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गरुड, सुदर्शनचक्र और रानियोंका गर्व-भङ्ग (1)  [Hindi Story]
प्रेरक कथा - शिक्षदायक कहानी (प्रेरक कथा)

एक बार भगवान् श्रीकृष्णने गरुडको यक्षराज कुबेरके सरोवरसे सौगन्धिक कमल लानेका आदेश दिया। गरुडको यह अहंकार तो था ही कि मेरे समान बलवान् तथा तीव्रगामी प्राणी इस त्रिलोकीमें दूसरा नहीं। है। वे अपने पंखोंसे हवाको चीरते तथा दिशाओंको। प्रतिध्वनित करते हुए गन्धमादन पहुँचे और पुष्पचयन | करने लगे। महावीर हनुमान्जीका वहीं आवास था। वे गरुडके इस अनाचारको देखकर उनसे बोले- 'तुम किसके लिये यह फूल ले जा रहे हो और कुबेरकी आज्ञाके बिना ही इन पुष्पोंका क्यों विध्वंस कर रहे हो।' गरुडने उत्तर दिया, 'हम भगवान् श्रीकृष्णके लिये इन पुष्पोंको ले जा रहे हैं। भगवान्‌के लिये हमें किसीकी अनुमति आवश्यक नहीं दीखती।' गरुडकी इस बात से हनुमान्जी कुछ गरम हो गये और उनको पकड़कर अपनी काँखमें दबाकर आकाशमार्गसे द्वारकाकी ओर उड़ चले। उनकी भीषण ध्वनिसे सारे द्वारकावासी संत्रस्त हो गये। सुदर्शनचक्र हनुमान्जीकी गतिको रोकने के लिये उनके सामने जा पहुँचा। हनुमान्जीने झट उसे दूसरी काँखमें दाब लिया। भगवान् श्रीकृष्णने तो यह सब लीला ही रची थी। उन्होंने अपने पार्श्वमें स्थित रानियोंसे कहा—‘देखो, हनुमान् क्रुद्ध होकर आ रहे हैं। यहाँ यदि उन्हें इस समय सीता-रामके दर्शन न हुए तो वे द्वारकाको समुद्रमें डुबो देंगे। अतएव तुममेंसे तुरंत कोई सीताका रूप बना लो, मैं तो देखो यह राम बना।' । इतना कहकर वे श्रीरामके स्वरूपमें परिणत होकर बैठ गये। अब जानकीजीका रूप जब बननेको हुआ, तबकोई भी न बना सकीं। अन्तमें उन्होंने श्रीराधाजीको स्मरण किया। वे आयीं और झट श्रीजानकीजीका स्वरूप बन गयीं।

इसी बीच हनुमानजी वहाँ उपस्थित हुए। वहाँ वे अपने इष्टदेव श्रीसीता-रामजीको देखकर उनके चरणोंपर गिर गये। इस समय भी वे गरुड और सुदर्शनचक्रको बड़ी सावधानीसे अपने दोनों बगलोंमें दबाये हुए थे। भगवान् श्रीकृष्णने (राम-वेशमें) उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा - 'वत्स! तुम्हारी काँखोंमें यह क्या दिखलायी पड़ रहा है?' हनुमानजीने उत्तर दिया- 'कुछ नहीं, सरकार; यह तो एक दुबला-सा क्षुद्र पक्षी निर्जन स्थानमें मेरे श्रीरामभजनमें बाधा डाल रहा था, इसी कारण मैंने इसको पकड़ लिया। दूसरा यह चक्र-सा एक खिलौना है; यह मेरे साथ टकरा रहा था, अतएव इसे भी दाब लिया है। और आपको यदि पुष्पोंकी ही आवश्यकता थी तो मुझे क्यों नहीं स्मरण किया गया ? यह बेचारा पखेरू महाबली शिवभक्त यक्षोंके सरोवरसे बलपूर्वक पुष्प लानेमें कैसे समर्थ हो सकता है। ' भगवान्ने कहा, 'अस्तु! इन बेचारोंको छोड़ दो। मैं तुम्हारे ऊपर अत्यन्त प्रसन्न हूँ; अब तुम जाओ, अपने स्थानपर स्वच्छन्दतापूर्वक भजन करो।'

