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सत्यकी जय होती है  [आध्यात्मिक कहानी]
Short Story - Hindi Story (Spiritual Story)

सत्यकी जय होती है

'यह तरबूज कैसा है लड़के? -एक ग्राहकने
पूछा।
'यह तरबूज भीतरसे सड़ा है, श्रीमान् !'
ग्राहक मुँह बिदोरकर आगे बढ़ गया।
बगलमें दूसरा लड़का ककड़ी बेच रहा था। एक ककड़ीको उठाकर उसी ग्राहकने पूछा—'यह ककड़ी कैसी है लड़के ?'
'यह ताजी है, एकदम ताजी श्रीमान् !'
ग्राहक पैसे चुकाकर ककड़ी ले गया।
दूसरा पहलेवाले लड़केसे बोला- 'बड़ा मूर्ख है तू। अपने बेरको भी कोई खट्टा बताता है ? तू तू अपने मुँहसे अपने मालको खराब बताता है, तो कौन खरीदेगा उसे? मुझे देख, तीन दिनकी बासी ककड़ी मैंने 'ताजी' कहकर बेच दी। और तू बैठा है अपना तरबूज लिये तू हुए। कौन खरीदेगा तेरा माल ?"
पहला लड़का बोला-'कोई खरीदे या न खरीदे। मैं कहूँगा सच ही । जैसी चीज होगी, वैसी ही उसे बताऊँगा। झूठ बोलकर ग्राहकको कभी नहीं ठगूँगा, भले ही मुझे कितना ही कष्ट क्यों न उठाना पड़े।'
दूसरे दिन उस ग्राहकने ककड़ीवाले लड़केको बुरी तरह फटकारा-'तूने हमें ठग लिया। बड़ा झूठा है। कौन खरीदेगा तेरा माल ?'
पहलेवाले लड़केकी दूकान धड़ल्लेसे चलने लगी। लोगोंने समझ लिया कि चाहे जो हो, यह सच बोलता है। किसीको ठगता नहीं। माल महँगा हो तो भी लोग उसीसे खरीदते। सोचते, चीज तो उसके यहाँ ठीक मिलेगी।
धीरे-धीरे उसकी बड़ी उन्नति होती गयी। वह बड़ा सफल व्यापारी बन गया।
सत्यकी जय होती है। झूठकी पोल एक दिन खुलकर ही रहती है। [ श्रीकृष्णदत्तजी भट्ट ]



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satyakee jay hotee hai

satyakee jay hotee hai

'yah tarabooj kaisa hai lada़ke? -ek graahakane
poochhaa.
'yah tarabooj bheetarase sada़a hai, shreemaan !'
graahak munh bidorakar aage badha़ gayaa.
bagalamen doosara lada़ka kakada़ee bech raha thaa. ek kakada़eeko uthaakar usee graahakane poochhaa—'yah kakada़ee kaisee hai lada़ke ?'
'yah taajee hai, ekadam taajee shreemaan !'
graahak paise chukaakar kakada़ee le gayaa.
doosara pahalevaale lada़kese bolaa- 'bada़a moorkh hai too. apane berako bhee koee khatta bataata hai ? too too apane munhase apane maalako kharaab bataata hai, to kaun khareedega use? mujhe dekh, teen dinakee baasee kakaड़ee mainne 'taajee' kahakar bech dee. aur too baitha hai apana tarabooj liye too hue. kaun khareedega tera maal ?"
pahala lada़ka bolaa-'koee khareede ya n khareede. main kahoonga sach hee . jaisee cheej hogee, vaisee hee use bataaoongaa. jhooth bolakar graahakako kabhee naheen thagoonga, bhale hee mujhe kitana hee kasht kyon n uthaana pada़e.'
doosare din us graahakane kakada़eevaale lada़keko buree tarah phatakaaraa-'toone hamen thag liyaa. bada़a jhootha hai. kaun khareedega tera maal ?'
pahalevaale lada़kekee dookaan dhada़llese chalane lagee. logonne samajh liya ki chaahe jo ho, yah sach bolata hai. kiseeko thagata naheen. maal mahanga ho to bhee log useese khareedate. sochate, cheej to usake yahaan theek milegee.
dheere-dheere usakee bada़ee unnati hotee gayee. vah bada़a saphal vyaapaaree ban gayaa.
satyakee jay hotee hai. jhoothakee pol ek din khulakar hee rahatee hai. [ shreekrishnadattajee bhatt ]

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