'ऊधो! करमन की गति न्यारी'
(स्वामी श्रीशिवानन्दजी वैद्यराज)
एक बहुत बड़ा सेठ विपुल सम्पत्ति छोड़कर मरा था। उसका एकमात्र पुत्र उस सम्पत्तिका मालिक था। धनी लोगकि पुत्र अनावश्यक संसाधनोंकी प्रचुरताके कारण प्रायः बिगड़ जाते हैं। इसी दोषके कारण अपरिमित सम्पत्ति भेटके पुत्रने भी थोड़े दिनोंमें ही नष्ट कर दी। सम्पत्तिका नाश होनेसे उसे अत्यन्त कष्ट होने लगा। जिन धूर्त चापलूसोंके कुसंगमें पड़कर उसने धन गवाँया था, अब हे मीठी-मीठी बातोंकी जगह उसको फटकार देने लगे।
जब खाना मिलनेमें भी तंगी आने लगी, तब उसकी स्त्रीने कहा—'स्वामिन्! कुछ मेहनत में करती हूँ, कुछ आप करें, तो निर्वाह हो सकता है।' स्त्रीने सूत कातने, आटा पीसने तथा धान कूटने आदिकी मेहनत मजदूरी शुरू कर दी और उसका पति (सेठका पुत्र) जंगलमें घास तथा लकड़ी काटने जाने लगा। घटनाचक्रमें पड़कर इन दम्पतीको ऐसा मोटा काम करनेके लिये बाध्य होना पड़ा, जो उन्होंने कभी किया नहीं था। जिन कोमल हाथोंमें फूलोंकी पंखुड़ी चुभा करती थी तथा सेमलकी रूईके गद्दे कड़े मालूम पड़ते थे, उन हाथोंसे ऐसा कठिन काम करनेके कारण सेठके लड़केके हाथ-पाँवमें काँटे चुभ जाते और छाले पड़ जाया करते थे। इस कष्टसे व्यथित होकर एक दिन वह एकान्त स्थान पाकर विलाप करने लगा।
उस दिन पास बहनेवाली उस जंगलकी नदीके किनारे 'कर्मदेवता' और 'लक्ष्मी' दोनों विचर रहे थे। | सेठके लड़केका रोना सुनकर लक्ष्मी बोलीं-देखो! मेरे बिना जीवका ऐसा हाल होता है। जैसे
तानीन्द्रियाण्यविकलानि तदेव नाम
सा बुद्धिरप्रतिहता वचनं तदेव ।
अर्थोष्मणा विरहितः पुरुषः स एव
अन्यः क्षणेन भवतीति विचित्रमेतत् ॥
(नीतिशतक 40 )
मेरा साथ-सहारा पाकर पहले यह क्या था और अब मेरे बिना इसकी क्या दशा है? हाथ-पाँव आदि इन्द्रियाँ, नाम, बुद्धि, बोल-चाल पहले जैसी ही हैं, केवल धनकी गरमीके बिना इसकी यह हालत हो गयी। लक्ष्मीकी यह बात सुनकर कर्मदेवताने कहा-मेरे बिना इसकी यह गति हुई है। जैसे
ब्रह्मा येन कुलालवन्नियमितो ब्रह्माण्डभाण्डोदरे
विष्णुर्येन दशावतारगहने क्षिप्तो महासङ्कटे ।
रुद्रो येन कपालपाणिपुटके भिक्षाटनं कारितः
सूर्यो भ्राम्यति नित्यमेव गगने तस्मै नमः कर्मणे ।
(नीतिशतक 95)
सारा संसार कर्मका वशवर्ती हो दारुयोषित् (कठपुतली) की तरह नाच रहा है इत्यादि। बहुत कुछ कथनोपकथनसे दोनोंमें विवाद उपस्थित हो गया। कर्मने कहा- 'हे लक्ष्मी! तुम इसको धन देकर धनी करो। यदि तुम्हारे दिये धनसे यह धनी हो गया, तो तुम्हारा कथन सत्य है और जो धन पाकर भी यह ऐसेका ऐसा कोरा ही रहा, तो फिर अधिकता मेरी होगी, यानी मैं जीतूंगा।'
