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अभिमानकी चिकित्सा  [प्रेरक कथा]
Spiritual Story - Moral Story (बोध कथा)

राजकुमारी मन्दाकिनी प्रथम तो पिताकी एकमात्र संतान अत्यन्त दुलारी और दूसरे विख्यात सुन्दरी। उसमें सौन्दर्यके साथ सदाचार - प्रतिभा आदि और सद्गुण थे। परंतु इन सब सद्गुणों तथा पिताके स्नेहने उसे अभिमानिनी बना दिया था। उसका अहंकार इतना बढ़ गया था कि किसी दूसरेको वह अपने सामने कुछ समझती ही नहीं थी। अनेक राजकुमारोंने उससे विवाह करना चाहा, किंतु किसीको वह अपने योग्य माने तब तो
प्रत्येक बातकी एक सीमा होती है। कन्याकी अवस्था बढ़ती जा रही थी। महाराजको लोक-निन्दाका भय था। लोग कानाफूसी करने भी लगे थे; किंतु राजकन्या थी अपने अहंकारमें वह किसी राजकुमारको वरण करनेको प्रस्तुत ही नहीं होती थी। अन्तमें महाराजने पड़ोसके युवक राजा रंगमोहनसे कुछ मन्त्रणा करके घोषणा कर दी - 'राजकुमारीके आगामी जन्म दिन प्रातःकाल जो पुरुष नगरद्वारमें पहिले प्रवेश करेगा, उसके साथ राजकुमारीका विवाह कर दिया जायगा, फिर वह कोई भी हो। '

राजकुमारीका जन्मदिन आया। प्रातः काल नगरद्वारमें सबसे पहिले प्रविष्ट होनेवाले पुरुषको राजसेवक पकड़ लाये। वह था फटे-चिथड़े लपेटे एक भिक्षुक। परंतु वह युवक था, सुन्दर था और पूरा अलमस्त था। उसके मुखपर सदा प्रसन्नता खेलती रहती थी। महाराजने राजपुरोहितको बुलवाया और बिना किसी धूम-धामके उन्होंने उसी दिन उस भिक्षुकके साथ राजकन्याका विवाह कर दिया। राजकुमारी चिल्लायी, मचली और रोते-रोते उसने अपने सुन्दर नेत्र लाल बना लिये; किंतु आज उसके पिता निष्ठुर बन गये थे। उन्होंने पुत्रीके रोने-चिल्लानेपर ध्यान ही नहीं दिया। भिक्षुकको केवल पाँच स्वर्णमुद्रा देकर उन्होंने कहा- 'तू अपनी पत्नीको लेकर मेरे राज्यसे शीघ्र निकल जा। स्मरण रख कियदि फिर तू या तेरी पत्नी मेरे राज्यमें आयी तो प्राणदण्ड दिया जायगा।'

'चलो मन्दाकिनी!' भिक्षुकने राजकन्याका हाथ पकड़ा और चल पड़ा। रोती-बिलखती राजकुमारी उसके साथ जानेको विवश थी परंतु भिखारी ज्यों-का त्यों प्रसन्न था। वह पत्नीके रोनेपर ध्यान दिये बिना गीत गाता जाता था।

राजकन्याको पैदल ही पिताके राज्यसे बाहर जाना पड़ा। भिखारी उससे मधुर भाषामें बोलता था, उसे प्रसन्न करनेका प्रयत्न करता था। पर्याप्त दूर जानेपर जंगलमें नदी किनारे एक फुसकी झोपड़ी में दोनों पहुँचे। भिखारीने कहा- 'अब यही तुम्हारा घर है। तुम्हें स्वयं अब जंगलके पत्ते और लकड़ियाँ लानी पड़ेंगी। कन्द मूल जो कुछ मिलेगा, उसे उबालकर खाना पड़ेगा । पासके गाँवमें लकड़ियाँ बेचने जाना होगा। मैं भी जितना बन सकेगा, तुम्हारी सहायता करूँगा।'

