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सत्य-पालन  [Shikshaprad Kahani]
Spiritual Story - Hindi Story (Story To Read)

प्राचीन समयकी बात हैं। कुरुवंशके देवापि और शन्तनुमें एक दूसरेके प्रति स्वार्थ त्यागकी जो अनुपम भावना थी, वह भारतीय इतिहासकी एक विशेष समृद्धि है।

देवापि बड़े और शन्तनु छोटे थे। पिताके स्वर्ग गमनके बाद राज्याभिषेकका प्रश्न उठनेपर देवापि चिन्तित हो उठे। वे चर्मरोगी थे, उनके शरीरमें छोटे छोटे श्वेत दाग थे। उनकी बड़ी इच्छा थी कि राज्य शन्तनुको मिले, इसीमें वे प्रजाका कल्याण समझते थे।

"महाराज! आपके निश्चयने हमारे कार्यक्रमपर वज्रपात कर दिया है। बड़े भाईके रहते छोटेका राज्याभिषेक हो, यह बात समीचीन नहीं है।' प्रधानमन्त्रीके स्वरमें स्वर मिलाकर प्रजाने करबद्ध निवेदन किया।

'आपलोग ठीक कहते हैं; पर आपको विश्वास होना चाहिये कि मैं आपके कल्याणकी बातमें कुछ भी कमी न रखूँगा। राजाका कार्य ही है कि वह सदा प्रजाका हितचिन्तन करता रहे।' देवापिने छिपे तरीकेसे शन्तनुका पक्ष लिया।

'महाराजकी जय।' प्रजा नतमस्तक हो गयी। शन्तनुके राज्याभिषेकके बाद ही देवापिने तप करनेके लिये वनकी ओर प्रस्थान किया। शन्तनु राज्यका काम संभालने लगे।

'प्रजा भूखों मर रही है। चारों ओर अकालका नंगा नाच हो रहा है। महाराज देवापिके वनगमनके बाद बारह सालसे इन्द्रने तो मौन ही धारण कर लिया है। जल-वृष्टि न होनेसे प्राणिमात्र उद्विग्रहो उठे हैं।' महाराज शन्तनुने प्रधानमन्त्रीका ध्यान अपनी ओर खींचा।

'पर यह तो भाग्यका फेर है, महाराज! अनावृष्टिका दोष आपपर नहीं है और न इसके लिये प्रजा हीउत्तरदायी है।* प्रधानमन्त्री कुछ और कहना चाहते थे कि महाराजने बीचमें ही रोक दिया।

"हम प्रजासहित महाराज देवापिको मनाने जायेंगे। राजा होनेके वास्तविक अधिकारी तो वे ही है।' महाराज शन्तनुको चिन्ता दूर हो गयी। प्रधानमन्त्रीने सहमतिप्रकट की। वास्तवमें जङ्गलमें मङ्गल हो रहा था। वन-प्रान्त नागरिकोंकी उपस्थितिसे प्राणवान् था। 'भैया! अपराध क्षमा हो। हमारे दोषोंकी ओर ध्यान न दीजिये। सत्यका व्यतिक्रम करके मेरे राज्याभिषेक स्वीकार करनेपर और आपके वनमें आनेपर सारा-का सारा राज्य भयंकर अनावृष्टिका शिकार हो चला है। आप हमारी रक्षा कीजिये शन्तनुने कुटोसे बाहर निकलनेपर देवापिके चरण पकड़ लिये।

'भाई मैं तो चर्मरोगी हूँ, मेरी त्वचा दूषित है। मुझमें रोगके कारण राजकार्यकी शक्ति नहीं थी, इसलिये प्रजाके कल्याणकी दृष्टिसे मैंने वनका रास्ता लिया था यह सत्य बात है। पर इस समय अनावृष्टिके निवारण के | लिये तथा बृहस्पतिकी प्रसन्नताके लिये मैं आपके वृष्टिकाम यज्ञका पुरोहित बनूँगा।' देवापिने महाराज शान्तनुको गले लगा लिया। प्रजा उनकी जय बोलने लगी।

तपस्वी देवापि राजधानीमें लौट आये। उनके आगमनसे चारों ओर आनन्द छा गया। दोनों भाइयोंके सत्यपालनसे अनावृष्टि समाप्त हो गयी की काल काली धूम - रेखाओंने गगनको आच्छादित कर लिया। बृहस्पति प्रसन्न हो उठे। पर्जन्यकी कृपा वृष्टिसे नदी तालाब, वृक्ष और खेतोंके प्राण लौट आये। देवापिने अपने सत्यव्रतसे प्रजाकी कल्याण साधना की।

