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माता-पिताके चरणोंमें  [शिक्षदायक कहानी]
Hindi Story - Spiritual Story (Story To Read)

देवता सभी पूज्य हैं; किंतु एक बार देवताओं में विवाद हो गया कि उनमें प्रथम पूज्य कौन है ? जब परस्पर कोई निर्णय न हो सका, तब वे एकत्र होकर | लोकपितामह ब्रह्माजीके पास पहुँचे। बूढ़े ब्रह्माजी बहुत कार्यव्यस्त रहते हैं। उन्हें सृष्टिके कार्यसे दो पलका भी अवकाश नहीं। पञ्चायत करनेको समय निकाल पाना उनके लिये कठिन ही था अपना नवीन सृजन कार्य करते-करते ही उन्होंने देवताओंकी बात सुन ली और एक निर्णय सुना दिया- 'जो पृथ्वीकी प्रदक्षिणा करके सबसे पहले मेरे पास आ जाय वही अबसे प्रथम पूज्य माना जाये।'

देवराज इन्द्र अपने ऐरावतपर चढ़कर दौड़े, अग्रिदेवने अपने भेंडेको भगाया, धनाधीश कुबेरजीने अपनी सवारी ढोनेवाले कहारोंको दौड़नेकी आज्ञा दी। वरुणदेवका वाहन ठहरा मगर, अतः उन्होंने समुद्री मार्ग पकड़ा। सब देवता अपने-अपने वाहनोंको दौड़ाते हुए चल पड़े। सबसे पीछे रह गये गणेशजी। एक तो उनका तुन्दिल भारी भरकम शरीर और दूसरे वाहन मूषक उन्हें लेकर बेचारा चूहा अन्ततः कितना दौड़ता। गणेशजीके मनमें प्रथम पूज्य बननेकी लालसा कम नहीं थी, अतः अपनेको सबसे पिछड़ा देख वे उदास हो गये।

संयोगकी पर्यटन करनेवाले देवर्षि नारदजी खड़ाऊँ खटकाते, वीणा बजाते, भगवद्गुण गाते। उधरसे आ निकले। गणेशजीको उदास देखकर उन परम दयालुको दया आ गयी। उन्होंने पूछा—'पार्वतीनन्दन ! आज आपका मुख म्लान क्यों है ?'

गणेशजीने सब बातें बतायीं। देवर्षि हँस पड़े, बोले-'वस!' गणेशजीमें उत्साह आ गया। वे उत्कण्ठासे । उठे नारदजी! कोई युक्ति है क्या?"

'बुद्धिके देवताके लिये भी युक्तियोंका अभाव !' | देवर्षि फिर हँसे और बोले-'आप जानते ही हैं कि माता साक्षात् पृथ्वीरूपा होती हैं और पिता परमात्माके | रूप होते हैं। इसमें भी आपके पिता उन परम ।तत्त्वके ही भीतर तो अनन्त अनन्त ब्रह्माण्ड हैं।'

गणेशजीको अब और कुछ सुनना समझना नहीं था। वे सीधे कैलास पहुँचे और भगवती पार्वतीकी अँगुली पकड़कर छोटे शिशुके समान खींचने लगे "माँ पिताजी तो समाधिमग्न हैं, पता नहीं उन्हें उठनेमें कितने युग बीतेंगे, तू ही चलकर उनके वामभागमें तनिक देरको बैठ जा! चल बैठ जा माँ!'

भगवती पार्वती हँसती हुई जाकर अपने ध्यानस्थ आराध्य के समीप बैठ गयीं, क्योंकि उनके मङ्गलमूर्ति कुमार इस समय कुछ पूछने बतानेकी मुद्रामें नहीं थे। वे उतावलीमें थे और केवल अपनी बात पूरी करनेका आग्रह कर रहे थे।

गणेशजीने भूमिमें लेटकर माता-पिताको प्रणाम किया, फिर चूहेपर बैठे और सात बार दोनोंकी प्रदक्षिणा की। प्रदक्षिणा करके पुनः साष्टाङ्ग प्रणाम किया और माता कुछ पूछें इससे पहले तो उनका मूषक उन्हें लेकर ब्रह्मलोककी ओर चल पड़ा। वहाँ ब्रह्माजीको अभिवादन करके वे चुपचाप बैठ गये। सर्वज्ञ सृष्टिकर्ताने एक बार उनकी ओर देख लिया और अपने नेत्रोंसे ही मानो स्वीकृति दे दी।

बेचारे देवता वाहनोंको दौड़ाते पूरी शक्ति पृथ्वी प्रदक्षिणा यथाशीघ्र पूर्ण करके एकके बाद एक ब्रह्मलोक पहुँचे। जब सब देवता एकत्र हो गये, ब्रह्माजीने कहा-' श्रेष्ठता न शरीरबलको दी जा सकती, न वाहनवलको श्रद्धासमन्वित बुद्धिवल ही सर्वश्रेष्ठ है और उसमें भवानीनन्दन श्रीगणेशजी अग्रणी सिद्ध कर चुके अपनेको।'

