(1)
रामतारण चक्रवर्ती नामके एक सज्जन कलकत्ते में किसी व्यापारी फर्ममें काम करते थे। उनके घरमें स्त्री और दस-बारह वर्षकी एक लड़कीके सिवा दूसरा कोई न था। एक दिन कार्यालयसे लौटनेपर उन्होंने देखा कि उनकी स्त्री और लड़की बड़े आनन्दसे एक पत्र पढ़ रही हैं। उन्होंने पूछा 'किसका पत्र है, क्या बात है ?" लड़की बोली- 'क्या आपने नहीं सुना ? छोटे मामाका विवाह है, उन्होंने आपको और हमलोगोंको देश जानेके लिये विशेष आग्रहपूर्वक पत्र लिखा है।' रामतारण बाबू प्रसन्न नेत्रोंसे अपनी स्त्रीकी ओर देखकर बोले-'अच्छी बात है चलो इतने दिनों बाद तुम्हारे छोटे भाईको एक व्यवस्था तो हुई। जरा पत्र तो देखूं।' इतना कहकर वे पत्र पढ़ने लगे।
विवाह के दिनको एक सप्ताह रह गया। रामतारण बाबू मालिकसे कुछ दिनोंके लिये छुट्टी लेकर देश जानेकी तैयारी करने लगे। धीरे-धीरे यात्राका दिन आ गया। विवाहोत्सवमें जानेके लिये हवड़ा स्टेशनपर जाकर यथासमय ट्रेनपर सवार होकर वे देशकी ओर चले। जिस स्टेशनपर उन्हें उतरना था, वहाँ गाड़ी दोपहरको पहुँची। स्टेशनसे उनकी ससुराल 11 मील दूर थी और बैलगाड़ीके सिवा वहाँ जानेके लिये दूसरा कोई साधन न था। रामतारण बाबू एक बैलगाड़ी भाड़ा करके भगवान्का नाम लेकर चल पड़े। गाड़ीवान उनके साथ तरह तरहकी बातें करने लगा और सरलहृदय रामतारण बाबूने भी निष्कपट भावसे सारी बातें उससे कह डालीं। यहाँतक कि वे विवाहमें जा रहे हैं तथा साथमें गहने कपड़े तथा रुपये-पैसे हैं-यह बात भी उनके मुँह से निकल गयी। चक्रवर्ती महाशय यदि इन बातोंके बीचमें गाड़ीवानके मुँहकी ओर विशेष ध्यान देकर देख लेते तो उन्हें मालूम हो जाता कि उसके दोनों नेत्र कितने कुटिल और हिंस-भावसे भर गये हैं; परंतु अत्यन्त सरलहृदय होनेके कारण वे कुछ भी ताड़ न सके।
बैलगाड़ी धीरे-धीरे एक बनके बाद दूसरे वनएक मैदानके बाद दूसरे मैदानको पार करती रामतारण बाबू अपनी स्त्री और लड़कीको नामा | प्रकारके प्राकृतिक दृश्य दिखलाते हुए प्रसन्न चित | विभिन्न प्रकारकी बातें करते रहे। इतनेमें गाड़ीवानने एक नदीके किनारे पहुँचकर गाड़ीको रोक दिया। नदीमें स समय बड़ी भयानक धारा बह रही थी। गाड़ी पर | करनेपर विपत्तिकी सम्भावना थी। नदी उतनी गहरी नहीं थी, लेकिन बहुत चौड़ी थी; अतएव चक्रवर्ती महाशय बहुत डर गये। गाड़ीवानने चक्रवर्ती महाशयको ओर देखकर कहा—'बाबूजी! समीप ही हमारा परिचित गाँव है। हम वहींसे किसीको बुला लाते हैं। एक और आदमीकी सहायता मिलनेसे नदी पार होनेमें विशेष कष्ट न होगा।' चक्रवर्तीजी उसीमें राजी हो गये। तब गाड़ीवानने उन लोगोंको गाड़ीसे उतरनेके लिये कहकर बैलोंको गाड़ीसे खोल दिया। बैल छुट्टी पाकर आनन्दसे नदीके किनारे घास चरने लगे।' हुई चली।
