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चन्द्राकी मरणचन्द्रिका  [Shikshaprad Kahani]
Wisdom Story - शिक्षदायक कहानी (Story To Read)

अरुणोदयका समय था। चन्द्रावती अपनी हवेलीसे बाहर निकली, उसके कटिदेशमें मिट्टीका नवीन कलश ऐसा लगता था मानो भगवान् मोहिनीने अमृत कुम्भ रख लिया हो। उसका समस्त शरीर ईंगुरके रंगके समान था, उसने लाल रंगका घाघरा पहना था और झीनी झीनी ओढ़नी भी लाल ही थी; ऐसा लगता था मानो साक्षात् ऊषा सूर्यको अर्घ्य देनेके लिये निकल पड़ी हो। पवन मन्द मन्द गतिशील था ।

'बाई सौभाग्यवती हों, पहरेपर बैठे दरबानने अभिवादन किया। 'देखो, निकल आयी हमारी चन्द्रारानी' सातों सखियोंने दरवाजेपर ही स्वागत किया। उनके हाथमेंकलश थे, चन्द्रावती उन्हें प्राणोंसे भी अधिक चाहती थी, वे नित्य सबेरे और शामको उसके साथ बावलीसे पानी लाने जाया करती थीं।

बावली हवेलीसे पाव कोस दूर थी। राजस्थानमें पानी आसानीसे नहीं मिलता है। चन्द्रावतीके पिता एक साधारण भूमिपति थे । हवेलीसे थोड़ी दूरपर एक छोटी सी बस्ती थी। उसमें उनके सैनिक तथा परिचारक आदि रहते थे। वे एक छोटी-सी सेनाके अधिपति थे। उनके आश्रितोंकी कन्याएँ सदा चन्द्रावतीका मन बहलाया करती थीं। बावलीसे पानी लाना उनका नित्यका काम था ।इधर चन्द्रावती सखियोंके साथ बावलीकी ओर बढ़ रही थी, उधर धूप चढ़ती जा रही थी। उसने देखा बावलीके उस पार बहुत-से तंबू और खेमे लगे हुए थे। उनके आस-पास अगणित हाथी घोड़े और ऊँट बँधे हुए थे। खेमोंपर हरे झंडे लहरा रहे थे, जिनमें चाँद अङ्कित था चन्द्राने देखा नारे और लिंगने तथा पीले रंगके सैनिकोंको; उनकी काली दाढ़ीसे वह सिहर उठी!! 'भूतू भूतू' बड़े जोरसे सिंहा बज उठा।

"राजस्थानपर दिल्लीके मुगल चढ़ आये हैं चन्द्रा ! उनकी सेनाकी यह एक छोटी-सी टुकड़ी है।' किसी सखीने उसकी उत्सुकता कम की।

पर हमारी वीरप्रसविनी भूमिको अपवित्र करनेका इन्होंने साहस किस तरह किया? क्या इन्हें महाराणा हम्मीर और राणा सांगाकी तलवारकी धारका विस्मरण हो गया? क्या इन्हें पता नहीं है कि चित्तौड़के किलेमें जौहर करनेवाली पद्मिनीकी चिताकी राख क्षणमात्रमें इन्हें भस्म कर सकती है?' चन्द्रावतीके नेत्र लाल हो गये।

'राजस्थानका बच्चा-बच्चा राणा साँगा है, चन्द्रा ! और हमारे रक्षक हाडा राव और उनके नौजवान लाड़लेके रहते किसी म्लेच्छका साहस नहीं है कि हमारी धरतीकी ओर आँख उठाये काले नागकी तरह उसका सिर कुचल दिया जायेगा, हम राजपूतकी संतान हैं।' सखीने चन्द्रावतीकी अँगुली पकड़ ली। वे जलभरे कलश लेकर हवेलीकी ओर चल पड़ीं; हवेली तनकर खड़ी थी, उसकी श्वेतता उसकी निष्कलंकताकी प्रतीक थी और चन्द्रावती बार-बार उसीकी ओर देखा करती थी मानो वह उससे कह रही थी कि प्राण रहते तुम्हारी दीवारोंपर म्लेच्छ कालिख नहीं पोत सकेंगे और वह उमंगसे चली जा रही थी सखियोंको अपनी आनन्दमयी मुसकानसे नहलाते ।

'ठहरो' एक सैनिक घोड़ेसे उत्तर पड़ा, वह चन्द्रावतीके सामने खड़ा हो गया। उसकी अवस्था पचीस सालकी रही होगी, रंग गेहुँआ था, पर चेहरेपर पीलापन था, आँखें छोटी-छोटी और भीतरकी ओर धँसी हुई थीं। मूंछें छोटी थीं, दाढ़ी आ रही थी। 'सावधान, यदि हमारी सखीका स्पर्श करोगे तो दिल्ली लौटना कठिन होगा; हाडा राव तुम्हारी बोटीबोटी काटकर अपने शिकारी कुत्तोंके सामने डाल देंगे। एक सहेलीने बुगल पठानको ललकारा।

