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उससे वसन्त रूठ गया  [Spiritual Story]
Spiritual Story - छोटी सी कहानी (आध्यात्मिक कहानी)

उससे वसन्त रूठ गया

एक बगीचा शहरके बीचमें था। हरी घासका उसमें बहुत बड़ा लान था और चारों तरफ भाँति-भाँति के वृक्ष थे, जिनपर सुन्दर फूल खिला करते थे। एक तरफ आडूके बारह वृक्ष थे। वसन्तमें इनपर कोमल-कोमल और गुलाबी मोतियों-जैसे फूल लद जाते थे। टहनियाँ दिखायी न देतीं, फूल-ही-फूल नजर आते। बादमें अपने मौसमपर ये फूल फलोंमें बदल जाते। ये आडू इतने मीठे होते कि सब उन्हें 'रसीले आडू' कहते।
स्कूलसे लौटते हुए बालक इस बगीचेमें आ जाते और खूब खेलते। वे आपसमें कहते-'यहाँ खेलने में कितना सुख है।' इन वृक्षोंपर बैठी सुन्दर चिड़ियाँ मीठे मीठे गीत गाती रहतीं। कभी-कभी बालक अपना खेल भूलकर इन गीतोंको सुनने लगते और खुद भी गाने लगते। उन्हें कोई टोकनेवाला तो वहाँ था ही नहीं। बात यह थी कि इस बगीचेका मालिक परदेश गया हुआ था।
एक दिन बालक अपनी मौजमेंखेल रहे थे कि एकाएक उनके कानोंमें गुस्सेसे भरी यह आवाज पड़ी 'अरे! तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो ?' चौंककर उन्होंने देखा कि राक्षस जैसा एक लम्बा-चौड़ा आदमी झपटा झपटा उनकी तरफ ही आ रहा है। उसे देखते ही बालक वहाँसे भागे। भागते-भागते उन्होंने सुना - 'यह मेरा बगीचा है। मैं अपने सिवा इसमें किसीको नहीं घुसने दूँगा। '
कुछ ही दिनोंमें उस आदमीने बगीचेके चारों तरफ ऊँची दीवार बनवा दी और उसपर लिखवा दिया- 'जो कोई इसमें घुसने की कोशिश करेगा, उसे दण्ड मिलेगा।' बालक स्कूल आते-जाते उस दीवारको देखते, उस बोर्डको पढ़ते और उन दिनोंकी बातोंको याद करते, जब वे बगीचेमें खेला करते थे।
वह राक्षस अपने बगीचेमें अकेला घूमता और कभी-कभी आप ही आप कहता- 'इस बार वसन्तमें मैं यहाँके फूलोंका आनन्द अकेले ही लूटूंगा और पूरे फल खुद ही खाऊँगा।'
अपने समयपर वसन्त आया। सबके बगीचोंमें फूल खिले, पर राक्षसके बगीचेमें न फूल खिले, न चिड़ियाँ चहकीं। फल कहाँसे लगते ? हाँ, कोहरा और बर्फ खूब पड़ी और इस तरह बगीचा सुनसान हो गया। राक्षस अकेला अपने कमरेमें पड़ा रहता और सोचता रहता
'यह क्या बात हुई कि सबके यहाँ बहार है, पर मेरे यहाँ सुनसान है!' यों ही कई वसन्त बीत गये।
एक दिन वह अपने कमरेमें उदास पड़ा था कि उसे अपनी खिड़कीमें चिड़ियोंकी चहचहाहट सुना दो। उसने उठकर बाहर झाँका तो वह भौचक रह गया। बात यह थी कि उसके बगीचेमें फिर वसन्त आ गया। था। डाल-डाल फूल खिले थे और चिड़ियाँ मीठे गीत गा रही थीं।
उसने देखा कि जो ऊँची दीवार उसने बनायी थी, वह एक तरफ थोड़ी-सी टूट गयी थी और उसमेंसे बहुतसे बालक बगीचेमें घुस आये थे। राक्षसने सोचा, मैंने स्वार्थमें डूबकर बच्चोंका बगीचेमें आना बन्द कर दिया, इसीलिये वसन्त मेरे बगीचेसे रूठ गया था। वह बालकोंके पास पहुँचा और खेलने लगा। वह दीवार भी उसने तुड़वा दी और हमेशा खुश रहने लगा।
ऑस्कर वाइल्डकी यह कहानी क्या कहती है? यह कहती है कि जो आदमी अकेले ही सुख भोगना चाहता है, वह खुदगर्ज और स्वार्थी है, उससे वसन्त रूठ जाता है, उसकी खुशियाँ उससे छिन जाती हैं और जो दूसरोंको खुशी देकर खुश होना चाहता है, उसपर वसन्त यानी खुशियाँ बरसती रहती हैं।



