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संकटमें बुद्धिमानी  [Spiritual Story]
Short Story - Spiritual Story (Hindi Story)

एक वनमें वटवृक्षकी जड़में सौ दरवाजोंका बिल बनाकर पलित नामका एक बुद्धिमान् चूहा रहता था । उसी वृक्षकी शाखापर लोमश नामका एक बिलाव भीरहता था। एक बार एक चाण्डालने आकर उस वनमें डेरा डाल दिया। सूर्यास्त होनेपर वह अपना जाल फैला देता था और उसकी ताँतकी डोरियोंको यथास्थानलगाकर मौजसे अपने झोंपड़े में सो जाता था । रातमें अनेकों जीव उसके जालमें फँस जाते थे, जिन्हें वह सबेरे पकड़ लेता था। बिलाव यद्यपि बहुत सावधान रहता था तो भी एक दिन उसके जालमें फँस ही गया। यह देखकर पलित चूहा निर्भय होकर वनमें आहार खोजने लगा। इतनेहीमें उसकी दृष्टि चाण्डालके डाले हुए (फँसानेके लिये) मांस खण्डोंपर पड़ी। वह जालपर चढ़कर उन्हें खाने लगा। इतनेमें ही उसने देखा कि हरिण नामका न्यौला चूहेको पकड़नेके लिये जीभ लपलपा रहा था। अब चूहेने जो ऊपरकी ओर वृक्षपर भागनेकी सोची तो उसने वटकी शाखापर रहनेवाले अपने घोर शत्रु चन्द्रक नामक उल्लूको देखा। इस प्रकार इन शत्रुओंके बीचमें पड़कर वह डर गया और चिन्तामें डूब गया।

इसी समय उसे एक विचार सूझ गया। उसने देखा कि बिलाव संकटमें पड़ा है, इसलिये वह इसकी रक्षा कर सकेगा। अतः उसने उसकी शरणमें जानेकी सोची। उसने बिलावसे कहा- 'भैया! अभी जीवित हो न ? देखो! डरो मत। यदि तुम मुझे मारना न चाहो तो मैं तुम्हारा उद्धार कर सकता हूँ। मैंने खूब विचारकर अपने और तुम्हारे उद्धारके लिये उपाय सोचा है। उससे हम दोनोंका हित हो सकता है। देखो ये न्यौला और उल्लू मेरी घातमें बैठे हुए हैं। इन्होंने अभीतक मुझपर आक्रमण नहीं किया है, इसीलिये बचा हुआ हूँ। अब तुम मेरी रक्षा करो और तुम जिस जालको काटने में असमर्थ हो उसे काटकर मैं तुम्हारी रक्षा कर लूँगा।' बिलाव भी बुद्धिमान् था। उसने कहा- 'सौम्य !

तुम्हारी बातोंसे बड़ी प्रसन्नता हुई है। इस समय मेरे प्राण
संकटमें हैं। मैं तुम्हारी शरणमें हूँ। तुम जैसा भी कहोगे
मैं वैसा ही करूंगा।'

चूहा बोला- 'तो मैं तुम्हारी गोदमें नीचे छिप जाना चाहता हूँ, क्योंकि नेवलेसे मुझे बड़ा भय हो रहा है। तुम मेरी रक्षा करना। इसके बाद मैं तुम्हारा जाल काट दूंगा। यह बात मैं सत्यकी शपथ लेकर कहता हूँ।'

लोमश बोला- 'तुम तुरंत आ जाओ। भगवान् तुम्हारा मङ्गल करें। तुम तो मेरे प्राणोंके समान सखा हो। इस संकटसे छूट जानेपर मैं अपने बन्धु बान्धवोंके साथ तुम्हारा प्रिय तथा हितकारी कार्य करता रहूँगा।'अब चूहा आनन्दसे उसकी गोदमें जा बैठा। बिलावने भी उसे ऐसा निःशङ्क बना दिया कि वह | माता-पिताकी गोदके समान उसकी छातीसे लगकर सौ गया। जब न्यौले और उल्लूने उनकी ऐसी गहरी मित्रता | देखी तो वे निराश हो गये और अपने-अपने स्थानको धीरे-धीरे जाल चले गये। चूहा देशकालकी गतिको पहचानता था. इसलिये चाण्डालकी प्रतीक्षा करते हुए काटने लगा। बिलाव बन्धनके खेदसे ऊब गया था। उसने उससे जल्दी-जल्दी जाल काटनेकी प्रार्थना की। पलितने कहा, "भैया! घबराओ मत। मैं कभी न चुकूँगा। असमयमें काम करनेसे कर्ताको हानि हो होती है। यदि मैंने पहले ही तुम्हें छुड़ा दिया तो मुझे

