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स्वामिभक्ति  [Spiritual Story]
प्रेरक कहानी - आध्यात्मिक कहानी (Spiritual Story)

मारवाड़-जोधपुरके अधिपति जसवंतसिंहके। स्वर्गवासके बाद दिल्लीनरेश औरंगजेबने महारानीके पुत्र अजीतसिंहका उत्तराधिकार अस्वीकार कर दिया। उसने जसवंतसिंहके दीवान आशकरणके वीर पुत्र दुर्गादासको आठ हजार स्वर्ण मुद्राओंका उत्कोच प्रदानकर अल्पवयस्क राजकुमार और उसकी माताकी रक्षासे विमुख करना चाहा, पर दुर्गादास वशमें न आ सके। औरंगजेबने अपने राजमहलमें ही अजीतसिंहके पालन-पोषणका आश्वासन दिया, पर राजपूतोंने उसका विश्वास नहीं किया। दुर्गादासने राजकुमारकी प्राण-रक्षा की और जबतक वह राजकार्य सँभालनेके योग्य नहीं हो सका, तबतक उसको इधर-उधर छिपाते रहे। दुर्गादासकी स्वामिभक्ति तथा वीरतासे अजीतसिंहने मारवाड़का आधिपत्य प्राप्त किया।

'आपने बचपनमें मेरी बड़ी ताड़ना की है। आपने मेरा अभिभावक बनकर मुझे जितना दुःख दिया, उसे सोचनेपर मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। क्या आप जानते नहीं थे कि मैं एक दिन मारवाड़के राजसिंहासनपर बैदूंगा? कठोर बर्ताव के लिये मैं आपको कड़े-से-कड़ा दण्ड प्रदान करता हूँ।' अजीतसिंहके इस कथन से समस्त राजसभा विस्मित थी। वृद्ध दुर्गादासके चेहरेपर | तनिक भी शिकन नहीं थी। उनका मौन प्रकट कर रहा। था कि वे स्वामीकी आज्ञासे प्रसन्न हैं। "आप एक मिट्टीका टूटा-फूटा करवा लेकर जोधपुरकी गलियोंमें भिक्षाटन कीजिये। इतना दण्ड पर्याप्त है।' अजीतसिंहका आदेश था। दुर्गादासने अपने नरेशका अभिवादन किया औरराजदण्डको कार्यरूप प्रदान करनेके लिये राजसभासे बाहर निकल गये।

एक दिन महाराजा अजीतसिंह घोड़ेकी पीठपर सवार होकर राजप्रासादकी ही ओर जा रहे थे। उनके साथ अनेक सेवक थे। वे राजसी ठाटमें थे। महाराजने सहसा घोड़ेकी रास रोक ली राजपथपर। दुर्गादास एक धनीके मकानके सामने खड़े थे। हाथमें वही फूटा मिट्टीका करवा था, तनपर फटे वस्त्र थे, चेहरेपर झुर्रियाँ थीं, पर आँखमें विचित्र तेज था l

'आप प्रसन्न तो हैं ?' महाराजाका प्रश्न था 'मेरी प्रसन्नताकी भी कोई सीमा है क्या ? आपकी राजधानीमें सब-के-सब समृद्ध हैं, सोने-चाँदीके पात्रमें भोजन करते हैं। अच्छे-अच्छे कपड़े पहनते हैं। केवल मैं बिना घरका हूँ; कभी भोजन मिलता है, कभी फाँका करना पड़ता है। केवल करवा ही मेरी एकमात्र सम्पत्ति है। यदि मैंने आपको कड़ाईसे न रखा होता, आपमें अनेक शिथिलताएँ आने देता, तो मैं भी आज इन्हीं लोगोंकी तरह सुखी रहता और ये लोग एक अन्यायी शासकके राज्यमें दरिद्र हो जाते।' दुर्गादासने अजीतसिंहको प्रेमभरी दृष्टिसे देखा। वे प्रसन्न थे

महाराजा घोड़ेपरसे कूद पड़े। उन्होंने दुर्गादासका आलिङ्गन किया। आँखोंसे सावन-भादों बरस रहे थे दोनोंकी।

