⮪ All Stories / कथा / कहानियाँ

अटल मृत्युसे भय कैसा !!  [प्रेरक कथा]
प्रेरक कथा - प्रेरक कथा (Short Story)

अटल मृत्युसे भय कैसा !!

एक छोटा-सा गाँव था। उसमें एक ब्राह्मण कुटुम्ब रहता था। ब्राह्मण अत्यन्त दरिद्र था। दिनभर भीख माँगते रहनेपर भी उसके कुटुम्बका भरण-पोषण अच्छी तरह नहीं हो पाता था। पूरे कुटुम्बने पेट भरकर खाया हो, ऐसा दिन बिरला ही होता।
एक दिन खूब सवेरे ब्राह्मण जग गया। वह बिछौनेसे उठनेका विचार कर ही रहा था कि उसने देखा कि छप्परके जालेमें कुछ रेंग रहा है। उसने नजर गड़ाकर देखा तो उस जालेमेंसे एक सर्प निकलता और दीवालसे नीचे उतरता दिखायी दिया। साँपने नीचे उतरकर ब्राह्मणकी पत्नीको डँसा और फिर उसके तीनों लड़कोंको भी डँस लिया। डँसकर वह घरसे बाहर निकलकर जाने लगा।
ब्राह्मणने विचार किया कि जालेमें तो सर्प था ही नहीं, फिर यह सर्प कहाँसे आया ? फिर, सर्पने बिना ही दबे दबाये एक ही साथ चार सोये हुए मनुष्योंको कैसे डँस लिया! अतएव यह कोई साधारण सर्प नहीं है, इसलिये इसका पता लगाना चाहिये। यह विचारकर वह स्वयं सर्पके पीछे-पीछे चल पड़ा।
सर्प दरवाजेके नीचेसे निकलकर बाहर चला गया और ब्राह्मण भी दरवाजा खोलकर उसके साथ हो लिया। देखते-ही-देखते वह साँप एक भयंकर साँड़के रूपमें बदल गया और सामनेसे आते हुए एक मनुष्यको सींगसे मारकर समाप्त कर दिया। यों उस मनुष्यको मारकर साँड़ने अपना रूप बदला और वह एक बिच्छू बन गया। इस रूपमें उसने गलीमें खेलते हुए एक बच्चेको काटकर उसके प्राण ले लिये।
इस कामको पूरा करके बिच्छूने अब एक मेढ़ेका रूप धारण किया और सींग मारकर एक बालकका वध कर डाला। फिर वह मेढ़ा जंगलकी ओर दौड़ा और एक बावलीके पास पहुँचते ही सुन्दर युवती बनकर बावलीके
किनारे बैठ गया ।
रास्तेसे दो सगे भाई जा रहे थे। वे पुलिसमें नौकरी करते थे और घरके कामके लिये छुट्टी लेकर अपने घर जा रहे थे। दोनोंकी दृष्टि उस युवतीपर पड़ी और दोनोंके ही मनोंमें उसे प्राप्त करनेकी इच्छा जाग उठी। बड़े भाईने कहा कि वह मेरी है और छोटेने कहा-मेरी। वे ज्यों-ज्यों उस स्त्रीके समीप पहुँचते गये, त्यों-ही-त्यों उनकी कामना अधिक-से-अधिक बढ़ने लगी। कामनाका परस्पर अवरोध होनेसे उन्हें क्रोधावेश हो आया। विवेक छोड़कर वे आपसमें तू-ताँ करने लगे और परस्पर गालियाँ बकने लगे। परिणाम यह हुआ कि दोनोंने तलवार खींच ली और लड़ते-लड़ते दोनों भाई मौतके घाट उतर गये।
इस कार्यको पूरा करके वह स्त्री वहाँसे उठी और जमीनपर सो गयी तथा लोटने लगी। देखते-ही-देखते स्त्री अदृश्य हो गयी और उसकी जगह एक बड़ा साँप दिखायी दिया। सर्प बड़े वेगसे नदीकी तरफ चला । नदीके पास पहुँचकर वह जलमें उतर गया। नदीके बीचमें एक नाव जा रही थी, साँप उसके पास पहुँचकर उसपर चढ़ने लगा। सर्पको देखते ही नावके मुसाफिर भयके मारे इधर-उधर दौड़ने लगे, नावका वजन एक तरफ बढ़ गया और वह नदीमें उलट गयी। सब मुसाफिर डूबकर मर गये।
