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भटके नवयुवकोंकी सँभाल  [Short Story]
Wisdom Story - प्रेरक कहानी (छोटी सी कहानी)

भटके नवयुवकोंकी सँभाल

मद्राससे दो भले घरोंके लड़के घर छोड़कर बम्बई चले जाते हैं। क्यों? ईसाई बन जायँगे। बम्बईसे मिशनरी लोग उन्हें कलकत्ता ले आते हैं और कलकत्ता आते ही पता नहीं, कौन जाने, उनका मन बदल गया। नहीं, ईसाई नहीं होंगे।
ईसाई बनेंगे- इस वजहसे मिशनरियोंकी ओरसे उन्हें कुछ-न-कुछ रुपया-पैसा मिलता रहता था। फिर वह बन्द हो गया।
सहसा, वे घर लौट जायें, अब इसका भी कोई उपाय नहीं रहा था। ईसाई होंगे-यह कहकर घरसे निकले थे, अब घर जाकर क्या मुँह दिखायेंगे।
उनके पास पैसा-कौड़ी कुछ भी नहीं रहा। निरुपाय होकर उन्होंने भीख माँगनी शुरू कर दी। कई बड़े-बड़े बाबू लोगोंको जाकर उन्होंने पकड़ा।
नगद उन्हें कुछ भी नहीं मिला। कॉपीपर बाबू लोगोंने हस्ताक्षर भर कर दिये। अर्थात् देनेका आश्वासन भर दिया। किसीने एक रुपया, किसीने दो रुपया देनेका वादा भर किया। अन्ततः चौदह-पन्द्रह रुपयाकी जरूरत वहाँपर कुल मिलाकर दसेक रुपया देनेके वचनभर मिले। थी,
किंतु, यहाँतक रुपया हाथमें एक भी नहीं आया। इन दसेक रुपयोंका भी कोई पता नहीं था। ये रुपये सिर्फ खातेमें लिखे भर थे। एक महीना सिर्फ दरवाजे दरवाजे भटकना ही उनका सार रहा।

इसी दशामें वे एक दिन विद्यासागरके पास आये। विद्यासागरने उनकी पूरी कथा सुनी।

विद्यासागरने जिस क्षण यह सुना कि कई बाबू लोग उन्हें अंकोंमें रुपया लिखकर हस्ताक्षर कर देनेका आश्वासन देकर एक महीना घुमाते रहे, किंतु उनको नगद कुछ भी नहीं दिया, उसी क्षण उन्होंने उनकी कॉपीको लेकर नाराजगी और दुःखसे उसे फाड़कर फेंक दिया और उनसे कहा- तुम लोग जाकर पढ़ाई-लिखाई करो। प्रत्येक महीनेकी दूसरी अथवा तीसरी तारीखको चौदह रुपया और दो जोड़ा कपड़ा तुम्हारे डेरेपर पहुँचते रहेंगे।
जितने दिन वे लोग कलकत्तामें रहे, उतने दिनों उन्हें वह सब मिलता रहा। विद्यासागरने उनसे जो कुछ कहा था, हर महीने बिना किसी भूलके उनके पास सहायता पहुँचती रही।



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bhatake navayuvakonkee sanbhaala

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madraasase do bhale gharonke lada़ke ghar chhoda़kar bambaee chale jaate hain. kyon? eesaaee ban jaayange. bambaeese mishanaree log unhen kalakatta le aate hain aur kalakatta aate hee pata naheen, kaun jaane, unaka man badal gayaa. naheen, eesaaee naheen honge.
eesaaee banenge- is vajahase mishanariyonkee orase unhen kuchha-na-kuchh rupayaa-paisa milata rahata thaa. phir vah band ho gayaa.
sahasa, ve ghar laut jaayen, ab isaka bhee koee upaay naheen raha thaa. eesaaee honge-yah kahakar gharase nikale the, ab ghar jaakar kya munh dikhaayenge.
unake paas paisaa-kauda़ee kuchh bhee naheen rahaa. nirupaay hokar unhonne bheekh maanganee shuroo kar dee. kaee bada़e-bada़e baaboo logonko jaakar unhonne pakada़aa.
nagad unhen kuchh bhee naheen milaa. kaॉpeepar baaboo logonne hastaakshar bhar kar diye. arthaat deneka aashvaasan bhar diyaa. kiseene ek rupaya, kiseene do rupaya deneka vaada bhar kiyaa. antatah chaudaha-pandrah rupayaakee jaroorat vahaanpar kul milaakar dasek rupaya deneke vachanabhar mile. thee,
kintu, yahaantak rupaya haathamen ek bhee naheen aayaa. in dasek rupayonka bhee koee pata naheen thaa. ye rupaye sirph khaatemen likhe bhar the. ek maheena sirph daravaaje daravaaje bhatakana hee unaka saar rahaa.

isee dashaamen ve ek din vidyaasaagarake paas aaye. vidyaasaagarane unakee pooree katha sunee.

vidyaasaagarane jis kshan yah suna ki kaee baaboo log unhen ankonmen rupaya likhakar hastaakshar kar deneka aashvaasan dekar ek maheena ghumaate rahe, kintu unako nagad kuchh bhee naheen diya, usee kshan unhonne unakee kaॉpeeko lekar naaraajagee aur duhkhase use phaada़kar phenk diya aur unase kahaa- tum log jaakar padha़aaee-likhaaee karo. pratyek maheenekee doosaree athava teesaree taareekhako chaudah rupaya aur do joda़a kapada़a tumhaare derepar pahunchate rahenge.
jitane din ve log kalakattaamen rahe, utane dinon unhen vah sab milata rahaa. vidyaasaagarane unase jo kuchh kaha tha, har maheene bina kisee bhoolake unake paas sahaayata pahunchatee rahee.

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