यह निर्णय हो जानेपर लक्ष्मीने उसके सामने रास्ते में दो लाल फेंक दिये। चूँकि वह सेठ था, अतः लालोंकी महिमा जानता था। लालोंको उठाकर बड़े हर्षसे घरको चला। गरमीका समय था, प्यास लग गयी। रास्तेमें एक छोटी-सी नदी थी। झुककर पानी पीने लगा, तो लालोंका जोड़ा जेबसे निकलकर नदीमें गिर पड़ा। गिरते ही खाद्यसामग्री जानकर मछलीने निगल लिया। वह घर आकर स्त्रीसहित पश्चात्ताप करने लगा। उस रोज सेठजी लालोंकी प्राप्तिकी खुशीमें बोझभरी तैयार गठरी भी वहीं जंगलके रास्तेमें पटक आये थे।
अगले दिन सेठतनय फिर नित्यकी तरह उसी जंगलमें लकड़ी काटने पहुँचा। उसकी दीन दशा देखकर लक्ष्मीजीने एक सच्चे मोतियोंका हार उस दिन रास्तेके बीचमें रख दिया। उसने हार उठाकर अपनी पगड़ीमें रख लिया। रास्ते में आनेवाली नदीमें स्नान करनेके वास्ते ठहर गया, हारसहित पगड़ी किनारेपर रख दी। चील खानेकी वस्तु समझकर हारको पगड़ीसहित लेकर उड़ गयी। आज भी सेठजीका लड़का खाली हाथों घर जाकर पत्नीके साथ शोक करने लगा।
तीसरे दिन सेठपुत्र फिर रोजकी तरह घास-फूस काटने जंगलमें पहुँचा, तो लक्ष्मीने रास्तेमें अशर्फियोंकी थैली फेंक दी। उसे सेठके पुत्रने उठा लिया। आज सेठ सीधा घरकी तरफ चला। रास्तेमें दो दिन धोखा खा जानेके कारण बीचमें कहीं नहीं ठहरा घरमें पहुँचनेपर देखा तो स्त्री घरपर नहीं थी। किसी पड़ोसीके यहाँ गयी थी। उसने घरके प्रधान दरवाजेके पास थैली रख दी और किवाड़ बन्द करके अपनी स्त्रीको पासके घरसे बुलाने गया। उसने समझा कि अभी लौट आता हूँ, पर वहाँ कुछ देर लग गयी। इतनेमें उसकी स्त्रीसे मिलने एक पड़ोसिन आयी। उसने दरवाजा खोला तो रास्तेके पास एक थैली देखी। धीरेसे थैली उठाकर पड़ोसिन अपने घर ले गयी। बादमें सेठ और उसकी स्त्रीने घर आकर थैली न देख बड़ा अफसोस किया।
चौथे दिन फिर सेठका पुत्र जंगलमें आकर घास काटने लगा। सेठकी यह दशा देख लक्ष्मीजीने कर्मदेवतासे कहा कि 'मैं तो सब कुछ दे चुकी। बार-बार दिया, फिर भी यह कोरा ही रहा। अब आप कुछ देकर देखिये।' यह सुन कर्मदेवताने सेठके पुत्रको ताँबेके दो टके दिये यानी उसके रास्तेमें दो पैसे फेंक दिये। सेठने टका उठाया और कहा कि 'आज भगवान्ने हमको टका दिया, टका ही सही। हमारा किसीपर कर्ज तो है नहीं। इससे पहले बहुत कुछ तो दिया, पर लक्ष्मी क्या करे, जब कर्म ही सहायक नहीं है।' सेठने टकेको लेकर घर जाते हुए देखा कि रास्ते में एक आदमी नदीसे मछली पकड़ रहा है। उसने एक पैसेकी मछली खरीदी। दूसरा पैसा मसाले और छौंक के तेलके लिये रख लिया। फिर सोचा लकड़ी यहींसे चुनता चलूँ। वहीं एक वृक्षपर सूखी डाली थी। उसे तोड़ने वृक्षपर चढ़ा तो वहाँ एक चीलका घोंसला नजर आया। उसमें हारसहित अपनी पगड़ी पड़ी देखी। उठाकर बड़ी खुशीसे घरमें आया। स्त्रीसे जरा जोरसे बोला-देवि ! जो चीज खो गयी थी, वह मिल गयी। यह आवाज उस पड़ोसिनने सुनी, जिसने थैली झटक ली थी। उसने सोचा- इसको थैलीका हाल मालूम हो गया। 