इस कामको पूरा करके सर्प वापस लौटा और जमीनपर आकर एक पण्डितजीके रूपमें बदल गया। वे सफेद दूध से वस्त्र पहने हुए, गलेमें दुपट्टा डाले और सिरपर बड़ी पगड़ी पहने थे। उन्होंने पगड़ीमें एक सुन्दर पंचांग खोंसा था।
इस स्वरूपको देखते ही ब्राह्मणने उसके चरणोंपर गिरकर उसके चरण पकड़ लिये। पण्डितने उसका हाथ पकड़कर उठाया। तब ब्राह्मणने उससे पूछा आप कौन हैं और यह क्या लीला कर रहे हैं, कृपा करके मुझे बताइये।' पण्डितजीने कहा—'इतने समयसे तुम मेरे पीछे-पीछे चले आ रहे हो और मैंने जो कुछ किया, सब तुमने अपनी आँखों देखा है, फिर भी तुमने मुझको पहचाना नहीं ?' ब्राह्मणने सिर हिलाकर अपनी असमर्थता बतायी और सब समझाकर बतानेके लिये पुनः पण्डितजीसे प्रार्थना की। तब पण्डितजीने कहा
'देखो, मैं काल हूँ, प्राणियोंके स्थूल शरीरोंका नाश करनेका काम ईश्वरने मुझको सौंपा है, परंतु मैं स्वयं कुछ भी नहीं करता। जब किसी भी प्राणीका प्रारब्धभोग समाप्त होता है, तब उसकी मृत्युके लिये निमित्त उपस्थित कर देना- इतना ही मेरा काम है। मनुष्य तो निमित्तको ही दोष देता है, पर वास्तवमें ऐसी बात नहीं है। मृत्यु तो प्रारब्ध क्षय होनेपर ही होती है। पर सच्ची समझ न होनेसे मनुष्य कहता है कि 'अमुक साँप काटनेसे मर गया, अमुक साँड़के सींग मारनेसे मर गया, अमुक बिच्छू काटने से मर गया।' आदि-आदि। मृत्युके समयसे एक श्वास भी पहले किसीको कोई नहीं मार सकता। इसी प्रकार जीवनकालसे अधिक एक श्वास आनेके समयभर भी कोई किसीको जिला नहीं सकता।'
यह सुनकर ब्राह्मण बहुत प्रसन्न हुआ और उसने कालभगवान्से कहा—'आपके दर्शन हुए हैं, अतएव कृपा करके बतलाइये, मेरी मृत्यु कब और किस निमित्तसे होगी ?'
कालभगवान्ने कहा—'मृत्युका समय बतलानेका मुझे अधिकार नहीं है, परंतु इतना बतला देता हूँ कि तुम्हारी मृत्यु मगरके निमित्तसे होगी। अब यहाँसे तुम उत्तरकी ओर जाओ, वहाँ तुम्हारा भाग्य खुलेगा।' इतना कहकर कालभगवान् वहीं अन्तर्धान हो गये।
वह कालभगवान्के कथनानुसार उत्तर दिशाकी ओर चल दिया। चलते-चलते एक राजधानीका शहर आया। उसने उसमें प्रवेश किया। वहाँके राजाको सन्तान न होनेसे, कोई भी नया ब्राह्मण या ज्योतिषी शहरमें आता तो राजा उसे अपने पास बुलाते और उसका सम्मान करके सन्तान प्राप्तिके लिये प्रार्थना करते।
राजाने इस ब्राह्मणको भी बुलाया। इसने तुरंत ही आशीर्वाद दे दिया कि 'आजसे बारह मासके अन्दर उनको अवश्य पुत्र होगा।' ऐसे दृढ़तायुक्त वचन सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने रहनेके लिये उनके योग्य सब व्यवस्था करवा दी।
दैवको करना था, यथासमय राजाको पुत्र हो गया। इसमें ब्राह्मणका मान बहुत ही बढ़ गया। राजाने उसको कुलपुरोहितके रूपमें सदाके लिये रख लिया और ब्राह्मण वहाँ सुखपूर्वक अपना जीवन बिताने लगा।
