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जीविकाका दान  [प्रेरक कथा]
Wisdom Story - Shikshaprad Kahani (Wisdom Story)

जीविकाका दान

चन्द्रनगरके राजा चन्द्रभान रोज सबेरै एक घण्टेक दान देते थे। रोजाना झुण्ड-के-झुण्ड भिखारी आते और दान ले जाते। एक दिन चन्द्रभानको अपने मित्र कान्तिनगरके राजा सूर्यसेनके यहाँ जाना पड़ा। चन्द्रभान कान्तिनगर पहुँचे तो उन्होंने ध्यान दिया कि वहाँ मार्गमें एक भी भिखारी नजर नहीं आया। खैर, वे मित्रके महलमें पहुँचे तो उनका भव्य स्वागत किया गया। दोनों मित्रोंमें इधर-उधरकी बातें हुई। बातों ही बातोंमें चन्द्रभानने पूछा- 'तुम अपनी प्रजाको कितना धन देते हो ?' सूर्यसेनने कहा- 'भला, मैं प्रजाको धन क्यों दूँगा? प्रजा ही मुझे धन देती है लगान और करके रूपमें।' चन्द्रभानने अचरजभरे स्वरमें कहा – 'फिर तुम्हारे राज्यमें एक भी भिखारी क्यों नहीं है? मैं तो रोज सुबह एक घण्टेतक रजत मुद्राएँ बाँटता हूँ। कई सालोंसे ऐसा कर रहा हूँ। फिर भी भिखारियों और गरीबोंकी संख्या में कोई कमी नहीं आ रही है।"
सूर्यसेनने कहा- 'गलती तुम्हारी ही है। तुम्हारा दान देनेका तरीका गलत है। तुमने मुफ्त में धन बाँटकर प्रजाजनोंकी आदत खराब कर दी है। अब उन्हें कमानेकी जरूरत महसूस नहीं होती। वे मुफ्तखोरीकी लतके शिकार हो गये हैं। कल सुबह तुम देखना कि मैं कैसे लोगोंकी मदद करता है, उन्हें सम्पन्न बनाता है।'
दूसरे दिन सबेरे ही राजा चन्द्रभान, सूर्यसेनके कक्षमें जा पहुँचे। बोले, 'बताओ। तुम कैसे प्रजाको आर्थिक मदद देकर उसे सम्पन्न करते हो ?' सूर्यसेन उन्हें बाहर ले गये। बाहर दस-बारह गरीब लोग खड़े थे। एक अधिकारी बैठा हुआ था, जो उनके नाम-पते दर्ज कर रहा था। वहीं एक ओर चरखे पड़े थे। सूर्यसेनने एक-एक करके सभीको अपने पास बुलाया। उनसे बातचीत करके किसीको उन्होंने चरखा दे दिया, किसीको तलवारोंपर धार करनेका काम दे दिया, किसीको घास काटनेका हँसुआ दे दिया। एक व्यक्तिको महलके पिछवाड़े उगे झाड़ झंखाड़ साफ करनेका काम सौंप दिया। एक हृष्ट पुष्ट जवान था, उसे सैनिक बना दिया। राजा चन्द्रभान उसी वक्त अपनी गलती समझ गये। उन्होंने सूर्यसेनसे बहुत अच्छी बात सीख ली, मुफ्तमें कुछ मत दो, बल्कि रोजी-रोटीका प्रबन्ध करो, यही राजाका कर्तव्य है। सबसे बड़ा दान भी यही है। अगले ही दिन अपने राज्यमें पहुँचकर राजा चन्द्रभानने अपने दान देनेकी शैली बदल दी। अब वे धनका नहीं, जीविकाका | दान देने लगे। प्रजाजनोंमें भी परिवर्तन आने लगा। राज्यमें भिखारियोंकी संख्या तेजीसे घटने लगी। अब चन्द्रभान भी खुश थे और उनकी प्रजा भी
श्रमका पैसा, दानके पैसेसे ज्यादा प्यारा होता है।
[ श्रीमती ऊषाजी अग्रवाल ]



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jeevikaaka daana

jeevikaaka daana

chandranagarake raaja chandrabhaan roj saberai ek ghantek daan dete the. rojaana jhunda-ke-jhund bhikhaaree aate aur daan le jaate. ek din chandrabhaanako apane mitr kaantinagarake raaja sooryasenake yahaan jaana pada़aa. chandrabhaan kaantinagar pahunche to unhonne dhyaan diya ki vahaan maargamen ek bhee bhikhaaree najar naheen aayaa. khair, ve mitrake mahalamen pahunche to unaka bhavy svaagat kiya gayaa. donon mitronmen idhara-udharakee baaten huee. baaton hee baatonmen chandrabhaanane poochhaa- 'tum apanee prajaako kitana dhan dete ho ?' sooryasenane kahaa- 'bhala, main prajaako dhan kyon doongaa? praja hee mujhe dhan detee hai lagaan aur karake roopamen.' chandrabhaanane acharajabhare svaramen kaha – 'phir tumhaare raajyamen ek bhee bhikhaaree kyon naheen hai? main to roj subah ek ghantetak rajat mudraaen baantata hoon. kaee saalonse aisa kar raha hoon. phir bhee bhikhaariyon aur gareebonkee sankhya men koee kamee naheen a rahee hai."
sooryasenane kahaa- 'galatee tumhaaree hee hai. tumhaara daan deneka tareeka galat hai. tumane mupht men dhan baantakar prajaajanonkee aadat kharaab kar dee hai. ab unhen kamaanekee jaroorat mahasoos naheen hotee. ve muphtakhoreekee latake shikaar ho gaye hain. kal subah tum dekhana ki main kaise logonkee madad karata hai, unhen sampann banaata hai.'
doosare din sabere hee raaja chandrabhaan, sooryasenake kakshamen ja pahunche. bole, 'bataao. tum kaise prajaako aarthik madad dekar use sampann karate ho ?' sooryasen unhen baahar le gaye. baahar dasa-baarah gareeb log khada़e the. ek adhikaaree baitha hua tha, jo unake naama-pate darj kar raha thaa. vaheen ek or charakhe pada़e the. sooryasenane eka-ek karake sabheeko apane paas bulaayaa. unase baatacheet karake kiseeko unhonne charakha de diya, kiseeko talavaaronpar dhaar karaneka kaam de diya, kiseeko ghaas kaataneka hansua de diyaa. ek vyaktiko mahalake pichhavaada़e uge jhaada़ jhankhaada़ saaph karaneka kaam saunp diyaa. ek hrisht pusht javaan tha, use sainik bana diyaa. raaja chandrabhaan usee vakt apanee galatee samajh gaye. unhonne sooryasenase bahut achchhee baat seekh lee, muphtamen kuchh mat do, balki rojee-roteeka prabandh karo, yahee raajaaka kartavy hai. sabase bada़a daan bhee yahee hai. agale hee din apane raajyamen pahunchakar raaja chandrabhaanane apane daan denekee shailee badal dee. ab ve dhanaka naheen, jeevikaaka | daan dene lage. prajaajanonmen bhee parivartan aane lagaa. raajyamen bhikhaariyonkee sankhya tejeese ghatane lagee. ab chandrabhaan bhee khush the aur unakee praja bhee
shramaka paisa, daanake paisese jyaada pyaara hota hai.
[ shreematee ooshaajee agravaal ]

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