनेके कारण बड़ी भयंकर दशा हो गयी। व्याध राह चलते-चलते थक गया। जलकी अधिकताके कारण जल, थल और गड्ढे एक से हो रहे थे। अब वह पापी सोचने लगा- 'कहाँ जाऊँ, कहाँ ठहरू, क्या करूँ ?"

इस प्रकार चिन्ता करते हुए उसने थोड़ी ही दूरपर एक उत्तम वृक्ष देखा। वह वहीं आकर बैठ गया। उसके सब वस्त्र भींग गये थे। वह जाड़ेसे ठिठुर रहा था तथा नाना प्रकारकी बातोंको सोच ही रहा था कि सूर्यास्त हो गया। अब उसने वहीं रहनेकी ठानी। उसी वृक्षपर एक कबूतर भी रहता था। उसकी स्त्री कपोती बड़ी पतिव्रता थी। उस दिन वह चारा चुगकर नहीं लौट सकी थी। अब कपोत चिन्तित हुआ। वह कहने लगा-'कपोती न जाने क्यों अबतक नहीं आयी। आज बड़ी आँधी-वर्षा थी, पता नहीं वह कुशलसे है या नहीं? उसके बिना आज यह घोंसला उजाड़-सा जान पड़ता है। वास्तवमें (गृह) परको (गृह) घर नहीं कहते- गृहिणीको ही (गृह) घर कहा जाता है। जिस गृहमें गृहिणी नहीं वह तो जंगल है। यदि आज मेरी प्रिया न लौटी तो मैं इस जीवनको रखकर क्या करूंगा ?' इधर उसकी कपोती भी इस व्याधके ही पिंजड़े में पड़ी थी। जब उसने कबूतरको इस प्रकार विलाप करते सुना तो बोली- 'महामते। आज मैं धन्य है जो आपमेरी ऐसी प्रशंसा कर रहे हैं। पर आज आप मेरी एक प्रार्थना स्वीकार कीजिये देखिये, यह व्याथ आपका आज अतिथि बना है। यह सर्दीसे निधेष्ट हो रहा है, अतएव कहींसे तृण तथा अग्रि लाकर इसे स्वस्थ कीजिये।'

कबूतर यह देखकर कि उसकी स्त्री वहीं है, होशमें आया तथा उसकी बात सुनकर उसने धर्ममें मन लगाया यह एक स्थानसे थोड़ा तृण तथा अग्रिको चोंचसे उठा लाया और उसने अनि प्रज्वलित कर व्याधको तपाया अब कपोतीने कहा, 'महाभाग। मुझे आगमें डालकर इस व्याधका भोजन सत्कार अब कर दीजिये क्योंकि यह क्षुधा दावानलमें जल रहा है।'

कपोत बोला-'शुभे मेरे जीते जी तुम्हारा यह धर्म नहीं मुझे आज्ञा दो, मैं ही इसका आतिथ्य करूँ।' ऐसा कहकर उसने तीन बार अग्रिकी परिक्रमा की और वह भक्तवत्सल चतुर्भुज महाविष्णुका स्मरण करते हुए अग्रिमें प्रवेश कर गया। अब व्याध होशमें था, उसने जब कबूतरको ऐसा करते देखा तो सहसा बोल उठा-'हाय मैंने यह क्या कर डाला? मैं बड़ा ही नीच, क्रूर और मूर्ख हूँ। अहा! इस महात्मा कबूतरने मुझ दुष्टके लिये प्राण दे दिया। मुझ नीचको बार बार धिकार है।' ऐसा कहकर उसने लाठी, शलाका, जाल और पिंजड़े को फेंककर उस कबूतरीको भी छोड़ दिया और महाप्रस्थानका निश्चयकर वहाँसे तप करनेके लिये चल दिया।'

