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भगवद्विधान अमोघ होता है  [Shikshaprad Kahani]
Moral Story - शिक्षदायक कहानी (Wisdom Story)

भगवद्विधान अमोघ होता है

दैत्यमाता दितिके दोनों पुत्र हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु मारे जा चुके थे। इन्द्रकी प्रेरणा भगवान् विष्णुने वाराह एवं नृसिंह अवतार धारण करके उन्हें मारा था। यह स्पष्ट था कि उनका वध देवताओंको रक्षाके लिये हुआ था। इसलिये दैत्यमाताका सारा क्रोध इन्द्रपर था। वह पुत्रशोकके कारण इन्द्रसे अत्यन्त रुष्ट थी और बराबर सोचती रहती थी कि इन्द्रको कैसे मारा जाय, परंतु उसके पास कोई उपाय नहीं था। उसके पतिदेव महर्षि कश्यप सर्वसमर्थ थे; किंतु अपने पुत्र देवताओंपर महर्षिका अधिक स्नेह था। वे भला, इन्द्रका अनिष्ट क्यों करने लगे।
दितिने निश्चय कर लिया कि चाहे जैसे हो, महर्षि कश्यपको ही प्रसन्न करके इन्द्रके वधकी व्यवस्था उनसे करानी है। अपने अभिप्रायको उसने मनमें अत्यन्त गुप्त रखा और वह पतिसेवामें लग गयी। निरन्तर तत्परतासे दिति महर्षिकी सेवा करने लगी। अपनेको, चाहे जितना कष्ट हो, वह प्रसन्न बनाये रखती। रात रात जागती सदा महर्षिके समीप खड़ी रहती और उन्हें कब क्या आवश्यक है, यह देखती रहती। विनय एवं सेवाकी वह मूर्ति बन गयी। महर्षि कुछ भी कहें, वह मधुर वाणीमें उत्तर देती। उनकी ओर प्रेमपूर्वक देखती रहती। इस प्रकार एक लम्बे समयतक वह लगी रही पतिसेवायें। अपने परम तेजस्वी समर्थ पतिको उसने सेवासे वशमें कर लिया। महर्षि कश्यप उसपर प्रसन्न होकर अन्ततः एक दिन बोल उठे' प्रिये। मैं तुम्हारी सेवासे प्रसन्न हूँ। तुम्हारे मनमें जो इच्छा हो, वर माँग लो।'
दिति इसी अवसरको प्रतीक्षा थी। उसने कहा 'देव! यदि आप सचमुच प्रसन्न हैं और वरदान देना चाहते हैं तो मैं माँगती हूँ कि आपसे मुझे इन्द्रको मार देनेवाला पुत्र प्राप्त हो।'
महर्षि कश्यपने मस्तकपर हाथ दे मारा कितना बड़ा अनर्थ- अपने ही प्रिय पुत्रको मारनेवाला दूसरा पुत्र उन्हें उत्पन्न करना पड़ेगा। लेकिन अब तो बात कही जा चुकी वरदान देनेको कहकर अस्वीकार कैसे करेगा एक ऋषि महर्षि उपाय सोचने लगे।
'यदि तुम मेरे बताये नियमोंका एक वर्षतक पालन करोगी और ठीक विधिपूर्वक उपासना करोगी तो तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी।' कश्यपजीने उपाय सोचकर कहा-'यदि नियमोंमें तनिक भी त्रुटि हुई तो तुम्हारा पुत्र देवताओंका मित्र होगा। तुम्हें पुत्र तो होगा; किंतु वह इन्द्रको मारनेवाला होगा या देवताओंका मित्र होगा, यह तो आज नहीं कहा जा सकता। यह तो तुम्हारे नियम पालनपर निर्भर है।'
दितिने नियम पूछे। अत्यन्त कड़े थे नियम; किंतु वह सावधानीसे उनके पालनमें लग गयी। उसकी नियमनिष्ठा देखकर इन्द्रको भय लगा। वे उसके आश्रममें वेश बदलकर आये और उसकी सेवा करने लगे। इन्द्र सेवा तो करते थे; किंतु आये थे वे यह अवसर देखने कि कहीं नियमपालनमें दितिसे तनिक त्रुटि हो तो उनका काम बन जाय इन्द्रको मरना नहीं था, भगवान्ने जो विश्वका विधान बनाया है, उसे कोई बदल नहीं सकता। दितिसे तनिक-सी त्रुटि हुई और फल यह हुआ कि उसके गर्भसे उनचास मरुतोंका जन्म हुआ, जो देवताओंके मित्र तो क्या देवता ही बन गये। [ श्रीमद्भागवत ]