'हम दिल्ली लौटनेके लिये नहीं, राजस्थानपर शासन करने आये हैं, हमारे रक्तमें चंगेज और तैमूर तथा बाबरका ऐश्वर्य रात-दिन प्रवाहित होता रहता है। बुगल पठानने चन्द्राका हाथ पकड़ लिया।

'पापी, नीच, कायर! चंगेज, तैमूर और बाबरका नाम लेते तुझे लज्जा नहीं आती है। चंगेज भारतकी और आँख उठाकर देखतक नहीं सका; तैमूर नौ दो ग्यारह हो गया और बाप्पा रावलके वंशज राणा साँगाके सामने जिस बाबरकी एक भी न चली, उसकी वीरताकी डींग होता है।' चन्द्रावती के अङ्ग अङ्गसे रोषकी निकल पड़ी, वह ऐसी लगती थी मानो रावणको धिक्कारनेवाली सीता हो या दुर्योधनको कुपित दृष्टिसे निहारनेवाली पाञ्चाली द्रौपदी हो।

असहाय राजकन्याने आकाशकी ओर देखा मानो वह देवोंसे स्वरक्षाकी प्रार्थना कर रही हो। 'मुझे दुराचारी राक्षस हरकर ले जाना चाहता है।

हे पक्षी तुम्हें मेरे पिताकी नंगी तलवारकी शपथ है, उनसे कहो कि चन्द्रा हवेलीमें फिर कभी नहीं पैर रख सकेगी।' उसने आकाशमें उड़ते काँवली चिड़ियाकी ओर संकेत किया और उसकी आँखोंसे टप-टप अगर पड़े, मानो जन्मभूमिका परित्याग उसके लिये असह्य था।

'मुझे गीदड़ अपनी भुजाओंसे कलंकित करना चाहता है। कॉवली तुम्हें मेरे भैयाकी राखीकी शपथ है, उनसे कहना कि मेरे हाथोंकी मेंहदीसे राखीके रेशमी डोरे अरुण न हो सकेंगे।' चन्द्रावतीने बुगल पठानको देखा मानो सिंहिनी गजराजको भयभीत कर रही हो।

'मुझे मृत्यु अपने अङ्कमें भरकर यमराजको प्रसन्न करना चाहती है। काँवली तुम्हें मेरे पातिव्रतको शपथ है, मेरे प्रियतम प्राणेश्वरसे कहना कि चन्द्रा स्वर्गमें ही मिल सकेगी।' चन्द्राके ये अन्तिम शब्द थे और कविली | हवेलीकी ओर उड़ चली।

बावलीका जल शान्त था। वातावरण गम्भीर था । चन्द्रावती विवश थी। 'पिताजी! हम ऐसा कभी न होने देंगे। बुगल पठानको दिल्ली जीवित भेजनेसे हमारे पूर्वजोंकी तलवारें आत्मग्लानिमें डूब जायँगी। चन्द्रावतीका स्पर्श करनेवाला | जीता रहे, यह असम्भव है।' चन्द्रावतीके भाईने घोडेको । एड़ लगायी और वह हाडा रावके हाथीकी बगलमें आ गया; नौजवान राजपूतके कटिदेशमें लटकती तलवार रणकी चुनौती दे रही थी। उसने घूमकर पीछे देखा; अगणित घोड़े और ऊट बढ़ते चले आ रहे थे; उनके सवारोंको देखकर राजपूतका सीना फूल गया !

'बेटा! गिनतीमें हमारे ये ऊँट, घोड़े, हाथी और सवार तथा अस्त्र-शस्त्र मुगलोंके सामने कुछ भी नहीं हैं, रणमें हम आधी घड़ी भी उनका सामना नहीं कर सकते हैं। इस समय दण्ड नहीं, दाम-नीतिकी आवश्यकता है।' वृद्धने पुत्रको बड़े प्रेमसे देखा और नेत्रोंसे विवशता टपक पड़ी।

'पर म्लेच्छको उत्कोच देकर चन्द्राको लौटाना हमारे लिये लज्जा और अपमानकी बात है । चन्द्रा जलकर राख हो जायगी, पर हवेलीमें पैर नहीं रखेगी।' राजपूतने वृद्ध पिताको सावधान किया तथा चन्द्रावतीके पतिको देखा, मानो जानना चाहता था कि वह ठीक ही कह रहा है।

'मुगलोंका भाग्य-सूर्य इस समय मध्याह्नमें है । कान्धारसे बंगालतककी भूमि उनके अधीन है।' वृद्धने गम्भीर साँस ली।