अब कबूतरीने भी तीन बार कपोत एवं अग्रिकी प्रदक्षिणा की और बोली-'स्वामी के साथ चितामें प्रवेश करना स्त्रीके लिये बहुत बड़ा धर्म है। वेदमें इसका विधान है और लोकमें भी इसकी बड़ी प्रशंसा है।' यों कहकर वह भी आगमें कूद गयी। इसी समय आकाशमें जय-जयकी ध्वनि गूंज उठी। तत्काल ही दोनों दम्पति दिव्य विमानपर चढ़कर स्वर्ग चले व्याधने उन्हें इस प्रकार जाते देख हाथ जोड़कर अपने उद्धारका उपाय पूछा।

कपोत दम्पतिने कहा-'व्याथ तुम्हारा कल्याण हो तुम गोदावरीके तटपर जाओ यहाँ पंद्रह दिनोंतकस्नान करनेसे तुम सब पापोंसे मुक्त हो जाओगे। पाप मुक्त हो जानेपर जब तुम पुनः गौतमी (गोदावरी) गङ्गामें स्नान करोगे तो तुम्हें अश्वमेध यज्ञका पुण्य प्राप्त होगा।'

उनकी बात सुनकर व्याधने वैसा ही किया। फिर तो वह भी दिव्य रूप धारणकर एक श्रेष्ठ विमानपर आरूढ़ होकर स्वर्ग गया। इस तरह कपोत, कपोती और व्याध तीनों ही स्वर्ग गये। गोदावरी तटपर जहाँयह घटना घटी थी, वह कपोत तीर्थके नामसे विख्यात हो गया। वह आज भी उस महात्मा कपोतका स्मरण दिलाता हुआ हृदयको पवित्र करता है तथा स्नान, दान, जप, तप, यज्ञ, पितृ-पूजन करनेवालोंको अक्षय फल प्रदान करता है। जा0 श0

(महाभारत, शान्तिपर्व, आपद्धर्म अध्याय 143 - 149: ब्रह्मपुराण अ0 80; पञ्चतन्त्र काकोलूकीय कथा 8; स्कन्दपुराण, ब्रह्मखण्ड)



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kapotakee atithi sevaa

godaavareeke sameep brahmagiripar ek bada़a bhayankar vyaadh rahata thaa. vah nity hee braahmanon, saadhuon, yatiyon, gauon aur mriga-pakshiyonka daarun sanhaar kiya karata thaa. us mahaapaapee vyaadhake hridayamen dayaaka lesh bhee n tha aur vah bada़a hee kroor, krodhee tatha asatyavaadee thaa. usakee stree aur putr bhee useeke svabhaavake the.

ek din apanee patneekee preranaase vah ghane jangal men ghus gayaa. vahaan usane anekon pashu pakshiyonka vadh kiyaa. kitanonko hee jeevit pakada़kar pinjada़e men daal diyaa. is prakaar poora aakhetakar vah teesare pahar gharako lauta a raha tha, ek hee kshanamen aakaashamen meghonkee ghanaghor ghata ghir aayee aur bijalee kaandhane lagee. hava chalee aur paaneeke saath prachand upal (olaa) vrishti huee. moosaladhaar varsha honeke kaaran bada़ee bhayankar dasha ho gayee. vyaadh raah chalate-chalate thak gayaa. jalakee adhikataake kaaran jal, thal aur gaddhe ek se ho rahe the. ab vah paapee sochane lagaa- 'kahaan jaaoon, kahaan thaharoo, kya karoon ?"