लगभग आध घंटेके बाद गाड़ीवान एक दूसरे आदमीको साथ लेकर पहुँचा। उस दूसरे आदमीको यमदूतके समान मुखाकृति तथा हिंसाभरी क्रूरदृष्टि देखकर चक्रवर्तीजी मन-ही-मन डरने लगे; परंतु उनके मुँहसे कोई बात न निकल सकी। गाड़ीवान और उसका साथी दोनों चक्रवर्तीजीके समीप आकर सामने खड़े हो गये और तड़ककर बोले कि 'तुम्हारे पास जो कुछ है, सो तुरंत दे दो; नहीं तो इस छुरेसे तुम्हारा काम तमाम करके नदीमें डुबो देंगे।' इतना कहकर दोनोंने बड़े तेज शान धराये हुए छुरे निकाल लिये। चक्रवर्ती महाशय, उनकी स्त्री और लड़की - सब डरके मारे चिल्ला उठे। दोनों डाकू छुरे हाथमें लिये उनकी ओर बढ़े। चक्रवर्ती महाशय बहुत अनुनय-विनय करने लगे और प्राण रक्षाके लिये दोनों डाकुओंके चरणोंपर गिर पड़े। डाकुओंने कहा-'तुम्हारे पास जो कुछ गहने-कपड़े और रुपये-पैसे हैं, सब अभी हमारे हवाले कर दो।' चक्रवर्तीजीने कोई उपाय न देखकर सारे रुपये तथा गहने दोनों डाकुओंको दे दिये। धन हथियानेके बाददोनों डाकू बोले कि 'यदि तुम बचे रहोगे तो पुलिसमें खबर देकर हमको पकड़वा दोगे। अतएव तुमलोगोंको मारकर हम इस नदीमें डुबा देंगे।'
इतना कहकर दोनों डाकू छुरे लिये उनकी ओर थे और उनकी लड़की प्रापि भीत होकर रोते-रोते विपद् विदारण भगवान् मधुसूदनको जोर-जोरसे पुकारने लगे। डाकू छुरे भोंक ही रहे थे कि | अचानक एक अघटन घटना घटी। दोनों बैल समीप ही घास चर रहे थे। कोई नहीं कह सकता कि क्या हुआ; पर दोनों बैल सींग नीचे करके आकर बिजलीकी तरह टूट पड़े और दोनों डाकुओंको सींगोंसे मारने लगे। सींगोंकी भयानक चोटसे | दोनों डाकू घायल होकर दूर गिर पड़े। जहाँ-जहाँ साँग लगे थे, वहाँ-वहाँसे बहुत जोरसे खून बहने लगा। वे वेदनासे छटपटाते हुए मिट्टीमें लोटने लगे। सहसा इस अद्भुत घटनाको देखकर चक्रवर्ती महाशय, उनकी स्त्री और लड़की विस्मयसे किंकर्तव्यविमूढ़ होकर पत्थरके समान स्तब्ध रह गये। इसी बीच उसी मार्गसे दूसरे यात्री आ निकले। उन्होंने इस भीषण दृश्यको देखकर चक्रवर्ती महाशयसे पूछताछ की। चक्रवर्तीजीने निष्कपट भावसे सारी बातें कह डालीं। उन यात्रियोंमें एक आदमी चौकीदार था। वह उसी समय उन दोनों डाकुओंको बाँधकर थानेमें खबर देने चला। चक्रवर्तीजीने दूसरे यात्रियोंकी सहायतासे एक दूसरी बैलगाड़ी ठीक करके अपने गन्तव्य स्थानकी राह ली।
अदालतमें मुकदमा चलने पर दोनों डाकुओंको कठोर कारागारका दण्ड मिला। चक्रवर्तीजीने बहुत प्रयत्न करके उन दोनों बैलोंको खरीदकर अपने घरमें रखा और उनकी सेवा की। इसके बाद जब कभी भी कोई उस घटनाके विषय में उनसे पूछता तो वे भक्तिसे गद्गदचित्त होकर कहते कि 'कौन कहता है भगवान् जीवकी करुण प्रार्थना नहीं सुनते। नहीं तो, उनके बिना इन दो प्राणियों (वैलों) को दोनों डाकुओंका दमन करने के लिये किसने प्रेरित किया? ये यन्त्र हैं, वे यन्त्री हैं' इतना कहकर चक्रवर्ती महाशय भावावेशमें रो पड़ते!
