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आत्मशान्ति  [Wisdom Story]
प्रेरक कहानी - आध्यात्मिक कहानी (Story To Read)

लगभग तीन हजार साल पहलेकी बात है। भगवान् गौतम बुद्ध कुरुदेशके कल्माषदम्प निगम (उपनगर) में विहार करते थे। वे निगमके समीप एक वनखण्डमें विराजमान थे। चारों ओर शान्ति थी।

'कितनी स्वर्णिम प्रभा हैं शरीरकी। ऐसा लगता है साक्षात् सुमेरुका ही मानवीय वेषमें पृथ्वीपर कि अवतरण हुआ हो। मेरी कन्या भी स्वर्ण-वर्णकी हैं। जिसे बड़े-बड़े नरेन्द्रोंने प्राप्त करनेका प्रयत्न किया, उसेमैं इसी श्रमणको दूँगा । निगमके मागन्दीय नामक ब्राह्मणने तथागतका दर्शन किया; वह सरोवरके तीरपर पानी पी रहा था। घर गया। उसने अपनी पत्नीसे सारी बात बतायी। दोनोंने कन्याको विशेष अलंकार, वस्त्र और अङ्गराग आदिसे सजाया ।'

'श्रमणका आसन यहीं था।' वनखण्डमें प्रवेश करके उसने अपनी पत्नीका ध्यान आकृष्ट किया; कन्याभी साथ थी। वह सौन्दर्यकी सजीव स्वर्णप्रतिमा थी, कोमलता और विनयशीलताकी चलती-फिरती आकृति थी। उसके लावण्यसे समस्त वनखण्ड प्रदीप्त था। तथागतके बैठनेके स्थानपर तृण आसन था। ब्राह्मणीने देखा।

'काम पूरा नहीं होगा' उसने पतिसे निवेदन किया। 'श्रमणने काम (मार) को जीत लिया है, इसलिये तृण इधर-उधर नहीं बिखर सके।' ब्राह्मणीने गम्भीर होकर अपनी कन्याको देखा, चिन्तित थी वह 'मङ्गलके समय अमङ्गल नहीं कहना चाहिये।' ब्राह्मणने पत्नीको समझाया। ब्राह्मणीने भगवान् बुद्धका पदचिह्न देखा ।

'श्रमणका मन काममें लिप्त नहीं है। रागयुक्तका चरण उकड़ू होता है, द्वेषयुक्तका पद निकला होता है, मोहयुक्तका पद दबा होता है पर मलरहितका पद ऐसा होता है। इस तरहकी बातें पति-पत्नीमें हो ही रही थीं कि भगवान् तथागत पिण्डचार (भोजन) समाप्त करके
निगमसे अपने स्थानकी ओर आते दीख पड़े।' 'इस तरहके पुरुष कामोपभोगमें नहीं रमते । ' ब्राह्मणीने उनका तेजोमय भव्य रूप देखा। सुगतअपने आसनपर बैठ गये। 'आप और मेरी कन्या- दोनों स्वर्ण वर्णके हैं। इसका पाणिग्रहण करें।' ब्राह्मणके एक हाथमें जलभरा कमण्डलु था, दूसरे हाथसे उसने कन्याकी बाँह पकड़ी।

' तृष्णा और रामसे भरी लावण्यमयी स्वर्गीय मार कन्याओं को भी देखकर मन नहीं विकृत हो सका तो मल-मूत्रसे भरी इस वस्तुका पैरसे भी स्पर्श नहीं किया जा सकता।' ऐसा लगता था कि शास्ता ब्राह्मणसे नहीं, किसी दूसरेके प्रति ऐसी बातें कह रहे हैं।

'यदि अनेक नरेन्द्रोंद्वारा प्रार्थित इस रूपराशिको आप नहीं चाहते तो अपनी दृष्टि, शील, व्रत, जीवनकी भवमें उत्पत्तिके प्रति क्या धारणा है ?' मागन्दीयकी जिज्ञासा थी।

