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अति साहस करना ठीक नहीं  [आध्यात्मिक कहानी]
Shikshaprad Kahani - Short Story (Story To Read)

[15]

अति साहस करना ठीक नहीं

एक कछुआ यह सोचकर बड़ा दुखी था कि पक्षीगण बड़ी आसानीसे आकाशमें उड़ा करते हैं, परंतु वह नहीं उड़ पाता। वह मन-ही-मन सोच-विचारकर इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि यदि कोई मुझे एक बार भी आकाशमें पहुँचा दे, तो फिर मैं भी पक्षियोंके समान ही उड़ते हुए विचरण किया करूँगा । उसने एक गरुड़ पक्षीके पास जाकर कहा, 'भाई! यदि तुम दया करके मुझे एक बार आकाशमें पहुँचा दो, तो मैं समुद्रतलमें स्थित सारे रत्न निकालकर तुम्हें दे दूँगा। मुझे आकाशमें उड़ते हुए विचरण करनेकी बड़ी इच्छा हो रही है। '
कछुएकी आकांक्षा तथा प्रार्थना सुनकर गरुड़ बोला, 'सुनो भाई, तुम जो कुछ चाहते हो, उसका पूरा होना असम्भव है। थलचर जन्तु कभी नभचर नहीं हो सकता। तुम अपनी यह आकांक्षा त्याग दो। यदि मैं तुम्हें आकाशमें पहुँचा भी दूँ तो तुम तत्काल गिर जाओगे और हो सकता है इससे तुम्हारी मृत्यु भी हो जाय।'
परंतु कछुआ नहीं माना, उसने कहा, 'बस, तुम मुझे एक बार ऊपर पहुँचा दो, मैं उड़ सकता हूँ और उहुँगा, यदि नहीं उड़ सका तो गिरकर मर जाऊँगा । इसके लिये तुम्हें चिन्ता करनेकी जरूरत नहीं है।' इस प्रकार कछुआ उससे बारम्बार अनुरोध करने लगा।
तब गरुड़ने थोड़ा-सा हँसकर कछुएको उठा लियाऔर उसे काफी ऊँचाईपर पहुँचा दिया। उसने कहा,'अब तुम उड़ना आरम्भ करो' और उसने कछुएको छोड़ दिया। उसके छोड़ते ही कछुआ एक पहाड़ीपर जा गिरा और गिरते ही उसके प्राण चले गये।
मनुष्यको अपनी क्षमताके अनुरूप ही आकांक्षा रखनी चाहिये, अन्यथा बहुत दुःख उठाना पड़ सकता है।



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ati saahas karana theek naheen

[15]

ati saahas karana theek naheen

ek kachhua yah sochakar bada़a dukhee tha ki paksheegan bada़ee aasaaneese aakaashamen uda़a karate hain, parantu vah naheen uda़ paataa. vah mana-hee-man socha-vichaarakar is nishkarsh par pahuncha ki yadi koee mujhe ek baar bhee aakaashamen pahuncha de, to phir main bhee pakshiyonke samaan hee uda़te hue vicharan kiya karoonga . usane ek garuda़ paksheeke paas jaakar kaha, 'bhaaee! yadi tum daya karake mujhe ek baar aakaashamen pahuncha do, to main samudratalamen sthit saare ratn nikaalakar tumhen de doongaa. mujhe aakaashamen uda़te hue vicharan karanekee bada़ee ichchha ho rahee hai. '
kachhuekee aakaanksha tatha praarthana sunakar garuda़ bola, 'suno bhaaee, tum jo kuchh chaahate ho, usaka poora hona asambhav hai. thalachar jantu kabhee nabhachar naheen ho sakataa. tum apanee yah aakaanksha tyaag do. yadi main tumhen aakaashamen pahuncha bhee doon to tum tatkaal gir jaaoge aur ho sakata hai isase tumhaaree mrityu bhee ho jaaya.'
parantu kachhua naheen maana, usane kaha, 'bas, tum mujhe ek baar oopar pahuncha do, main uda़ sakata hoon aur uhunga, yadi naheen uda़ saka to girakar mar jaaoonga . isake liye tumhen chinta karanekee jaroorat naheen hai.' is prakaar kachhua usase baarambaar anurodh karane lagaa.
tab garuda़ne thoda़aa-sa hansakar kachhueko utha liyaaaur use kaaphee oonchaaeepar pahuncha diyaa. usane kaha,'ab tum uda़na aarambh karo' aur usane kachhueko chhoda़ diyaa. usake chhoda़te hee kachhua ek pahaada़eepar ja gira aur girate hee usake praan chale gaye.
manushyako apanee kshamataake anuroop hee aakaanksha rakhanee chaahiye, anyatha bahut duhkh uthaana pada़ sakata hai.

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