समय बीतनेपर राजकुमार बड़ा हुआ और उसके अध्ययनका काम भी कुलपुरोहितको ही सौंपा गया, इसलिये सदा साथ रहनेके कारण दोनोंमें प्रगाढ़ प्रेम हो गया। कुमार जब बारह वर्षका हुआ, तब उसका यज्ञोपवीत-संस्कार कराना निश्चय हुआ।
मेरी मृत्यु मगरके निमित्तसे होगी, इस बातको ब्राह्मण जानता था, इसलिये उसने नियम बना रखा था कि नदी, तालाब या कुएँ आदिपर किसी भी कारणसे न तो जाना और न वहाँ स्नान करना।
गायत्री मन्त्र देते समय गुरु-शिष्य दोनोंको नदीमें खड़े रहना चाहिये, अतः ब्राह्मणने कहा कि 'मुझसे यह नहीं होगा। मन्त्र दूसरे पण्डित दे देंगे।' परंतु राजकुमारने हठ पकड़ लिया 'मैं तो आपसे ही मन्त्र लूँगा, नहीं तो यज्ञोपवीत ही नहीं लूंगा।'
राजाने पुरोहितको एकान्तमें बुलाकर पूछा और कहा कि राजकुमारको मन्त्र देनेमें जितनी देर लगे, उतनी सी देर नदीमें खड़े रहनेमें क्या हानि है ? राजकुमार बालक है, हठी है और आपका उसके प्रति बड़ा स्नेह । राजाने जब बहुत आग्रह किया, तब ब्राह्मणने स्पष्ट बतला दिया कि 'मेरी मृत्यु मगरसे होनेवाली है, इसलिये मैं किसी दिन भी जलमें नहींउतरता, इसके सिवा अन्य कोई कारण नहीं है!'
राजाने कहा- 'अरे महाराज ! इस घुटनेभर जलमें मगर कहाँसे आयेगा, तथापि आपके सन्तोषके लिये मैं आपके चारों तरफ नंगी तलवारोंका पहरा लगा दूँगा, इतना ही नहीं, एक सिपाही दूसरे सिपाहीसे अड़कर खड़ा रहेगा। ऐसी व्यवस्था कर दूँगा कि मगर तो क्या, एक छोटी-सी मछली भी नहीं आ सकेगी।'
अन्तमें ब्राह्मणने स्वीकार कर लिया और वह राजकुमारके साथ नदीमें उतर गया। चारों ओर पूरा पहरा था। एक मेढकको भी आनेका अवकाश नहीं था । ब्राह्मणने विधिवत् मन्त्रोपदेश किया। इतनेमें ही, वह राजकुमार मगरके रूपमें बदल गया और घुटनेभर पानीवाली नदीमें वहाँ एक बड़ा गड्ढा हो गया और ब्राह्मणको पकड़कर वह मगर उस गड्ढेमें चला गया।
यों चाहे जितनी सावधानी रखी जाय; परंतु आयु पूरी होनेपर मरना ही पड़ता है। हिरण्यकशिपुने मृत्यु न हो, इसके लिये कितनी सावधानी रखी थी और कैसे कैसे वरदान प्राप्त किये थे। दस सिरवाले रावणने भी मनुष्यके सिवा अन्य किसीके हाथसे मेरी मृत्यु न हो, यह वरदान प्राप्त किया था; क्योंकि उसे निश्चय था कि कोई भी मनुष्य तो मुझे मार ही नहीं सकता। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं। पर सभीको समय आनेपर मौतके मुँहमें जाना ही पड़ा। कोई भी देहधारी कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, वह सदा नहीं जी सकता; क्योंकि देहकी मृत्युका निर्णय तो उसके जन्मके साथ ही हो चुका होता है, अतएव आयुकी मर्यादा पूरी होते ही प्राणीको शरीर छोड़ना ही पड़ता है।
इसलिये समझदार मनुष्यको न तो अपनी मृत्युसे डरना चाहिये और न किसी भी देहधारीकी मृत्यु होनेपर शोक ही करना चाहिये ।