राजकन्याके लिये यह जीवन कितना दुःखद था, यह आप अनुमान कर सकते हैं; किंतु विवशता सब करा लेती है। एक ही सुख उसे था कि भिखारी उसके साथ बहुत प्रेमपूर्ण व्यवहार करता था। कुछ दिनों बाद भिखारीने वह झोपड़ी छोड़ दी। मन्दाकिनीको लेकर वह एक गाँवमें आया। वहीं ये दोनों एक खंडहरप्राय घरमें रहने लगे। भिखारी कहींसे कुछ पैसे ले आया और उससे उसने मिट्टीके बर्तन खरीदे। पत्नीसे उसने कहा- 'इन बर्तनोंको बाजारमें ले जाकर बेच आओ।"

किसी समय जो राजकन्या थी, उसके लिये सिरपर बर्तन उठाकर बाजारमें जाना बड़ा कठिन जान पड़ा; किंतु जाना पड़ा उसे भिखारीने उसे स्पष्ट कह दिया कि यदि उसकी आज्ञाका पालन न करना हो तो वह मन्दाकिनीको छोड़कर चला जायगा। बेचारी मन्दाकिनी वर्तन सिरपर उठाकर बाजागयी। उसे बर्तन बेचना तो आता नहीं था, दूसरोंसे नम्र व्यवहार करना भी नहीं आता था। बाजारमें बर्तन रखकर वह उनके पास खड़ी रही। भूमिमें बैठना उसे बहुत बुरा लगा।

एक युवक घुड़सवार बाजारमें आया। उसने मन्दाकिनीसे बर्तनोंके दाम पूछे। मन्दाकिनीने रूखे स्वरमें दाम बताये तो घुड़सवार लौट पड़ा। मोड़ते समय उसका घोड़ा भड़क उठा। फलतः घोड़ेके पैरोंकी ठोकरसे सब वर्तन फूट गये। घुड़सवारने इधर ध्यान ही नहीं दिया। वह चला गया। मन्दाकिनी रोती हुई घर लौटी। भिखारी क्रुद्ध होगा, इस भयसे उसके प्राण काँप रहे थे।

भिखारी आया। रोते-रोते मन्दाकिनीके नेत्र फूल उठे थे। भिखारी कुछ बोला नहीं। परंतु दूसरे दिन उसने कहा- 'मन्दाकिनी ! कोई काम आता नहीं। मिट्टीके बर्तन फूट गये। अब हम दोनोंका कैसे निर्वाह होगा ? एक उपाय है-नगरमें चलें। राजा रंगमोहनकी पाकशालामें तुम्हें कोई नौकरी दिलवानेका प्रयत्न करें। तुम्हें काम मिल जाय तो तुम्हारी ओरसे निश्चिन्त होकर मैं भी कहीं काम ढूँढूँ। कुछ धन एकत्र हो जानेपर कोई व्यापार कर लूँगा और तब तुम्हें भी अपने पास बुला लूँगा।'

राजा रंगमोहनका नाम सुनकर मन्दाकिनीने दीर्घ श्वास ली। एक समय इस नरेशने उससे विवाह करनेका प्रस्ताव किया था। आज वह राजरानी होती; किंतु हाय रे गर्व ! उसी राजभवनमें दासी बनने वह जा रही है। जानेके अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं । मन्दाकिनी नगरमें गयी और राजाकी पाकशालामें उसे नौकरी मिल गयी। भिखारी उससे बिदा होकर कहीं चला गया।

मन्दाकिनीका गर्व नष्ट हो गया था। उसका स्वभाव बदल गया था। अब वह अत्यन्त विनम्र, परिश्रमी औरसावधान सेविका बन गयी थी । रसोई-घरकी अध्यक्षा रम्भाकुमारी उसके कार्यसे अत्यन्त संतुष्ट थीं। वसन्त पञ्चमी आयी। राजा रंगमोहनका यह जन्मदिन था। सभी सेवकोंको इस दिन नरेश अपने हाथसे पुरस्कृत करते थे। दूसरी सेविकाओंके साथ मन्दाकिनीको भी राजसभामें जाना पड़ा। जब सब सेवक पुरस्कृत हो चुके और सब सेविकाएँ भी पुरस्कार पा चुकीं, तब उसे पुकारा गया। वह हाथ जोड़े, मस्तक झुकाये राजसिंहासनके सामने खड़ी हो गयी। नरेशने कहा 'मन्दाकिनी! मैं तुमसे प्रसन्न हूँ। तुम्हें तो मैं अपनी रानी बनाना चाहता हूँ।'

