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सर्वत्र इंटका जवाब पत्थर ही नहीं होता  [Hindi Story]
हिन्दी कहानी - Short Story (शिक्षदायक कहानी)

सर्वत्र इंटका जवाब पत्थर ही नहीं होता

आचार्य कृपाशंकरजी के श्रीमुख सुनी गयी एक भावपूर्ण कथाका उल्लेख किया जा रहा है, इस कथाका सन्दर्भ उन्होंने कृतिवासकी बैंगला रामायण बताया था
मेघनाद वधका दारुण समाचार सुनकर पुत्रवत्सला परम धैर्यशालिनी देवी मन्दोदरीका धैर्य समाप्त हो गया। यद्यपि वे रामभक्ता थीं, परंतु पुत्रयधके शोकले उनकी बुद्धिको मोहग्रस्त कर दिया। समस्त अनथका मूल सीताको मानकर ये आग्नेय नेत्रोंसे आँसू और क्रोधकी वर्षा करती हुई बड़ी तीव्रतासे अशोकवाटिकाकी और चलीं। श्रीविभीषणकी पत्नी सरमाने श्रीसीताजी से कहा-'हे विदेहनन्दिनी। मेघनादकी माता राजरानी मन्दोदरी पुत्रशोक संतप्त, आपके सन्निकट ही आ रही हैं। हमने अपने जीवनमें उन्हें इतना व्याकुल एवं क्रुद्ध कभी नहीं देखा। वे तो सर्वदा ही परम सुशीला एवं मधुरभाषिणी रही हैं।'
श्रीवैदेहीका हृदय आशंकासे भर गया। तबतक श्रीमन्दोदरीजी सम्मुख ही आ गयीं। वैदेही तुरंत उठीं और उनके चरणोंमें गिर पड़ी और कहने लगी- 'हे माता! आपके पुत्रको मेरे पुत्रने मारा है, इसलिये मैं आपसे विनम्रतापूर्वक प्रार्थना करती हूँ कि आप मेरे पुत्र लक्ष्मणको 'कहीं शाप न दे देना। हे देवि । मेरे मातृभक्त पुत्रने अपनी माताके उद्धारके लिये ही आपके पुत्रका वध किया है। इसलिये आपको मेरे धर्मनिरत पुत्रको क्षमा करना चाहिये। यदि आपको दण्ड दिये बिना सन्तोष न हो तो जो भी दण्ड देना हो मैं उपस्थित हूँ, वह मुझे दे देना, मेरे पुत्रको न देना।.
हे माता! आप भी माता हैं और मैं भी माता हूँ। यह निश्चित है कि माताके हृदयकी व्यथाको माता ही समझ सकती है। आपके पुत्रने अधर्मका साथ दिया है, और मेरे पुत्रने धर्मकी रक्षाके लिये कार्य किया है। हे
माता! दोनोंका अन्तर समझकर फिर कुछ निर्णय करें।'
श्रीसीताजीके मुखसे 'माता' शब्द सुनकर मन्दोदरीकी समस्त व्यथा निवृत्त हो गयी। उनका क्रोध शान्त होगया। तमतमाया मुखमण्डल सौम्य हो गया। आँखोंसे अजस्त्र करुणाकी वर्षा होने लगी। उन्होंने सीताको उठाकर अपने हृदयसे लगा लिया और कहा - 'हे पुत्रि! हे सीते! आज तुम्हारे मुखसे 'माता' शब्द सुनकर मुझे सब कुछ मिल गया। मेघनादके वधके उपरान्त मुझे तुम्हारी तरह परब्रह्म-महिषी पुत्री प्राप्त हो गयी। मेरा जीवन सफल हो गया। अब मुझे कोई क्लेश नहीं है, न मुझे पुत्रवधका शोक है और न पतिके वधकी चिन्ता ।
हे पुत्रि ! हे सीते! आज मैं अपने रोम-रोमसे आशीर्वाद देती हूँ कि तुम्हारा अखण्ड सौभाग्य बना रहे। तुम्हारे प्राणेश्वर राम युद्धमें विजयी हों।'
इस परिवर्तित भावनाने सबके हृदयको विभोर कर दिया। समस्त वातावरण करुण हो गया। माता और पुत्रीके मिलनसे रावणकी अशोकवाटिका भी धन्य-धन्य हो गयी।
मन्दोदरी सती थीं। सतीका शाप सत्य भी हो सकता था, परंतु सीता तो सती-शिरोमणि थीं। यदि मन्दोदरी शाप देती तो सीता भी तो शाप दे सकती थीं। रावणसे तो उन्होंने स्पष्ट ही कह दिया था कि अरे राक्षस! मैं चक्रवर्ती महाराजकी पुत्रवधू हूँ और महान् धर्मात्मा श्रीरामचन्द्रकी प्रियतमा पत्नी हूँ। मैं अपने तेजसे ही तुझे भस्म कर सकती हूँ। केवल मेरे पतिदेव श्रीरामजीकी आज्ञा न होनेसे और अपनी तपस्याको सुरक्षित रखनेके विचारसे ही मैं तुझे भस्म नहीं कर रही हूँ
असन्देशात्तु रामस्य तपसश्चानुपालनात् ।
न त्वां कुर्मि दशग्रीव भस्म भस्मार्हतेजसा ॥
सर्वत्र ईंटका जवाब पत्थर ही नहीं होता। पाषाण प्रहारके बदले पुष्प-वर्षण भी एक पद्धति है।
जो तोको काँटा बुवै, ताहि बोउ तू फूल।
तोको फूल के फूल हैं, वाको है तिरसूल ॥ धरतीसुताका यह व्यवहार, इस जलती- उबलती दुनियाके लिये आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना तब कभी था।