You may also like these:

शिक्षदायक कहानी श्रीरामका न्याय
प्रेरक कहानी लालचका फल
बोध कथा रँगी लोमड़ी
हिन्दी कथा मायामय संसार
हिन्दी कहानी बलिप्रथा अधर्म है
आध्यात्मिक कहानी नम्र बनो, कठोर नहीं !
आध्यात्मिक कथा दसवें तुम्हीं हो!
प्रेरक कथा जीविकाका दान


atal mrityuse bhay kaisa !!

atal mrityuse bhay kaisa !!

ek chhotaa-sa gaanv thaa. usamen ek braahman kutumb rahata thaa. braahman atyant daridr thaa. dinabhar bheekh maangate rahanepar bhee usake kutumbaka bharana-poshan achchhee tarah naheen ho paata thaa. poore kutumbane pet bharakar khaaya ho, aisa din birala hee hotaa.
ek din khoob savere braahman jag gayaa. vah bichhaunese uthaneka vichaar kar hee raha tha ki usane dekha ki chhapparake jaalemen kuchh reng raha hai. usane najar gada़aakar dekha to us jaalemense ek sarp nikalata aur deevaalase neeche utarata dikhaayee diyaa. saanpane neeche utarakar braahmanakee patneeko dansa aur phir usake teenon lada़konko bhee dans liyaa. dansakar vah gharase baahar nikalakar jaane lagaa.
braahmanane vichaar kiya ki jaalemen to sarp tha hee naheen, phir yah sarp kahaanse aaya ? phir, sarpane bina hee dabe dabaaye ek hee saath chaar soye hue manushyonko kaise dans liyaa! ataev yah koee saadhaaran sarp naheen hai, isaliye isaka pata lagaana chaahiye. yah vichaarakar vah svayan sarpake peechhe-peechhe chal pada़aa.
sarp daravaajeke neechese nikalakar baahar chala gaya aur braahman bhee daravaaja kholakar usake saath ho liyaa. dekhate-hee-dekhate vah saanp ek bhayankar saanda़ke roopamen badal gaya aur saamanese aate hue ek manushyako seengase maarakar samaapt kar diyaa. yon us manushyako maarakar saanda़ne apana roop badala aur vah ek bichchhoo ban gayaa. is roopamen usane galeemen khelate hue ek bachcheko kaatakar usake praan le liye.
is kaamako poora karake bichchhoone ab ek medha़eka roop dhaaran kiya aur seeng maarakar ek baalakaka vadh kar daalaa. phir vah medha़a jangalakee or dauda़a aur ek baavaleeke paas pahunchate hee sundar yuvatee banakar baavaleeke
kinaare baith gaya .
raastese do sage bhaaee ja rahe the. ve pulisamen naukaree karate the aur gharake kaamake liye chhuttee lekar apane ghar ja rahe the. dononkee drishti us yuvateepar pada़ee aur dononke hee manonmen use praapt karanekee ichchha jaag uthee. bada़e bhaaeene kaha ki vah meree hai aur chhotene kahaa-meree. ve jyon-jyon us streeke sameep pahunchate gaye, tyon-hee-tyon unakee kaamana adhika-se-adhik badha़ne lagee. kaamanaaka paraspar avarodh honese unhen krodhaavesh ho aayaa. vivek chhoda़kar ve aapasamen too-taan karane lage aur paraspar gaaliyaan bakane lage. parinaam yah hua ki dononne talavaar kheench lee aur lada़te-lada़te donon bhaaee mautake ghaat utar gaye.
is kaaryako poora karake vah stree vahaanse uthee aur jameenapar so gayee tatha lotane lagee. dekhate-hee-dekhate stree adrishy ho gayee aur usakee jagah ek bada़a saanp dikhaayee diyaa. sarp bada़e vegase nadeekee taraph chala . nadeeke paas pahunchakar vah jalamen utar gayaa. nadeeke beechamen ek naav ja rahee thee, saanp usake paas pahunchakar usapar chadha़ne lagaa. sarpako dekhate hee naavake musaaphir bhayake maare idhara-udhar dauda़ne lage, naavaka vajan ek taraph badha़ gaya aur vah nadeemen ulat gayee. sab musaaphir doobakar mar gaye.
