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पतिको रणमें भेजते समयका विनोद  [Hindi Story]
छोटी सी कहानी - शिक्षदायक कहानी (आध्यात्मिक कहानी)

चम्पकपुरीके एकपत्नीव्रती राज्यमें महाराज हंसध्वन राज्य करते थे। पाण्डवोंके अश्वमेध यज्ञका घोड़ा चम्पकपुरीके पास पहुँचा। महावीर अर्जुन अथकी रक्षाके लिये पीछे-पीछे आ रहे थे। हंसध्वजने क्षत्रिय धर्मके अनुसार तथा पार्थसारथि भगवान् श्रीकृष्णके दर्शनकी लालसासे घोड़ेको पकड़ लिया। भयानक युद्धकी तैयारी हुई। सुधन्वा सबसे छोटा पुत्र था। रणमें जाते समय वह अपनी माताका आशीर्वाद लेकर, बहिनको अनुमति प्राप्तकर अपनी सती पत्नी प्रभावतीके पास गया। वह पहलेसे ही दीपकयुक्त सुवर्ण थालमें चन्दन -कपूर लिये आरती उतारनेको दरवाजेपर ही खड़ी थी। सतीने बड़े भक्तिभावसे वीर पतिकी पूजा की, तदनन्तर धैर्यके साथ आरती करती हुई नम्रताके साथ पतिके प्रति प्रेमभरे गुह्य वचन कहने लगी प्राणनाथ ! मैं आपके श्रीकृष्णके दर्शनार्थी मुखकमलका दर्शन कर रही हूँ; परंतु नाथ मालूम होता है आज आपका एकपत्नीव्रत नष्ट हो जायगा। पर आप जिसपरअनुरक्त होकर उत्साहसे जा रहे हैं, वह स्त्री मेरी बराबरी कभी नहीं कर सकेगी। मैंने आपके सिवा दूसरेकी ओर कभी भूलकर भी नहीं ताका है; परंतु वह 'मुक्ति' नाम्नी रमणी तो पिता, पुत्र, सभीके प्रति गमन करनेवाली है। आपके मनमें 'मुक्ति' बस रही है, इसीसे श्रीकृष्णके द्वारा उसके मिलनेकी आशासे आप दौड़े जा रहे हैं। पुरुषोंका चित्त देव रमणियोंकी ओर चला ही जाता है; परंतु आप यह निश्चय रखिये कि श्रीहरिको देखकर उनकी अतुलित मुखच्छबिके सामने 'मुक्ति' आपको कभी प्रिय नहीं लगेगी। क्योंकि उनके भक्तजन जो उनकी प्रेम-माधुरीपर अपनेको न्योछावर कर देते हैं, वे मुक्तिकी कभी इच्छा नहीं करते। मुक्ति तो दासीकी तरह चरणसेवाका अवसर ढूँढ़ती हुई उनके पीछे-पीछे घूमा करती है, परंतु वे उसकी ओर ताकते भी नहीं। यहाँतक कि हरि स्वयं भी कभी उन्हें मुक्ति प्रदान करना चाहते हैं, तब भी वे उसे ग्रहण नहीं करते। 'इसके सिवा पुरुषोंकी भाँति स्त्री पर-पुरुषोंके पासनहीं जाया करती। नहीं तो आपके चले जानेपर यदि मैं 'मोक्ष' के प्रति चली जाऊँ तो आप क्या कर सकते हैं? परंतु विवेक नामक अदृश्य पुत्र निरन्तर मेरी रक्षा करता है। जिन स्त्रियोंके विवेक नामक पुत्र नहीं है, वे ही पर पुरुषके पास जाया करती हैं। मुझे लड़कपनसे ही विवेक पुत्र प्राप्त है, इसीसे आर्य मुझे मोक्षके पास जानेमें संकोच हो रहा है।' पलके मधुर धार्मिक वचनोंका उत्तर देते हुएसुधन्वाने कहा-