-रा0 श्री0

(बृहद्देवता अ0 7 155-57: अ0 8।1-6)



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satya-paalana

praacheen samayakee baat hain. kuruvanshake devaapi aur shantanumen ek doosareke prati svaarth tyaagakee jo anupam bhaavana thee, vah bhaarateey itihaasakee ek vishesh samriddhi hai.

devaapi bada़e aur shantanu chhote the. pitaake svarg gamanake baad raajyaabhishekaka prashn uthanepar devaapi chintit ho uthe. ve charmarogee the, unake shareeramen chhote chhote shvet daag the. unakee bada़ee ichchha thee ki raajy shantanuko mile, iseemen ve prajaaka kalyaan samajhate the.

"mahaaraaja! aapake nishchayane hamaare kaaryakramapar vajrapaat kar diya hai. bada़e bhaaeeke rahate chhoteka raajyaabhishek ho, yah baat sameecheen naheen hai.' pradhaanamantreeke svaramen svar milaakar prajaane karabaddh nivedan kiyaa.

'aapalog theek kahate hain; par aapako vishvaas hona chaahiye ki main aapake kalyaanakee baatamen kuchh bhee kamee n rakhoongaa. raajaaka kaary hee hai ki vah sada prajaaka hitachintan karata rahe.' devaapine chhipe tareekese shantanuka paksh liyaa.

'mahaaraajakee jaya.' praja natamastak ho gayee. shantanuke raajyaabhishekake baad hee devaapine tap karaneke liye vanakee or prasthaan kiyaa. shantanu raajyaka kaam sanbhaalane lage.

'praja bhookhon mar rahee hai. chaaron or akaalaka nanga naach ho raha hai. mahaaraaj devaapike vanagamanake baad baarah saalase indrane to maun hee dhaaran kar liya hai. jala-vrishti n honese praanimaatr udvigraho uthe hain.' mahaaraaj shantanune pradhaanamantreeka dhyaan apanee or kheenchaa.

'par yah to bhaagyaka pher hai, mahaaraaja! anaavrishtika dosh aapapar naheen hai aur n isake liye praja heeuttaradaayee hai.* pradhaanamantree kuchh aur kahana chaahate the ki mahaaraajane beechamen hee rok diyaa.

"ham prajaasahit mahaaraaj devaapiko manaane jaayenge. raaja honeke vaastavik adhikaaree to ve hee hai.' mahaaraaj shantanuko chinta door ho gayee. pradhaanamantreene sahamatiprakat kee. vaastavamen jangalamen mangal ho raha thaa. vana-praant naagarikonkee upasthitise praanavaan thaa. 'bhaiyaa! aparaadh kshama ho. hamaare doshonkee or dhyaan n deejiye. satyaka vyatikram karake mere raajyaabhishek sveekaar karanepar aur aapake vanamen aanepar saaraa-ka saara raajy bhayankar anaavrishtika shikaar ho chala hai. aap hamaaree raksha keejiye shantanune kutose baahar nikalanepar devaapike charan pakada़ liye.

'bhaaee main to charmarogee hoon, meree tvacha dooshit hai. mujhamen rogake kaaran raajakaaryakee shakti naheen thee, isaliye prajaake kalyaanakee drishtise mainne vanaka raasta liya tha yah saty baat hai. par is samay anaavrishtike nivaaran ke | liye tatha brihaspatikee prasannataake liye main aapake vrishtikaam yajnaka purohit banoongaa.' devaapine mahaaraaj shaantanuko gale laga liyaa. praja unakee jay bolane lagee.

tapasvee devaapi raajadhaaneemen laut aaye. unake aagamanase chaaron or aanand chha gayaa. donon bhaaiyonke satyapaalanase anaavrishti samaapt ho gayee kee kaal kaalee dhoom - rekhaaonne gaganako aachchhaadit kar liyaa. brihaspati prasann ho uthe. parjanyakee kripa vrishtise nadee taalaab, vriksh aur khetonke praan laut aaye. devaapine apane satyavratase prajaakee kalyaan saadhana kee.

-raa0 shree0

(brihaddevata a0 7 155-57: a0 8.1-6)

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