'चोरकी दाढ़ीमें तिनका' वाली कहावतके अनुसार वह विचारने लगी कि कहीं यह राजपुरुषोंसे हमारे घरकी तलाशी न करा दे ? इससे अप्रतिष्ठा तो होगी ही साथमें जेल भी जाना होगा। शायद जुर्माना भी हो जाय ? इत्यादि, पूर्वापर विचारकर उसने वह थैली धीरेसे सेठके घरमें डाल दी। इसके बाद ज्यों ही सेठ घरमें गया, देखा कि थैली भी पड़ी है। उधर मछली चीरी गयी, तो लाल भी उसके पेटसे निकल आये। आनन्द हो गया।
भाव यह है कि मनुष्यके कर्म ही सुख-दुःखके देनेवाले हैं। कर्मानुसार सब सामग्री जुट जाती है। यदि कर्म अच्छे न हों या यों कह लो कि कर्म सहायक न हाँ, तो मिली हुई सामग्री भी नष्ट हो जाती है। यदि रह भी गयी तो अपने किसी काम नहीं आती। घरमें अपने अधीन घृत, दुग्ध, अन्न, वस्त्र, वाहनप्रभृति सभी वस्तुएँ प्रस्तुत हैं, किंतु मन्दभाग्य होनेके कारण ये सामग्रियाँ कुछ भी काम नहीं आतीं। कर्महीनोंको तो अपनी स्त्री, जो अर्धांगिनी, प्राणप्रिया, प्राणाधिका आदि सब कुछ कहलाती और होनेका दावा या दम भरती है-वह भी पलमें परायी हो जाती है।
कर्मवीरोंका कहना ही क्या है? कर्मठोंको समुद्र गोष्पदीभूत (गायके खुरसे बने गड्ढे के समान) हो जाता है। वे चाहें तो सुमेरुको फूँकसे उड़ा दें। जब कि सब कुछ कर्मानुसार होता है, फिर मनुष्य कर्म न करे और इष्टफलकी आशा करे, तो उसकी भारी भूल है। सुख सब चाहते हैं, किंतु मिलता है वह पुण्योंसे और पुण्य सत्कर्मोंसे निष्पन्न होते हैं। मनुष्य सत्कर्म तो करना नहीं चाहता और सुखकी इच्छा करता है। उसका ऐसा चाहना कारणके बिना कार्योत्पत्तिकी कल्पना करना है। 'करम प्रधान बिस्व करि राखा' आदि कथनानुसार कर्म ही सब इष्टसिद्धियोंका प्रधान साधन है। किसी मनुष्यको किसीके ऐश्वर्यको देखकर ईर्ष्यालु नहीं होना चाहिये। यदि उसे वैसे वैभवकी चाहना है, तो पुण्य करे यानी पुण्यजनक कर्म करे । 'अस्याः स्तनौ' इत्यादि श्लोकोंमें। श्रीभर्तृहरि आदि सन्तोंने ईर्ष्याकषायान्तःकरणों (ईर्ष्याके रंगमें रंगे अन्तःकरणवाले लोगों) को यही उपदेश दिया है यानी पुण्यसम्पादन करनेकी सम्मति दी है।
मनुष्य सम्पत्ति और मान-बड़ाई प्रभृतिके पीछे भागा फिरता है, किंतु मृगमरीचिका या मृगजलकी तरह उसके हाथ कुछ नहीं पड़ता। मनुष्य संसारी पदार्थोंके पीछे जितना दौड़ेगा, वे उससे उतना ही दूर भागेंगे।
भागती फिरती थी दुनिया
जब तलब करते थेहम
अब जो नफरत हमने की
तो वह बेकरार आने को है ॥
क्या मनुष्यको ऐसी विधि नहीं मालूम कि वह चाहे तो अष्ट सिद्धि और नौ निधि आदि विभूतियाँ उसके लिये हस्तामलकवत् हो जायँ ? यानी सब कुछ बिना बुलाये और बिना चाहे उसके पास आप-से-आप हाजिर हो जाय!
