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ब्रह्मज्ञानका अधिकारी  [Moral Story]
Story To Read - Story To Read (शिक्षदायक कहानी)

एक साधकने किसी महात्मा के पास जाकर उनसे । प्रार्थना की कि 'मुझे आत्मसाक्षात्कारका उपाय बताइये।' महात्माने एक मन्त्र बताकर कहा कि 'एकान्तमें रहकर एक सालतक इस मन्त्रका जाप करो; जिस दिन वर्ष पूरा हो, उस दिन नहाकर मेरे पास आना।' साधकने वैसा ही किया। वर्ष पूरा होनेके दिन महात्माजीने वहाँ झाडू देनेवाली भंगिनसे कह दिया कि 'जब वह नहा धोकर मेरे पास आने लगे, तब उसके पास जाकर शासे गर्दा उड़ा देना।' भगिनने वैसा ही किया। साधकको क्रोध आ गया और वह भंगिनको मारने दौड़ा। भंगिन भाग गयी। वह फिरसे नहाकर महात्माजीके पास आया महात्माजीने कहा- भैया! अभी तो तुम सौंपकी तरह काटने दौडते हो। सालभर और बैठकर मन्त्र जप करो, तब आना!' साधकको बात कुछ बुरी तो लगी, पर वह गुरुकी आज्ञा समझकर चला गया और मन्त्रजप करने लगा।

दूसरा वर्ष जिस दिन पूरा होता था, उस दिनमहात्माजीने उसी भंगिनसे कहा कि 'आज जब वह आने लगे, तब उसके पैरसे जरा झाड़ छुआ देना ।' उसने कहा, 'मुझे मारेगा तो ?' महात्माजी बोले, 'आज मारेगा नहीं, बककर ही रह जायगा।' भंगिनने जाकर झाड़ू छुआ दिया। साधकने झल्लाकर दस-पाँच कठोर शब्द सुनाये और फिर नहाकर वह महात्माजीके पास आया । महात्माजीने कहा- 'भाई! काटते तो नहीं, पर अभी साँपकी तरह फुफकार तो मारते ही हो। ऐसी अवस्थामें आत्मसाक्षात्कार कैसे होगा। जाओ, एक वर्ष और जप करो। इस बार साधकको अपनी भूल दिखायी दी और मनमें बड़ी लज्जा हुई। उसने इसको महात्माजीकी कृपा समझा और वह मन-ही-मन उनकी प्रशंसा करता हुआ अपने स्थानपर आ गया । '

उसने सालभर फिर मन्त्र जप किया। तीसरा वर्ष पूरा होनेके दिन महात्माजीने भंगिनसे कहा कि 'आज वह आने लगे तब कूड़ेकी टोकरी उसपर उड़ेल देना । अब वह खीझेगा भी नहीं ।' भंगिनने वैसा ही किया।साधकका चित्त निर्मल हो चुका था । उसे क्रोध तं आया ही नहीं। उसके मनमें उलटे भंगिनके प्रति कृतज्ञताकी भावना जाग्रत् हो गयी। उसने हाथ जोड़कर भंगिनसे कहा-'माता! तुम्हारा मुझपर बड़ा ही उपकार है, जो तुम मेरे अंदरके एक बड़े भारी दोषको दूर करनेके लिये तीन सालसे बराबर प्रयत्न कर रही हो । तुम्हारी कृपासे आज मेरे मनमें जरा भी दुर्भाव नहीं आया। इससे मुझे ऐसी आशा है कि मेरे गुरु महाराजआज मुझको अवश्य उपदेश करेंगे।' इतना कहकर वह स्नान करके महात्माजीके पास जाकर उनके चरणोंपर गिर पड़ा। महात्माजीने उठाकर उसको हृदयसे लगा लिया। मस्तकपर हाथ फिराया और ब्रह्मके स्वरूपका उपदेश किया। शुद्ध अन्तःकरणमें तुरंत ही उपदेशके अनुसार धारणा हो गयी। अज्ञान मिट गया। ज्ञान तो था ही, आवरण दूर होनेसे उसकी अनुभूति हो गयी और साधक निहाल हो गया।