is kaamako poora karake sarp vaapas lauta aur jameenapar aakar ek panditajeeke roopamen badal gayaa. ve saphed doodh se vastr pahane hue, galemen dupatta daale aur sirapar bada़ee pagada़ee pahane the. unhonne pagada़eemen ek sundar panchaang khonsa thaa.
is svaroopako dekhate hee braahmanane usake charanonpar girakar usake charan pakada़ liye. panditane usaka haath pakada़kar uthaayaa. tab braahmanane usase poochha aap kaun hain aur yah kya leela kar rahe hain, kripa karake mujhe bataaiye.' panditajeene kahaa—'itane samayase tum mere peechhe-peechhe chale a rahe ho aur mainne jo kuchh kiya, sab tumane apanee aankhon dekha hai, phir bhee tumane mujhako pahachaana naheen ?' braahmanane sir hilaakar apanee asamarthata bataayee aur sab samajhaakar bataaneke liye punah panditajeese praarthana kee. tab panditajeene kahaa
'dekho, main kaal hoon, praaniyonke sthool shareeronka naash karaneka kaam eeshvarane mujhako saunpa hai, parantu main svayan kuchh bhee naheen karataa. jab kisee bhee praaneeka praarabdhabhog samaapt hota hai, tab usakee mrityuke liye nimitt upasthit kar denaa- itana hee mera kaam hai. manushy to nimittako hee dosh deta hai, par vaastavamen aisee baat naheen hai. mrityu to praarabdh kshay honepar hee hotee hai. par sachchee samajh n honese manushy kahata hai ki 'amuk saanp kaatanese mar gaya, amuk saanda़ke seeng maaranese mar gaya, amuk bichchhoo kaatane se mar gayaa.' aadi-aadi. mrityuke samayase ek shvaas bhee pahale kiseeko koee naheen maar sakataa. isee prakaar jeevanakaalase adhik ek shvaas aaneke samayabhar bhee koee kiseeko jila naheen sakataa.'
yah sunakar braahman bahut prasann hua aur usane kaalabhagavaanse kahaa—'aapake darshan hue hain, ataev kripa karake batalaaiye, meree mrityu kab aur kis nimittase hogee ?'
kaalabhagavaanne kahaa—'mrityuka samay batalaaneka mujhe adhikaar naheen hai, parantu itana batala deta hoon ki tumhaaree mrityu magarake nimittase hogee. ab yahaanse tum uttarakee or jaao, vahaan tumhaara bhaagy khulegaa.' itana kahakar kaalabhagavaan vaheen antardhaan ho gaye.
vah kaalabhagavaanke kathanaanusaar uttar dishaakee or chal diyaa. chalate-chalate ek raajadhaaneeka shahar aayaa. usane usamen pravesh kiyaa. vahaanke raajaako santaan n honese, koee bhee naya braahman ya jyotishee shaharamen aata to raaja use apane paas bulaate aur usaka sammaan karake santaan praaptike liye praarthana karate.
raajaane is braahmanako bhee bulaayaa. isane turant hee aasheervaad de diya ki 'aajase baarah maasake andar unako avashy putr hogaa.' aise dridha़taayukt vachan sunakar raaja bahut prasann hue aur unhonne rahaneke liye unake yogy sab vyavastha karava dee.
