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सफलताका मूल है-ज्ञान, कर्म और भक्तिका सामंजस्य  [Spiritual Story]
बोध कथा - हिन्दी कहानी (प्रेरक कथा)

सफलताका मूल है-ज्ञान, कर्म और भक्तिका सामंजस्य

भगवान् श्रीकृष्णसे नारदजीने एक बार कौतूहलवश पूछा कि उनका अनन्य भक्त कौन है? श्रीकृष्णने उन्हें एक व्यक्तिका नाम बताया और उससे मिलनेको कहा। नारदने जाकर देखा कि वह एक मोची है। दिनभर जूतोंकी मरम्मत करता है और एकाध बार ही भगवान्‌का नाम लेता है। नारदको उसमें भक्तके लक्षण नहीं दिखायी दिये। वे लौट आये। तब श्रीकृष्णने उन्हें एक तेलभरा कटोरा दिया और बिना एक बूँद भी छलके उसे कैलासपर भगवान् शिव के पास पहुँचानेका आग्रह किया। नारद जब कटीरा पहुँचा आये तो श्रीकृष्ण उन्हें देखकर मुसकराये।
उन्होंने पूछा- 'देवर्षि! यहाँसे कैलासतककी यात्रामेंआपने कितनी बार नारायणका नाम लिया ? सच-सचबताइयेगा ?'
नारद बोले- 'आपने तेलका कटोरा क्या पकड़ा दिया, मेरा सारा ध्यान उसीपर लगा रहा। नारायणका नाम लेने लगता तो तेल छलक जाता और कैलास पहुँचनेतक कटोरे में एक बूँद भी तेल न बचता।'
श्रीकृष्णने कहा- 'कर्म करते हुए कभी-कभी ईश्वरका स्मरण कर लेना, उसमें सच्ची आस्था रखना और ज्ञानकी दृष्टिसे अपने कर्तव्यका ठीक-ठीक पालन करना ही सर्वश्रेष्ठ भगवद्भक्त बननेके लिये आवश्यक है।'
सड़ककी मरम्मत करनेवाला, पुल या इमारत बनानेवाला, कपड़ा बुनने या सिलाई करनेवाला या अन्य कोई काम करनेवाला यदि यह सोचे कि उसका कार्य देश या समाजकी सेवाका रूप है तो उसे उस काममें अधिक आनन्द आयेगा। देश-समाजकी भक्ति उसमें कामकी दूनी कर देगी। उसकी योग्यता और ज्ञानसे उसके काममें त्रुटिकी सम्भावना नहीं रहेगी। हमारे कर्ममय जीवनमें ज्ञान, भक्ति और कर्म तीनोंका सामंजस्य स्थापित होना चाहिये। इन तीनोंकी एकात्मकता ही सफलता और समस्त सिद्धियोंका मूल है। सफलताका मूल है-ज्ञान, भक्ति और कर्मका सामंजस्य ।



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saphalataaka mool hai-jnaan, karm aur bhaktika saamanjasya

saphalataaka mool hai-jnaan, karm aur bhaktika saamanjasya

bhagavaan shreekrishnase naaradajeene ek baar kautoohalavash poochha ki unaka anany bhakt kaun hai? shreekrishnane unhen ek vyaktika naam bataaya aur usase milaneko kahaa. naaradane jaakar dekha ki vah ek mochee hai. dinabhar jootonkee marammat karata hai aur ekaadh baar hee bhagavaan‌ka naam leta hai. naaradako usamen bhaktake lakshan naheen dikhaayee diye. ve laut aaye. tab shreekrishnane unhen ek telabhara katora diya aur bina ek boond bhee chhalake use kailaasapar bhagavaan shiv ke paas pahunchaaneka aagrah kiyaa. naarad jab kateera pahuncha aaye to shreekrishn unhen dekhakar musakaraaye.
unhonne poochhaa- 'devarshi! yahaanse kailaasatakakee yaatraamenaapane kitanee baar naaraayanaka naam liya ? sacha-sachabataaiyega ?'
naarad bole- 'aapane telaka katora kya pakada़a diya, mera saara dhyaan useepar laga rahaa. naaraayanaka naam lene lagata to tel chhalak jaata aur kailaas pahunchanetak katore men ek boond bhee tel n bachataa.'
shreekrishnane kahaa- 'karm karate hue kabhee-kabhee eeshvaraka smaran kar lena, usamen sachchee aastha rakhana aur jnaanakee drishtise apane kartavyaka theeka-theek paalan karana hee sarvashreshth bhagavadbhakt bananeke liye aavashyak hai.'
sada़kakee marammat karanevaala, pul ya imaarat banaanevaala, kapada़a bunane ya silaaee karanevaala ya any koee kaam karanevaala yadi yah soche ki usaka kaary desh ya samaajakee sevaaka roop hai to use us kaamamen adhik aanand aayegaa. desha-samaajakee bhakti usamen kaamakee doonee kar degee. usakee yogyata aur jnaanase usake kaamamen trutikee sambhaavana naheen rahegee. hamaare karmamay jeevanamen jnaan, bhakti aur karm teenonka saamanjasy sthaapit hona chaahiye. in teenonkee ekaatmakata hee saphalata aur samast siddhiyonka mool hai. saphalataaka mool hai-jnaan, bhakti aur karmaka saamanjasy .

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