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किससे माँगूँ  [बोध कथा]
बोध कथा - प्रेरक कथा (Hindi Story)

बादशाहकी सवारी निकली थी। मार्गके समीप वृक्षके नीचे एक अलमस्त फकीर लेटे थे अपनी मस्तीमें। बादशाह धार्मिक थे, श्रद्धालु थे, फकीरपर दृष्टि गयी, सवारी छोड़कर उतर पड़े और पैदल अकेले फकीरके पास पहुँचे। प्रणाम करके बोले - 'आपको कुछ आवश्यकता हो तो माँग लीजिये।'

फकीरने कहा—'तू अच्छा आया। ये मक्खियाँ मुझेतंग कर रही हैं। इन्हें भगा दे यहाँसे ।'

बादशाह बोले- 'मक्खियाँ तो मेरे वशमें नहीं हैं; किंतु आप चलें तो ऐसा स्थान दिया जा सकता है जहाँ मक्खियाँ.... ।'

बीचमें ही फकीर बोले- 'बस, बस! तू जा अपना काम कर! मैं किससे माँगूँ, तुच्छ मक्खियोंपर भी जिसका अधिकार नहीं, उससे ?'



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kisase maangoon

baadashaahakee savaaree nikalee thee. maargake sameep vrikshake neeche ek alamast phakeer lete the apanee masteemen. baadashaah dhaarmik the, shraddhaalu the, phakeerapar drishti gayee, savaaree chhoda़kar utar pada़e aur paidal akele phakeerake paas pahunche. pranaam karake bole - 'aapako kuchh aavashyakata ho to maang leejiye.'

phakeerane kahaa—'too achchha aayaa. ye makkhiyaan mujhetang kar rahee hain. inhen bhaga de yahaanse .'

baadashaah bole- 'makkhiyaan to mere vashamen naheen hain; kintu aap chalen to aisa sthaan diya ja sakata hai jahaan makkhiyaan.... .'

beechamen hee phakeer bole- 'bas, basa! too ja apana kaam kara! main kisase maangoon, tuchchh makkhiyonpar bhee jisaka adhikaar naheen, usase ?'

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