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गायका मूल्य  [छोटी सी कहानी]
Wisdom Story - आध्यात्मिक कथा (Story To Read)

एक बार महर्षि आपस्तम्बने जलमें ही डूबे रहकर भगवद्भजन करनेका विचार किया। वे बारह वर्षोंतक नर्मदा और मत्स्या संगमके जलमें डूबकर भगवत्स्मरण करते रह गये। जलमें रहनेवाले जीवोंके वे बड़े प्रियहो गये थे। तदनन्तर एक समय मछली पकड़नेवाले बहुत-से मल्लाह वहाँ आये। उन्होंने वहाँ जाल फैलाया और मछलियोंके साथ महर्षिको भी खींच लाये। मल्लाहोंकी दृष्टि मुनिपर पड़ी तो वे भयसे व्याकुलहो उठे और उनके चरणोंमें गिरकर क्षमा माँगने लगे। मुनिने देखा कि इन महोद्वारा यहाँको मछलियोंका बड़ा भारी संहार हो रहा है; अतः सोचने लगे-अहो ! स्वतन्त्र प्राणियोंके प्रति यह निर्दयतापूर्ण अत्याचार और स्वार्थके लिये उनका बलिदान – कैसे शोककी बात है! भेददृष्टि रखनेवाले जीवोंके द्वारा दुःखमें डाले गये प्राणियोंकी ओर जो ध्यान नहीं देता, उससे बढ़कर क्रूर इस संसारमें दूसरा कौन है ? ज्ञानियोंमें भी जो केवल अपने ही हितमें तत्पर है, वह श्रेष्ठ नहीं है; क्योंकि ज्ञानी पुरुष भी जब स्वार्थका आश्रय लेकर ध्यानमें स्थित होते हैं, तब इस जगत्के दुखी प्राणी किसकी शरण जायँ ? जो मनुष्य स्वयं अकेला ही सुख भोगना चाहता है, मुमुक्षुजन उसे पापीसे भी महापापी बतलाते हैं। वह कौन-सा उपाय है, जिससे इनका सारा पाप-ताप मेरे ऊपर आ जाय और मेरे पास जो कुछ भी पुण्य हो, वह इनके पास चला जाय ? इन दरिद्र, विकलाङ्ग, दुखी प्राणियोंको देखकर भी जिसके हृदयमें दया नहीं उत्पन्न होती, वह मनुष्य नहीं, राक्षस है जो समर्थ होकर भी संकटापन्न भयविह्वल प्राणियोंकी रक्षा नहीं करता, वह उनके पापोंको भोगता है; इसलिये जो कुछ हो, मैं इन मछलियोंको दुःखसे मुक्त करनेका कार्य छोड़कर मुक्तिको भी वरण नहीं करूँगा, स्वर्गलोककी तो बात ही क्या है।' इधर यह विचित्र समाचार वहाँके राजा नाभागको मिला। वे भी अपने मन्त्री पुरोहितोंके साथ दौड़े घटनास्थल पर पहुँचे। उन्होंने देवतुल्य महर्षिकी पूजा की और पूछा - 'महाराज! मैं आपकी कौन-सी सेवा
करूँ ?'

आपस्तम्ब बोले-'राजन् ये बड़े दुःखसे जीविका चलाते हैं। इन्होंने मुझे जलसे बाहर निकालकर बड़ा भारी श्रम किया है। अतः जो मेरा उचित मूल्य हो, वह इन्हें दो' नाभागने कहा, 'मैं इन मल्लाहोंको आपके बदले एक लाख स्वर्णमुद्राएँ देता हूँ।' महर्षिने कहा- 'मेरा मूल्य एक लाख मुद्राएँ होनियत करना उचित नहीं है। मेरे योग्य जो मूल्य हो, वह इन्हें अर्पण करो।' नाभाग बोले, 'तो इन निषादोंको एक करोड़ दे दिया जाय या और अधिक भी दिया जा सकता है।' महर्षिने कहा- 'तुम ऋषियोंके साथ विचार करो, कोटि-मुद्राएँ या तुम्हारा राज्यपाट- यह सब मेरा उचित मूल्य नहीं है।'

