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दान और भोग  [आध्यात्मिक कहानी]
प्रेरक कहानी - आध्यात्मिक कथा (आध्यात्मिक कथा)

दान और भोग

राजा भोज जंगलके रास्तेसे जा रहे थे साथमें था राजकवि पण्डित धनपाल। भोजने जंगलमें एक बड़े वृक्षकी डालसे लटकता हुआ मधुमक्खियोंका एक छत्ता देखा, जो मधुके भारसे जैसे गिरनेको हो रहा था। उन्होंने ध्यान से देखा तो मधुमक्खियोंको अपने हाथ-पैरोंको घिसता हुआ पाया। उन्होंने कविसे पूछा- 'कविवर! ये मधुमक्खियाँ अपने हाथ-पैर क्यों
घिस रही हैं ?'
कविकी अपनी कल्पना होती है। उसने कहा 'दानीकी कीर्ति अमर होती है। इस धरतीपर आज भी शिबि, दधीचि, कर्ण, बलि और विक्रमका नाम चल रहा है। जबकि जिन्होंने अपने जीवनमें हमेशा संचय किया,
उनका नाम लेनेवाला आज कोई नहीं। मक्खियाँ कह रही हैं कि हमने संचय करनेमें ही सारा जीवन लगा दिया। वह संचित धन हमारे कोई काम नहीं आया। न तो हम उसे किसीको दान दे सके, न स्वयं भोग सके। अब यह छत्ता गिर रहा है, इसी सोचमें ये मक्खियाँ अपने हाथ-पैर घिस रही हैं।
यह एक बहुत महत्त्वपूर्ण कल्पना है कविकी, जो सच्चाईका उद्घाटन कर रही है। जो लोग न तो दान देते हैं न स्वयं उसका भोग कर पाते हैं, उनके हाथमें अन्तमें पश्चात्ताप ही आता है। कंजूस आदमी किसीको देना तो जानता ही नहीं, लेकिन स्वयं भोगना भी नहीं जानता है। प्राणीकी यह प्रवृत्ति बड़ी विचित्र है।



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daan aur bhoga

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raaja bhoj jangalake raastese ja rahe the saathamen tha raajakavi pandit dhanapaala. bhojane jangalamen ek bada़e vrikshakee daalase latakata hua madhumakkhiyonka ek chhatta dekha, jo madhuke bhaarase jaise giraneko ho raha thaa. unhonne dhyaan se dekha to madhumakkhiyonko apane haatha-paironko ghisata hua paayaa. unhonne kavise poochhaa- 'kavivara! ye madhumakkhiyaan apane haatha-pair kyon
ghis rahee hain ?'
kavikee apanee kalpana hotee hai. usane kaha 'daaneekee keerti amar hotee hai. is dharateepar aaj bhee shibi, dadheechi, karn, bali aur vikramaka naam chal raha hai. jabaki jinhonne apane jeevanamen hamesha sanchay kiya,
unaka naam lenevaala aaj koee naheen. makkhiyaan kah rahee hain ki hamane sanchay karanemen hee saara jeevan laga diyaa. vah sanchit dhan hamaare koee kaam naheen aayaa. n to ham use kiseeko daan de sake, n svayan bhog sake. ab yah chhatta gir raha hai, isee sochamen ye makkhiyaan apane haatha-pair ghis rahee hain.
yah ek bahut mahattvapoorn kalpana hai kavikee, jo sachchaaeeka udghaatan kar rahee hai. jo log n to daan dete hain n svayan usaka bhog kar paate hain, unake haathamen antamen pashchaattaap hee aata hai. kanjoos aadamee kiseeko dena to jaanata hee naheen, lekin svayan bhogana bhee naheen jaanata hai. praaneekee yah pravritti bada़ee vichitr hai.

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