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लक्ष्मीका वास कहाँ है  [Wisdom Story]
छोटी सी कहानी - Spiritual Story (Shikshaprad Kahani)

एक सेठ रात्रिमें सो रहे थे। स्वप्नमें उन्होंने देखा कि लक्ष्मीजी कह रही हैं-'सेठ! अब तेरा पुण्य समाप्त हो गया है, इसलिये तेरे घरसे मैं थोड़े दिनोंमें चली जाऊँगी। तुझे मुझसे जो माँगना हो, वह माँग ले। ' सेठने कहा- 'कल सबेरे अपने कुटुम्बके लोगों से

सलाह करके जो माँगना होगा, माँग लूँगा।' सबेरा हुआ। सेठने स्वप्नकी बात कही। परिवारके लोगोंमेंसे किसीने हीरा-मोती आदि माँगनेको कहा, किसीने स्वर्णराशि माँगनेकी सलाह दी, कोई अन्न माँगनेके पक्षमें था और कोई वाहन या भवन। सबसे अन्तमें सेटकी छोटी बहू बोली- 'पिताजी! जब लक्ष्मीजीको जाना ही है तो ये वस्तुएँ मिलनेपर भी टिकेंगी कैसे ? आप इन्हें माँगेंगे, तो भी ये मिलेंगी नहीं। आप तो माँगिये कि कुटुम्बमें प्रेम बना रहे। कुटुम्बमें सब लोगोंमें परस्पर प्रीति रहेगी तो विपत्तिके दिन भी सरलतासे कट जायँगे। 'सेठको छोटी बहूकी बात पसंद आयी। दूसरी रात्रिमें स्वप्नमें उन्हें फिर लक्ष्मीजीके दर्शन हुए। सेठने प्रार्थना की- ' देवि ! आप जाना ही चाहती हैं तो प्रसन्नतासे जायँ; किंतु यह वरदान दें कि हमारे कुटुम्बियोंमें परस्पर प्रेम बना रहे । '

लक्ष्मीजी बोलीं- 'सेठ! ऐसा वरदान तुमने माँगा कि मुझे बाँध ही लिया । जिस परिवारके सदस्यों में परस्पर प्रीति है, वहाँसे मैं जा कैसे सकती हूँ।'

गुरवो यत्र पूज्यन्ते यत्राह्वानं सुसंस्कृतम् ।

अदन्तकलहो यत्र तत्र शक्र वसाम्यहम् ॥

देवी लक्ष्मीने इन्द्रसे कहा है- 'इन्द्र ! जिस घरमें गुरुजनोंका सत्कार होता है, दूसरोंके साथ जहाँ सभ्यता पूर्वक बात की जाती है और जहाँ मुखसे बोलकर कोई कलह नहीं करता (दूसरेके प्रति मनमें क्रोध आनेपर भी जहाँ लोग चुप ही रह जाते हैं) मैं वहीं रहती हूँ । '

- सु0 सिं0



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lakshmeeka vaas kahaan hai

ek seth raatrimen so rahe the. svapnamen unhonne dekha ki lakshmeejee kah rahee hain-'setha! ab tera puny samaapt ho gaya hai, isaliye tere gharase main thoda़e dinonmen chalee jaaoongee. tujhe mujhase jo maangana ho, vah maang le. ' sethane kahaa- 'kal sabere apane kutumbake logon se

salaah karake jo maangana hoga, maang loongaa.' sabera huaa. sethane svapnakee baat kahee. parivaarake logonmense kiseene heeraa-motee aadi maanganeko kaha, kiseene svarnaraashi maanganekee salaah dee, koee ann maanganeke pakshamen tha aur koee vaahan ya bhavana. sabase antamen setakee chhotee bahoo bolee- 'pitaajee! jab lakshmeejeeko jaana hee hai to ye vastuen milanepar bhee tikengee kaise ? aap inhen maangenge, to bhee ye milengee naheen. aap to maangiye ki kutumbamen prem bana rahe. kutumbamen sab logonmen paraspar preeti rahegee to vipattike din bhee saralataase kat jaayange. 'sethako chhotee bahookee baat pasand aayee. doosaree raatrimen svapnamen unhen phir lakshmeejeeke darshan hue. sethane praarthana kee- ' devi ! aap jaana hee chaahatee hain to prasannataase jaayan; kintu yah varadaan den ki hamaare kutumbiyonmen paraspar prem bana rahe . '

lakshmeejee boleen- 'setha! aisa varadaan tumane maanga ki mujhe baandh hee liya . jis parivaarake sadasyon men paraspar preeti hai, vahaanse main ja kaise sakatee hoon.'

guravo yatr poojyante yatraahvaanan susanskritam .

adantakalaho yatr tatr shakr vasaamyaham ..

devee lakshmeene indrase kaha hai- 'indr ! jis gharamen gurujanonka satkaar hota hai, doosaronke saath jahaan sabhyata poorvak baat kee jaatee hai aur jahaan mukhase bolakar koee kalah naheen karata (doosareke prati manamen krodh aanepar bhee jahaan log chup hee rah jaate hain) main vaheen rahatee hoon . '

- su0 sin0

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मैं तक्दी रह गयी नी सहेलियो लगदा बड़ा
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मैं बरसाने से आयी हूँ, मैं वृषभानु की
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