महर्षिको बात सुनकर मन्त्रियों और पुरोहितोंके साथ राजा बड़ी चिन्तामें पड़ गये। इसी समय महातपस्वी लोमश ऋषि वहाँ आ गये। उन्होंने कहा, 'राजन् भय न करो मैं मुनिको संतुष्ट कर लूंगा। तुम इनके लिये मूल्यके रूपमें एक गौ दो; क्योंकि ब्राह्मण सब वर्णोंमें उत्तम हैं। उनका और गौओंका कोई मूल्य नहीं आँका जा सकता।'

लोमशजीकी यह बात सुनकर नाभाग बड़े प्रसन्न हुए और हर्षमें भरकर बोले-'भगवन्! उठिये, उठिये; यह आपके लिये योग्यतम मूल्य उपस्थित किया गया है।' महर्षिने कहा, 'अब मैं प्रसन्नतापूर्वक उठता हूँ। मैं गौसे बढ़कर दूसरा कोई ऐसा मूल्य नहीं देखता, जो परम पवित्र और पापनाशक हो । यज्ञका आदि, अन्त और मध्य गौओंको ही बताया गया है। ये दूध, दही, घी और अमृत-सब कुछ देती हैं ये गौएँ स्वर्गलोकमें जानेके लिये सोपान हैं। अस्तु, अब ये निषाद इन जलचारी मछलियोंके साथ सीधे स्वर्गमें जायँ। मैं नरकको देखूँ या स्वर्गमें निवास करूँ, किंतु मेरे द्वारा जो कुछ भी पुण्यकर्म बना हो, उससे ये सभी दुःखार्त प्राणी शुभ गतिको प्राप्त हों।'

तदनन्तर महर्षिके सत्संकल्प एवं तेजोमयी वाणीके प्रभावसे सभी मछलियाँ और मल्लाह स्वर्गलोकमें चले गये। नाना उपदेशोंद्वारा लोमशजी तथा आपस्तम्बजीने राजाको बोध प्राप्त कराया और राजाने भी धर्ममयो बुद्धि अपनायी। अन्तमें दोनों महर्षि अपने-अपने आश्रमको चले गये।

- जा0 श0

(स्कन्दपुराण, आवन्त्यखण्ड, रेवाखण्ड, अध्याय 13 महाभारत, अनुशासनपर्व, अध्याय 50)



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gaayaka moolya

ek baar maharshi aapastambane jalamen hee doobe rahakar bhagavadbhajan karaneka vichaar kiyaa. ve baarah varshontak narmada aur matsya sangamake jalamen doobakar bhagavatsmaran karate rah gaye. jalamen rahanevaale jeevonke ve bada़e priyaho gaye the. tadanantar ek samay machhalee pakada़nevaale bahuta-se mallaah vahaan aaye. unhonne vahaan jaal phailaaya aur machhaliyonke saath maharshiko bhee kheench laaye. mallaahonkee drishti munipar pada़ee to ve bhayase vyaakulaho uthe aur unake charanonmen girakar kshama maangane lage. munine dekha ki in mahodvaara yahaanko machhaliyonka bada़a bhaaree sanhaar ho raha hai; atah sochane lage-aho ! svatantr praaniyonke prati yah nirdayataapoorn atyaachaar aur svaarthake liye unaka balidaan – kaise shokakee baat hai! bhedadrishti rakhanevaale jeevonke dvaara duhkhamen daale gaye praaniyonkee or jo dhyaan naheen deta, usase badha़kar kroor is sansaaramen doosara kaun hai ? jnaaniyonmen bhee jo keval apane hee hitamen tatpar hai, vah shreshth naheen hai; kyonki jnaanee purush bhee jab svaarthaka aashray lekar dhyaanamen sthit hote hain, tab is jagatke dukhee praanee kisakee sharan jaayan ? jo manushy svayan akela hee sukh bhogana chaahata hai, mumukshujan use paapeese bhee mahaapaapee batalaate hain. vah kauna-sa upaay hai, jisase inaka saara paapa-taap mere oopar a jaay aur mere paas jo kuchh bhee puny ho, vah inake paas chala jaay ? in daridr, vikalaang, dukhee praaniyonko dekhakar bhee jisake hridayamen daya naheen utpann hotee, vah manushy naheen, raakshas hai jo samarth hokar bhee sankataapann bhayavihval praaniyonkee raksha naheen karata, vah unake paaponko bhogata hai; isaliye jo kuchh ho, main in machhaliyonko duhkhase mukt karaneka kaary chhoda़kar muktiko bhee varan naheen karoonga, svargalokakee to baat hee kya hai.' idhar yah vichitr samaachaar vahaanke raaja naabhaagako milaa. ve bhee apane mantree purohitonke saath dauda़e ghatanaasthal par pahunche. unhonne devatuly maharshikee pooja kee aur poochha - 'mahaaraaja! main aapakee kauna-see sevaa
karoon ?'