'शोभने! जब मैं श्रीकृष्णके साथ लड़नेको जा रहा हूँ, तब तुम्हें मोक्षके प्रति जानेसे कैसे रोक सकता हूँ। तुम भी मेरे उत्तम वस्त्र, स्वर्ण-रत्नोंके समूह और इस शरीर तथा चित्तको त्यागकर चली जाओ। मैं तो यह पहलेसे ही जानता था कि तुम 'मोक्ष' के प्रति आसक्त हो। इसीसे तो मैंने प्रत्यक्षमें विवेक पुत्रके उत्पन्न करनेकी चेष्टा नहीं की।



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patiko ranamen bhejate samayaka vinoda

champakapureeke ekapatneevratee raajyamen mahaaraaj hansadhvan raajy karate the. paandavonke ashvamedh yajnaka ghoda़a champakapureeke paas pahunchaa. mahaaveer arjun athakee rakshaake liye peechhe-peechhe a rahe the. hansadhvajane kshatriy dharmake anusaar tatha paarthasaarathi bhagavaan shreekrishnake darshanakee laalasaase ghoda़eko pakada़ liyaa. bhayaanak yuddhakee taiyaaree huee. sudhanva sabase chhota putr thaa. ranamen jaate samay vah apanee maataaka aasheervaad lekar, bahinako anumati praaptakar apanee satee patnee prabhaavateeke paas gayaa. vah pahalese hee deepakayukt suvarn thaalamen chandan -kapoor liye aaratee utaaraneko daravaajepar hee khada़ee thee. sateene bada़e bhaktibhaavase veer patikee pooja kee, tadanantar dhairyake saath aaratee karatee huee namrataake saath patike prati premabhare guhy vachan kahane lagee praananaath ! main aapake shreekrishnake darshanaarthee mukhakamalaka darshan kar rahee hoon; parantu naath maaloom hota hai aaj aapaka ekapatneevrat nasht ho jaayagaa. par aap jisaparaanurakt hokar utsaahase ja rahe hain, vah stree meree baraabaree kabhee naheen kar sakegee. mainne aapake siva doosarekee or kabhee bhoolakar bhee naheen taaka hai; parantu vah 'mukti' naamnee ramanee to pita, putr, sabheeke prati gaman karanevaalee hai. aapake manamen 'mukti' bas rahee hai, iseese shreekrishnake dvaara usake milanekee aashaase aap dauda़e ja rahe hain. purushonka chitt dev ramaniyonkee or chala hee jaata hai; parantu aap yah nishchay rakhiye ki shreehariko dekhakar unakee atulit mukhachchhabike saamane 'mukti' aapako kabhee priy naheen lagegee. kyonki unake bhaktajan jo unakee prema-maadhureepar apaneko nyochhaavar kar dete hain, ve muktikee kabhee ichchha naheen karate. mukti to daaseekee tarah charanasevaaka avasar dhoondha़tee huee unake peechhe-peechhe ghooma karatee hai, parantu ve usakee or taakate bhee naheen. yahaantak ki hari svayan bhee kabhee unhen mukti pradaan karana chaahate hain, tab bhee ve use grahan naheen karate. 'isake siva purushonkee bhaanti stree para-purushonke paasanaheen jaaya karatee. naheen to aapake chale jaanepar yadi main 'moksha' ke prati chalee jaaoon to aap kya kar sakate hain? parantu vivek naamak adrishy putr nirantar meree raksha karata hai. jin striyonke vivek naamak putr naheen hai, ve hee par purushake paas jaaya karatee hain. mujhe lada़kapanase hee vivek putr praapt hai, iseese aary mujhe mokshake paas jaanemen sankoch ho raha hai.' palake madhur dhaarmik vachanonka uttar dete huesudhanvaane kahaa-

'shobhane! jab main shreekrishnake saath lada़neko ja raha hoon, tab tumhen mokshake prati jaanese kaise rok sakata hoon. tum bhee mere uttam vastr, svarna-ratnonke samooh aur is shareer tatha chittako tyaagakar chalee jaao. main to yah pahalese hee jaanata tha ki tum 'moksha' ke prati aasakt ho. iseese to mainne pratyakshamen vivek putrake utpann karanekee cheshta naheen kee.

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