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sarvatr intaka javaab patthar hee naheen hotaa

sarvatr intaka javaab patthar hee naheen hotaa

aachaary kripaashankarajee ke shreemukh sunee gayee ek bhaavapoorn kathaaka ullekh kiya ja raha hai, is kathaaka sandarbh unhonne kritivaasakee baingala raamaayan bataaya thaa
meghanaad vadhaka daarun samaachaar sunakar putravatsala param dhairyashaalinee devee mandodareeka dhairy samaapt ho gayaa. yadyapi ve raamabhakta theen, parantu putrayadhake shokale unakee buddhiko mohagrast kar diyaa. samast anathaka mool seetaako maanakar ye aagney netronse aansoo aur krodhakee varsha karatee huee bada़ee teevrataase ashokavaatikaakee aur chaleen. shreevibheeshanakee patnee saramaane shreeseetaajee se kahaa-'he videhanandinee. meghanaadakee maata raajaraanee mandodaree putrashok santapt, aapake sannikat hee a rahee hain. hamane apane jeevanamen unhen itana vyaakul evan kruddh kabhee naheen dekhaa. ve to sarvada hee param susheela evan madhurabhaashinee rahee hain.'
shreevaideheeka hriday aashankaase bhar gayaa. tabatak shreemandodareejee sammukh hee a gayeen. vaidehee turant utheen aur unake charanonmen gir pada़ee aur kahane lagee- 'he maataa! aapake putrako mere putrane maara hai, isaliye main aapase vinamrataapoorvak praarthana karatee hoon ki aap mere putr lakshmanako 'kaheen shaap n de denaa. he devi . mere maatribhakt putrane apanee maataake uddhaarake liye hee aapake putraka vadh kiya hai. isaliye aapako mere dharmanirat putrako kshama karana chaahiye. yadi aapako dand diye bina santosh n ho to jo bhee dand dena ho main upasthit hoon, vah mujhe de dena, mere putrako n denaa..
he maataa! aap bhee maata hain aur main bhee maata hoon. yah nishchit hai ki maataake hridayakee vyathaako maata hee samajh sakatee hai. aapake putrane adharmaka saath diya hai, aur mere putrane dharmakee rakshaake liye kaary kiya hai. he
maataa! dononka antar samajhakar phir kuchh nirnay karen.'
shreeseetaajeeke mukhase 'maataa' shabd sunakar mandodareekee samast vyatha nivritt ho gayee. unaka krodh shaant hogayaa. tamatamaaya mukhamandal saumy ho gayaa. aankhonse ajastr karunaakee varsha hone lagee. unhonne seetaako uthaakar apane hridayase laga liya aur kaha - 'he putri! he seete! aaj tumhaare mukhase 'maataa' shabd sunakar mujhe sab kuchh mil gayaa. meghanaadake vadhake uparaant mujhe tumhaaree tarah parabrahma-mahishee putree praapt ho gayee. mera jeevan saphal ho gayaa. ab mujhe koee klesh naheen hai, n mujhe putravadhaka shok hai aur n patike vadhakee chinta .
he putri ! he seete! aaj main apane roma-romase aasheervaad detee hoon ki tumhaara akhand saubhaagy bana rahe. tumhaare praaneshvar raam yuddhamen vijayee hon.'
is parivartit bhaavanaane sabake hridayako vibhor kar diyaa. samast vaataavaran karun ho gayaa. maata aur putreeke milanase raavanakee ashokavaatika bhee dhanya-dhany ho gayee.
mandodaree satee theen. sateeka shaap saty bhee ho sakata tha, parantu seeta to satee-shiromani theen. yadi mandodaree shaap detee to seeta bhee to shaap de sakatee theen. raavanase to unhonne spasht hee kah diya tha ki are raakshasa! main chakravartee mahaaraajakee putravadhoo hoon aur mahaan dharmaatma shreeraamachandrakee priyatama patnee hoon. main apane tejase hee tujhe bhasm kar sakatee hoon. keval mere patidev shreeraamajeekee aajna n honese aur apanee tapasyaako surakshit rakhaneke vichaarase hee main tujhe bhasm naheen kar rahee hoon
asandeshaattu raamasy tapasashchaanupaalanaat .
n tvaan kurmi dashagreev bhasm bhasmaarhatejasa ..
sarvatr eentaka javaab patthar hee naheen hotaa. paashaan prahaarake badale pushpa-varshan bhee ek paddhati hai.
jo toko kaanta buvai, taahi bou too phoola.
toko phool ke phool hain, vaako hai tirasool .. dharateesutaaka yah vyavahaar, is jalatee- ubalatee duniyaake liye aaj bhee utana hee praasangik hai, jitana tab kabhee thaa.

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