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सच्ची मदद  [Short Story]
प्रेरक कथा - Short Story (आध्यात्मिक कहानी)

सच्ची मदद

बंगालके प्रख्यात महापुरुष श्रीईश्वरचन्द्र विद्या सागरका पूरा जीवन ही मानव एवं समाज सेवामें बीता। सन् 1865 ई0 की बात है, बंगालमें भीषण अकाल पड़ा। उन्हीं दिनों बर्दवानमें एक दुबला-सा लड़का उनके पास आया। उसका भूखके कारण बुरा हाल था, परंतु चेहरेपर स्वाभिमानकी दीप्ति थी। उस लड़केने ईश्वरचन्द्रसे एक पैसा भीखमें नहीं, बल्कि उधारके रूपमें माँगा । विद्यासागर सोचमें पड़ गये कि माँगनेमें भी आत्मसम्मानकी झलक! लड़के पर मुग्ध हो उन्होंने कहा-'मान लो, मैं तुम्हें चार पैसे दूँ तो ?' लड़केने कहा-'महोदय ! मैं बड़े कष्टमें हूँ, आप मेरा मजाक न उड़ायें।'
विद्यासागर बोले- 'बेटे! मजाक नहीं, पर बताओ तो सही कि उन चार पैसोंका तुम करोगे क्या ?" लड़केने कहा-'दो पैसोंकी खानेकी चीज खरीदूँगा और दो पैसे माँको दूंगा।' ईश्वर बाबूने फिर पूछा 'यदि मैं तुम्हें चार आने दूं तो ?' लड़का रो पड़ा और मुँह फेरकर चलने लगा। ईश्वरचन्द्रने उसकी बाँह पकड़ ली और उत्तर सुनना चाहा। लड़केने फिर अनमने भावसे कहा-'दो आने दो दिनके भोजनके लिये, दो आनेमें कुछ खरीदकर चार आनेमें बेच दूंगा और चार आने माँके पास जमा कर दूंगा।' विद्यासागरने उस लड़केको एक रुपया दिया। रुपया लेकर वह लड़का चला गया।
कुछ वर्षों बाद जब विद्यासागर पुनः बर्दवान आये, तो एक युवक उनसे विशेष प्रेमसे मिला और उन्हें प्रणाम करके अपनी दुकानमें ले गया। विद्यासागरका उसने खूब सत्कार किया। तब ईश्वर बाबूने पूछा 'भाई! मैं तुम्हें पहचानता नहीं, अपना परिचय तो दो।' युवककी आँखें हर्षके मारे छलछला गर्यो। उसने उनकी मददकी बातको याद दिलाया। उसने बताया कि उस पैसेकी बचत करके आज वह इस मुकामपर पहुँचा है। उस समय ईश्वर बाबूकी आँखोंमें भी पानी आ गया और वे बड़ी देरतक उससे बातें करते रहे। [ श्रीरामकिशोरजी ]



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sachchee madada

sachchee madada

bangaalake prakhyaat mahaapurush shreeeeshvarachandr vidya saagaraka poora jeevan hee maanav evan samaaj sevaamen beetaa. san 1865 ee0 kee baat hai, bangaalamen bheeshan akaal pada़aa. unheen dinon bardavaanamen ek dubalaa-sa lada़ka unake paas aayaa. usaka bhookhake kaaran bura haal tha, parantu cheharepar svaabhimaanakee deepti thee. us lada़kene eeshvarachandrase ek paisa bheekhamen naheen, balki udhaarake roopamen maanga . vidyaasaagar sochamen pada़ gaye ki maanganemen bhee aatmasammaanakee jhalaka! lada़ke par mugdh ho unhonne kahaa-'maan lo, main tumhen chaar paise doon to ?' lada़kene kahaa-'mahoday ! main bada़e kashtamen hoon, aap mera majaak n uda़aayen.'
vidyaasaagar bole- 'bete! majaak naheen, par bataao to sahee ki un chaar paisonka tum karoge kya ?" lada़kene kahaa-'do paisonkee khaanekee cheej khareedoonga aur do paise maanko doongaa.' eeshvar baaboone phir poochha 'yadi main tumhen chaar aane doon to ?' lada़ka ro pada़a aur munh pherakar chalane lagaa. eeshvarachandrane usakee baanh pakada़ lee aur uttar sunana chaahaa. lada़kene phir anamane bhaavase kahaa-'do aane do dinake bhojanake liye, do aanemen kuchh khareedakar chaar aanemen bech doonga aur chaar aane maanke paas jama kar doongaa.' vidyaasaagarane us lada़keko ek rupaya diyaa. rupaya lekar vah lada़ka chala gayaa.
kuchh varshon baad jab vidyaasaagar punah bardavaan aaye, to ek yuvak unase vishesh premase mila aur unhen pranaam karake apanee dukaanamen le gayaa. vidyaasaagaraka usane khoob satkaar kiyaa. tab eeshvar baaboone poochha 'bhaaee! main tumhen pahachaanata naheen, apana parichay to do.' yuvakakee aankhen harshake maare chhalachhala garyo. usane unakee madadakee baatako yaad dilaayaa. usane bataaya ki us paisekee bachat karake aaj vah is mukaamapar pahuncha hai. us samay eeshvar baabookee aankhonmen bhee paanee a gaya aur ve bada़ee deratak usase baaten karate rahe. [ shreeraamakishorajee ]

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