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अस्थिर दृष्टि  [Spiritual Story]
Hindi Story - प्रेरक कथा (Moral Story)

एक संतके यहाँ एक दासी तीस वर्षसे रहती थी, पर उन्होंने उसका मुँह कभी नहीं देखा था। एक दिन उन्होंने दासीसे कहा- 'बहिन! भीतर जाकर उस दासीको बुला तो देना।' दासीने विनम्र वाणीमें कहा – 'तीस वर्षसे मैंआपके समीप रह रही हूँ, तब भी आप मुझे नहीं पहचानते। वह दासी तो मैं ही हूँ।' संतने उत्तर दिया, 'तीस वर्षसे भगवान्‌के अतिरिक्त मैंने स्थिरदृष्टिसे किसीको देखा ही नहीं, इसी कारण तुम्हें भी नहीं पहचानता । ' - शि0 दु0



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asthir drishti

ek santake yahaan ek daasee tees varshase rahatee thee, par unhonne usaka munh kabhee naheen dekha thaa. ek din unhonne daaseese kahaa- 'bahina! bheetar jaakar us daaseeko bula to denaa.' daaseene vinamr vaaneemen kaha – 'tees varshase mainaapake sameep rah rahee hoon, tab bhee aap mujhe naheen pahachaanate. vah daasee to main hee hoon.' santane uttar diya, 'tees varshase bhagavaan‌ke atirikt mainne sthiradrishtise kiseeko dekha hee naheen, isee kaaran tumhen bhee naheen pahachaanata . ' - shi0 du0

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कारे से लाल बनाए गयी रे,
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अपनी वाणी में अमृत घोल
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