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कागज - पत्र देखना था, रमणी नहीं  [आध्यात्मिक कहानी]
हिन्दी कहानी - Wisdom Story (हिन्दी कहानी)

प्रत्येक महान् पुरुषके यशका बीज उसके शुद्धाचरणमें ही समाया होता है। सन् 1896 सालकी घटना है, श्री ल0 रा0 पांगारकर और लोकमान्य तिलक बैठे हुए बातचीत कर रहे थे।

इसी बीच किसी बड़े रईसकी पत्नी कुछ कागज पत्र और नीचेकी अदालतका निर्णय लेकर अपील तैयार कर देनेके निमित्त तिलकजीके पास आयी। लोकमान्य डेढ़ घंटेतक उन कागज-पत्रोंको देखते रहे और साथही उस रमणीसे आवश्यक प्रश्न भी करते रहे। रमणीका सारा मामला समझकर उन्होंने उससे कहा- 'आप आठ दिन बाद आइये, तबतक मैं अपील तैयार किये देता हूँ। आप अभी जा सकती हैं। ' रमणी चली गयी। आश्चर्यकी बात यह कि रमणी डेढ़ घंटे तक दरवाजेके बीच खड़ी थी और तिलक महाराजने उससे प्रश्नोत्तर भी किये। पर उन्होंने एक बार भी सिर उठाकर नहीं देखा कि रमणी कैसी है। -गो0 न0 बै0



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kaagaj - patr dekhana tha, ramanee naheen

pratyek mahaan purushake yashaka beej usake shuddhaacharanamen hee samaaya hota hai. san 1896 saalakee ghatana hai, shree la0 raa0 paangaarakar aur lokamaany tilak baithe hue baatacheet kar rahe the.

isee beech kisee bada़e raeesakee patnee kuchh kaagaj patr aur neechekee adaalataka nirnay lekar apeel taiyaar kar deneke nimitt tilakajeeke paas aayee. lokamaany dedha़ ghantetak un kaagaja-patronko dekhate rahe aur saathahee us ramaneese aavashyak prashn bhee karate rahe. ramaneeka saara maamala samajhakar unhonne usase kahaa- 'aap aath din baad aaiye, tabatak main apeel taiyaar kiye deta hoon. aap abhee ja sakatee hain. ' ramanee chalee gayee. aashcharyakee baat yah ki ramanee dedha़ ghante tak daravaajeke beech khada़ee thee aur tilak mahaaraajane usase prashnottar bhee kiye. par unhonne ek baar bhee sir uthaakar naheen dekha ki ramanee kaisee hai. -go0 na0 bai0

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श्री राधा श्री राधा, श्री राधा श्री
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राधा राधा राधा राधा
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तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
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