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धनका गर्व उचित नहीं  [Story To Read]
आध्यात्मिक कथा - Short Story (Moral Story)

कोई धनवान् पुरुष अपने मित्रके साथ कहीं जा रहे थे। मार्गमें एक विपत्तिमें पड़े कंगालको देखकर मित्रका हाथ दबाकर वे व्यंगपूर्वक हँस पड़े। समीपसे ही कोई विद्वान् पुरुष जा रहे थे। धनीका यह व्यवहार उन्हें अनुचित प्रतीत हुआ। वे बोले -

आपद्गतं हससि किं द्रविणान्धमूढ

लक्ष्मीः स्थिरा न भवतीह किमत्र चित्रम् l

किं त्वं न पश्यसि घटाञ्जलयन्त्रचक्रे

रिक्ता भवन्ति भरिता भरिताश्च रिक्ताः ॥

‘अरे! धनके मदसे अंधे बने मूर्ख! आपत्ति पड़े व्यक्तिको देखकर हँसता है, किंतु लक्ष्मी कहीं स्थिर नहीं रहती, अतः इसमें (किसीके कंगाल होनेमें) विचित्र बात क्या है। क्या तू रहँटकी ओर नहीं देखता कि उसमें लगी भरी डोलियाँ खाली होती जाती हैं और खाली हुई फिर भरती हैं। '

यह बात सुनकर वह धनवान् लज्जित हो गया।

- सु0 सिं0



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dhanaka garv uchit naheen

koee dhanavaan purush apane mitrake saath kaheen ja rahe the. maargamen ek vipattimen pada़e kangaalako dekhakar mitraka haath dabaakar ve vyangapoorvak hans pada़e. sameepase hee koee vidvaan purush ja rahe the. dhaneeka yah vyavahaar unhen anuchit prateet huaa. ve bole -

aapadgatan hasasi kin dravinaandhamoodha

lakshmeeh sthira n bhavateeh kimatr chitram l

kin tvan n pashyasi ghataanjalayantrachakre

rikta bhavanti bharita bharitaashch riktaah ..

‘are! dhanake madase andhe bane moorkha! aapatti pada़e vyaktiko dekhakar hansata hai, kintu lakshmee kaheen sthir naheen rahatee, atah isamen (kiseeke kangaal honemen) vichitr baat kya hai. kya too rahantakee or naheen dekhata ki usamen lagee bharee doliyaan khaalee hotee jaatee hain aur khaalee huee phir bharatee hain. '

yah baat sunakar vah dhanavaan lajjit ho gayaa.

- su0 sin0

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