मन्दाकिनी चौंक पड़ी; वह बोली- 'महाराज ! आपको ऐसी अधर्मपूर्ण बात नहीं करनी चाहिये। मैं परस्त्री हूँ। क्या हुआ जो मेरा पति भिक्षुक है। मेरा तो वही सर्वस्व है। उसे छोड़कर मैं दूसरे पुरुषकी कामना नहीं करती। वहीं मेरा स्वामी है। आपकी मुझपर बहुत कृपा है तो इतना अनुग्रह करें कि मेरे पतिका पता लगवाकर उसे बुला दें। मैं पाकशाला में सेवा करके प्रसन्न हूँ।'

महाराज रंगमोहन भीतर चले गये और थोड़ी देर में वह भिखारी राजमहलसे निकला । मन्दाकिनी उसे देखते ही दौड़कर उसके पैरोंपर गिर पड़ी। भिखारी मुसकराया—'मन्दाकिनी! मुझे ध्यानसे देखो तो। तुम्हें मुझमें और रंगमोहनमें कुछ सादृश्य नहीं मिलता ?"

भेद खुल गया था। भिखारीके वेशमें उसका | पाणिग्रहण करनेवाले स्वयं राजा रंगमोहन थे और वह थी उनकी महारानी । राजाने कहा- 'मन्दाकिनी! क्षमा करना, तुम्हारे अभिमानकी दूसरी कोई औषध मुझे मिलती ही नहीं थी।

'-सु0 सिं0



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abhimaanakee chikitsaa

raajakumaaree mandaakinee pratham to pitaakee ekamaatr santaan atyant dulaaree aur doosare vikhyaat sundaree. usamen saundaryake saath sadaachaar - pratibha aadi aur sadgun the. parantu in sab sadgunon tatha pitaake snehane use abhimaaninee bana diya thaa. usaka ahankaar itana badha़ gaya tha ki kisee doosareko vah apane saamane kuchh samajhatee hee naheen thee. anek raajakumaaronne usase vivaah karana chaaha, kintu kiseeko vah apane yogy maane tab to
pratyek baatakee ek seema hotee hai. kanyaakee avastha badha़tee ja rahee thee. mahaaraajako loka-nindaaka bhay thaa. log kaanaaphoosee karane bhee lage the; kintu raajakanya thee apane ahankaaramen vah kisee raajakumaarako varan karaneko prastut hee naheen hotee thee. antamen mahaaraajane pada़osake yuvak raaja rangamohanase kuchh mantrana karake ghoshana kar dee - 'raajakumaareeke aagaamee janm din praatahkaal jo purush nagaradvaaramen pahile pravesh karega, usake saath raajakumaareeka vivaah kar diya jaayaga, phir vah koee bhee ho. '

raajakumaareeka janmadin aayaa. praatah kaal nagaradvaaramen sabase pahile pravisht honevaale purushako raajasevak pakada़ laaye. vah tha phate-chithada़e lapete ek bhikshuka. parantu vah yuvak tha, sundar tha aur poora alamast thaa. usake mukhapar sada prasannata khelatee rahatee thee. mahaaraajane raajapurohitako bulavaaya aur bina kisee dhooma-dhaamake unhonne usee din us bhikshukake saath raajakanyaaka vivaah kar diyaa. raajakumaaree chillaayee, machalee aur rote-rote usane apane sundar netr laal bana liye; kintu aaj usake pita nishthur ban gaye the. unhonne putreeke rone-chillaanepar dhyaan hee naheen diyaa. bhikshukako keval paanch svarnamudra dekar unhonne kahaa- 'too apanee patneeko lekar mere raajyase sheeghr nikal jaa. smaran rakh kiyadi phir too ya teree patnee mere raajyamen aayee to praanadand diya jaayagaa.'

'chalo mandaakinee!' bhikshukane raajakanyaaka haath pakada़a aur chal pada़aa. rotee-bilakhatee raajakumaaree usake saath jaaneko vivash thee parantu bhikhaaree jyon-ka tyon prasann thaa. vah patneeke ronepar dhyaan diye bina geet gaata jaata thaa.