'मैंने दृश्योंको देख उन्हें न ग्रहण कर आत्मशान्तिको नहीं देखा। विवादरहित होनेपर आत्माको शान्ति मिलती है। संज्ञासे विरक्त नहीं बँधता; प्रज्ञाद्वारा विमुक्तको मोह नहीं रहता है। संज्ञा और दृष्टि-नाम-रूपको ग्रहण करनेवाला ही लोकमें धक्का खाता है।' भगवान्ने ब्राह्मणको आत्मशान्तिका पथ बताया। वह चला गया। -रा0 श्री (बुद्ध)



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aatmashaanti

lagabhag teen hajaar saal pahalekee baat hai. bhagavaan gautam buddh kurudeshake kalmaashadamp nigam (upanagara) men vihaar karate the. ve nigamake sameep ek vanakhandamen viraajamaan the. chaaron or shaanti thee.

'kitanee svarnim prabha hain shareerakee. aisa lagata hai saakshaat sumeruka hee maanaveey veshamen prithveepar ki avataran hua ho. meree kanya bhee svarna-varnakee hain. jise bada़e-bada़e narendronne praapt karaneka prayatn kiya, usemain isee shramanako doonga . nigamake maagandeey naamak braahmanane tathaagataka darshan kiyaa; vah sarovarake teerapar paanee pee raha thaa. ghar gayaa. usane apanee patneese saaree baat bataayee. dononne kanyaako vishesh alankaar, vastr aur angaraag aadise sajaaya .'

'shramanaka aasan yaheen thaa.' vanakhandamen pravesh karake usane apanee patneeka dhyaan aakrisht kiyaa; kanyaabhee saath thee. vah saundaryakee sajeev svarnapratima thee, komalata aur vinayasheelataakee chalatee-phiratee aakriti thee. usake laavanyase samast vanakhand pradeept thaa. tathaagatake baithaneke sthaanapar trin aasan thaa. braahmaneene dekhaa.

'kaam poora naheen hogaa' usane patise nivedan kiyaa. 'shramanane kaam (maara) ko jeet liya hai, isaliye trin idhara-udhar naheen bikhar sake.' braahmaneene gambheer hokar apanee kanyaako dekha, chintit thee vah 'mangalake samay amangal naheen kahana chaahiye.' braahmanane patneeko samajhaayaa. braahmaneene bhagavaan buddhaka padachihn dekha .

'shramanaka man kaamamen lipt naheen hai. raagayuktaka charan ukada़oo hota hai, dveshayuktaka pad nikala hota hai, mohayuktaka pad daba hota hai par malarahitaka pad aisa hota hai. is tarahakee baaten pati-patneemen ho hee rahee theen ki bhagavaan tathaagat pindachaar (bhojana) samaapt karake
nigamase apane sthaanakee or aate deekh pada़e.' 'is tarahake purush kaamopabhogamen naheen ramate . ' braahmaneene unaka tejomay bhavy roop dekhaa. sugataapane aasanapar baith gaye. 'aap aur meree kanyaa- donon svarn varnake hain. isaka paanigrahan karen.' braahmanake ek haathamen jalabhara kamandalu tha, doosare haathase usane kanyaakee baanh pakada़ee.

' trishna aur raamase bharee laavanyamayee svargeey maar kanyaaon ko bhee dekhakar man naheen vikrit ho saka to mala-mootrase bharee is vastuka pairase bhee sparsh naheen kiya ja sakataa.' aisa lagata tha ki shaasta braahmanase naheen, kisee doosareke prati aisee baaten kah rahe hain.

'yadi anek narendrondvaara praarthit is rooparaashiko aap naheen chaahate to apanee drishti, sheel, vrat, jeevanakee bhavamen utpattike prati kya dhaarana hai ?' maagandeeyakee jijnaasa thee.

'mainne drishyonko dekh unhen n grahan kar aatmashaantiko naheen dekhaa. vivaadarahit honepar aatmaako shaanti milatee hai. sanjnaase virakt naheen bandhataa; prajnaadvaara vimuktako moh naheen rahata hai. sanjna aur drishti-naama-roopako grahan karanevaala hee lokamen dhakka khaata hai.' bhagavaanne braahmanako aatmashaantika path bataayaa. vah chala gayaa. -raa0 shree (buddha)

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