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brahmajnaanaka adhikaaree

ek saadhakane kisee mahaatma ke paas jaakar unase . praarthana kee ki 'mujhe aatmasaakshaatkaaraka upaay bataaiye.' mahaatmaane ek mantr bataakar kaha ki 'ekaantamen rahakar ek saalatak is mantraka jaap karo; jis din varsh poora ho, us din nahaakar mere paas aanaa.' saadhakane vaisa hee kiyaa. varsh poora honeke din mahaatmaajeene vahaan jhaadoo denevaalee bhanginase kah diya ki 'jab vah naha dhokar mere paas aane lage, tab usake paas jaakar shaase garda uda़a denaa.' bhaginane vaisa hee kiyaa. saadhakako krodh a gaya aur vah bhanginako maarane dauda़aa. bhangin bhaag gayee. vah phirase nahaakar mahaatmaajeeke paas aaya mahaatmaajeene kahaa- bhaiyaa! abhee to tum saunpakee tarah kaatane daudate ho. saalabhar aur baithakar mantr jap karo, tab aanaa!' saadhakako baat kuchh buree to lagee, par vah gurukee aajna samajhakar chala gaya aur mantrajap karane lagaa.

doosara varsh jis din poora hota tha, us dinamahaatmaajeene usee bhanginase kaha ki 'aaj jab vah aane lage, tab usake pairase jara jhaada़ chhua dena .' usane kaha, 'mujhe maarega to ?' mahaatmaajee bole, 'aaj maarega naheen, bakakar hee rah jaayagaa.' bhanginane jaakar jhaada़oo chhua diyaa. saadhakane jhallaakar dasa-paanch kathor shabd sunaaye aur phir nahaakar vah mahaatmaajeeke paas aaya . mahaatmaajeene kahaa- 'bhaaee! kaatate to naheen, par abhee saanpakee tarah phuphakaar to maarate hee ho. aisee avasthaamen aatmasaakshaatkaar kaise hogaa. jaao, ek varsh aur jap karo. is baar saadhakako apanee bhool dikhaayee dee aur manamen bada़ee lajja huee. usane isako mahaatmaajeekee kripa samajha aur vah mana-hee-man unakee prashansa karata hua apane sthaanapar a gaya . '

usane saalabhar phir mantr jap kiyaa. teesara varsh poora honeke din mahaatmaajeene bhanginase kaha ki 'aaj vah aane lage tab kooda़ekee tokaree usapar uda़el dena . ab vah kheejhega bhee naheen .' bhanginane vaisa hee kiyaa.saadhakaka chitt nirmal ho chuka tha . use krodh tan aaya hee naheen. usake manamen ulate bhanginake prati kritajnataakee bhaavana jaagrat ho gayee. usane haath joda़kar bhanginase kahaa-'maataa! tumhaara mujhapar bada़a hee upakaar hai, jo tum mere andarake ek bada़e bhaaree doshako door karaneke liye teen saalase baraabar prayatn kar rahee ho . tumhaaree kripaase aaj mere manamen jara bhee durbhaav naheen aayaa. isase mujhe aisee aasha hai ki mere guru mahaaraajaaaj mujhako avashy upadesh karenge.' itana kahakar vah snaan karake mahaatmaajeeke paas jaakar unake charanonpar gir pada़aa. mahaatmaajeene uthaakar usako hridayase laga liyaa. mastakapar haath phiraaya aur brahmake svaroopaka upadesh kiyaa. shuddh antahkaranamen turant hee upadeshake anusaar dhaarana ho gayee. ajnaan mit gayaa. jnaan to tha hee, aavaran door honese usakee anubhooti ho gayee aur saadhak nihaal ho gayaa.

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