'और आप चाहते हैं कि राजस्थान भी कलंकित हो जाय। ऐसा नहीं होगा पिताजी ।' युवकने घोड़ेकी चाल बढ़ायी ।

'मेरा सामूहिक रणमें विश्वास है, यदि हम छुट फुट लड़ते रहेंगे तो कहींके न रहेंगे कुमार! हमारी साम-दाम-नीतिसे राजस्थान कलंकित नहीं, विजयी होगा। जिसे तुम उत्कोच समझते हो वह रणकी चुनौती | है।' वृद्धने अपनी सफेद मूँछोंपर अँगुली फेरी । राजपूतोंने मुगल-खेमोंको देखा। वे बावली-तटपर थे। तीसरे पहरका सूर्य ढल रहा था और जाड़ेकी बालुकामयी हवा वेगवती हो उठी।

'मुझे धन नहीं चाहिये, मैं पृथ्वी और विशालसेनाका भोग नहीं चाहता, चन्द्रावती मेरी है और सदा मेरी रहेगी।' बुगल पठानने वृद्ध राजपूतके कथनकी उपेक्षा की, हाडा रावके नेत्र लाल हो गये, वे हाथ मलने लगे।

'पिताजी! आप निश्चिन्त रहें, चन्द्रावती भूखों मर जायगी, पर मुगलके घरकी रोटी नहीं तोड़ेगी। ' चन्द्रावतीने हाडा रावके चरणकी धूलि मस्तकपर चढ़ायी।

"मैं चन्द्रावतीके लिये राजस्थानका कण-कण राजपूतों और मुगलोंके खूनसे लाल कर दूँगा।' बुगल पठानके इस कथनसे राजपूत युवककी त्योरी चढ़ गयी; चन्द्रावतीके भाईने म्यानसे तलवार खींच ली।

'भैया! आप विश्वास रखें, मैंने जिन हाथोंसे राखी बाँधी है उनसे पठानके घर पानी नहीं भरूंगी। प्राण दे दूंगी, पर म्लेच्छके घरका जल नहीं पीऊँगी।' चन्द्रावतीने ओजस्विताका आश्रय लिया। वह रणचण्डी सौ गरज उठी।

चन्द्रावतीके लिये राजपूतनियोंका सिंदूर भूलिमें मिला दूँगा। राजस्थान जनशून्य हो जायगा।' बुगल पठानने चन्द्रावतीके पतिको ताना मारा।

'प्राणेश्वर! आप मेरी आत्मा हैं, मैं अपने सिंदूरकी शपथ लेती हूँ, मेरा शव मुगलकी सेजतक नहीं जा सकेगा, मैं उसे सत्यकी ज्वालासे राख कर दूंगी।' चन्द्रावतीने अपने पतिसे प्रतिज्ञा की।


“अब तो प्राण जा रहे हैं। आह, पानी! पानी!! पानी चाहिये।' चन्द्राके वचन बाणसे कामान्ध बुगलका हृदय घायल हो गया। वह वासनाका पुतला जलपात्र लेकर बावलीकी ओर जा ही रहा था कि पलभरमें सारे तंबू और खेमे आगकी ज्वालामें धायें - धायें जलने लगे। बुगलकी आशा स्वाहा हो गयी। सत्य क्रुद्ध हो उठा।

हवेलीकी ओर जाते हुए हाडा राव, चन्द्राके भाई और पतिने बावलीकी ओर देखा तो लाल-लाल लपटोंसे उनका आत्मसम्मान उन्नत हो उठा। पश्चिम आकाशकी लालिमामें चन्द्राके प्राण समा गये। उसके जीवनका सूर्य अस्त हो गया। राजस्थानकी लोक वाणीमें चन्द्रा चिरसुहागिन हो उठी।

-रा0 श्री0



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chandraakee maranachandrikaa

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"raajasthaanapar dilleeke mugal chadha़ aaye hain chandra ! unakee senaakee yah ek chhotee-see tukada़ee hai.' kisee sakheene usakee utsukata kam kee.

par hamaaree veeraprasavinee bhoomiko apavitr karaneka inhonne saahas kis tarah kiyaa? kya inhen mahaaraana hammeer aur raana saangaakee talavaarakee dhaaraka vismaran ho gayaa? kya inhen pata naheen hai ki chittauda़ke kilemen jauhar karanevaalee padmineekee chitaakee raakh kshanamaatramen inhen bhasm kar sakatee hai?' chandraavateeke netr laal ho gaye.

