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भगवान्‌को पानेकी योग्यता  [प्रेरक कहानी]
Shikshaprad Kahani - शिक्षदायक कहानी (हिन्दी कहानी)

भगवान्‌को पानेकी योग्यता

श्रीलालाबाबूका असली नाम था श्रीकृष्णचन्द्र सिंह। उनके पिता प्राणकृष्णके पास बड़ी जमींदारी थी 1 और वे पूर्वी भारतके सबसे बड़े धनी-मानी व्यक्ति थे। बचपनसे ही वे किसीका दुःख नहीं देख सकते थे। एक बार एक धीवरकी कन्या अपने बाबाको कह रही थी 'बाबा! उठो दिन शेष हय गलो।' उसे सुनकर श्रीलालाबाबूको वैराग्य हो गया। वे अपने परिवारको कलकत्तामें छोड़कर संन्यासी हो गये और वृन्दावनमें रहने लगे। उन्होंने ब्रजमण्डलके चौहत्तर परगने खरीदकर उनकी आयसे भग्न मन्दिरोंकी मरम्मत, नये मन्दिर और धर्मशालाओंका निर्माण और स्थान-स्थानपर देव-सेवाकी सुव्यवस्था करनेकी एक विराट् योजना बनायी। वृन्दावनमें एक विशाल सुरम्य मन्दिर बनवाया। वे स्वयं कंगाल वैष्णवकी तरह जीवनयापन करते रहे।
लालाबाबूने ब्रजके सभी तीर्थोंका दर्शन किया तथा गोवर्धनमें एक छोटी-सी गुफामें रहने लगे। वे नित्य प्रातः गोवर्धनकी परिक्रमा करते। दिनभर भजन करते तथा संध्याके समय एकार मधुकरीको जाते थे। मथुराके सिद्ध महात्मा कृष्णदास बाबाजी उन दिनों वहाँ विद्यमान थे। लालाबाबूने उनका शिष्य बनना चाहा, तब बाबाजीने कहा कि 'अभी समय नहीं आया है। उपयुक्त समय आनेपर ही मैं तुम्हें दीक्षा दूँगा। तुम्हारे विषयी जीवनके सूक्ष्म संस्कार अभी
शेष हैं।'
रंगजीके विशाल मन्दिरके निर्माता सेठ लक्ष्मीचन्दजी, लालाबाबूके प्रतिद्वन्द्वी थे। मन्दिर निर्माण, साधु- वैष्णवोंकी सेवा और दान-दक्षिणा आदिमें दोनोंमें होड़ लगी रहती थी। पहले दोनोंके बीच जमीन जायदादको लेकर एक मुकदमा भी चल चुका था। सेठजीके प्रति लालाबाबूके मनमें सूक्ष्म रूपसे द्वेष अब भी बना हुआ था। एक दिन रंगजीके मन्दिरमें लालाबाबू स्वयं सेठजीके द्वारपर भिक्षाके लिये गये। सेठजीको यह जानकर अतीव आश्चर्य हुआ। सेठजीने लालाबाबूको बाँहोंमें भर लिया। दोनोंकी आँखें प्रेमाश्रुओंसे भींग गर्यो।
फिर महात्मा कृष्णदासने स्वयं उन्हें आकर दीक्षा दी। उन्होंने लालाबाबूको गोवर्धनमें एक गुफामें रहकर भजन करनेको कहा। गुरुकी आज्ञाके अनुसार भजन करते-करते कई वर्ष बाद उन्हें अपने इष्टदेवके दर्शन हुए।
उनका कहना था कि यदि भगवान्‌को पाना चाहते हैं तो केवल दीक्षासे कुछ नहीं होता। दोनों हाथ बढ़ाने होंगे। एक हाथसे संसारको पकड़े रहकर दूसरा हाथ उनकी ओर बढ़ानेपर भी उनके चरणोंकी प्राप्ति नहीं होगी। भगवान्‌को पानेके लिये तो दोनों ही हाथ बढ़ाने होंगे।



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bhagavaan‌ko paanekee yogyataa

bhagavaan‌ko paanekee yogyataa

shreelaalaabaabooka asalee naam tha shreekrishnachandr sinha. unake pita praanakrishnake paas bada़ee jameendaaree thee 1 aur ve poorvee bhaaratake sabase bada़e dhanee-maanee vyakti the. bachapanase hee ve kiseeka duhkh naheen dekh sakate the. ek baar ek dheevarakee kanya apane baabaako kah rahee thee 'baabaa! utho din shesh hay galo.' use sunakar shreelaalaabaabooko vairaagy ho gayaa. ve apane parivaarako kalakattaamen chhoda़kar sannyaasee ho gaye aur vrindaavanamen rahane lage. unhonne brajamandalake chauhattar paragane khareedakar unakee aayase bhagn mandironkee marammat, naye mandir aur dharmashaalaaonka nirmaan aur sthaana-sthaanapar deva-sevaakee suvyavastha karanekee ek viraat yojana banaayee. vrindaavanamen ek vishaal suramy mandir banavaayaa. ve svayan kangaal vaishnavakee tarah jeevanayaapan karate rahe.
laalaabaaboone brajake sabhee teerthonka darshan kiya tatha govardhanamen ek chhotee-see guphaamen rahane lage. ve nity praatah govardhanakee parikrama karate. dinabhar bhajan karate tatha sandhyaake samay ekaar madhukareeko jaate the. mathuraake siddh mahaatma krishnadaas baabaajee un dinon vahaan vidyamaan the. laalaabaaboone unaka shishy banana chaaha, tab baabaajeene kaha ki 'abhee samay naheen aaya hai. upayukt samay aanepar hee main tumhen deeksha doongaa. tumhaare vishayee jeevanake sookshm sanskaar abhee
shesh hain.'
rangajeeke vishaal mandirake nirmaata seth lakshmeechandajee, laalaabaabooke pratidvandvee the. mandir nirmaan, saadhu- vaishnavonkee seva aur daana-dakshina aadimen dononmen hoda़ lagee rahatee thee. pahale dononke beech jameen jaayadaadako lekar ek mukadama bhee chal chuka thaa. sethajeeke prati laalaabaabooke manamen sookshm roopase dvesh ab bhee bana hua thaa. ek din rangajeeke mandiramen laalaabaaboo svayan sethajeeke dvaarapar bhikshaake liye gaye. sethajeeko yah jaanakar ateev aashchary huaa. sethajeene laalaabaabooko baanhonmen bhar liyaa. dononkee aankhen premaashruonse bheeng garyo.
phir mahaatma krishnadaasane svayan unhen aakar deeksha dee. unhonne laalaabaabooko govardhanamen ek guphaamen rahakar bhajan karaneko kahaa. gurukee aajnaake anusaar bhajan karate-karate kaee varsh baad unhen apane ishtadevake darshan hue.
unaka kahana tha ki yadi bhagavaan‌ko paana chaahate hain to keval deekshaase kuchh naheen hotaa. donon haath badha़aane honge. ek haathase sansaarako pakada़e rahakar doosara haath unakee or badha़aanepar bhee unake charanonkee praapti naheen hogee. bhagavaan‌ko paaneke liye to donon hee haath badha़aane honge.

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