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माला कैसे फेरें  [बोध कथा]
Hindi Story - प्रेरक कहानी (प्रेरक कथा)

माला कैसे फेरें ?

पंजाबके राजा रणजीतसिंह बहुत प्रतापी शासक थे। उनके स्वभावकी खास बात यह थी कि वे बुरे आदमियोंके लिये बहुत सख्त थे, पर भले आदमियोंके लिये बेहद विनम्र । उनकी वीरताकी धाक तो दूर-दूरतक फैली हुई थी।
एक दिन राजा साहब अपने सम्मन-बुर्जमें बैठे माला फेर रहे थे। उनके पास बैठे मुसलमान सन्त अजीउद्दीन साहब भी माला फेर रहे थे। हिन्दू और मुसलमानोंका माला फेरनेका तरीका अलग-अलग है। हिन्दू माला फेरते हैं भीतरकी तरफको और मुसलमान बाहरकी तरफको ।
अचानक इस भेदकी तरफ राजा साहबका ध्यान गया। उन्होंने सन्त अजीउद्दीन साहबसे पूछा- 'क्यों फकीर साहब, मालाको भीतरकी तरफ फेरना ठीक है या बाहरकी तरफ ?'
प्रश्न सीधा-सादा था, पर उसका जवाब देना मुश्किल था। सन्त साहब अगर कहें कि बाहरकी ओर फेरना ठीक है, जैसे कि वे फेर रहे थे, तो इसमें हिन्दुओंके तरीकेकी निन्दा होती है। यदि वे कहें कि भीतरकी तरफ फेरना ठीक है, जैसे कि राजा साहब फेर रहे थे, तो अपने तरीकेको गलत कहना पड़ता।
सन्त साहब चुप भी नहीं रह सकते। चुप रहनेसे, बातका जवाब न देनेसे राजा साहबका अपमान होता। सन्त साहबने कौन-सा तरीका ठीक है, इसका सीधा जवाब न देकर कहा-'राजा साहब, माला फेरनेके दो मकसद (उद्देश्य) होते हैं। पहला अच्छाइयोंको, अच्छे गुणोंको अपनी तरफ खींचना और दूसरा बुराइयोंको, दोषको बाहर फेंकना। आपको हमेशा अच्छाइयोंको, गुणोंको अपनी ओर खींचनेका, उन्हें ग्रहण करनेका ध्यान रहता है, इसलिये आप माला भीतरकी ओर फेरते हैं, मुझे अपने भीतर भरी हुई बुराइयोंको बाहर फेंकनेका ध्यान रहता है। इसलिये मैं अपनी माला बाहरकी ओर फेरता हूँ।'
सन्त अजीउद्दीनकी बात सुनकर राजा साहब बहुत प्रसन्न हुए और उनके हृदयमें सन्त साहबका सम्मान पहलेसे भी कहीं ज्यादा बढ़ गया। यह क्यों ? यह इसलिये कि सन्त साहबने अपनी बात इस तरह कही कि उन्होंने झूठ भी नहीं बोला, राजा साहबके धर्मका भी सम्मान किया और अपने धर्मकी भी इज्जत बढ़ायी। हमारे देहातोंमें एक कहावत है-'कह-बिगाडू'। कुछ लोग ऐसे होते हैं कि उनका मन बुरा नहीं होता, पर वे जीभके कड़वे होते हैं और कड़वी, बेतुकी, बेमौकेकी या बेढंगी बात कहकर बुराई ले लेते हैं, बुरे बन जाते हैं। राजा रणजीतसिंह और संत अजीउद्दीनकी यह कहानी हमें सिखाती है कि 'हम बात इस तरह कहें कि वह दूसरोंको बुरी न लगे, वे उसे सुनकर प्रसन्न हों।'




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maala kaise pheren

maala kaise pheren ?

panjaabake raaja ranajeetasinh bahut prataapee shaasak the. unake svabhaavakee khaas baat yah thee ki ve bure aadamiyonke liye bahut sakht the, par bhale aadamiyonke liye behad vinamr . unakee veerataakee dhaak to doora-dooratak phailee huee thee.
ek din raaja saahab apane sammana-burjamen baithe maala pher rahe the. unake paas baithe musalamaan sant ajeeuddeen saahab bhee maala pher rahe the. hindoo aur musalamaanonka maala pheraneka tareeka alaga-alag hai. hindoo maala pherate hain bheetarakee taraphako aur musalamaan baaharakee taraphako .
achaanak is bhedakee taraph raaja saahabaka dhyaan gayaa. unhonne sant ajeeuddeen saahabase poochhaa- 'kyon phakeer saahab, maalaako bheetarakee taraph pherana theek hai ya baaharakee taraph ?'
prashn seedhaa-saada tha, par usaka javaab dena mushkil thaa. sant saahab agar kahen ki baaharakee or pherana theek hai, jaise ki ve pher rahe the, to isamen hinduonke tareekekee ninda hotee hai. yadi ve kahen ki bheetarakee taraph pherana theek hai, jaise ki raaja saahab pher rahe the, to apane tareekeko galat kahana pada़taa.
sant saahab chup bhee naheen rah sakate. chup rahanese, baataka javaab n denese raaja saahabaka apamaan hotaa. sant saahabane kauna-sa tareeka theek hai, isaka seedha javaab n dekar kahaa-'raaja saahab, maala pheraneke do makasad (uddeshya) hote hain. pahala achchhaaiyonko, achchhe gunonko apanee taraph kheenchana aur doosara buraaiyonko, doshako baahar phenkanaa. aapako hamesha achchhaaiyonko, gunonko apanee or kheenchaneka, unhen grahan karaneka dhyaan rahata hai, isaliye aap maala bheetarakee or pherate hain, mujhe apane bheetar bharee huee buraaiyonko baahar phenkaneka dhyaan rahata hai. isaliye main apanee maala baaharakee or pherata hoon.'
sant ajeeuddeenakee baat sunakar raaja saahab bahut prasann hue aur unake hridayamen sant saahabaka sammaan pahalese bhee kaheen jyaada badha़ gayaa. yah kyon ? yah isaliye ki sant saahabane apanee baat is tarah kahee ki unhonne jhooth bhee naheen bola, raaja saahabake dharmaka bhee sammaan kiya aur apane dharmakee bhee ijjat badha़aayee. hamaare dehaatonmen ek kahaavat hai-'kaha-bigaadoo'. kuchh log aise hote hain ki unaka man bura naheen hota, par ve jeebhake kada़ve hote hain aur kada़vee, betukee, bemaukekee ya bedhangee baat kahakar buraaee le lete hain, bure ban jaate hain. raaja ranajeetasinh aur sant ajeeuddeenakee yah kahaanee hamen sikhaatee hai ki 'ham baat is tarah kahen ki vah doosaronko buree n lage, ve use sunakar prasann hon.'


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