है, इसकी विधि भी है और वह 'कर्म' है। सब कुछ कर्मकी महिमासे सम्पन्न हो सकता है। सत्कर्मानुष्ठान करो। फिर तो तुम संसारमें अपने लिये नन्दनकाननकी सृष्टि कर ही लोगे, साथ ही इस दुनियाको भी स्वर्गधाम बना दोगे।
क्या करें? संसार कर्महीन हो गया, जगत्में अकर्मण्यता फैल गयी, अपनी-अपनी स्थितिके अनुसार चाहे ऊँचा हो चाहे नीचा, सबको स्व-स्वकर्म करना उचित है। पर आजकल कौन कर्मानुष्ठानसे कष्टको इष्ट मानता है? इसीका फल है 'दुर्भिक्षं मरणं भयम्।' लोगोंने अपने कर्म त्याग दिये, प्रकृतिदेवीने भी अपना काम करना छोड़ दिया या उसमें अस्तव्यस्तता ला दी। इसीसे नाना उत्पात उठकर देशको तबाह कर रहे हैं। किस कर्मका क्या फल है ? इसका अन्दाजा मनुष्य चाहे अपनी बुद्धिसे भले ही लगा ले, किंतु ठीक-ठीक तो भगवान् ही जानते हैं। इसीसे कहा गया है कि- 'ऊधो! करमन की गति न्यारी।'
'oodho! karaman kee gati nyaaree'
(svaamee shreeshivaanandajee vaidyaraaja)
ek bahut bada़a seth vipul sampatti chhoda़kar mara thaa. usaka ekamaatr putr us sampattika maalik thaa. dhanee logaki putr anaavashyak sansaadhanonkee prachurataake kaaran praayah bigada़ jaate hain. isee doshake kaaran aparimit sampatti bhetake putrane bhee thoda़e dinonmen hee nasht kar dee. sampattika naash honese use atyant kasht hone lagaa. jin dhoort chaapaloosonke kusangamen pada़kar usane dhan gavaanya tha, ab he meethee-meethee baatonkee jagah usako phatakaar dene lage.
jab khaana milanemen bhee tangee aane lagee, tab usakee streene kahaa—'svaamin! kuchh mehanat men karatee hoon, kuchh aap karen, to nirvaah ho sakata hai.' streene soot kaatane, aata peesane tatha dhaan kootane aadikee mehanat majadooree shuroo kar dee aur usaka pati (sethaka putra) jangalamen ghaas tatha lakada़ee kaatane jaane lagaa. ghatanaachakramen pada़kar in dampateeko aisa mota kaam karaneke liye baadhy hona pada़a, jo unhonne kabhee kiya naheen thaa. jin komal haathonmen phoolonkee pankhuda़ee chubha karatee thee tatha semalakee rooeeke gadde kaड़e maaloom pada़te the, un haathonse aisa kathin kaam karaneke kaaran sethake lada़keke haatha-paanvamen kaante chubh jaate aur chhaale pada़ jaaya karate the. is kashtase vyathit hokar ek din vah ekaant sthaan paakar vilaap karane lagaa.
us din paas bahanevaalee us jangalakee nadeeke kinaare 'karmadevataa' aur 'lakshmee' donon vichar rahe the. | sethake lada़keka rona sunakar lakshmee boleen-dekho! mere bina jeevaka aisa haal hota hai. jaise
taaneendriyaanyavikalaani tadev naama
sa buddhirapratihata vachanan tadev .
arthoshmana virahitah purushah s ev
anyah kshanen bhavateeti vichitrametat ..
(neetishatak 40 )
mera saatha-sahaara paakar pahale yah kya tha aur ab mere bina isakee kya dasha hai? haatha-paanv aadi indriyaan, naam, buddhi, bola-chaal pahale jaisee hee hain, keval dhanakee garameeke bina isakee yah haalat ho gayee. lakshmeekee yah baat sunakar karmadevataane kahaa-mere bina isakee yah gati huee hai. jaise
brahma yen kulaalavanniyamito brahmaandabhaandodare
vishnuryen dashaavataaragahane kshipto mahaasankate .
rudro yen kapaalapaaniputake bhikshaatanan kaaritah
sooryo bhraamyati nityamev gagane tasmai namah karmane .
