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विपत्तिमें भी विनोद  [Hindi Story]
Spiritual Story - Short Story (हिन्दी कहानी)

कठिन समयमें भी तिलक महाराजका विनोदी स्वभाव बना ही रहता। समयकी कठिनता उनपर कुछ भी असर नहीं करती थी।

उनका एक मुकदमा हाईकोर्ट में चल रहा था। उनके बैरिस्टरको आनेमें थोड़ा विलम्ब हुआ। वहीँके एक युवक बैरिस्टर अपने एक मित्र दूसरे बैरिस्टरके साथ लोकमान्यके निकट पहुँचे और कहा-'आपकेबैरिस्टरको आनेमें विलम्ब हुआ तो कोई बात नहीं, हमलोग आपकी मददके लिये तैयार हैं !'

तिलकने हँसते हुए कहा-'किसी षोडशीके लिये बीस-बाईस सालके पूर्ण युवककी जगहपर दस-दस सालके दो किशोर वर क्या कभी चल सकते हैं?' हाईकोर्ट में हँसीकी धूम मच गयी। दोनों बैरिस्टर अपना सा मुँह लेकर चले गये।

गो0 न0 बै0



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vipattimen bhee vinoda

kathin samayamen bhee tilak mahaaraajaka vinodee svabhaav bana hee rahataa. samayakee kathinata unapar kuchh bhee asar naheen karatee thee.

unaka ek mukadama haaeekort men chal raha thaa. unake bairistarako aanemen thoda़a vilamb huaa. vaheenke ek yuvak bairistar apane ek mitr doosare bairistarake saath lokamaanyake nikat pahunche aur kahaa-'aapakebairistarako aanemen vilamb hua to koee baat naheen, hamalog aapakee madadake liye taiyaar hain !'

tilakane hansate hue kahaa-'kisee shodasheeke liye beesa-baaees saalake poorn yuvakakee jagahapar dasa-das saalake do kishor var kya kabhee chal sakate hain?' haaeekort men hanseekee dhoom mach gayee. donon bairistar apana sa munh lekar chale gaye.

go0 na0 bai0

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