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परीक्षाका माध्यम  [Spiritual Story]
Hindi Story - Short Story (Hindi Story)

हेमन्तकी संध्या थी, सूर्य अस्ताचलपर अदृश्य होनेवाले ही थे, पश्चिम गगनकी नैसर्गिक लालिमा अद्भुत और अमित मनोहारिणी थी। भगवान् बुद्ध राजगृहमें विहार समाप्तकर चारिकाके लिये वैशालीके पथपर थे। उन्होंने देखा कि उनके पीछे-पीछे अनेक भिक्षु चले आ रहे हैं। किसीने सिरपर, तो किसीने बगलमें और कटिदेशमें चीवरोंकी गठरी लाद रखी थी। तथागत आश्चर्यचकित थे भिक्षुसङ्घकी संग्रह - वृत्तिपर

'कहाँ तो भिक्षुओंने जनताके समक्ष उत्कट त्यागका आदर्श रखा और कहाँ थोड़े ही समयके बाद उन्होंने संग्रह और संचयमें आसक्ति दिखायी।' तथागतचिन्तित थे।

रातका पहला पहर था। धीरे-धीरे शीतल समीर | ठंडक फैला रहा था । तथागत वैशालीके गौतम-चैत्यमें समासीन थे; भिक्षुसङ्घने उनके चेहरेपर उदासीकी छाप देखी। भिक्षुओंने चरण-वन्दना की, वे अपने-अपने आसनपर चले गये भगवान् बुद्धका मन बार-बार यही विचार कर रहा था कि किस प्रकार सङ्घकी संग्रह वृत्तिका निवारण हो । उन्होंने चीवरोंको सीमित करनेकाp निश्चय किया और अपने-आपको ही कड़ी परीक्षाका माध्यम स्थिर किया।वे गौतम-चैत्यके बाहर आकर जमीनपर संघाटी बिछाकर लेट गये। साधारण ठंडक थी, एक चीवर लेकर शरीर ढक लिया। ठंडकका वेग रातमें बढ़ गया; बिचले पहरमें उन्होंने दूसरा चीवर ओढ़ लिया। तीसरे पहर अथवा पिछले पहरमें आकाश लोहित वर्णका हो चला; शीतका उत्कर्ष देखकर भगवान् बुद्धने तीसरा चीवर ओढ़ लिया। सबेरा हो गया।'प्रत्येक भिक्षुका काम केवल तीन चीवरसे चल सकता है; अधिकके संग्रहसे पापकी वृद्धि हो सकती है सङ्घमें शिथिलता आ जायगी।' तथागतने भिक्षु सङ्घको आमन्त्रित कर अनुज्ञा प्रदान की। सङ्घकी वैराग्य-वृत्तिको कलङ्कित होनेसे शास्ताने बचा लिया। उन्होंने अपने जीवनके त्यागमय अनुभवका दूसरोंके हितमें उपयोग किया। - रा0 श्री0 (बुद्धचर्या)



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pareekshaaka maadhyama

hemantakee sandhya thee, soory astaachalapar adrishy honevaale hee the, pashchim gaganakee naisargik laalima adbhut aur amit manohaarinee thee. bhagavaan buddh raajagrihamen vihaar samaaptakar chaarikaake liye vaishaaleeke pathapar the. unhonne dekha ki unake peechhe-peechhe anek bhikshu chale a rahe hain. kiseene sirapar, to kiseene bagalamen aur katideshamen cheevaronkee gatharee laad rakhee thee. tathaagat aashcharyachakit the bhikshusanghakee sangrah - vrittipara

'kahaan to bhikshuonne janataake samaksh utkat tyaagaka aadarsh rakha aur kahaan thoda़e hee samayake baad unhonne sangrah aur sanchayamen aasakti dikhaayee.' tathaagatachintit the.

raataka pahala pahar thaa. dheere-dheere sheetal sameer | thandak phaila raha tha . tathaagat vaishaaleeke gautama-chaityamen samaaseen the; bhikshusanghane unake cheharepar udaaseekee chhaap dekhee. bhikshuonne charana-vandana kee, ve apane-apane aasanapar chale gaye bhagavaan buddhaka man baara-baar yahee vichaar kar raha tha ki kis prakaar sanghakee sangrah vrittika nivaaran ho . unhonne cheevaronko seemit karanekaap nishchay kiya aur apane-aapako hee kada़ee pareekshaaka maadhyam sthir kiyaa.ve gautama-chaityake baahar aakar jameenapar sanghaatee bichhaakar let gaye. saadhaaran thandak thee, ek cheevar lekar shareer dhak liyaa. thandakaka veg raatamen badha़ gayaa; bichale paharamen unhonne doosara cheevar odha़ liyaa. teesare pahar athava pichhale paharamen aakaash lohit varnaka ho chalaa; sheetaka utkarsh dekhakar bhagavaan buddhane teesara cheevar odha़ liyaa. sabera ho gayaa.'pratyek bhikshuka kaam keval teen cheevarase chal sakata hai; adhikake sangrahase paapakee vriddhi ho sakatee hai sanghamen shithilata a jaayagee.' tathaagatane bhikshu sanghako aamantrit kar anujna pradaan kee. sanghakee vairaagya-vrittiko kalankit honese shaastaane bacha liyaa. unhonne apane jeevanake tyaagamay anubhavaka doosaronke hitamen upayog kiyaa. - raa0 shree0 (buddhacharyaa)

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