(neetishatak 95)
saara sansaar karmaka vashavartee ho daaruyoshit (kathaputalee) kee tarah naach raha hai ityaadi. bahut kuchh kathanopakathanase dononmen vivaad upasthit ho gayaa. karmane kahaa- 'he lakshmee! tum isako dhan dekar dhanee karo. yadi tumhaare diye dhanase yah dhanee ho gaya, to tumhaara kathan saty hai aur jo dhan paakar bhee yah aiseka aisa kora hee raha, to phir adhikata meree hogee, yaanee main jeetoongaa.'
yah nirnay ho jaanepar lakshmeene usake saamane raaste men do laal phenk diye. choonki vah seth tha, atah laalonkee mahima jaanata thaa. laalonko uthaakar bada़e harshase gharako chalaa. garameeka samay tha, pyaas lag gayee. raastemen ek chhotee-see nadee thee. jhukakar paanee peene laga, to laalonka joda़a jebase nikalakar nadeemen gir pada़aa. girate hee khaadyasaamagree jaanakar machhaleene nigal liyaa. vah ghar aakar streesahit pashchaattaap karane lagaa. us roj sethajee laalonkee praaptikee khusheemen bojhabharee taiyaar gatharee bhee vaheen jangalake raastemen patak aaye the.
agale din sethatanay phir nityakee tarah usee jangalamen lakada़ee kaatane pahunchaa. usakee deen dasha dekhakar lakshmeejeene ek sachche motiyonka haar us din raasteke beechamen rakh diyaa. usane haar uthaakar apanee pagada़eemen rakh liyaa. raaste men aanevaalee nadeemen snaan karaneke vaaste thahar gaya, haarasahit pagada़ee kinaarepar rakh dee. cheel khaanekee vastu samajhakar haarako pagada़eesahit lekar uda़ gayee. aaj bhee sethajeeka lada़ka khaalee haathon ghar jaakar patneeke saath shok karane lagaa.
teesare din sethaputr phir rojakee tarah ghaasa-phoos kaatane jangalamen pahuncha, to lakshmeene raastemen asharphiyonkee thailee phenk dee. use sethake putrane utha liyaa. aaj seth seedha gharakee taraph chalaa. raastemen do din dhokha kha jaaneke kaaran beechamen kaheen naheen thahara gharamen pahunchanepar dekha to stree gharapar naheen thee. kisee pada़oseeke yahaan gayee thee. usane gharake pradhaan daravaajeke paas thailee rakh dee aur kivaada़ band karake apanee streeko paasake gharase bulaane gayaa. usane samajha ki abhee laut aata hoon, par vahaan kuchh der lag gayee. itanemen usakee streese milane ek pada़osin aayee. usane daravaaja khola to raasteke paas ek thailee dekhee. dheerese thailee uthaakar pada़osin apane ghar le gayee. baadamen seth aur usakee streene ghar aakar thailee n dekh bada़a aphasos kiyaa.
chauthe din phir sethaka putr jangalamen aakar ghaas kaatane lagaa. sethakee yah dasha dekh lakshmeejeene karmadevataase kaha ki 'main to sab kuchh de chukee. baara-baar diya, phir bhee yah kora hee rahaa. ab aap kuchh dekar dekhiye.' yah sun karmadevataane sethake putrako taanbeke do take diye yaanee usake raastemen do paise phenk diye. sethane taka uthaaya aur kaha ki 'aaj bhagavaanne hamako taka diya, taka hee sahee. hamaara kiseepar karj to hai naheen. isase pahale bahut kuchh to diya, par lakshmee kya kare, jab karm hee sahaayak naheen hai.' sethane takeko lekar ghar jaate hue dekha ki raaste men ek aadamee nadeese machhalee pakada़ raha hai. usane ek paisekee machhalee khareedee. doosara paisa masaale aur chhaunk ke telake liye rakh liyaa. phir socha lakada़ee yaheense chunata chaloon. vaheen ek vrikshapar sookhee daalee thee. use toda़ne vrikshapar chadha़a to vahaan ek cheelaka ghonsala najar aayaa. usamen haarasahit apanee pagada़ee pada़ee dekhee. uthaakar bada़ee khusheese gharamen aayaa. streese jara jorase bolaa-devi ! jo cheej kho gayee thee, vah mil gayee. yah aavaaj us pada़osinane sunee, jisane thailee jhatak lee thee. usane sochaa- isako thaileeka haal maaloom ho gayaa. 'chorakee daadha़eemen tinakaa' vaalee kahaavatake anusaar vah vichaarane lagee ki kaheen yah raajapurushonse hamaare gharakee talaashee n kara de ? isase apratishtha to hogee hee saathamen jel bhee jaana hogaa. shaayad jurmaana bhee ho jaay ? ityaadi, poorvaapar vichaarakar usane vah thailee dheerese sethake gharamen daal dee. isake baad jyon hee seth gharamen gaya, dekha ki thailee bhee pada़ee hai. udhar machhalee cheeree gayee, to laal bhee usake petase nikal aaye. aanand ho gayaa.