तुमसे भय हो सकता है। इसलिये जिस समय मैं देखूँगा कि चाण्डाल हथियार लिये हुए इधर आ रहा है, उसी समय मैं तुम्हारे बन्धन काट डालूँगा। उस समय तुम्हें वृक्षपर चढ़ना ही सूझेगा और में तुरंत अपने बिलमें घुस जाऊँगा।'

विलावने कहा- 'भाई। पहलेके मेरे अपराधोंको भूल जाओ। तुम अब फुर्तीके साथ मेरा बन्धन काट दो। देखो, मैंने आपत्तिमें देखकर तुम्हें तुरंत बचा लिया। अब तुम अपना मनोमालिन्य दूर कर दो।'

चूहेने कहा - 'मित्र ! जिस मित्रसे भयको सम्भावना हो उसका काम इस प्रकार करना चाहिये, जैसे बाजीगर सर्पके साथ उसके मुँहसे हाथ बचाकर खेलता है। जो व्यक्ति बलवान् के साथ सन्धि करके अपनी रक्षाका ध्यान नहीं रखता, उसका वह मेल अपथ्य भोजनके समान कैसे हितकर होगा? मैंने बहुत-से तन्तुओंको काट डाला है, अब मुख्यतः एक ही डोरी काटनी है। जब चाण्डाल आ जायगा, तब भयके कारण तुम्हें भागनेकी ही सूझेगी, उसी समय मैं तुरंत उसे काट डालूँगा तुम बिलकुल न घबराओ।'

इसी तरह बातें करते वह रात बीत गयो । लोमशका भय बराबर बढ़ता गया। प्रातः काल परिधि नामक चाण्डाल हाथमें शस्त्र लिये आता दीखा। वह साक्षात् यमदूतके समान जान पड़ता था। अब तो बिलाव भयसे व्याकुल हो गया। अब चूहेने तुरंत जाल काट दिया। बिलाव झट पेड़पर चढ़ गया और चूहा बिलमें घुस गया। चाण्डाल भी जालको कटा देखनिराश होकर वापस चला गया।

अब लोमशने चूहेसे कहा- 'भैया! तुम मुझसे कोई बात किये बिना ही बिलमें क्यों घुस गये। अब तो मैं तुम्हारा मित्र हो गया हूँ और अपने जीवनकी शपथ करके कहता हूँ, अब मेरे बन्धु-बान्धव भी तुम्हारी इस प्रकार सेवा करेंगे, जैसे शिष्य लोग गुरुकी सेवा करते हैं। तुम मेरे शरीर, मेरे घर और मेरी सारी सम्पत्तिके स्वामी हो । आजसे तुम मेरा मन्त्रित्व स्वीकार करो और पिताकी तरह मुझे शिक्षा दो। बुद्धिमें तो तुम साक्षात् शुक्राचार्य ही हो। अपने मन्त्रबलसे जीवनदान देकर तुमने मुझे निःशुल्क खरीद लिया है। अब मैं सर्वथा तुम्हारे अधीन हूँ।'

