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अर्जुनकी उदारताका अभिमान-भङ्ग  [Spiritual Story]
Wisdom Story - Story To Read (हिन्दी कथा)

यह प्रसिद्ध है कि कर्ण अपने समयके दानियोंमें सर्वश्रेष्ठ थे। इधर अर्जुनको भी अपनी दानशीलताका बड़ा गर्व था। एक बार भगवान् श्रीकृष्णने अर्जुनके समक्ष ही कर्णकी उदारता एवं याचकमात्रको बिना दिये न लौटानेकी मुक्तकण्ठसे प्रशंसा की। अर्जुन इसे सह न सके। उन्होंने कहा- 'माधव! आप बार-बार कर्णकी प्रशंसा कर हमारे हृदयको ठेस पहुँचा रहे हैं। मैं समझता हूँ आपको मेरी दानशीलताका ज्ञान ही नहीं है; अन्यथा मेरे सामने ही आप इस प्रकारकी बात बार-बार न कहते।' भगवान् चुप रहे।

आखिर एक दिन इसकी परीक्षाका भी अवसर आ ही गया। एक दिन एक ब्राह्मण अर्जुनके दरवाजेपर पहुँचा और कहने लगा, 'धनंजय ! सुना है आपके दरवाजेसे कोई भी याचक लौटकर नहीं जाता। मैं आज बड़े ही धर्मसंकटमें पड़ गया हूँ। मेरी स्त्री आज चल बसी। मरते समय उसने कहा कि 'मेरी एक प्रार्थना स्वीकार करो; वह यह कि मेरे शरीरका दाह केवल चन्दनकी लकड़ियोंसे ही करना। क्या आप इतने चन्दनकी लकड़ियोंकी व्यवस्था कर सकियेगा?' अर्जुनने कहा 'क्यों नहीं। अभी प्रबन्ध होता है।' और कोठारीको बुलाकर आज्ञा दी कि इन्हें तुरंत पच्चीस मन चन्दनकी लकड़ी तौल दो। दुर्भाग्यवश उस दिन न तो भण्डारमें ही कोई चन्दनकी लकड़ी थी न कहीं बाजारमें ही। अन्तमें कोठारी लाचार होकर अर्जुनके पास आया औरकहने लगा कि 'महाराज ! चन्दनकी लकड़ीका प्रबन्ध सर्वथा असम्भव है।' इसपर ब्राह्मणने पूछा 'तो क्या मैं किसी दूसरेके दरवाजे जाऊँ ?' अर्जुनने कहा 'महाराज ! अब तो लाचारी है।'

अब वह ब्राह्मण कर्णके यहाँ पहुँचा। वहाँ भी यही हालत थी। उनका भी कोठारी बाजारसे खाली हाथ लौट आया। ब्राह्मणने कहा 'तो महाराज! मैं अब चलूँ।' कर्णने कहा, 'महाराज! आप नाराज न होइये। मैं अभी आपके काष्ठका प्रबन्ध करता हूँ।' और देखते-देखते उन्होंने अपने महलके चन्दनके खंभे निकलवाकर उसकी माँग पूरी कर दी। यद्यपि उनका महल ढह गया, तथापि उन्होंने उस ब्राह्मणको लौटाया नहीं। ब्राह्मणने पत्नीका दाह-संस्कार किया। शामको श्रीकृष्ण तथा अर्जुन टहलने निकले। देखा तो एक ब्राह्मण श्मशानपर संकीर्तन कर रहा है। पूछनेपर वह कहने लगा- 'बस, बार-बार धन्यवाद है उस कर्णको, जिसने आज मेरे संकटको दूर करनेके लिये, अपनी दानकी मनोवृत्तिकी रक्षाके लिये, महलके चन्दनके खंभोंको निकलवाकर सोने से महलको ढहा दिया। भगवान् उसका भला करें।'

अब श्रीकृष्ण अर्जुनकी ओर देखने लगे और बोले- ' भाई ! चन्दनके खंभे तो तुम्हारे महलमें भी थे, पर तुम्हें उनकी याद ही नहीं आयी।' यह देख-सुनकर अर्जुनको मन-ही-मन बड़ी लज्जा आयी।
- (जा0 श0)



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arjunakee udaarataaka abhimaana-bhanga

yah prasiddh hai ki karn apane samayake daaniyonmen sarvashreshth the. idhar arjunako bhee apanee daanasheelataaka bada़a garv thaa. ek baar bhagavaan shreekrishnane arjunake samaksh hee karnakee udaarata evan yaachakamaatrako bina diye n lautaanekee muktakanthase prashansa kee. arjun ise sah n sake. unhonne kahaa- 'maadhava! aap baara-baar karnakee prashansa kar hamaare hridayako thes pahuncha rahe hain. main samajhata hoon aapako meree daanasheelataaka jnaan hee naheen hai; anyatha mere saamane hee aap is prakaarakee baat baara-baar n kahate.' bhagavaan chup rahe.

aakhir ek din isakee pareekshaaka bhee avasar a hee gayaa. ek din ek braahman arjunake daravaajepar pahuncha aur kahane laga, 'dhananjay ! suna hai aapake daravaajese koee bhee yaachak lautakar naheen jaataa. main aaj bada़e hee dharmasankatamen pada़ gaya hoon. meree stree aaj chal basee. marate samay usane kaha ki 'meree ek praarthana sveekaar karo; vah yah ki mere shareeraka daah keval chandanakee lakada़iyonse hee karanaa. kya aap itane chandanakee lakada़iyonkee vyavastha kar sakiyegaa?' arjunane kaha 'kyon naheen. abhee prabandh hota hai.' aur kothaareeko bulaakar aajna dee ki inhen turant pachchees man chandanakee lakada़ee taul do. durbhaagyavash us din n to bhandaaramen hee koee chandanakee lakada़ee thee n kaheen baajaaramen hee. antamen kothaaree laachaar hokar arjunake paas aaya aurakahane laga ki 'mahaaraaj ! chandanakee lakada़eeka prabandh sarvatha asambhav hai.' isapar braahmanane poochha 'to kya main kisee doosareke daravaaje jaaoon ?' arjunane kaha 'mahaaraaj ! ab to laachaaree hai.'

ab vah braahman karnake yahaan pahunchaa. vahaan bhee yahee haalat thee. unaka bhee kothaaree baajaarase khaalee haath laut aayaa. braahmanane kaha 'to mahaaraaja! main ab chaloon.' karnane kaha, 'mahaaraaja! aap naaraaj n hoiye. main abhee aapake kaashthaka prabandh karata hoon.' aur dekhate-dekhate unhonne apane mahalake chandanake khanbhe nikalavaakar usakee maang pooree kar dee. yadyapi unaka mahal dhah gaya, tathaapi unhonne us braahmanako lautaaya naheen. braahmanane patneeka daaha-sanskaar kiyaa. shaamako shreekrishn tatha arjun tahalane nikale. dekha to ek braahman shmashaanapar sankeertan kar raha hai. poochhanepar vah kahane lagaa- 'bas, baara-baar dhanyavaad hai us karnako, jisane aaj mere sankatako door karaneke liye, apanee daanakee manovrittikee rakshaake liye, mahalake chandanake khanbhonko nikalavaakar sone se mahalako dhaha diyaa. bhagavaan usaka bhala karen.'

ab shreekrishn arjunakee or dekhane lage aur bole- ' bhaaee ! chandanake khanbhe to tumhaare mahalamen bhee the, par tumhen unakee yaad hee naheen aayee.' yah dekha-sunakar arjunako mana-hee-man bada़ee lajja aayee.
- (jaa0 sha0)

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