देवताओंने पूरी बात सुन ली और तब चुपचाप गणेशजीके सम्मुख मस्तक झुका दिया। देवगुरु बृहस्पतिने उस समय कहा था- 'सामान्य माता-पिताका सेवक और उनमें श्रद्धा रखनेवाला भी पृथ्वी प्रदक्षिणा करनेवाले श्रेष्ठ है, फिर गणेशजीने जिनकी प्रदक्षिणा की है, वे तो विश्वमूर्ति हैं इसे कोई अस्वीकार कैसे करेगा।'



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maataa-pitaake charanonmen

devata sabhee poojy hain; kintu ek baar devataaon men vivaad ho gaya ki unamen pratham poojy kaun hai ? jab paraspar koee nirnay n ho saka, tab ve ekatr hokar | lokapitaamah brahmaajeeke paas pahunche. boodha़e brahmaajee bahut kaaryavyast rahate hain. unhen srishtike kaaryase do palaka bhee avakaash naheen. panchaayat karaneko samay nikaal paana unake liye kathin hee tha apana naveen srijan kaary karate-karate hee unhonne devataaonkee baat sun lee aur ek nirnay suna diyaa- 'jo prithveekee pradakshina karake sabase pahale mere paas a jaay vahee abase pratham poojy maana jaaye.'

devaraaj indr apane airaavatapar chadha़kar dauda़e, agridevane apane bhendeko bhagaaya, dhanaadheesh kuberajeene apanee savaaree dhonevaale kahaaronko dauda़nekee aajna dee. varunadevaka vaahan thahara magar, atah unhonne samudree maarg pakada़aa. sab devata apane-apane vaahanonko dauda़aate hue chal pada़e. sabase peechhe rah gaye ganeshajee. ek to unaka tundil bhaaree bharakam shareer aur doosare vaahan mooshak unhen lekar bechaara chooha antatah kitana dauda़taa. ganeshajeeke manamen pratham poojy bananekee laalasa kam naheen thee, atah apaneko sabase pichhada़a dekh ve udaas ho gaye.

sanyogakee paryatan karanevaale devarshi naaradajee khada़aaoon khatakaate, veena bajaate, bhagavadgun gaate. udharase a nikale. ganeshajeeko udaas dekhakar un param dayaaluko daya a gayee. unhonne poochhaa—'paarvateenandan ! aaj aapaka mukh mlaan kyon hai ?'

ganeshajeene sab baaten bataayeen. devarshi hans pada़e, bole-'vasa!' ganeshajeemen utsaah a gayaa. ve utkanthaase . uthe naaradajee! koee yukti hai kyaa?"

'buddhike devataake liye bhee yuktiyonka abhaav !' | devarshi phir hanse aur bole-'aap jaanate hee hain ki maata saakshaat prithveeroopa hotee hain aur pita paramaatmaake | roop hote hain. isamen bhee aapake pita un param .tattvake hee bheetar to anant anant brahmaand hain.'

ganeshajeeko ab aur kuchh sunana samajhana naheen thaa. ve seedhe kailaas pahunche aur bhagavatee paarvateekee angulee pakada़kar chhote shishuke samaan kheenchane lage "maan pitaajee to samaadhimagn hain, pata naheen unhen uthanemen kitane yug beetenge, too hee chalakar unake vaamabhaagamen tanik derako baith jaa! chal baith ja maan!'

bhagavatee paarvatee hansatee huee jaakar apane dhyaanasth aaraadhy ke sameep baith gayeen, kyonki unake mangalamoorti kumaar is samay kuchh poochhane bataanekee mudraamen naheen the. ve utaavaleemen the aur keval apanee baat pooree karaneka aagrah kar rahe the.

ganeshajeene bhoomimen letakar maataa-pitaako pranaam kiya, phir choohepar baithe aur saat baar dononkee pradakshina kee. pradakshina karake punah saashtaang pranaam kiya aur maata kuchh poochhen isase pahale to unaka mooshak unhen lekar brahmalokakee or chal pada़aa. vahaan brahmaajeeko abhivaadan karake ve chupachaap baith gaye. sarvajn srishtikartaane ek baar unakee or dekh liya aur apane netronse hee maano sveekriti de dee.

bechaare devata vaahanonko dauड़aate pooree shakti prithvee pradakshina yathaasheeghr poorn karake ekake baad ek brahmalok pahunche. jab sab devata ekatr ho gaye, brahmaajeene kahaa-' shreshthata n shareerabalako dee ja sakatee, n vaahanavalako shraddhaasamanvit buddhival hee sarvashreshth hai aur usamen bhavaaneenandan shreeganeshajee agranee siddh kar chuke apaneko.'

devataaonne pooree baat sun lee aur tab chupachaap ganeshajeeke sammukh mastak jhuka diyaa. devaguru brihaspatine us samay kaha thaa- 'saamaany maataa-pitaaka sevak aur unamen shraddha rakhanevaala bhee prithvee pradakshina karanevaale shreshth hai, phir ganeshajeene jinakee pradakshina kee hai, ve to vishvamoorti hain ise koee asveekaar kaise karegaa.'

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