'मैं आपकी स्वामिभक्तिकी परीक्षा ले रहा था, इसीलिये दण्डका स्वाँग किया था। आप तो मेरे पिताके समान हैं।' महाराजाने अपने अभिभावकके साथ पैदल चलकर राजप्रासादमें प्रवेश किया। रा0 श्री0



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svaamibhakti

maaravaada़-jodhapurake adhipati jasavantasinhake. svargavaasake baad dilleenaresh aurangajebane mahaaraaneeke putr ajeetasinhaka uttaraadhikaar asveekaar kar diyaa. usane jasavantasinhake deevaan aashakaranake veer putr durgaadaasako aath hajaar svarn mudraaonka utkoch pradaanakar alpavayask raajakumaar aur usakee maataakee rakshaase vimukh karana chaaha, par durgaadaas vashamen n a sake. aurangajebane apane raajamahalamen hee ajeetasinhake paalana-poshanaka aashvaasan diya, par raajapootonne usaka vishvaas naheen kiyaa. durgaadaasane raajakumaarakee praana-raksha kee aur jabatak vah raajakaary sanbhaalaneke yogy naheen ho saka, tabatak usako idhara-udhar chhipaate rahe. durgaadaasakee svaamibhakti tatha veerataase ajeetasinhane maaravaada़ka aadhipaty praapt kiyaa.

'aapane bachapanamen meree bada़ee taada़na kee hai. aapane mera abhibhaavak banakar mujhe jitana duhkh diya, use sochanepar mere rongate khada़e ho jaate hain. kya aap jaanate naheen the ki main ek din maaravaada़ke raajasinhaasanapar baidoongaa? kathor bartaav ke liye main aapako kada़e-se-kada़a dand pradaan karata hoon.' ajeetasinhake is kathan se samast raajasabha vismit thee. vriddh durgaadaasake cheharepar | tanik bhee shikan naheen thee. unaka maun prakat kar rahaa. tha ki ve svaameekee aajnaase prasann hain. "aap ek mitteeka tootaa-phoota karava lekar jodhapurakee galiyonmen bhikshaatan keejiye. itana dand paryaapt hai.' ajeetasinhaka aadesh thaa. durgaadaasane apane nareshaka abhivaadan kiya auraraajadandako kaaryaroop pradaan karaneke liye raajasabhaase baahar nikal gaye.

ek din mahaaraaja ajeetasinh ghoda़ekee peethapar savaar hokar raajapraasaadakee hee or ja rahe the. unake saath anek sevak the. ve raajasee thaatamen the. mahaaraajane sahasa ghoda़ekee raas rok lee raajapathapara. durgaadaas ek dhaneeke makaanake saamane khada़e the. haathamen vahee phoota mitteeka karava tha, tanapar phate vastr the, cheharepar jhurriyaan theen, par aankhamen vichitr tej tha l

'aap prasann to hain ?' mahaaraajaaka prashn tha 'meree prasannataakee bhee koee seema hai kya ? aapakee raajadhaaneemen saba-ke-sab samriddh hain, sone-chaandeeke paatramen bhojan karate hain. achchhe-achchhe kapada़e pahanate hain. keval main bina gharaka hoon; kabhee bhojan milata hai, kabhee phaanka karana pada़ta hai. keval karava hee meree ekamaatr sampatti hai. yadi mainne aapako kada़aaeese n rakha hota, aapamen anek shithilataaen aane deta, to main bhee aaj inheen logonkee tarah sukhee rahata aur ye log ek anyaayee shaasakake raajyamen daridr ho jaate.' durgaadaasane ajeetasinhako premabharee drishtise dekhaa. ve prasann the

mahaaraaja ghoda़eparase kood pada़e. unhonne durgaadaasaka aalingan kiyaa. aankhonse saavana-bhaadon baras rahe the dononkee.

'main aapakee svaamibhaktikee pareeksha le raha tha, iseeliye dandaka svaang kiya thaa. aap to mere pitaake samaan hain.' mahaaraajaane apane abhibhaavakake saath paidal chalakar raajapraasaadamen pravesh kiyaa. raa0 shree0

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