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किसीको धर्ममें लगाना ही उसपर सच्ची कृपा करना है।  [Hindi Story]
Wisdom Story - हिन्दी कहानी (आध्यात्मिक कहानी)

एक बार एक दरिद्र ब्राह्मणके मनमें धन पानेकी तीव्र कामना हुई। वह सकाम यज्ञोंकी विधि जानता था; किंतु धन ही नहीं तो यज्ञ कैसे हो? वह धनकी प्राप्तिके लिये देवताओंकी पूजा और व्रत करने लगा। कुछ समय एक देवताकी पूजा करता; परंतु उससे कुछ लाभ नहीं दिखायी पड़ता तो दूसरे देवताकी पूजा करने लगता और पहलेको छोड़ देता। इस प्रकार उसे बहुत दिन बीत गये। अन्तमें उसने सोचा- 'जिस देवताको आराधना मनुष्यने कभी न की हो, मैं अब उसीकी उपासना करूँगा। वह देवता अवश्य मुझपर शीघ्र प्रसन्न होगा।'

ब्राह्मण यह सोच ही रहा था कि उसे आकाशमें कुण्डधार नामक मेघके देवताका प्रत्यक्ष दर्शन हुआ। ब्राह्मणने समझ लिया कि 'मनुष्यने कभी इनकी पूजा न ट की होगी। ये बृहदाकार मेघदेवता देवलोकके समीप रहते हैं, अवश्य ये मुझे धन देंगे।' बस, बड़ी श्रद्धा-भक्तिसे ब्राह्मणने उस कुण्डधार मेघकी पूजा प्रारम्भ कर दी।ब्राह्मणकी पूजासे प्रसन्न होकर कुण्डधारने देवताओंकी स्तुति की; क्योंकि वह स्वयं तो जलके अतिरिक्त किसीको कुछ दे नहीं सकता था। देवताओंकी प्रेरणासे यक्षश्रेष्ठ मणिभद्र उसके पास आकर बोले—'कुण्डधार! तुम क्या चाहते हो ?'

कुण्डधार—‘यक्षराज! देवता यदि मुझपर प्रसन्न हैं

तो मेरे उपासक इस ब्राह्मणको वे सुखी करें।' मणिभद्र – 'तुम्हारा भक्त यह ब्राह्मण यदि धन चाहता हो तो इसकी इच्छा पूर्ण कर दो। यह जितना धन माँगेगा, वह मैं इसे दे दूँगा।'

कुण्डधार- 'यक्षराज ! मैं इस ब्राह्मणके लिये धनकी प्रार्थना नहीं करता। मैं चाहता हूँ कि देवताओंकी कृपासे यह धर्मपरायण हो जाय। इसकी बुद्धि धर्ममें लगे।'

मणिभद्र–‘अच्छी बात! अब ब्राह्मणकी बुद्धि धर्ममें ही स्थित रहेगी।' उसी समय ब्राह्मणने स्वप्नमें देखा कि उसके चारों ओर कफन पड़ा हुआ है। यहदेखकर उसके हृदयमें वैराग्य उत्पन्न हुआ। वह सोचने लगा—'मैंने इतने देवताओंकी और अन्तमें कुण्डधार मेघकी भी धनके लिये आराधना की, किंतु इनमें कोई उदार नहीं दीखता। इस प्रकार धनकी आशामें ही लगे हुए जीवन व्यतीत करनेसे क्या लाभ। अब मुझे परलोककी चिन्ता करनी चाहिये।'

ब्राह्मण वहाँसे वनमें चला गया। उसने अब तपस्या करना प्रारम्भ किया। दीर्घकालतक कठोर तपस्या करनेके कारण उसे अद्भुत सिद्धि प्राप्त हुई। वह स्वयं आश्चर्य करने लगा—'कहाँ तो मैं धनके लिये देवताओंकी पूजा करता था और उसका कोई परिणाम नहीं होता था और कहाँ अब मैं स्वयं ऐसा हो गया कि किसीको धनी होनेका आशीर्वाद दे दूँ तो वह निःसंदेह धनी हो जायगा !'

ब्राह्मणका उत्साह बढ़ गया। तपस्यामें उसकी श्रद्धाबढ़ गयी। वह तत्परतापूर्वक तपस्यामें ही लगा रहा। एक दिन उसके पास वही कुण्डधार मेघ आया। उसने कहा- 'ब्रह्मन् ! तपस्याके प्रभावसे आपको दिव्यदृष्टि प्राप्त हो गयी है। अब आप धनी पुरुषों तथा राजाओंकी गति देख सकते हैं।' ब्राह्मणने देखा कि धनके कारण गर्वमें आकर लोग नाना प्रकारके पाप करते हैं और घोर नरकों में गिरते हैं।