(2)
डेवन नगरके बब्बाकूम्ब (Babbacomb) गाँवके निवासी जॉन ली (John Lee) की घटना ऐसी है,जिसपर जल्दी विश्वास नहीं होता, किंतु है वह सोलहों आने सत्य। श्रीमती केयीज (Mrs. Keyes) की हत्याका अभियोग लगाकर लोको फाँसीकी आज्ञा हो गयी थी। मृत्युसे तनिक भी भयभीत होनेकी अपेक्षा लीने न्यायाधीशोंके समक्ष उनकी सम्मतिके विरुद्ध अपनेको निर्दोष बताया और कहा, 'मैंने यह काम नहीं किया है। भगवान् जानते हैं कि मैं निर्दोष हूँ। वे कभी मुझे फाँसीसे मरने नहीं देंगे। उन्होंने मुझसे निर्भय रहनेके लिये कहा है।'
उधर फाँसीकी सारी व्यवस्था हो गयी। रस्सीकी जाँचके लिये एक पुतला लटकाया गया। सब कुछ ठीक साबित हुआ। इस दृश्यको देखनेके लिये एक उन्मत्त भीड़ साँस खींचे खड़ी थी। सिपाहियोंने लीको यथास्थान खड़ा कर दिया। फिर उसको एक काली कुलही उढ़ाकर खटका खींच लिया गया। पर ली जहाँ-का-तहाँ ही खड़ा रह गया। आश्चर्यचकित होकर एक निरीक्षक सिपाही कैदीकी जगह स्वयं जाकर खड़ा हो गया। इस बार जब खटका खींचा गया, तब सिपाही धड़ामसे नीचे आ गिरा और उसका एक पैर भी टूट गया। फाँसीकी सजाको एक सप्ताहके लिये स्थगित कर दिया गया। पर दूसरी बार भी लीको फंदेमें लटकानेकी चेष्टा फिर व्यर्थ सिद्ध हुई। जबतक पुतलोंको लटकाकर परीक्षा की जाती, तबतक तो खटकेका खींचना सार्थक होता; पर जब लोको वहाँ लाकर खड़ा कर दिया जाता, तब खटका काम ही नहीं करता। उस स्थानका अधिकारी (शरिफ) एक धर्मभीरु और श्रद्धालु पुरुष था। उसने तार देकर गृहसचिवसे परामर्श माँगा। वहाँसे यही कठोर उत्तर आया- 'फाँसीका काम पूरा करो।'
स्थानीय नागरिकोंने अत्यन्त उत्तेजित होकर लीके छोड़ दिये जानेकी माँग की। परंतु शरिफ बेचारेको तो हुकुम बजाना था। उसने फिर इस घोर कर्मको पूरा करनेकी चेष्टा की, परंतु वह सफल नहीं हुआ। चार पृथक् पृथक् दिन फाँसी देनेका प्रयत्न किया गया, पर हर बार खटकेका यन्त्र कुण्ठित हो जाता। इतनेमें गृहसचिवका फिर शीघ्र ही तार आ गया, जॉन लीके प्राणदण्डकी आज्ञा रद्द कर दी गयी थी। कुछ समय बाद उसको क्षमा प्रदान करके छोड़ भी दिया गया।
(1)
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(2)
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udhar phaanseekee saaree vyavastha ho gayee. rasseekee jaanchake liye ek putala latakaaya gayaa. sab kuchh theek saabit huaa. is drishyako dekhaneke liye ek unmatt bheeda़ saans kheenche khada़ee thee. sipaahiyonne leeko yathaasthaan khada़a kar diyaa. phir usako ek kaalee kulahee udha़aakar khataka kheench liya gayaa. par lee jahaan-kaa-tahaan hee khada़a rah gayaa. aashcharyachakit hokar ek nireekshak sipaahee kaideekee jagah svayan jaakar khada़a ho gayaa. is baar jab khataka kheencha gaya, tab sipaahee dhada़aamase neeche a gira aur usaka ek pair bhee toot gayaa. phaanseekee sajaako ek saptaahake liye sthagit kar diya gayaa. par doosaree baar bhee leeko phandemen latakaanekee cheshta phir vyarth siddh huee. jabatak putalonko latakaakar pareeksha kee jaatee, tabatak to khatakeka kheenchana saarthak hotaa; par jab loko vahaan laakar khada़a kar diya jaata, tab khataka kaam hee naheen karataa. us sthaanaka adhikaaree (sharipha) ek dharmabheeru aur shraddhaalu purush thaa. usane taar dekar grihasachivase paraamarsh maangaa. vahaanse yahee kathor uttar aayaa- 'phaanseeka kaam poora karo.'
sthaaneey naagarikonne atyant uttejit hokar leeke chhoda़ diye jaanekee maang kee. parantu shariph bechaareko to hukum bajaana thaa. usane phir is ghor karmako poora karanekee cheshta kee, parantu vah saphal naheen huaa. chaar prithak prithak din phaansee deneka prayatn kiya gaya, par har baar khatakeka yantr kunthit ho jaataa. itanemen grihasachivaka phir sheeghr hee taar a gaya, jaॉn leeke praanadandakee aajna radd kar dee gayee thee. kuchh samay baad usako kshama pradaan karake chhoda़ bhee diya gayaa.