daivako karana tha, yathaasamay raajaako putr ho gayaa. isamen braahmanaka maan bahut hee badha़ gayaa. raajaane usako kulapurohitake roopamen sadaake liye rakh liya aur braahman vahaan sukhapoorvak apana jeevan bitaane lagaa.
samay beetanepar raajakumaar bada़a hua aur usake adhyayanaka kaam bhee kulapurohitako hee saunpa gaya, isaliye sada saath rahaneke kaaran dononmen pragaadha़ prem ho gayaa. kumaar jab baarah varshaka hua, tab usaka yajnopaveeta-sanskaar karaana nishchay huaa.
meree mrityu magarake nimittase hogee, is baatako braahman jaanata tha, isaliye usane niyam bana rakha tha ki nadee, taalaab ya kuen aadipar kisee bhee kaaranase n to jaana aur n vahaan snaan karanaa.
gaayatree mantr dete samay guru-shishy dononko nadeemen khada़e rahana chaahiye, atah braahmanane kaha ki 'mujhase yah naheen hogaa. mantr doosare pandit de denge.' parantu raajakumaarane hath pakada़ liya 'main to aapase hee mantr loonga, naheen to yajnopaveet hee naheen loongaa.'
raajaane purohitako ekaantamen bulaakar poochha aur kaha ki raajakumaarako mantr denemen jitanee der lage, utanee see der nadeemen khada़e rahanemen kya haani hai ? raajakumaar baalak hai, hathee hai aur aapaka usake prati bada़a sneh . raajaane jab bahut aagrah kiya, tab braahmanane spasht batala diya ki 'meree mrityu magarase honevaalee hai, isaliye main kisee din bhee jalamen naheenutarata, isake siva any koee kaaran naheen hai!'
raajaane kahaa- 'are mahaaraaj ! is ghutanebhar jalamen magar kahaanse aayega, tathaapi aapake santoshake liye main aapake chaaron taraph nangee talavaaronka pahara laga doonga, itana hee naheen, ek sipaahee doosare sipaaheese ada़kar khada़a rahegaa. aisee vyavastha kar doonga ki magar to kya, ek chhotee-see machhalee bhee naheen a sakegee.'
antamen braahmanane sveekaar kar liya aur vah raajakumaarake saath nadeemen utar gayaa. chaaron or poora pahara thaa. ek medhakako bhee aaneka avakaash naheen tha . braahmanane vidhivat mantropadesh kiyaa. itanemen hee, vah raajakumaar magarake roopamen badal gaya aur ghutanebhar paaneevaalee nadeemen vahaan ek bada़a gaddha ho gaya aur braahmanako pakada़kar vah magar us gaddhemen chala gayaa.
yon chaahe jitanee saavadhaanee rakhee jaaya; parantu aayu pooree honepar marana hee pada़ta hai. hiranyakashipune mrityu n ho, isake liye kitanee saavadhaanee rakhee thee aur kaise kaise varadaan praapt kiye the. das siravaale raavanane bhee manushyake siva any kiseeke haathase meree mrityu n ho, yah varadaan praapt kiya thaa; kyonki use nishchay tha ki koee bhee manushy to mujhe maar hee naheen sakataa. aise bahut se udaaharan hain. par sabheeko samay aanepar mautake munhamen jaana hee pada़aa. koee bhee dehadhaaree kitana bhee shaktishaalee kyon n ho, vah sada naheen jee sakataa; kyonki dehakee mrityuka nirnay to usake janmake saath hee ho chuka hota hai, ataev aayukee maryaada pooree hote hee praaneeko shareer chhoda़na hee pada़ta hai.
isaliye samajhadaar manushyako n to apanee mrityuse darana chaahiye aur n kisee bhee dehadhaareekee mrityu honepar shok hee karana chaahiye .

