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चिरकारी प्रशस्यते  [आध्यात्मिक कहानी]
Moral Story - Shikshaprad Kahani (Hindi Story)

'चिरकारी प्रशस्यते'

महर्षि गौतम (मेधातिथि) के एक चिरकारी नामवाला पुत्र था, जो बड़ा बुद्धिमान् था। वह किसी कार्यपर बहुत देरतक विचार करता था और चिरविलम्बके बाद ही काम पूरा करता था, इसलिये सब लोग उसे चिरकारी कहने लगे। एक दिन गौतम किसी कारणसे अपनी स्त्रीपर बहुत क्रोधित हुए और अपने पुत्र 'चिरकारीसे कहा- 'बेटा! तू अपनी इस पापिनी माताको मार डाल।' बिना विचारे ही यह आज्ञा देकर महर्षि गौतम वनमें चले गये और चिरकारी 'हाँ' करके भी अपने स्वभावके अनुसार बहुत देरतक उसपर विचार करता रहा। उसने सोचा- 'क्या उपाय करूँ, जिससे पिताकी आज्ञाका पालन भी हो जाय और माताका वध भी न हो। धर्मके बहाने यह मुझपर बड़ा भारी संकट आ पड़ा। पिताकी आज्ञाका पालन परम धर्म है, साथ ही माताकी रक्षा करना भी अपना प्रधान धर्म है। पुत्र तो पिता और माता दोनोंके अधीन होता है। अतः क्या करूँ, जिससे मेरा ही धर्म मुझे कष्टमें न डाले। मुझे माता और पिता दोनोंने ही जन्म दिया है; फिर मैं अपनेको दोनोंका ही पुत्र क्यों न समझें? पिता भरण-पोषण और अध्यापन करनेके कारण पुत्रका प्रधान गुरु है। वह जो कुछ भी आज्ञा दे, उसे धर्म समझकर स्वीकार करना चाहिये। अस्तु, पिताके गौरवपर तो मैंने विचार कर लिया, अब माताके विषयमें सोचता हूँ।
मुझे जो यह पांचभौतिक मनुष्य-शरीर मिला है, इसको जन्म देनेवाली मेरी माता ही है। संसारके समस्त दुखी जीवोंको मातासे ही सान्त्वना मिलती है। जबतक माता जीवित रहती है, मनुष्य अपनेको सनाथ समझता है। उसके मरनेपर वह अनाथ-सा हो जाता है। बेटा समर्थ हो या असमर्थ, हृष्ट-पुष्ट हो या दुर्बल, माता हमेशा उसकी रक्षामें रहती है। माताके समान विधिपूर्वक पालन-पोषण करनेवाला दूसरा कोई नहीं है। जब मातासे बिछोह हो जाता है, उस समय मनुष्य अपनेको बुड्ढा समझने लगता है, बहुत दुखी हो जाता है और ऐसा जान पड़ता है, मानो उसके लिये सारा संसार सूना हो गया। माताकी छत्र-छायामें जो सुख है, वह कहीं नहीं है। माताके तुल्य दूसरा सहारा नहीं है। ऐसी माताका भला कौन पुत्र वध करेगा?
माताका गौरव पितासे भी बढ़कर है। एक तो वह नारी होनेके कारण ही अवध्य है, दूसरे मेरी पूजनीया माता है। नासमझ पशु भी स्त्री और माताको अवध्य मानते हैं; फिर मैं समझदार होकर भी उसका वध कैसे करूँ?
चिरकारी इस प्रकार बहुत देरतक सोचता- विचारता रहा, इतनेमें उसके पिता वनसे लौटे। उस समय उन्हें बड़ा पश्चात्ताप हो रहा था। वे शोकके आँसू बहाते हुए मन-ही-मन इस प्रकार कह रहे थे—'मैंने उदारबुद्धि चिरकारीको उसकी माताका वध करनेकी आज्ञा दी थी। यदि उसने इस कार्यमें विलम्ब करके अपने नामको सार्थक किया हो तो वही मुझे स्त्री-हत्याके पातकसे
बचा सकता है। बेटा चिरकारिक। आज विलम्ब करके वास्तवमें चिरकारी बन और अपनी माता तथा मेरी तपस्याकी रक्षा कर, साथ ही मुझे और अपने-आपको भी पापसे बचा ले।'
इस प्रकार दुखी होकर सोचते-विचारते हुए महर्षि गौतम जब आश्रममें आये तो उन्हें चिरकारी अपने पास ही खड़ा दिखायी दिया। वह पिताको देखकर बहुत दुखी हुआ और हथियार फेंककर उन्हें प्रसन्न करनेके लिये चरणोंपर गिर पड़ा। पुत्रको पैरोंपर गिरा देख और पत्नीको जीवित जानकर महर्षिको बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने चिरकारीको उठाकर गलेसे लगा लिया और उसकी प्रशंसा करके आशीर्वाद और उपदेश देते हुए बोले-'वत्स! तू सदा चिरजीवी रह, तेरा कल्याण हो; यों ही चिरकालतक सोच-विचारकर काम किया कर। आज तेरी चिरकारिताके ही कारण मैं बहुत समयतक दुख भोगने से बच गया। राग, दर्प, अभिमान, द्रोह, पाप और किसीका अप्रिय करनेमें विलम्ब करके जो खूब सोच-विचार लेता है; वह प्रशंसनीय माना जाता है। बन्धु, सुहृद्, भृत्य और स्त्रियोंके छिपे हुए अपराधोंका निर्णय करनेमें जल्दीबाजी करना अच्छा