कुण्डधार बोला- 'भक्तिपूर्वक मेरी पूजा करके आप यदि धन पाते और अन्तमें नरककी यातना भोगते तो मुझसे आपको क्या लाभ होता ? जीवका लाभ तो कामनाओंका त्याग करके धर्माचरण करनेमें ही है। उन्हें धर्ममें लगानेवाला ही उनका सच्चा हितैषी है ।'

ब्राह्मणने मेघके प्रति कृतज्ञता प्रकट की। कामनाओंका त्याग करके अन्तमें वह मुक्त हो गया ।

- सु0 सिं0 ( महाभारत, शान्ति0 271)



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kiseeko dharmamen lagaana hee usapar sachchee kripa karana hai.

ek baar ek daridr braahmanake manamen dhan paanekee teevr kaamana huee. vah sakaam yajnonkee vidhi jaanata thaa; kintu dhan hee naheen to yajn kaise ho? vah dhanakee praaptike liye devataaonkee pooja aur vrat karane lagaa. kuchh samay ek devataakee pooja karataa; parantu usase kuchh laabh naheen dikhaayee pada़ta to doosare devataakee pooja karane lagata aur pahaleko chhoda़ detaa. is prakaar use bahut din beet gaye. antamen usane sochaa- 'jis devataako aaraadhana manushyane kabhee n kee ho, main ab useekee upaasana karoongaa. vah devata avashy mujhapar sheeghr prasann hogaa.'

braahman yah soch hee raha tha ki use aakaashamen kundadhaar naamak meghake devataaka pratyaksh darshan huaa. braahmanane samajh liya ki 'manushyane kabhee inakee pooja n t kee hogee. ye brihadaakaar meghadevata devalokake sameep rahate hain, avashy ye mujhe dhan denge.' bas, bada़ee shraddhaa-bhaktise braahmanane us kundadhaar meghakee pooja praarambh kar dee.braahmanakee poojaase prasann hokar kundadhaarane devataaonkee stuti kee; kyonki vah svayan to jalake atirikt kiseeko kuchh de naheen sakata thaa. devataaonkee preranaase yakshashreshth manibhadr usake paas aakar bole—'kundadhaara! tum kya chaahate ho ?'

kundadhaara—‘yaksharaaja! devata yadi mujhapar prasann hain

to mere upaasak is braahmanako ve sukhee karen.' manibhadr – 'tumhaara bhakt yah braahman yadi dhan chaahata ho to isakee ichchha poorn kar do. yah jitana dhan maangega, vah main ise de doongaa.'

kundadhaara- 'yaksharaaj ! main is braahmanake liye dhanakee praarthana naheen karataa. main chaahata hoon ki devataaonkee kripaase yah dharmaparaayan ho jaaya. isakee buddhi dharmamen lage.'

manibhadra–‘achchhee baata! ab braahmanakee buddhi dharmamen hee sthit rahegee.' usee samay braahmanane svapnamen dekha ki usake chaaron or kaphan pada़a hua hai. yahadekhakar usake hridayamen vairaagy utpann huaa. vah sochane lagaa—'mainne itane devataaonkee aur antamen kundadhaar meghakee bhee dhanake liye aaraadhana kee, kintu inamen koee udaar naheen deekhataa. is prakaar dhanakee aashaamen hee lage hue jeevan vyateet karanese kya laabha. ab mujhe paralokakee chinta karanee chaahiye.'

braahman vahaanse vanamen chala gayaa. usane ab tapasya karana praarambh kiyaa. deerghakaalatak kathor tapasya karaneke kaaran use adbhut siddhi praapt huee. vah svayan aashchary karane lagaa—'kahaan to main dhanake liye devataaonkee pooja karata tha aur usaka koee parinaam naheen hota tha aur kahaan ab main svayan aisa ho gaya ki kiseeko dhanee honeka aasheervaad de doon to vah nihsandeh dhanee ho jaayaga !'

braahmanaka utsaah badha़ gayaa. tapasyaamen usakee shraddhaabadha़ gayee. vah tatparataapoorvak tapasyaamen hee laga rahaa. ek din usake paas vahee kundadhaar megh aayaa. usane kahaa- 'brahman ! tapasyaake prabhaavase aapako divyadrishti praapt ho gayee hai. ab aap dhanee purushon tatha raajaaonkee gati dekh sakate hain.' braahmanane dekha ki dhanake kaaran garvamen aakar log naana prakaarake paap karate hain aur ghor narakon men girate hain.

kundadhaar bolaa- 'bhaktipoorvak meree pooja karake aap yadi dhan paate aur antamen narakakee yaatana bhogate to mujhase aapako kya laabh hota ? jeevaka laabh to kaamanaaonka tyaag karake dharmaacharan karanemen hee hai. unhen dharmamen lagaanevaala hee unaka sachcha hitaishee hai .'

braahmanane meghake prati kritajnata prakat kee. kaamanaaonka tyaag karake antamen vah mukt ho gaya .

- su0 sin0 ( mahaabhaarat, shaanti0 271)

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