69 Views





Bhajan Lyrics View All

हो मेरी लाडो का नाम श्री राधा
श्री राधा श्री राधा, श्री राधा श्री
वृंदावन में हुकुम चले बरसाने वाली का,
कान्हा भी दीवाना है श्री श्यामा
तेरे दर पे आके ज़िन्दगी मेरी
यह तो तेरी नज़र का कमाल है,
अपनी वाणी में अमृत घोल
अपनी वाणी में अमृत घोल
बृज के नंदलाला राधा के सांवरिया,
सभी दुःख दूर हुए, जब तेरा नाम लिया।
तू राधे राधे गा ,
तोहे मिल जाएं सांवरियामिल जाएं
श्री राधा हमारी गोरी गोरी, के नवल
यो तो कालो नहीं है मतवारो, जगत उज्य
तेरे दर की भीख से है,
मेरा आज तक गुज़ारा
मुझे रास आ गया है,
तेरे दर पे सर झुकाना
मन चल वृंदावन धाम, रटेंगे राधे राधे
मिलेंगे कुंज बिहारी, ओढ़ के कांबल काली
शिव समा रहे मुझमें
और मैं शून्य हो रहा हूँ
राधे तु कितनी प्यारी है ॥
तेरे संग में बांके बिहारी कृष्ण
सांवरियो है सेठ, म्हारी राधा जी सेठानी
यह तो जाने दुनिया सारी है
वृन्दावन के बांके बिहारी,
हमसे पर्दा करो ना मुरारी ।
मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री कैसो चटक
श्याम मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से
गोविन्द नाम लेकर, फिर प्राण तन से
अरे बदलो ले लूँगी दारी के,
होरी का तोहे बड़ा चाव...
मुँह फेर जिधर देखु मुझे तू ही नज़र आये
हम छोड़के दर तेरा अब और किधर जाये
नगरी हो अयोध्या सी,रघुकुल सा घराना हो
चरन हो राघव के,जहा मेरा ठिकाना हो
राधे राधे बोल, राधे राधे बोल,
बरसाने मे दोल, के मुख से राधे राधे बोल,
दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया ।
राम एक देवता, पुजारी सारी दुनिया ॥
मेरा अवगुण भरा रे शरीर,
हरी जी कैसे तारोगे, प्रभु जी कैसे
मीठी मीठी मेरे सांवरे की मुरली बाजे,
होकर श्याम की दीवानी राधा रानी नाचे
हरी नाम नहीं तो जीना क्या
अमृत है हरी नाम जगत में,
श्यामा तेरे चरणों की गर धूल जो मिल
सच कहता हूँ मेरी तकदीर बदल जाए॥
कहना कहना आन पड़ी मैं तेरे द्वार ।
मुझे चाकर समझ निहार ॥
दिल लूटके ले गया नी सहेलियो मेरा
मैं तक्दी रह गयी नी सहेलियो लगदा बड़ा
मुझे चढ़ गया राधा रंग रंग, मुझे चढ़ गया
श्री राधा नाम का रंग रंग, श्री राधा नाम
तीनो लोकन से न्यारी राधा रानी हमारी।
राधा रानी हमारी, राधा रानी हमारी॥
सुबह सवेरे  लेकर तेरा नाम प्रभु,
करते है हम शुरु आज का काम प्रभु,

New Bhajan Lyrics View All

सारे हिंदुस्तान को खुशहाल कर दिया,
मोदी और योगी ने कमल कर दिया...
मैया रानी के भवन में हम दीवाने हो गए,
हम दीवाने हो गए माँ हम दीवाने हो गए,
मैं राधे राधे गाके रहती हूँ मैं मस्ती
सब छोड़ के आई हूँ राधे तेरी बस्ती में...
बाबा मेरे बाबा,
भोले मेरे बाबा...
सुमिरत सुमिरत हारी मेरे बांके बिहारी,
बांके बिहारी मेरे रमण बिहारी,