bhaav yah hai ki manushyake karm hee sukha-duhkhake denevaale hain. karmaanusaar sab saamagree jut jaatee hai. yadi karm achchhe n hon ya yon kah lo ki karm sahaayak n haan, to milee huee saamagree bhee nasht ho jaatee hai. yadi rah bhee gayee to apane kisee kaam naheen aatee. gharamen apane adheen ghrit, dugdh, ann, vastr, vaahanaprabhriti sabhee vastuen prastut hain, kintu mandabhaagy honeke kaaran ye saamagriyaan kuchh bhee kaam naheen aateen. karmaheenonko to apanee stree, jo ardhaanginee, praanapriya, praanaadhika aadi sab kuchh kahalaatee aur honeka daava ya dam bharatee hai-vah bhee palamen paraayee ho jaatee hai.
karmaveeronka kahana hee kya hai? karmathonko samudr goshpadeebhoot (gaayake khurase bane gaddhe ke samaana) ho jaata hai. ve chaahen to sumeruko phoonkase uda़a den. jab ki sab kuchh karmaanusaar hota hai, phir manushy karm n kare aur ishtaphalakee aasha kare, to usakee bhaaree bhool hai. sukh sab chaahate hain, kintu milata hai vah punyonse aur puny satkarmonse nishpann hote hain. manushy satkarm to karana naheen chaahata aur sukhakee ichchha karata hai. usaka aisa chaahana kaaranake bina kaaryotpattikee kalpana karana hai. 'karam pradhaan bisv kari raakhaa' aadi kathanaanusaar karm hee sab ishtasiddhiyonka pradhaan saadhan hai. kisee manushyako kiseeke aishvaryako dekhakar eershyaalu naheen hona chaahiye. yadi use vaise vaibhavakee chaahana hai, to puny kare yaanee punyajanak karm kare . 'asyaah stanau' ityaadi shlokonmen. shreebhartrihari aadi santonne eershyaakashaayaantahkaranon (eershyaake rangamen range antahkaranavaale logon) ko yahee upadesh diya hai yaanee punyasampaadan karanekee sammati dee hai.
manushy sampatti aur maana-bada़aaee prabhritike peechhe bhaaga phirata hai, kintu mrigamareechika ya mrigajalakee tarah usake haath kuchh naheen pada़taa. manushy sansaaree padaarthonke peechhe jitana dauda़ega, ve usase utana hee door bhaagenge.
bhaagatee phiratee thee duniyaa
jab talab karate thehama
ab jo napharat hamane kee
to vah bekaraar aane ko hai ..
kya manushyako aisee vidhi naheen maaloom ki vah chaahe to asht siddhi aur nau nidhi aadi vibhootiyaan usake liye hastaamalakavat ho jaayan ? yaanee sab kuchh bina bulaaye aur bina chaahe usake paas aapa-se-aap haajir ho jaaya!
hai, isakee vidhi bhee hai aur vah 'karma' hai. sab kuchh karmakee mahimaase sampann ho sakata hai. satkarmaanushthaan karo. phir to tum sansaaramen apane liye nandanakaananakee srishti kar hee loge, saath hee is duniyaako bhee svargadhaam bana doge.
kya karen? sansaar karmaheen ho gaya, jagatmen akarmanyata phail gayee, apanee-apanee sthitike anusaar chaahe ooncha ho chaahe neecha, sabako sva-svakarm karana uchit hai. par aajakal kaun karmaanushthaanase kashtako isht maanata hai? iseeka phal hai 'durbhikshan maranan bhayam.' logonne apane karm tyaag diye, prakritideveene bhee apana kaam karana chhoda़ diya ya usamen astavyastata la dee. iseese naana utpaat uthakar deshako tabaah kar rahe hain. kis karmaka kya phal hai ? isaka andaaja manushy chaahe apanee buddhise bhale hee laga le, kintu theeka-theek to bhagavaan hee jaanate hain. iseese kaha gaya hai ki- 'oodho! karaman kee gati nyaaree.'