बिलावकी चिकनी-चुपड़ी बातें सुनकर परम नीतिज्ञ चूहा बोला- 'भाई साहब! मित्रता तभीतक निभती है जबतक स्वार्थसे विरोध नहीं आता। मित्र वही बन सकता है जिससे कुछ स्वार्थ सिद्ध हो तथा जिसके मरनेसे कुछ हानि हो, तभीतक मित्रता चलती है। न मित्रता कोई स्थायी वस्तु है और न शत्रुता ही स्वार्थकी अनुकूलता - प्रतिकूलतासे ही मित्र तथा शत्रु बनते रहते हैं। समयके फेरसे कभी मित्र ही शत्रु तथा कभी शत्रु ही मित्र बन जाता है। हमारी प्रीति भी एक विशेष कारणसे ही हुई थी। अब जब वह कारण नष्ट हो गया तो प्रीति भी न रही। अब तो मुझे खा जानेके सिवा मुझसे तुम्हारा कोई दूसरा प्रयोजन सिद्ध होनेवाला नहीं। मैं दुर्बल तुम बलवान्, मैं भक्ष्य तथा तुम भक्षक ठहरे। अतएव तुम मुझसे भूख बुझाना चाहते हो। भला, जब तुम्हारे प्रिय पुत्र और स्त्री मुझे तुम्हारे पास बैठा देखेंगे। तो मुझे झट चट करनेमें वे क्यों चूकेंगे? इसलिये मैं।तुम्हारे साथ नहीं रह सकता। अतएव भैया । तुम्हारा कल्याण हो। मैं तो चला। यदि मेरे किये हुए उपकारका तुम्हें ध्यान हो तो कभी मैं चूक जाऊँ तो मुझे चटन कर जाना।'

पलितने जब इस प्रकार खरी-खरी सुनायी तो बिलावने लज्जित होकर कहा-'भाई। मैं सत्यकी शपथ खाकर कहता हूँ, तुम मेरे परमप्रिय हो और मैं तुमसे द्रोह नहीं कर सकता। अधिक क्या तुम्हारे कहनेसे मैं अपने बन्धु बान्धवोंके साथ प्राणतक त्याग सकता हूँ।'

इस प्रकार बिलावने जब चूहेकी और भी बहुत प्रशंसा की, तब चूहेने कहा-'आप वास्तवमें बड़े साधु हैं। आपपर मैं पूर्ण प्रसन्न हूँ, तथापि मैं आपमें विश्वास नहीं कर सकता। इस सम्बन्धमें शुक्राचार्यकी दो बातें ध्यान देने योग्य हैं- (1) जब दो शत्रुओंपर एक-सी विपत्ति आ पड़े तब परस्पर मिलकर बड़ी सावधानीसे काम लेना चाहिये और जब काम हो जाय तब बली शत्रुका विश्वास नहीं करना चाहिये। (2) जो अविश्वासका पात्र हो, उसका कभी भी विश्वास न करे और जो विश्वासपात्र हो, उसका भी अत्यधिक विश्वास न करे। नीतिशास्त्रका यही सार है कि किसीका विश्वास न करना ही अच्छा है। इसलिये लोमशजी! मुझे आपसे सर्वथा सावधान रहना चाहिये और आपको भी जन्मशत्रु चाण्डालसे बचना चाहिये।"

चाण्डालका नाम सुनकर बिलाव भाग गया और चूहा भी बिलमें चला गया। इस तरह दुर्बल और अकेला होनेपर भी बुद्धिबलसे पलित कई शत्रुओंसे बच गया।

-जा श (महा0 शान्ति आपद्धर्म अध्याय 138)



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sankatamen buddhimaanee

ek vanamen vatavrikshakee jada़men sau daravaajonka bil banaakar palit naamaka ek buddhimaan chooha rahata tha . usee vrikshakee shaakhaapar lomash naamaka ek bilaav bheerahata thaa. ek baar ek chaandaalane aakar us vanamen dera daal diyaa. sooryaast honepar vah apana jaal phaila deta tha aur usakee taantakee doriyonko yathaasthaanalagaakar maujase apane jhonpada़e men so jaata tha . raatamen anekon jeev usake jaalamen phans jaate the, jinhen vah sabere pakada़ leta thaa. bilaav yadyapi bahut saavadhaan rahata tha to bhee ek din usake jaalamen phans hee gayaa. yah dekhakar palit chooha nirbhay hokar vanamen aahaar khojane lagaa. itaneheemen usakee drishti chaandaalake daale hue (phansaaneke liye) maans khandonpar pada़ee. vah jaalapar chadha़kar unhen khaane lagaa. itanemen hee usane dekha ki harin naamaka nyaula chooheko pakada़neke liye jeebh lapalapa raha thaa. ab choohene jo ooparakee or vrikshapar bhaaganekee sochee to usane vatakee shaakhaapar rahanevaale apane ghor shatru chandrak naamak ullooko dekhaa. is prakaar in shatruonke beechamen pada़kar vah dar gaya aur chintaamen doob gayaa.