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usase vasant rooth gayaa

usase vasant rooth gayaa

ek bageecha shaharake beechamen thaa. haree ghaasaka usamen bahut bada़a laan tha aur chaaron taraph bhaanti-bhaanti ke vriksh the, jinapar sundar phool khila karate the. ek taraph aadooke baarah vriksh the. vasantamen inapar komala-komal aur gulaabee motiyon-jaise phool lad jaate the. tahaniyaan dikhaayee n deteen, phoola-hee-phool najar aate. baadamen apane mausamapar ye phool phalonmen badal jaate. ye aadoo itane meethe hote ki sab unhen 'raseele aadoo' kahate.
skoolase lautate hue baalak is bageechemen a jaate aur khoob khelate. ve aapasamen kahate-'yahaan khelane men kitana sukh hai.' in vrikshonpar baithee sundar chida़iyaan meethe meethe geet gaatee rahateen. kabhee-kabhee baalak apana khel bhoolakar in geetonko sunane lagate aur khud bhee gaane lagate. unhen koee tokanevaala to vahaan tha hee naheen. baat yah thee ki is bageecheka maalik paradesh gaya hua thaa.
ek din baalak apanee maujamenkhel rahe the ki ekaaek unake kaanonmen gussese bharee yah aavaaj pada़ee 'are! tum log yahaan kya kar rahe ho ?' chaunkakar unhonne dekha ki raakshas jaisa ek lambaa-chauda़a aadamee jhapata jhapata unakee taraph hee a raha hai. use dekhate hee baalak vahaanse bhaage. bhaagate-bhaagate unhonne suna - 'yah mera bageecha hai. main apane siva isamen kiseeko naheen ghusane doongaa. '
kuchh hee dinonmen us aadameene bageecheke chaaron taraph oonchee deevaar banava dee aur usapar likhava diyaa- 'jo koee isamen ghusane kee koshish karega, use dand milegaa.' baalak skool aate-jaate us deevaarako dekhate, us bordako padha़te aur un dinonkee baatonko yaad karate, jab ve bageechemen khela karate the.
vah raakshas apane bageechemen akela ghoomata aur kabhee-kabhee aap hee aap kahataa- 'is baar vasantamen main yahaanke phoolonka aanand akele hee lootoonga aur poore phal khud hee khaaoongaa.'
apane samayapar vasant aayaa. sabake bageechonmen phool khile, par raakshasake bageechemen n phool khile, n chida़iyaan chahakeen. phal kahaanse lagate ? haan, kohara aur barph khoob pada़ee aur is tarah bageecha sunasaan ho gayaa. raakshas akela apane kamaremen pada़a rahata aur sochata rahata
'yah kya baat huee ki sabake yahaan bahaar hai, par mere yahaan sunasaan hai!' yon hee kaee vasant beet gaye.
ek din vah apane kamaremen udaas pada़a tha ki use apanee khiड़keemen chida़iyonkee chahachahaahat suna do. usane uthakar baahar jhaanka to vah bhauchak rah gayaa. baat yah thee ki usake bageechemen phir vasant a gayaa. thaa. daala-daal phool khile the aur chida़iyaan meethe geet ga rahee theen.
usane dekha ki jo oonchee deevaar usane banaayee thee, vah ek taraph thoda़ee-see toot gayee thee aur usamense bahutase baalak bageechemen ghus aaye the. raakshasane socha, mainne svaarthamen doobakar bachchonka bageechemen aana band kar diya, iseeliye vasant mere bageechese rooth gaya thaa. vah baalakonke paas pahuncha aur khelane lagaa. vah deevaar bhee usane tuda़va dee aur hamesha khush rahane lagaa.
ऑskar vaaildakee yah kahaanee kya kahatee hai? yah kahatee hai ki jo aadamee akele hee sukh bhogana chaahata hai, vah khudagarj aur svaarthee hai, usase vasant rooth jaata hai, usakee khushiyaan usase chhin jaatee hain aur jo doosaronko khushee dekar khush hona chaahata hai, usapar vasant yaanee khushiyaan barasatee rahatee hain.

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