raajakanyaako paidal hee pitaake raajyase baahar jaana pada़aa. bhikhaaree usase madhur bhaashaamen bolata tha, use prasann karaneka prayatn karata thaa. paryaapt door jaanepar jangalamen nadee kinaare ek phusakee jhopada़ee men donon pahunche. bhikhaareene kahaa- 'ab yahee tumhaara ghar hai. tumhen svayan ab jangalake patte aur lakada़iyaan laanee pada़engee. kand mool jo kuchh milega, use ubaalakar khaana pada़ega . paasake gaanvamen lakada़iyaan bechane jaana hogaa. main bhee jitana ban sakega, tumhaaree sahaayata karoongaa.'

raajakanyaake liye yah jeevan kitana duhkhad tha, yah aap anumaan kar sakate hain; kintu vivashata sab kara letee hai. ek hee sukh use tha ki bhikhaaree usake saath bahut premapoorn vyavahaar karata thaa. kuchh dinon baad bhikhaareene vah jhopada़ee chhoda़ dee. mandaakineeko lekar vah ek gaanvamen aayaa. vaheen ye donon ek khandaharapraay gharamen rahane lage. bhikhaaree kaheense kuchh paise le aaya aur usase usane mitteeke bartan khareede. patneese usane kahaa- 'in bartanonko baajaaramen le jaakar bech aao."

kisee samay jo raajakanya thee, usake liye sirapar bartan uthaakar baajaaramen jaana bada़a kathin jaan paड़aa; kintu jaana pada़a use bhikhaareene use spasht kah diya ki yadi usakee aajnaaka paalan n karana ho to vah mandaakineeko chhoda़kar chala jaayagaa. bechaaree mandaakinee vartan sirapar uthaakar baajaagayee. use bartan bechana to aata naheen tha, doosaronse namr vyavahaar karana bhee naheen aata thaa. baajaaramen bartan rakhakar vah unake paas khada़ee rahee. bhoomimen baithana use bahut bura lagaa.

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mandaakineeka garv nasht ho gaya thaa. usaka svabhaav badal gaya thaa. ab vah atyant vinamr, parishramee aurasaavadhaan sevika ban gayee thee . rasoee-gharakee adhyaksha rambhaakumaaree usake kaaryase atyant santusht theen. vasant panchamee aayee. raaja rangamohanaka yah janmadin thaa. sabhee sevakonko is din naresh apane haathase puraskrit karate the. doosaree sevikaaonke saath mandaakineeko bhee raajasabhaamen jaana pada़aa. jab sab sevak puraskrit ho chuke aur sab sevikaaen bhee puraskaar pa chukeen, tab use pukaara gayaa. vah haath joda़e, mastak jhukaaye raajasinhaasanake saamane khada़ee ho gayee. nareshane kaha 'mandaakinee! main tumase prasann hoon. tumhen to main apanee raanee banaana chaahata hoon.'

mandaakinee chaunk pada़ee; vah bolee- 'mahaaraaj ! aapako aisee adharmapoorn baat naheen karanee chaahiye. main parastree hoon. kya hua jo mera pati bhikshuk hai. mera to vahee sarvasv hai. use chhoda़kar main doosare purushakee kaamana naheen karatee. vaheen mera svaamee hai. aapakee mujhapar bahut kripa hai to itana anugrah karen ki mere patika pata lagavaakar use bula den. main paakashaala men seva karake prasann hoon.'

mahaaraaj rangamohan bheetar chale gaye aur thoda़ee der men vah bhikhaaree raajamahalase nikala . mandaakinee use dekhate hee dauda़kar usake paironpar gir pada़ee. bhikhaaree musakaraayaa—'mandaakinee! mujhe dhyaanase dekho to. tumhen mujhamen aur rangamohanamen kuchh saadrishy naheen milata ?"

bhed khul gaya thaa. bhikhaareeke veshamen usaka | paanigrahan karanevaale svayan raaja rangamohan the aur vah thee unakee mahaaraanee . raajaane kahaa- 'mandaakinee! kshama karana, tumhaare abhimaanakee doosaree koee aushadh mujhe milatee hee naheen thee.

'-su0 sin0

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बहुत दिन बीत गए, बहुत युग बीत गए ॥
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जीवन खतम हुआ तो जीने का ढंग आया
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बालम बोलो कब आओगे॥
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शिव समा रहे मुझमें
और मैं शून्य हो रहा हूँ
करदो करदो बेडा पार, राधे अलबेली सरकार।
राधे अलबेली सरकार, राधे अलबेली सरकार॥
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हो मेरी लाडो का नाम श्री राधा
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तेरा पल पल बिता जाए रे
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