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bhagavadvidhaan amogh hota hai

bhagavadvidhaan amogh hota hai

daityamaata ditike donon putr hiranyaaksh aur hiranyakashipu maare ja chuke the. indrakee prerana bhagavaan vishnune vaaraah evan nrisinh avataar dhaaran karake unhen maara thaa. yah spasht tha ki unaka vadh devataaonko rakshaake liye hua thaa. isaliye daityamaataaka saara krodh indrapar thaa. vah putrashokake kaaran indrase atyant rusht thee aur baraabar sochatee rahatee thee ki indrako kaise maara jaay, parantu usake paas koee upaay naheen thaa. usake patidev maharshi kashyap sarvasamarth the; kintu apane putr devataaonpar maharshika adhik sneh thaa. ve bhala, indraka anisht kyon karane lage.
ditine nishchay kar liya ki chaahe jaise ho, maharshi kashyapako hee prasann karake indrake vadhakee vyavastha unase karaanee hai. apane abhipraayako usane manamen atyant gupt rakha aur vah patisevaamen lag gayee. nirantar tatparataase diti maharshikee seva karane lagee. apaneko, chaahe jitana kasht ho, vah prasann banaaye rakhatee. raat raat jaagatee sada maharshike sameep khada़ee rahatee aur unhen kab kya aavashyak hai, yah dekhatee rahatee. vinay evan sevaakee vah moorti ban gayee. maharshi kuchh bhee kahen, vah madhur vaaneemen uttar detee. unakee or premapoorvak dekhatee rahatee. is prakaar ek lambe samayatak vah lagee rahee patisevaayen. apane param tejasvee samarth patiko usane sevaase vashamen kar liyaa. maharshi kashyap usapar prasann hokar antatah ek din bol uthe' priye. main tumhaaree sevaase prasann hoon. tumhaare manamen jo ichchha ho, var maang lo.'
diti isee avasarako prateeksha thee. usane kaha 'deva! yadi aap sachamuch prasann hain aur varadaan dena chaahate hain to main maangatee hoon ki aapase mujhe indrako maar denevaala putr praapt ho.'
maharshi kashyapane mastakapar haath de maara kitana baड़a anartha- apane hee priy putrako maaranevaala doosara putr unhen utpann karana pada़egaa. lekin ab to baat kahee ja chukee varadaan deneko kahakar asveekaar kaise karega ek rishi maharshi upaay sochane lage.
'yadi tum mere bataaye niyamonka ek varshatak paalan karogee aur theek vidhipoorvak upaasana karogee to tumhaaree ichchha poorn hogee.' kashyapajeene upaay sochakar kahaa-'yadi niyamonmen tanik bhee truti huee to tumhaara putr devataaonka mitr hogaa. tumhen putr to hogaa; kintu vah indrako maaranevaala hoga ya devataaonka mitr hoga, yah to aaj naheen kaha ja sakataa. yah to tumhaare niyam paalanapar nirbhar hai.'
ditine niyam poochhe. atyant kada़e the niyama; kintu vah saavadhaaneese unake paalanamen lag gayee. usakee niyamanishtha dekhakar indrako bhay lagaa. ve usake aashramamen vesh badalakar aaye aur usakee seva karane lage. indr seva to karate the; kintu aaye the ve yah avasar dekhane ki kaheen niyamapaalanamen ditise tanik truti ho to unaka kaam ban jaay indrako marana naheen tha, bhagavaanne jo vishvaka vidhaan banaaya hai, use koee badal naheen sakataa. ditise tanika-see truti huee aur phal yah hua ki usake garbhase unachaas marutonka janm hua, jo devataaonke mitr to kya devata hee ban gaye. [ shreemadbhaagavat ]

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