aapastamb bole-'raajan ye bada़e duhkhase jeevika chalaate hain. inhonne mujhe jalase baahar nikaalakar bada़a bhaaree shram kiya hai. atah jo mera uchit mooly ho, vah inhen do' naabhaagane kaha, 'main in mallaahonko aapake badale ek laakh svarnamudraaen deta hoon.' maharshine kahaa- 'mera mooly ek laakh mudraaen honiyat karana uchit naheen hai. mere yogy jo mooly ho, vah inhen arpan karo.' naabhaag bole, 'to in nishaadonko ek karoda़ de diya jaay ya aur adhik bhee diya ja sakata hai.' maharshine kahaa- 'tum rishiyonke saath vichaar karo, koti-mudraaen ya tumhaara raajyapaata- yah sab mera uchit mooly naheen hai.'

maharshiko baat sunakar mantriyon aur purohitonke saath raaja bada़ee chintaamen pada़ gaye. isee samay mahaatapasvee lomash rishi vahaan a gaye. unhonne kaha, 'raajan bhay n karo main muniko santusht kar loongaa. tum inake liye moolyake roopamen ek gau do; kyonki braahman sab varnonmen uttam hain. unaka aur gauonka koee mooly naheen aanka ja sakataa.'

lomashajeekee yah baat sunakar naabhaag bada़e prasann hue aur harshamen bharakar bole-'bhagavan! uthiye, uthiye; yah aapake liye yogyatam mooly upasthit kiya gaya hai.' maharshine kaha, 'ab main prasannataapoorvak uthata hoon. main gause badha़kar doosara koee aisa mooly naheen dekhata, jo param pavitr aur paapanaashak ho . yajnaka aadi, ant aur madhy gauonko hee bataaya gaya hai. ye doodh, dahee, ghee aur amrita-sab kuchh detee hain ye gauen svargalokamen jaaneke liye sopaan hain. astu, ab ye nishaad in jalachaaree machhaliyonke saath seedhe svargamen jaayan. main narakako dekhoon ya svargamen nivaas karoon, kintu mere dvaara jo kuchh bhee punyakarm bana ho, usase ye sabhee duhkhaart praanee shubh gatiko praapt hon.'

tadanantar maharshike satsankalp evan tejomayee vaaneeke prabhaavase sabhee machhaliyaan aur mallaah svargalokamen chale gaye. naana upadeshondvaara lomashajee tatha aapastambajeene raajaako bodh praapt karaaya aur raajaane bhee dharmamayo buddhi apanaayee. antamen donon maharshi apane-apane aashramako chale gaye.

- jaa0 sha0

(skandapuraan, aavantyakhand, revaakhand, adhyaay 13 mahaabhaarat, anushaasanaparv, adhyaay 50)

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