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हाड़-मांसकी देह और मैं  [आध्यात्मिक कथा]
हिन्दी कहानी - Moral Story (Hindi Story)

हाड़-मांसकी देह और 'मैं'

महर्षि रमणकी आयु तब सत्रह वर्षकी रही होगी। एक बार वे अपने काकाके घरकी छतपर सो रहे थे कि उन्हें महसूस हुआ कि उनकी मृत्यु-वेला आ गयी है। वे गम्भीरतापूर्वक सोचने लगे कि यदि ऐसा हुआ तो उनका शरीर नष्ट होगा, या उसके अन्दर वास करनेवाले 'मैं' का नाश होगा? किंतु इसका उत्तर मिलेगा भी कैसे? इसका अनुभव तो उन्हें था ही नहीं।
आखिर वे उत्तान लेट गये और हाथ-पैर फैलाकर सोचने लगे कि बस अब उन्हें मृत्यु ग्रसने ही वाली है। उनकी मृत्यु होनेपर लोग उनके मृत शरीरको श्मशान में ले जायँगे। जहाँ उसकी राख हो जायगी। उनके मनमें फिर प्रश्न उठा, 'क्या, 'मैं' उस अवस्थामें भी रहेगा,
या वह भी जलेगा ?' इसका उत्तर उनकी अन्तरात्माने दिया 'मृत्यु शरीरको मार सकती है, 'मैं' को नहीं; क्योंकि वह अविनश्वर है, मृत्युकी सीमासे परे है, अमर है। इसलिये हाड़-मांसवाली इस देहका मोह त्यागना ही चाहिये।' और उस उत्तरसे उनके अन्तरके अज्ञानरूपी अहंकारका नाश हो गया। अविद्याका अन्त हो गया और उन्हें आत्मपरिचय हो गया। इस स्थितिमें भला मृत्यु कैसे पास आ सकती थी, उसपर उन्होंने विजय जो प्राप्त कर ली थी। वे उठ बैठे और उसी समय घरसे निकलकर अरुणाचलके मंदिरकी ओर निकल पड़े, जहाँ उन्होंने घोर तपस्या की और इसके फलस्वरूप पहले वे 'रमण स्वामी' और बादमें महर्षि रमण कहलाये ।



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haada़-maansakee deh aur main

haada़-maansakee deh aur 'main'

maharshi ramanakee aayu tab satrah varshakee rahee hogee. ek baar ve apane kaakaake gharakee chhatapar so rahe the ki unhen mahasoos hua ki unakee mrityu-vela a gayee hai. ve gambheerataapoorvak sochane lage ki yadi aisa hua to unaka shareer nasht hoga, ya usake andar vaas karanevaale 'main' ka naash hogaa? kintu isaka uttar milega bhee kaise? isaka anubhav to unhen tha hee naheen.
aakhir ve uttaan let gaye aur haatha-pair phailaakar sochane lage ki bas ab unhen mrityu grasane hee vaalee hai. unakee mrityu honepar log unake mrit shareerako shmashaan men le jaayange. jahaan usakee raakh ho jaayagee. unake manamen phir prashn utha, 'kya, 'main' us avasthaamen bhee rahega,
ya vah bhee jalega ?' isaka uttar unakee antaraatmaane diya 'mrityu shareerako maar sakatee hai, 'main' ko naheen; kyonki vah avinashvar hai, mrityukee seemaase pare hai, amar hai. isaliye haada़-maansavaalee is dehaka moh tyaagana hee chaahiye.' aur us uttarase unake antarake ajnaanaroopee ahankaaraka naash ho gayaa. avidyaaka ant ho gaya aur unhen aatmaparichay ho gayaa. is sthitimen bhala mrityu kaise paas a sakatee thee, usapar unhonne vijay jo praapt kar lee thee. ve uth baithe aur usee samay gharase nikalakar arunaachalake mandirakee or nikal pada़e, jahaan unhonne ghor tapasya kee aur isake phalasvaroop pahale ve 'raman svaamee' aur baadamen maharshi raman kahalaaye .

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