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साधारण वेषमें असाधारण मनुष्य  [आध्यात्मिक कहानी]
हिन्दी कथा - बोध कथा (हिन्दी कथा)

साधारण वेषमें असाधारण मनुष्य

हुगली जिलेके किसी दूर-दराजके गाँवके एक स्कूलमें विद्यासागर आनेवाले हैं। गाँवभरके स्त्री-पुरुष टूट पड़े, सभी विद्यासागरको एक बार देखना चाहते हैं। आनेका समय निकल गया, विद्यासागर तब भी नहीं आये थे। सिरके ऊपर तेज घाम बढ़ने लगा, फिर भी भीड़ कम नहीं हो रही थी। सभीकी इच्छा थी कि विद्यासागरको एक बार अपनी आँखोंसे देख लें।
सहसा पता चला विद्यासागर आ रहे हैं, विद्यासागर आ भी गये हैं।
एक वृद्धा भीड़ ठेलते हुए आगे बढ़ आयी। एक भद्रपुरुषसे उसने पूछा, हाँ रे, विद्यासागर कहाँ हैं? .
उस भद्रपुरुषने सामने ही विद्यासागरको दिखाते हुए कहा- यही तो हैं विद्यासागर मोशाय ।
वृद्धा अवाक् होकर थोड़ी देर विद्यासागरके मुखकी ओर ताकती रही। उसके बाद बोली, 'अरे! मेरा जला भाग्य ! यह मोटी चादर ओढ़े वेयरा देखनेके लिये धूपमें जलती रही। ना तो है इनके पास गाड़ी, ना है घड़ी, ना है चोगा-चपकन !'
सच बात है। गाड़ी घोड़ा, चोगा-चपकनकी तड़क भड़क नहीं है विद्यासागरके पास। उनकी पोशाक-ओशाक बड़ी मामूली है। अपने खानेके समय जो भी लस्टम पस्टम मिल जाय उसीसे काम चल जाता है, स्वयंको कपड़े पहनना हो तो धोती, चादर और चप्पल। किंतु, किसीको कुछ देना हो तो विद्यासागर बाजारसे खरीद लाते हैं अच्छे कपड़े और अच्छे किस्मकी खाद्य वस्तुएँ।
ईश्वरचन्द्र विद्यासागरका पूरा जीवन इसी तरहकी प्रेरक घटनाओंसे भरा हुआ है। दीन-दुखियोंके वे बन्धु थे। उनका हृदय करुणाका सागर था। माइकेल मधुसूदन दत्तका कथन याद आता है
विद्यार सागर तुमि एई जाने जने।
दयार सागर तुमि एई जानि मने ॥
तुम विद्याके सागर हो, यह तो सारा संसार जानताहै, किंतु तुम दयाके सागर हो, इसे तो मैं अपने मनमेही जानता हूँ।



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saadhaaran veshamen asaadhaaran manushya

saadhaaran veshamen asaadhaaran manushya

hugalee jileke kisee doora-daraajake gaanvake ek skoolamen vidyaasaagar aanevaale hain. gaanvabharake stree-purush toot pada़e, sabhee vidyaasaagarako ek baar dekhana chaahate hain. aaneka samay nikal gaya, vidyaasaagar tab bhee naheen aaye the. sirake oopar tej ghaam badha़ne laga, phir bhee bheeda़ kam naheen ho rahee thee. sabheekee ichchha thee ki vidyaasaagarako ek baar apanee aankhonse dekh len.
sahasa pata chala vidyaasaagar a rahe hain, vidyaasaagar a bhee gaye hain.
ek vriddha bheeda़ thelate hue aage badha़ aayee. ek bhadrapurushase usane poochha, haan re, vidyaasaagar kahaan hain? .
us bhadrapurushane saamane hee vidyaasaagarako dikhaate hue kahaa- yahee to hain vidyaasaagar moshaay .
vriddha avaak hokar thoda़ee der vidyaasaagarake mukhakee or taakatee rahee. usake baad bolee, 'are! mera jala bhaagy ! yah motee chaadar odha़e veyara dekhaneke liye dhoopamen jalatee rahee. na to hai inake paas gaada़ee, na hai ghada़ee, na hai chogaa-chapakan !'
sach baat hai. gaada़ee ghoda़a, chogaa-chapakanakee tada़k bhada़k naheen hai vidyaasaagarake paasa. unakee poshaaka-oshaak bada़ee maamoolee hai. apane khaaneke samay jo bhee lastam pastam mil jaay useese kaam chal jaata hai, svayanko kapada़e pahanana ho to dhotee, chaadar aur chappala. kintu, kiseeko kuchh dena ho to vidyaasaagar baajaarase khareed laate hain achchhe kapada़e aur achchhe kismakee khaady vastuen.
eeshvarachandr vidyaasaagaraka poora jeevan isee tarahakee prerak ghatanaaonse bhara hua hai. deena-dukhiyonke ve bandhu the. unaka hriday karunaaka saagar thaa. maaikel madhusoodan dattaka kathan yaad aata hai
vidyaar saagar tumi eee jaane jane.
dayaar saagar tumi eee jaani mane ..
tum vidyaake saagar ho, yah to saara sansaar jaanataahai, kintu tum dayaake saagar ho, ise to main apane manamehee jaanata hoon.

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