'raajasthaanaka bachchaa-bachcha raana saanga hai, chandra ! aur hamaare rakshak haada raav aur unake naujavaan laada़leke rahate kisee mlechchhaka saahas naheen hai ki hamaaree dharateekee or aankh uthaaye kaale naagakee tarah usaka sir kuchal diya jaayega, ham raajapootakee santaan hain.' sakheene chandraavateekee angulee pakada़ lee. ve jalabhare kalash lekar haveleekee or chal pada़een; havelee tanakar khada़ee thee, usakee shvetata usakee nishkalankataakee prateek thee aur chandraavatee baara-baar useekee or dekha karatee thee maano vah usase kah rahee thee ki praan rahate tumhaaree deevaaronpar mlechchh kaalikh naheen pot sakenge aur vah umangase chalee ja rahee thee sakhiyonko apanee aanandamayee musakaanase nahalaate .

'thaharo' ek sainik ghoda़ese uttar paड़a, vah chandraavateeke saamane khada़a ho gayaa. usakee avastha pachees saalakee rahee hogee, rang gehuna tha, par cheharepar peelaapan tha, aankhen chhotee-chhotee aur bheetarakee or dhansee huee theen. moonchhen chhotee theen, daadha़ee a rahee thee. 'saavadhaan, yadi hamaaree sakheeka sparsh karoge to dillee lautana kathin hogaa; haada raav tumhaaree boteebotee kaatakar apane shikaaree kuttonke saamane daal denge. ek saheleene bugal pathaanako lalakaaraa.

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asahaay raajakanyaane aakaashakee or dekha maano vah devonse svarakshaakee praarthana kar rahee ho. 'mujhe duraachaaree raakshas harakar le jaana chaahata hai.

he pakshee tumhen mere pitaakee nangee talavaarakee shapath hai, unase kaho ki chandra haveleemen phir kabhee naheen pair rakh sakegee.' usane aakaashamen uda़te kaanvalee chida़iyaakee or sanket kiya aur usakee aankhonse tapa-tap agar paड़e, maano janmabhoomika parityaag usake liye asahy thaa.

'mujhe geedada़ apanee bhujaaonse kalankit karana chaahata hai. kaॉvalee tumhen mere bhaiyaakee raakheekee shapath hai, unase kahana ki mere haathonkee menhadeese raakheeke reshamee dore arun n ho sakenge.' chandraavateene bugal pathaanako dekha maano sinhinee gajaraajako bhayabheet kar rahee ho.

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'mera saamoohik ranamen vishvaas hai, yadi ham chhut phut lada़te rahenge to kaheenke n rahenge kumaara! hamaaree saama-daama-neetise raajasthaan kalankit naheen, vijayee hogaa. jise tum utkoch samajhate ho vah ranakee chunautee | hai.' vriddhane apanee saphed moonchhonpar angulee pheree . raajapootonne mugala-khemonko dekhaa. ve baavalee-tatapar the. teesare paharaka soory dhal raha tha aur jaada़ekee baalukaamayee hava vegavatee ho uthee.

'mujhe dhan naheen chaahiye, main prithvee aur vishaalasenaaka bhog naheen chaahata, chandraavatee meree hai aur sada meree rahegee.' bugal pathaanane vriddh raajapootake kathanakee upeksha kee, haada raavake netr laal ho gaye, ve haath malane lage.

'pitaajee! aap nishchint rahen, chandraavatee bhookhon mar jaayagee, par mugalake gharakee rotee naheen toda़egee. ' chandraavateene haada raavake charanakee dhooli mastakapar chadha़aayee.

"main chandraavateeke liye raajasthaanaka kana-kan raajapooton aur mugalonke khoonase laal kar doongaa.' bugal pathaanake is kathanase raajapoot yuvakakee tyoree chadha़ gayee; chandraavateeke bhaaeene myaanase talavaar kheench lee.

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chandraavateeke liye raajapootaniyonka sindoor bhoolimen mila doongaa. raajasthaan janashoony ho jaayagaa.' bugal pathaanane chandraavateeke patiko taana maaraa.

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“ab to praan ja rahe hain. aah, paanee! paanee!! paanee chaahiye.' chandraake vachan baanase kaamaandh bugalaka hriday ghaayal ho gayaa. vah vaasanaaka putala jalapaatr lekar baavaleekee or ja hee raha tha ki palabharamen saare tanboo aur kheme aagakee jvaalaamen dhaayen - dhaayen jalane lage. bugalakee aasha svaaha ho gayee. saty kruddh ho uthaa.

haveleekee or jaate hue haada raav, chandraake bhaaee aur patine baavaleekee or dekha to laala-laal lapatonse unaka aatmasammaan unnat ho uthaa. pashchim aakaashakee laalimaamen chandraake praan sama gaye. usake jeevanaka soory ast ho gayaa. raajasthaanakee lok vaaneemen chandra chirasuhaagin ho uthee.

-raa0 shree0

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तुम रूठे रहो मोहन,
हम तुमको मन लेंगे
शिव समा रहे मुझमें
और मैं शून्य हो रहा हूँ
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वा वा रे रासिया, वा वा रे छैला
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