is prakaar chinta karate hue usane thoda़ee hee doorapar ek uttam vriksh dekhaa. vah vaheen aakar baith gayaa. usake sab vastr bheeng gaye the. vah jaada़ese thithur raha tha tatha naana prakaarakee baatonko soch hee raha tha ki sooryaast ho gayaa. ab usane vaheen rahanekee thaanee. usee vrikshapar ek kabootar bhee rahata thaa. usakee stree kapotee bada़ee pativrata thee. us din vah chaara chugakar naheen laut sakee thee. ab kapot chintit huaa. vah kahane lagaa-'kapotee n jaane kyon abatak naheen aayee. aaj bada़ee aandhee-varsha thee, pata naheen vah kushalase hai ya naheen? usake bina aaj yah ghonsala ujaada़-sa jaan paड़ta hai. vaastavamen (griha) parako (griha) ghar naheen kahate- grihineeko hee (griha) ghar kaha jaata hai. jis grihamen grihinee naheen vah to jangal hai. yadi aaj meree priya n lautee to main is jeevanako rakhakar kya karoonga ?' idhar usakee kapotee bhee is vyaadhake hee pinjada़e men pada़ee thee. jab usane kabootarako is prakaar vilaap karate suna to bolee- 'mahaamate. aaj main dhany hai jo aapameree aisee prashansa kar rahe hain. par aaj aap meree ek praarthana sveekaar keejiye dekhiye, yah vyaath aapaka aaj atithi bana hai. yah sardeese nidhesht ho raha hai, ataev kaheense trin tatha agri laakar ise svasth keejiye.'

kabootar yah dekhakar ki usakee stree vaheen hai, hoshamen aaya tatha usakee baat sunakar usane dharmamen man lagaaya yah ek sthaanase thoda़a trin tatha agriko chonchase utha laaya aur usane ani prajvalit kar vyaadhako tapaaya ab kapoteene kaha, 'mahaabhaaga. mujhe aagamen daalakar is vyaadhaka bhojan satkaar ab kar deejiye kyonki yah kshudha daavaanalamen jal raha hai.'

kapot bolaa-'shubhe mere jeete jee tumhaara yah dharm naheen mujhe aajna do, main hee isaka aatithy karoon.' aisa kahakar usane teen baar agrikee parikrama kee aur vah bhaktavatsal chaturbhuj mahaavishnuka smaran karate hue agrimen pravesh kar gayaa. ab vyaadh hoshamen tha, usane jab kabootarako aisa karate dekha to sahasa bol uthaa-'haay mainne yah kya kar daalaa? main bada़a hee neech, kroor aur moorkh hoon. ahaa! is mahaatma kabootarane mujh dushtake liye praan de diyaa. mujh neechako baar baar dhikaar hai.' aisa kahakar usane laathee, shalaaka, jaal aur pinjada़e ko phenkakar us kabootareeko bhee chhoda़ diya aur mahaaprasthaanaka nishchayakar vahaanse tap karaneke liye chal diyaa.'

ab kabootareene bhee teen baar kapot evan agrikee pradakshina kee aur bolee-'svaamee ke saath chitaamen pravesh karana streeke liye bahut bada़a dharm hai. vedamen isaka vidhaan hai aur lokamen bhee isakee bada़ee prashansa hai.' yon kahakar vah bhee aagamen kood gayee. isee samay aakaashamen jaya-jayakee dhvani goonj uthee. tatkaal hee donon dampati divy vimaanapar chadha़kar svarg chale vyaadhane unhen is prakaar jaate dekh haath joda़kar apane uddhaaraka upaay poochhaa.

kapot dampatine kahaa-'vyaath tumhaara kalyaan ho tum godaavareeke tatapar jaao yahaan pandrah dinontakasnaan karanese tum sab paaponse mukt ho jaaoge. paap mukt ho jaanepar jab tum punah gautamee (godaavaree) gangaamen snaan karoge to tumhen ashvamedh yajnaka puny praapt hogaa.'

unakee baat sunakar vyaadhane vaisa hee kiyaa. phir to vah bhee divy roop dhaaranakar ek shreshth vimaanapar aaroodha़ hokar svarg gayaa. is tarah kapot, kapotee aur vyaadh teenon hee svarg gaye. godaavaree tatapar jahaanyah ghatana ghatee thee, vah kapot teerthake naamase vikhyaat ho gayaa. vah aaj bhee us mahaatma kapotaka smaran dilaata hua hridayako pavitr karata hai tatha snaan, daan, jap, tap, yajn, pitri-poojan karanevaalonko akshay phal pradaan karata hai. jaa0 sha0

(mahaabhaarat, shaantiparv, aapaddharm adhyaay 143 - 149: brahmapuraan a0 80; panchatantr kaakolookeey katha 8; skandapuraan, brahmakhanda)

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