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स्वप्रके पापका भीषण प्रायश्चित्त  [बोध कथा]
बोध कथा - Moral Story (हिन्दी कथा)

परम संत श्रीबाबा वैष्णवदासजी महाराज बड़े ही उच्चकोटिके श्रीरामभक्त संत थे। आपका सारा समय श्रीरामभजनमें व्यतीत होता था। जो भी दर्शनार्थी आपके पास आता, आप उसे किसी भी जीवको न सताने, सबपर दया करने, जीवमात्रको सुख पहुँचाने और श्रीरामभजन करनेके लिये उपदेश देते थे। आपके सत्सङ्गसे हजारों मनुष्योंने जीवोंकी हत्या करना, मांस मछली, अंडे-मुर्गे खाना, किसीको सताना छोड़ दिया था और श्रीरामभजन करना प्रारम्भ कर दिया था। श्रीहनुमानजी महाराजकी प्रसन्नताके निमित्त आप बंदरोंको लड्डू खिलाते थे और मीठे रोटका भोग लगाते थे।आप मन, कर्म, वचन तीनोंसे किसीको न कभी सताते. न दुःख पहुँचाते थे। और सभीको इसी प्रकारका उपदेश दिया करते थे।

स्वप्रमें किये पापका प्रायश्चित्त-शरीरका त्याग एक दिन नित्यकी भाँति जब भक्त आपके पास आये तो सबने देखा कि आज महात्माजीका चेहरा सदाकी भाँति प्रसन्न नहीं है। क्या कारण है, इसका कुछ पता नहीं है। एक भक्तने उन्हें उदास देखकर पूछा भक्त—महाराजजी! कुछ पूछना चाहता हूँ? महात्माजी – पूछो !

भक्त- आज आप कुछ उदास-से प्रतीत होते हैं ?महात्माजी - हाँ, ठीक, बिलकुल ठीक। भक्त- महाराजजी ! क्यों ?

महात्माजी- हमसे आज एक घोर पाप हो गया। भक्त- महाराज ! क्या पाप हो गया ? महात्माजी - पूछो मत। भक्त-पाप और आपसे हो गया। यह तो असम्भव

है। बतलाइये, क्या हुआ ? महात्माजी- नहीं भैया! हो गया - बस हो गया,

पूछो मत, घोर पाप हो गया ?

भक्त-नहीं महाराज! बताना ही होगा।

महात्माजी- पाप ऐसा हुआ है कि जिसके कारण खाना, पीना, सोना सभी हराम हो गया है। भक्त - महाराज ! आखिर क्या पाप हो गया ? महात्माजी - आज रात्रिको हमने स्वप्न देखा और आगे मत पूछो भैया!

भक्त- नहीं महाराज, बताओ क्या हुआ ?

महात्माजी - अरे भैया ! हुआ क्या, स्वप्नमें हमसे घोर पाप बन गया जो कि महात्माओंसे नहीं होना चाहिये। स्वप्रमें देखा कि हमने स्वप्नमें अपने हाथोंसे किसी बंदरको मार डाला है। यही पाप अब हमें चैनसे नहीं बैठने दे रहा है। हाय! मुझसे स्वप्नमें बंदर मारा गया। मालूम होता है कि मुझसे श्रीहनुमान्जी महाराज अप्रसन्न हैं तभी तो मुझसे ऐसा घोर पाप हुआ।

भक्त- महाराज ! आप चिन्ता न करें। यह तो स्वप्नहै; स्वप्न दीखते ही रहते हैं।

महात्माजी- क्या मुझे ऐसे ही स्वप्र दीखने चाहिये थे? क्या अच्छे स्वप्र मेरे भाग्यमें नहीं लिखे थे। बंदर मारना तो घोर पाप है। इससे बढ़कर और घोर पाप क्या होगा ? शास्त्रोंमें लिखा है कि यदि भूलसे भी बंदर मर जाय तो नरक जाय और जबतक पैदल चारों धामोंकी यात्रा न कर ले, पाप दूर नहीं होता। हाय! मुझसे स्वप्रमें बंदर मारा गया, बड़ा पाप हुआ।

भक्त - महाराज ! आप स्वप्रकी बातोंमें व्यर्थ दुःखी होते हैं। महात्माजी - अरे, स्वप्नमें ऐसा घोर पाप होते देखना क्या उचित था ?

