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एक पैसेकी भी सिद्धि नहीं  [Hindi Story]
Shikshaprad Kahani - आध्यात्मिक कहानी (Short Story)

एक साधक था। उसने घोर तपस्या की और जलके ऊपर चलनेमें समर्थ हो गया। अब वह प्रसन्नतासे खिल उठा और दौड़ा हुआ अपने गुरुके पास गया। गुरुजीने पूछा 'क्यों आज बड़े प्रसन्न दीखते हो ? क्या बात है ?' साधक बोला, 'महाराज! मुझे जलपर चलनेकी सिद्धि प्राप्त हो गयी।' गुरुने कहा- 'चौदहवर्षोंतक क्या तुम इसीके लिये मरते रहे? यह तो तुम्हारी एक पैसेकी भी सिद्धि नहीं हुई; क्योंकि यह काम तो तुम मल्लाहको एक पैसा देकर भी कर सकते थे । तपस्या तो भगवत्प्राप्तिके लिये होती है। ऐश्वर्यादिकी प्राप्तिके लिये तपस्या करनेसे तो अच्छा है कि वह कोई व्यापार ही कर ले।' शिष्य लजा गया।



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ek paisekee bhee siddhi naheen

ek saadhak thaa. usane ghor tapasya kee aur jalake oopar chalanemen samarth ho gayaa. ab vah prasannataase khil utha aur dauda़a hua apane guruke paas gayaa. gurujeene poochha 'kyon aaj bada़e prasann deekhate ho ? kya baat hai ?' saadhak bola, 'mahaaraaja! mujhe jalapar chalanekee siddhi praapt ho gayee.' gurune kahaa- 'chaudahavarshontak kya tum iseeke liye marate rahe? yah to tumhaaree ek paisekee bhee siddhi naheen huee; kyonki yah kaam to tum mallaahako ek paisa dekar bhee kar sakate the . tapasya to bhagavatpraaptike liye hotee hai. aishvaryaadikee praaptike liye tapasya karanese to achchha hai ki vah koee vyaapaar hee kar le.' shishy laja gayaa.

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