भगवान्की आज्ञा पाते ही हनुमान्जीने सुदर्शनचक्र और गरुडको छोड़ दिया और उन्हें पुनः प्रणाम करके 'जय राम' कहते हुए गन्धमादनकी ओर चल दिये। गरुडको गतिका, सुदर्शनको शक्तिका और पट्टमहिषियोंको सौन्दर्यका बड़ा गर्व था । वह एकदम चूर्ण हो गया।



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garud, sudarshanachakr aur raaniyonka garva-bhang (1)

ek baar bhagavaan shreekrishnane garudako yaksharaaj kuberake sarovarase saugandhik kamal laaneka aadesh diyaa. garudako yah ahankaar to tha hee ki mere samaan balavaan tatha teevragaamee praanee is trilokeemen doosara naheen. hai. ve apane pankhonse havaako cheerate tatha dishaaonko. pratidhvanit karate hue gandhamaadan pahunche aur pushpachayan | karane lage. mahaaveer hanumaanjeeka vaheen aavaas thaa. ve garudake is anaachaarako dekhakar unase bole- 'tum kisake liye yah phool le ja rahe ho aur kuberakee aajnaake bina hee in pushponka kyon vidhvans kar rahe ho.' garudane uttar diya, 'ham bhagavaan shreekrishnake liye in pushponko le ja rahe hain. bhagavaan‌ke liye hamen kiseekee anumati aavashyak naheen deekhatee.' garudakee is baat se hanumaanjee kuchh garam ho gaye aur unako pakada़kar apanee kaankhamen dabaakar aakaashamaargase dvaarakaakee or uda़ chale. unakee bheeshan dhvanise saare dvaarakaavaasee santrast ho gaye. sudarshanachakr hanumaanjeekee gatiko rokane ke liye unake saamane ja pahunchaa. hanumaanjeene jhat use doosaree kaankhamen daab liyaa. bhagavaan shreekrishnane to yah sab leela hee rachee thee. unhonne apane paarshvamen sthit raaniyonse kahaa—‘dekho, hanumaan kruddh hokar a rahe hain. yahaan yadi unhen is samay seetaa-raamake darshan n hue to ve dvaarakaako samudramen dubo denge. ataev tumamense turant koee seetaaka roop bana lo, main to dekho yah raam banaa.' . itana kahakar ve shreeraamake svaroopamen parinat hokar baith gaye. ab jaanakeejeeka roop jab bananeko hua, tabakoee bhee n bana sakeen. antamen unhonne shreeraadhaajeeko smaran kiyaa. ve aayeen aur jhat shreejaanakeejeeka svaroop ban gayeen.

isee beech hanumaanajee vahaan upasthit hue. vahaan ve apane ishtadev shreeseetaa-raamajeeko dekhakar unake charanonpar gir gaye. is samay bhee ve garud aur sudarshanachakrako bada़ee saavadhaaneese apane donon bagalonmen dabaaye hue the. bhagavaan shreekrishnane (raama-veshamen) unhen aasheervaad diya aur kaha - 'vatsa! tumhaaree kaankhonmen yah kya dikhalaayee pada़ raha hai?' hanumaanajeene uttar diyaa- 'kuchh naheen, sarakaara; yah to ek dubalaa-sa kshudr pakshee nirjan sthaanamen mere shreeraamabhajanamen baadha daal raha tha, isee kaaran mainne isako pakada़ liyaa. doosara yah chakra-sa ek khilauna hai; yah mere saath takara raha tha, ataev ise bhee daab liya hai. aur aapako yadi pushponkee hee aavashyakata thee to mujhe kyon naheen smaran kiya gaya ? yah bechaara pakheroo mahaabalee shivabhakt yakshonke sarovarase balapoorvak pushp laanemen kaise samarth ho sakata hai. ' bhagavaanne kaha, 'astu! in bechaaronko chhoda़ do. main tumhaare oopar atyant prasann hoon; ab tum jaao, apane sthaanapar svachchhandataapoorvak bhajan karo.'

bhagavaankee aajna paate hee hanumaanjeene sudarshanachakr aur garudako chhoda़ diya aur unhen punah pranaam karake 'jay raama' kahate hue gandhamaadanakee or chal diye. garudako gatika, sudarshanako shaktika aur pattamahishiyonko saundaryaka bada़a garv tha . vah ekadam choorn ho gayaa.

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