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chirakaaree prashasyate

'chirakaaree prashasyate'

maharshi gautam (medhaatithi) ke ek chirakaaree naamavaala putr tha, jo bada़a buddhimaan thaa. vah kisee kaaryapar bahut deratak vichaar karata tha aur chiravilambake baad hee kaam poora karata tha, isaliye sab log use chirakaaree kahane lage. ek din gautam kisee kaaranase apanee streepar bahut krodhit hue aur apane putr 'chirakaareese kahaa- 'betaa! too apanee is paapinee maataako maar daala.' bina vichaare hee yah aajna dekar maharshi gautam vanamen chale gaye aur chirakaaree 'haan' karake bhee apane svabhaavake anusaar bahut deratak usapar vichaar karata rahaa. usane sochaa- 'kya upaay karoon, jisase pitaakee aajnaaka paalan bhee ho jaay aur maataaka vadh bhee n ho. dharmake bahaane yah mujhapar bada़a bhaaree sankat a pada़aa. pitaakee aajnaaka paalan param dharm hai, saath hee maataakee raksha karana bhee apana pradhaan dharm hai. putr to pita aur maata dononke adheen hota hai. atah kya karoon, jisase mera hee dharm mujhe kashtamen n daale. mujhe maata aur pita dononne hee janm diya hai; phir main apaneko dononka hee putr kyon n samajhen? pita bharana-poshan aur adhyaapan karaneke kaaran putraka pradhaan guru hai. vah jo kuchh bhee aajna de, use dharm samajhakar sveekaar karana chaahiye. astu, pitaake gauravapar to mainne vichaar kar liya, ab maataake vishayamen sochata hoon.
mujhe jo yah paanchabhautik manushya-shareer mila hai, isako janm denevaalee meree maata hee hai. sansaarake samast dukhee jeevonko maataase hee saantvana milatee hai. jabatak maata jeevit rahatee hai, manushy apaneko sanaath samajhata hai. usake maranepar vah anaatha-sa ho jaata hai. beta samarth ho ya asamarth, hrishta-pusht ho ya durbal, maata hamesha usakee rakshaamen rahatee hai. maataake samaan vidhipoorvak paalana-poshan karanevaala doosara koee naheen hai. jab maataase bichhoh ho jaata hai, us samay manushy apaneko buddha samajhane lagata hai, bahut dukhee ho jaata hai aur aisa jaan pada़ta hai, maano usake liye saara sansaar soona ho gayaa. maataakee chhatra-chhaayaamen jo sukh hai, vah kaheen naheen hai. maataake tuly doosara sahaara naheen hai. aisee maataaka bhala kaun putr vadh karegaa?
maataaka gaurav pitaase bhee badha़kar hai. ek to vah naaree honeke kaaran hee avadhy hai, doosare meree poojaneeya maata hai. naasamajh pashu bhee stree aur maataako avadhy maanate hain; phir main samajhadaar hokar bhee usaka vadh kaise karoon?
chirakaaree is prakaar bahut deratak sochataa- vichaarata raha, itanemen usake pita vanase laute. us samay unhen baड़a pashchaattaap ho raha thaa. ve shokake aansoo bahaate hue mana-hee-man is prakaar kah rahe the—'mainne udaarabuddhi chirakaareeko usakee maataaka vadh karanekee aajna dee thee. yadi usane is kaaryamen vilamb karake apane naamako saarthak kiya ho to vahee mujhe stree-hatyaake paatakase
bacha sakata hai. beta chirakaarika. aaj vilamb karake vaastavamen chirakaaree ban aur apanee maata tatha meree tapasyaakee raksha kar, saath hee mujhe aur apane-aapako bhee paapase bacha le.'
is prakaar dukhee hokar sochate-vichaarate hue maharshi gautam jab aashramamen aaye to unhen chirakaaree apane paas hee khada़a dikhaayee diyaa. vah pitaako dekhakar bahut dukhee hua aur hathiyaar phenkakar unhen prasann karaneke liye charanonpar gir pada़aa. putrako paironpar gira dekh aur patneeko jeevit jaanakar maharshiko bada़ee prasannata huee. unhonne chirakaareeko uthaakar galese laga liya aur usakee prashansa karake aasheervaad aur upadesh dete hue bole-'vatsa! too sada chirajeevee rah, tera kalyaan ho; yon hee chirakaalatak socha-vichaarakar kaam kiya kara. aaj teree chirakaaritaake hee kaaran main bahut samayatak dukh bhogane se bach gayaa. raag, darp, abhimaan, droh, paap aur kiseeka apriy karanemen vilamb karake jo khoob socha-vichaar leta hai; vah prashansaneey maana jaata hai. bandhu, suhrid, bhrity aur striyonke chhipe hue aparaadhonka nirnay karanemen jaldeebaajee karana achchhaa

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