isee samay use ek vichaar soojh gayaa. usane dekha ki bilaav sankatamen pada़a hai, isaliye vah isakee raksha kar sakegaa. atah usane usakee sharanamen jaanekee sochee. usane bilaavase kahaa- 'bhaiyaa! abhee jeevit ho n ? dekho! daro mata. yadi tum mujhe maarana n chaaho to main tumhaara uddhaar kar sakata hoon. mainne khoob vichaarakar apane aur tumhaare uddhaarake liye upaay socha hai. usase ham dononka hit ho sakata hai. dekho ye nyaula aur ulloo meree ghaatamen baithe hue hain. inhonne abheetak mujhapar aakraman naheen kiya hai, iseeliye bacha hua hoon. ab tum meree raksha karo aur tum jis jaalako kaatane men asamarth ho use kaatakar main tumhaaree raksha kar loongaa.' bilaav bhee buddhimaan thaa. usane kahaa- 'saumy !

tumhaaree baatonse bada़ee prasannata huee hai. is samay mere praana
sankatamen hain. main tumhaaree sharanamen hoon. tum jaisa bhee kahoge
main vaisa hee karoongaa.'

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lomash bolaa- 'tum turant a jaao. bhagavaan tumhaara mangal karen. tum to mere praanonke samaan sakha ho. is sankatase chhoot jaanepar main apane bandhu baandhavonke saath tumhaara priy tatha hitakaaree kaary karata rahoongaa.'ab chooha aanandase usakee godamen ja baithaa. bilaavane bhee use aisa nihshank bana diya ki vah | maataa-pitaakee godake samaan usakee chhaateese lagakar sau gayaa. jab nyaule aur ulloone unakee aisee gaharee mitrata | dekhee to ve niraash ho gaye aur apane-apane sthaanako dheere-dheere jaal chale gaye. chooha deshakaalakee gatiko pahachaanata thaa. isaliye chaandaalakee prateeksha karate hue kaatane lagaa. bilaav bandhanake khedase oob gaya thaa. usane usase jaldee-jaldee jaal kaatanekee praarthana kee. palitane kaha, "bhaiyaa! ghabaraao mata. main kabhee n chukoongaa. asamayamen kaam karanese kartaako haani ho hotee hai. yadi mainne pahale hee tumhen chhuda़a diya to mujhe

tumase bhay ho sakata hai. isaliye jis samay main dekhoonga ki chaandaal hathiyaar liye hue idhar a raha hai, usee samay main tumhaare bandhan kaat daaloongaa. us samay tumhen vrikshapar chadha़na hee soojhega aur men turant apane bilamen ghus jaaoongaa.'

vilaavane kahaa- 'bhaaee. pahaleke mere aparaadhonko bhool jaao. tum ab phurteeke saath mera bandhan kaat do. dekho, mainne aapattimen dekhakar tumhen turant bacha liyaa. ab tum apana manomaaliny door kar do.'

choohene kaha - 'mitr ! jis mitrase bhayako sambhaavana ho usaka kaam is prakaar karana chaahiye, jaise baajeegar sarpake saath usake munhase haath bachaakar khelata hai. jo vyakti balavaan ke saath sandhi karake apanee rakshaaka dhyaan naheen rakhata, usaka vah mel apathy bhojanake samaan kaise hitakar hogaa? mainne bahuta-se tantuonko kaat daala hai, ab mukhyatah ek hee doree kaatanee hai. jab chaandaal a jaayaga, tab bhayake kaaran tumhen bhaaganekee hee soojhegee, usee samay main turant use kaat daaloonga tum bilakul n ghabaraao.'