भक्तोंने महात्माजीको खूब समझाया, पर महात्माजीका दुःख दूर नहीं हुआ। आपने स्वप्नमें बंदर मारे जानेके कारण खाना-पीना सब छोड़ दिया और दिन-रात श्रीहनुमान्जी महाराजसे क्षमा-प्रार्थना करनी प्रारम्भ कर दी। एक दिन भक्तोंने आकर देखा कि महात्माजीके

शरीरपर कुछ मला हुआ है और आपके मुखसे श्रीराम रामका उच्चारण हो रहा है और आपका शरीर जल रहा है। भक्त देखकर भागे पर महात्माजीने उन्हें पास आनेसे रोका और कहा 'वहीं रहो, मुझे न छूओ। मैं पापी हूँ, मैंने स्वप्रमें बंदर मार दिया है; अब मैं अपने पापोंका सहर्ष प्रायश्चित्त कर रहा हूँ। संत वह है जो स्वप्रमें भी किसी जीवको न सताये, किसीका जी न दुखाये।'



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svaprake paapaka bheeshan praayashchitta

param sant shreebaaba vaishnavadaasajee mahaaraaj bada़e hee uchchakotike shreeraamabhakt sant the. aapaka saara samay shreeraamabhajanamen vyateet hota thaa. jo bhee darshanaarthee aapake paas aata, aap use kisee bhee jeevako n sataane, sabapar daya karane, jeevamaatrako sukh pahunchaane aur shreeraamabhajan karaneke liye upadesh dete the. aapake satsangase hajaaron manushyonne jeevonkee hatya karana, maans machhalee, ande-murge khaana, kiseeko sataana chhoda़ diya tha aur shreeraamabhajan karana praarambh kar diya thaa. shreehanumaanajee mahaaraajakee prasannataake nimitt aap bandaronko laddoo khilaate the aur meethe rotaka bhog lagaate the.aap man, karm, vachan teenonse kiseeko n kabhee sataate. n duhkh pahunchaate the. aur sabheeko isee prakaaraka upadesh diya karate the.

svapramen kiye paapaka praayashchitta-shareeraka tyaag ek din nityakee bhaanti jab bhakt aapake paas aaye to sabane dekha ki aaj mahaatmaajeeka chehara sadaakee bhaanti prasann naheen hai. kya kaaran hai, isaka kuchh pata naheen hai. ek bhaktane unhen udaas dekhakar poochha bhakta—mahaaraajajee! kuchh poochhana chaahata hoon? mahaatmaajee – poochho !

bhakta- aaj aap kuchh udaasa-se prateet hote hain ?mahaatmaajee - haan, theek, bilakul theeka. bhakta- mahaaraajajee ! kyon ?

mahaatmaajee- hamase aaj ek ghor paap ho gayaa. bhakta- mahaaraaj ! kya paap ho gaya ? mahaatmaajee - poochho mata. bhakta-paap aur aapase ho gayaa. yah to asambhava

hai. batalaaiye, kya hua ? mahaatmaajee- naheen bhaiyaa! ho gaya - bas ho gaya,

poochho mat, ghor paap ho gaya ?

bhakta-naheen mahaaraaja! bataana hee hogaa.

mahaatmaajee- paap aisa hua hai ki jisake kaaran khaana, peena, sona sabhee haraam ho gaya hai. bhakt - mahaaraaj ! aakhir kya paap ho gaya ? mahaatmaajee - aaj raatriko hamane svapn dekha aur aage mat poochho bhaiyaa!

bhakta- naheen mahaaraaj, bataao kya hua ?

mahaatmaajee - are bhaiya ! hua kya, svapnamen hamase ghor paap ban gaya jo ki mahaatmaaonse naheen hona chaahiye. svapramen dekha ki hamane svapnamen apane haathonse kisee bandarako maar daala hai. yahee paap ab hamen chainase naheen baithane de raha hai. haaya! mujhase svapnamen bandar maara gayaa. maaloom hota hai ki mujhase shreehanumaanjee mahaaraaj aprasann hain tabhee to mujhase aisa ghor paap huaa.

bhakta- mahaaraaj ! aap chinta n karen. yah to svapnahai; svapn deekhate hee rahate hain.

mahaatmaajee- kya mujhe aise hee svapr deekhane chaahiye the? kya achchhe svapr mere bhaagyamen naheen likhe the. bandar maarana to ghor paap hai. isase badha़kar aur ghor paap kya hoga ? shaastronmen likha hai ki yadi bhoolase bhee bandar mar jaay to narak jaay aur jabatak paidal chaaron dhaamonkee yaatra n kar le, paap door naheen hotaa. haaya! mujhase svapramen bandar maara gaya, bada़a paap huaa.

bhakt - mahaaraaj ! aap svaprakee baatonmen vyarth duhkhee hote hain. mahaatmaajee - are, svapnamen aisa ghor paap hote dekhana kya uchit tha ?

bhaktonne mahaatmaajeeko khoob samajhaaya, par mahaatmaajeeka duhkh door naheen huaa. aapane svapnamen bandar maare jaaneke kaaran khaanaa-peena sab chhoda़ diya aur dina-raat shreehanumaanjee mahaaraajase kshamaa-praarthana karanee praarambh kar dee. ek din bhaktonne aakar dekha ki mahaatmaajeeke

shareerapar kuchh mala hua hai aur aapake mukhase shreeraam raamaka uchchaaran ho raha hai aur aapaka shareer jal raha hai. bhakt dekhakar bhaage par mahaatmaajeene unhen paas aanese roka aur kaha 'vaheen raho, mujhe n chhooo. main paapee hoon, mainne svapramen bandar maar diya hai; ab main apane paaponka saharsh praayashchitt kar raha hoon. sant vah hai jo svapramen bhee kisee jeevako n sataaye, kiseeka jee n dukhaaye.'

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