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क्रोधहीनताका प्रमाण  [आध्यात्मिक कहानी]
छोटी सी कहानी - छोटी सी कहानी (हिन्दी कथा)

एक बार एक पुण्यात्मा गृहस्थके घर एक अतिथि आये उसके शरीरपर सारे कपड़े काले थे। गृहस्थने तनिक खिन्नतासे कहा- तुमने काले कपड़े क्यों पहन रखे हैं?मेरे काम, क्रोधादि मित्रोंकी मृत्यु हो गयी है। उन्हींके शोकमें ये काले वस्त्र धारण कर लिये हैं। अतिथिने उत्तर दिया। गृहस्थने उक्त अतिथिको घरसे बाहर निकालदेनेका आदेश दिया। नौकरने तत्काल आज्ञा-पालन की। थोड़ी देर बाद उन्होंने उस अतिथिको वापस बुलाया और पास आते ही फिर निकाल देनेकी आज्ञा दी। इस प्रकार गृहस्थने उक्त अतिथिको सत्तर बार बुलाया और प्रत्येक बार उसे अपमानित करके नौकरसे बाहर निकलवा दिया। किंतु अतिथिकी आकृतिपर तनिक भी क्रोध या विषादके भाव परिलक्षित नहीं हुए।

अन्तमें गृहस्थने आगे बढ़कर अतिथिका माथा सूँघा और बड़े ही विनयसे कहा - सचमुच आप कावे (काले वस्त्र) पहननेके अधिकारी हैं, क्योंकि सत्तर बार अपमानके साथ घरसे बाहर निकाल देनेपर भी आपकेमनोभावमें परिवर्तन नहीं हुआ। आप सच्चे विनयी तथा क्षमाशील भक्त हैं, मैंने आपको क्रोध दिलानेके प्रयत्न करनेमें कोई कसर नहीं रखी, पर आखिर मैं ही हारा।

अतिथि बोले- बस करो, बस करो; अधिक प्रशंसा मत करो। मुझसे अधिक स्वभावसे ही क्षमाशील और धर्मात्मा तो बेचारे कुत्ते होते हैं जो हजारों बार बुलाने और दुत्कारते रहनेपर भी बराबर आते-जाते रहते हैं। यह तो कुत्तोंका धर्म है। इसमें प्रशंसाकी कौन-सी बात है।

यों कहकर अतिथि अपने प्रशंसकोंका मुँह पकड़ लिया।

- शि0 दु0



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krodhaheenataaka pramaana

ek baar ek punyaatma grihasthake ghar ek atithi aaye usake shareerapar saare kapada़e kaale the. grihasthane tanik khinnataase kahaa- tumane kaale kapada़e kyon pahan rakhe hain?mere kaam, krodhaadi mitronkee mrityu ho gayee hai. unheenke shokamen ye kaale vastr dhaaran kar liye hain. atithine uttar diyaa. grihasthane ukt atithiko gharase baahar nikaaladeneka aadesh diyaa. naukarane tatkaal aajnaa-paalan kee. thoda़ee der baad unhonne us atithiko vaapas bulaaya aur paas aate hee phir nikaal denekee aajna dee. is prakaar grihasthane ukt atithiko sattar baar bulaaya aur pratyek baar use apamaanit karake naukarase baahar nikalava diyaa. kintu atithikee aakritipar tanik bhee krodh ya vishaadake bhaav parilakshit naheen hue.

antamen grihasthane aage badha़kar atithika maatha soongha aur bada़e hee vinayase kaha - sachamuch aap kaave (kaale vastra) pahananeke adhikaaree hain, kyonki sattar baar apamaanake saath gharase baahar nikaal denepar bhee aapakemanobhaavamen parivartan naheen huaa. aap sachche vinayee tatha kshamaasheel bhakt hain, mainne aapako krodh dilaaneke prayatn karanemen koee kasar naheen rakhee, par aakhir main hee haaraa.

atithi bole- bas karo, bas karo; adhik prashansa mat karo. mujhase adhik svabhaavase hee kshamaasheel aur dharmaatma to bechaare kutte hote hain jo hajaaron baar bulaane aur dutkaarate rahanepar bhee baraabar aate-jaate rahate hain. yah to kuttonka dharm hai. isamen prashansaakee kauna-see baat hai.

yon kahakar atithi apane prashansakonka munh pakada़ liyaa.

- shi0 du0

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