isee tarah baaten karate vah raat beet gayo . lomashaka bhay baraabar badha़ta gayaa. praatah kaal paridhi naamak chaandaal haathamen shastr liye aata deekhaa. vah saakshaat yamadootake samaan jaan pada़ta thaa. ab to bilaav bhayase vyaakul ho gayaa. ab choohene turant jaal kaat diyaa. bilaav jhat peda़par chadha़ gaya aur chooha bilamen ghus gayaa. chaandaal bhee jaalako kata dekhaniraash hokar vaapas chala gayaa.

ab lomashane choohese kahaa- 'bhaiyaa! tum mujhase koee baat kiye bina hee bilamen kyon ghus gaye. ab to main tumhaara mitr ho gaya hoon aur apane jeevanakee shapath karake kahata hoon, ab mere bandhu-baandhav bhee tumhaaree is prakaar seva karenge, jaise shishy log gurukee seva karate hain. tum mere shareer, mere ghar aur meree saaree sampattike svaamee ho . aajase tum mera mantritv sveekaar karo aur pitaakee tarah mujhe shiksha do. buddhimen to tum saakshaat shukraachaary hee ho. apane mantrabalase jeevanadaan dekar tumane mujhe nihshulk khareed liya hai. ab main sarvatha tumhaare adheen hoon.'

bilaavakee chikanee-chupada़ee baaten sunakar param neetijn chooha bolaa- 'bhaaee saahaba! mitrata tabheetak nibhatee hai jabatak svaarthase virodh naheen aataa. mitr vahee ban sakata hai jisase kuchh svaarth siddh ho tatha jisake maranese kuchh haani ho, tabheetak mitrata chalatee hai. n mitrata koee sthaayee vastu hai aur n shatruta hee svaarthakee anukoolata - pratikoolataase hee mitr tatha shatru banate rahate hain. samayake pherase kabhee mitr hee shatru tatha kabhee shatru hee mitr ban jaata hai. hamaaree preeti bhee ek vishesh kaaranase hee huee thee. ab jab vah kaaran nasht ho gaya to preeti bhee n rahee. ab to mujhe kha jaaneke siva mujhase tumhaara koee doosara prayojan siddh honevaala naheen. main durbal tum balavaan, main bhakshy tatha tum bhakshak thahare. ataev tum mujhase bhookh bujhaana chaahate ho. bhala, jab tumhaare priy putr aur stree mujhe tumhaare paas baitha dekhenge. to mujhe jhat chat karanemen ve kyon chookenge? isaliye main.tumhaare saath naheen rah sakataa. ataev bhaiya . tumhaara kalyaan ho. main to chalaa. yadi mere kiye hue upakaaraka tumhen dhyaan ho to kabhee main chook jaaoon to mujhe chatan kar jaanaa.'

palitane jab is prakaar kharee-kharee sunaayee to bilaavane lajjit hokar kahaa-'bhaaee. main satyakee shapath khaakar kahata hoon, tum mere paramapriy ho aur main tumase droh naheen kar sakataa. adhik kya tumhaare kahanese main apane bandhu baandhavonke saath praanatak tyaag sakata hoon.'

is prakaar bilaavane jab choohekee aur bhee bahut prashansa kee, tab choohene kahaa-'aap vaastavamen bada़e saadhu hain. aapapar main poorn prasann hoon, tathaapi main aapamen vishvaas naheen kar sakataa. is sambandhamen shukraachaaryakee do baaten dhyaan dene yogy hain- (1) jab do shatruonpar eka-see vipatti a pada़e tab paraspar milakar bada़ee saavadhaaneese kaam lena chaahiye aur jab kaam ho jaay tab balee shatruka vishvaas naheen karana chaahiye. (2) jo avishvaasaka paatr ho, usaka kabhee bhee vishvaas n kare aur jo vishvaasapaatr ho, usaka bhee atyadhik vishvaas n kare. neetishaastraka yahee saar hai ki kiseeka vishvaas n karana hee achchha hai. isaliye lomashajee! mujhe aapase sarvatha saavadhaan rahana chaahiye aur aapako bhee janmashatru chaandaalase bachana chaahiye."

chaandaalaka naam sunakar bilaav bhaag gaya aur chooha bhee bilamen chala gayaa. is tarah durbal aur akela honepar bhee buddhibalase palit kaee shatruonse bach gayaa.

-ja sh (mahaa0 shaanti aapaddharm adhyaay 138)

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