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मन्दिरके धनका दुरुपयोग करनेका दुष्परिणाम  [हिन्दी कथा]
शिक्षदायक कहानी - Hindi Story (हिन्दी कथा)

मन्दिरके धनका दुरुपयोग करनेका दुष्परिणाम

श्रीकुलदानन्द ब्रह्मचारीने श्रीसद्गुरुसंग नामक ग्रन्थमें महात्मा विजयकृष्ण गोस्वामीके निम्नलिखित वृत्तान्तको : उद्धृत किया है-'एक दिन कालीदहके पास यमुनाके किनारे पहुँचते ही एक प्रेत मेरे सामने आकर छटपटाने लगा। मैंने पूछा- 'यों किसलिये कर रहे हैं ?' उसने कहा- 'प्रभु ! बचाइये, बचाइये, अब यह क्लेश मुझसे सहा नहीं जाता। सैकड़ों-हजारों बिच्छू मुझे सदा काटते रहते हैं। यन्त्रणासे छटपटाता हुआ मैं दिन-रात दौड़ा करता हूँ। एक घड़ीके लिये भी मुझे शान्ति नहीं मिलती। आप मेरी रक्षा कीजिये।' मैंने उससे पूछा 'यह आपके किस पापका दण्ड है?' प्रेतने चिल्लाकर रोते हुए कहा- 'प्रभु ! यहाँ मैं एक मन्दिरका पुजारी था। भगवान्‌की सेवाके लिये मुझे जो कुछ धनादि मिलता, उसे सेवामें न लगाकर मैं भोग-विलासमें नष्ट कर देता और दुराचारमें प्रवृत्त रहता था। यही मेरा सबसे बड़ा अपराध है।' मैंने उससे पूछा- 'आपके इस भोगकी शान्ति कैसे हो सकती है ?' उसने कहा- मेरा आद्ध नहीं हुआ। बाद्ध होते ही मेरा यह क्लेश मिट आयगा । आप दया करके मेरे श्राद्धकी व्यवस्था करा दें। मैंने फिर पूछा- किस प्रकार व्यवस्था करें?" उसने कहा- 'अपने श्राद्धके लिये मैंने डेढ़ हजार रुपये अपने भतीजे को सौंपे थे, परंतु उसने अबतक मेरा बाढ नहीं किया। आप दया करके उसके पाससे वे रुपये मँगवा लें। उनमें से कुछ भगवान्‌की सेवामें लगा दें और शेष मेरे कल्याणके लिये श्राद्ध करवा दें।'
मैंने उस मन्दिरके पुजारीके पास जाकर उससे सारी बातें कहीं। फिर उस मृत पुजारीके भतीजेको सब बातें विस्तारपूर्वक बतलायी गयीं। पहले उसने यही सोच रखा था कि इन रुपयोंका किसीको पता नहीं है, कौन पूछेगा। जो कुछ हो, अन्तमें उसने रुपये दे दिये और विधिपूर्वक श्राद्ध-महोत्सव हो गया। इस व्यवस्थासे प्रेतको यन्त्रणा मिट गयी।'



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mandirake dhanaka durupayog karaneka dushparinaama

mandirake dhanaka durupayog karaneka dushparinaama

shreekuladaanand brahmachaareene shreesadgurusang naamak granthamen mahaatma vijayakrishn gosvaameeke nimnalikhit vrittaantako : uddhrit kiya hai-'ek din kaaleedahake paas yamunaake kinaare pahunchate hee ek pret mere saamane aakar chhatapataane lagaa. mainne poochhaa- 'yon kisaliye kar rahe hain ?' usane kahaa- 'prabhu ! bachaaiye, bachaaiye, ab yah klesh mujhase saha naheen jaataa. saikada़on-hajaaron bichchhoo mujhe sada kaatate rahate hain. yantranaase chhatapataata hua main dina-raat dauda़a karata hoon. ek ghada़eeke liye bhee mujhe shaanti naheen milatee. aap meree raksha keejiye.' mainne usase poochha 'yah aapake kis paapaka dand hai?' pretane chillaakar rote hue kahaa- 'prabhu ! yahaan main ek mandiraka pujaaree thaa. bhagavaan‌kee sevaake liye mujhe jo kuchh dhanaadi milata, use sevaamen n lagaakar main bhoga-vilaasamen nasht kar deta aur duraachaaramen pravritt rahata thaa. yahee mera sabase bada़a aparaadh hai.' mainne usase poochhaa- 'aapake is bhogakee shaanti kaise ho sakatee hai ?' usane kahaa- mera aaddh naheen huaa. baaddh hote hee mera yah klesh mit aayaga . aap daya karake mere shraaddhakee vyavastha kara den. mainne phir poochhaa- kis prakaar vyavastha karen?" usane kahaa- 'apane shraaddhake liye mainne dedha़ hajaar rupaye apane bhateeje ko saunpe the, parantu usane abatak mera baadh naheen kiyaa. aap daya karake usake paasase ve rupaye mangava len. unamen se kuchh bhagavaan‌kee sevaamen laga den aur shesh mere kalyaanake liye shraaddh karava den.'
mainne us mandirake pujaareeke paas jaakar usase saaree baaten kaheen. phir us mrit pujaareeke bhateejeko sab baaten vistaarapoorvak batalaayee gayeen. pahale usane yahee soch rakha tha ki in rupayonka kiseeko pata naheen hai, kaun poochhegaa. jo kuchh ho, antamen usane rupaye de diye aur vidhipoorvak shraaddha-mahotsav ho gayaa. is vyavasthaase pretako yantrana mit gayee.'

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