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श्रीरामका न्याय  [शिक्षदायक कहानी]
आध्यात्मिक कथा - शिक्षदायक कहानी (Wisdom Story)

श्रीरामका न्याय

लंकाके निरंकुश शासक रावणको मारकर उसके धर्मनिष्ठ भाई विभीषणको राजपदपर अभिषिक्त करके महाराज श्रीराम अयोध्या लौट आये और न्यायपूर्वक प्रजापालन करने लगे। कुछ समय बाद विभीषणको श्रीरामसे मिलनेकी अभिलाषा हुई और वे तत्काल लंकासे चल पड़े और मार्गमें किंचित् विश्राम करनेकी इच्छासे द्रविड़ देशके एक आश्रममें पहुँचे। उन्होंने वहाँ एक वृद्ध साधुको देखा, जो गूँगे और बहरे थे। विभीषणने उन वृद्धसे कहा- 'मैं लंकाका राजा विभीषण हूँ। यहाँ कुछ देर विश्राम करना चाहता हूँ।'
वृद्ध तपस्वी एकटक देखते रहे, कुछ कह नहीं सके, तो 'प्रभुता पाइ काहि मद नाहीं' विभीषणको अहंकार हुआ कि मैं श्रीरामके द्वारा लंकाधिपति बनाया गया हूँ और यह मेरा सम्मान भी नहीं कर रहा है। इस बातसे वे क्रोधमें भर गये और उनके भयके कारण वृद्ध साधुकी मृत्यु हो गयी। साधुकी मृत्युमें अपनेको कारण मानकर विभीषण शोकाकुल हो उठे और इतनेमें अन्य साधु लोग भी उस आश्रममें आ गये। उन्होंने तपस्वीको मृत देखा तो विभीषणको अपराधी मानकर रस्सियोंसे बाँध करके गुफामें डाल दिया। उन्होंने विचार किया कि महाराज श्रीरामसे इसको दण्डित करवायेंगे। श्रीरामको सूचना दी गयी। श्रीराम आये, उन्होंने सारी स्थिति सुनी और देखो।
इधर शरणागत विभीषण और उधर निर्दोष तपस्वी। श्रीरामने कहा- 'भृत्यापराधे सर्वत्र स्वामिनो दण्ड इष्यते।' अर्थात् सेवकके अपराधकी जिम्मेदारी तो वास्तवमें स्वामीकी ही होती है। अतः आप विभीषणके अपराधका मुझे ही दण्ड दीजिये। मैंने ही इसे राजा बनाया था। सभी सन्त श्रीरामके निर्णयको सुनकर चकित हो एक-दूसरेकी ओर देखने लगे। बादमें उन्होंने कहा- 'हे राम! आप धन्य हैं। आपसे ऐसे उच्चकोटिके न्यायको सुनकर हम क्या कहें ?' इसके अनन्तर शास्त्रीय रीतिसे श्रीरामने विभीषणसे प्रायश्चित्त करवाया और फिर उन्हें बन्धनमुक्त किया गया। ऐसा था रामराज्यका आदर्श न्याय!
[ श्रीसियाशरणजी शास्त्री ]



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shreeraamaka nyaaya

shreeraamaka nyaaya

lankaake nirankush shaasak raavanako maarakar usake dharmanishth bhaaee vibheeshanako raajapadapar abhishikt karake mahaaraaj shreeraam ayodhya laut aaye aur nyaayapoorvak prajaapaalan karane lage. kuchh samay baad vibheeshanako shreeraamase milanekee abhilaasha huee aur ve tatkaal lankaase chal pada़e aur maargamen kinchit vishraam karanekee ichchhaase dravida़ deshake ek aashramamen pahunche. unhonne vahaan ek vriddh saadhuko dekha, jo goonge aur bahare the. vibheeshanane un vriddhase kahaa- 'main lankaaka raaja vibheeshan hoon. yahaan kuchh der vishraam karana chaahata hoon.'
vriddh tapasvee ekatak dekhate rahe, kuchh kah naheen sake, to 'prabhuta paai kaahi mad naaheen' vibheeshanako ahankaar hua ki main shreeraamake dvaara lankaadhipati banaaya gaya hoon aur yah mera sammaan bhee naheen kar raha hai. is baatase ve krodhamen bhar gaye aur unake bhayake kaaran vriddh saadhukee mrityu ho gayee. saadhukee mrityumen apaneko kaaran maanakar vibheeshan shokaakul ho uthe aur itanemen any saadhu log bhee us aashramamen a gaye. unhonne tapasveeko mrit dekha to vibheeshanako aparaadhee maanakar rassiyonse baandh karake guphaamen daal diyaa. unhonne vichaar kiya ki mahaaraaj shreeraamase isako dandit karavaayenge. shreeraamako soochana dee gayee. shreeraam aaye, unhonne saaree sthiti sunee aur dekho.
idhar sharanaagat vibheeshan aur udhar nirdosh tapasvee. shreeraamane kahaa- 'bhrityaaparaadhe sarvatr svaamino dand ishyate.' arthaat sevakake aparaadhakee jimmedaaree to vaastavamen svaameekee hee hotee hai. atah aap vibheeshanake aparaadhaka mujhe hee dand deejiye. mainne hee ise raaja banaaya thaa. sabhee sant shreeraamake nirnayako sunakar chakit ho eka-doosarekee or dekhane lage. baadamen unhonne kahaa- 'he raama! aap dhany hain. aapase aise uchchakotike nyaayako sunakar ham kya kahen ?' isake anantar shaastreey reetise shreeraamane vibheeshanase praayashchitt karavaaya aur phir unhen bandhanamukt kiya gayaa. aisa tha raamaraajyaka aadarsh nyaaya!
[ shreesiyaasharanajee shaastree ]

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